
मृदा की जांच कराना आवश्यक क्यों? Publish Date : 10/04/2025
मृदा की जांच कराना आवश्यक क्यों?
प्रोफेसर आर. एस. सेंगर
किसान भाइयों जैसे इंसानों के लिए खून की जांच जरूरी है वैसे ही मिट्टी की जांच भी बहुत आवश्यक है। मिट्टी की जांच करवाने से मिट्टी में उपलब्ध पोषक तत्वों के बारे में जानकारी मिलती। किस खनिज, जीवाश्म एवं पोषक तत्वों की कमी एवं किसकी अधिकता है उसी हिसाब से किसान उसकी पूर्ति कर सकता है।
जीव-जन्तुओं की तरह ही पेड़-पौधों को अपना जीवन चक्र पूर्ण करने के लिए मृदा में उपलब्ध 20 प्रकार के पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है और हमारी मृदा में इन पोषक तत्वों की उपलब्धता कितनी है और इनकी गुणवत्ता कैसी है, इस स्थिति के आकलन के लिए खेत की मृदा की जांच वैज्ञानिक ढंग से कराने की आवश्यकता होती है। जांच की इस प्रक्रिय के दौरान मृदा की भौतिक, रासायनिक और जैविक विशेषताओं का गहन अध्ययन किया जाता है, जिससे मृदा की उर्वरता, संरचना और उपयोगिता को निर्धारित किया जाता है।
जांच के लिए मृदा का नमूना (सेम्पल) लेते समय अपेक्षित सावधानियाँ
1. खाद के ढेर, खेत की मेढ़ और सिंचाई करने की नाली के आसपास की मिट्टी को जांच के सेम्पल नहीं लेना चाहिए।
2. खेत में उपलब्ध पेड़/वृक्ष की जड़ के आसपास का नमूना भी मिट्टी की जांच के लिए नहीं लेना चाहिए।
3. मिट्टी की जांच के लिए खेत की गीली मिट्टी का नमूना भी नहीं लेना चाहिए।
4. मिट्टी की जांच के लिए लिये गये नमूने को किसी प्लास्टिक के बैग में रखना चाहिए, इस कार्य के लिए किसी रासायनिक खाद या कीटनाशक आदि के खाली बैग का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
5. ऊसर अथवा किसी अन्य समस्या से ग्रस्त खेत या उसके किसी भी भाग का नमूना मिट्टी की जांच के लिए अलग से ही लेना चाहिए।
मृदा का भौतिक जांच
मृदा के भौतिक जांच के अंतर्गत मिट्टी की संरचना, बनावट और उसकी आंतरिक विशेषताओं की जांच की जाती है।
भौतिक निरीक्षण
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इस दौरान मृदा का रंग, बनावट, नमी का स्तर और उसकी सतह की संरचना देखी जाती है।
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गहरे काले रंग की मृदा, मृदा में उपलब्ध उच्च कार्बनिक पदार्थ की उपस्थिति का संकेत देती है।
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इसी प्रकार हल्की पीली अथवा सफेद रंग की मिट्टी, मृदा की लवणीयता को दर्शाती है।
मृदा का स्पर्श परीक्षण
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मिट्टी को हाथ में लेकर मृदा की चिकनाहट अथवा उसके खुरदरेपन की जांच की जाती है।
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चिकनी मिट्टी चिपचिपी होती है तो रेतीली मिट्टी खुरदरी होती है।
मिट्टी का गोलाकार परीक्षण
इस परीक्षण के दौरान मिट्टी को नम करके उसकी गेंद बनाई जाती है।
यदि मिट्टी की यह गेंद आसानी से टूट जाती है तो यह मिट्टी के रेतीली होने का संकेत होता है, जबकि यदि गेंद बनी रहती है तो यह इस बात का संकेत होता है कि खेत की मृदा में चिकनी मिट्टी के अंश की अधिकता है।
मृदा का सेटलिंग टेस्ट
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इस परीक्षण के दौरान किसी काँच की बोतल में आधी मिट्टी और आधा पानी मिलाकर इसे हिलाया जाता है।
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इसमें रेत तो नीचे बैठ जाती है, उसके ऊपर गाद और सबसे ऊपर चिकनी मिट्टी होती है।
मृदा की रासायनिक जांच
पीएच मीटर अथवा लिटमस पेपर के माध्यम से मृदा की अम्लीयता अथवा क्षरीयता की जांच की जाती है।
यदि पीएच 6 से कम है तो यह मिट्टी के अम्लीय होने का संकेत होता है, पीएच का मान 7 के आसपास होने पर इसे तटस्थ मिट्टी और पीएच के 7 से अधिक होने पर मिट्टी क्षारीय हाने का संकेत होता है।
मृदा में नाईट्रोजन, फॉस्फोरस एवं पोटाश की जांच
प्रयोगशाला में मिट्टी के परीक्षण के माध्यम से मिट्टी में नाईट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटाश आदि के स्तर की जांच की जाती है।
मिट्टी में उपलब्ध इन पोषक तत्वों की संतुलित मात्रा मृदा की उर्वरता को बनाए रखती है।
मिट्टी की विद्युत चालकता का परीक्षण
मिट्टी के इस परीक्षण के दौरान मिट्टी में घुले हुए लवणों की मात्रा को मापा जाता है।
मृदा की उच्च विद्युत चालकता दर्शाती है कि मिट्टी में लवण की अधिक मात्रा है, जो फसल के लिए हानिकारक हो सकती है।
मृदा का कार्बनिक परीक्षण
मृदा में उपलक्ब्ध जीवांश पदार्थ (ह्यूमस) की मात्रा को ऑक्सीडेशन की प्रक्रिया के द्वारा मापी जाती है।
अधिक ह्यूमस वाली मृदा अधिक उपजाऊ होती है।
मृदा का जैविक परीक्षण
मृदा में उपस्थित लाभकारी सूक्ष्मजीवों और जैविक तत्वों का विश्लेषण करना उत्त्म कृषि उत्पादन के लिए आवश्यक होता है।
मृदा का जैविक कार्बन परीक्षण
इस परीक्षण के माध्यम से मिट्टी में उपलब्ध जैविक पदार्थ की मात्रा को मापा जाता है।
मिट्टी में उपलब्ध जैविक कार्बन की उच्च मात्रा, मृदा की उर्वरता में वृद्वि करता है।
मिट्टी का माइक्रोबियल एक्टिीविटी टेस्ट
मिट्टी के इस परीक्षण के दौरान मृदा में उपलब्ध लाभकारी सूक्ष्मजीवों (यथा बैक्टीरिया और कवक आदि) की सक्रियता का विशलेषण किया जाता है।
सूक्ष्मजीवों की उच्च गतिविधियाँ मिट्टी को अधिक उपजाऊ बनाती हैं।
मृदा परीक्षण के लाभ
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मिट्टी के परीक्षण से मिट्टी की उर्वरता और उसकी पोषण क्षमता ज्ञात होती है।
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यह उचित फसलों की बुवाई करने में सहायक होता है।
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उर्वरक एवं जल के अतिरिक्त प्रयोग से बचाव होता है।
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मृदा परीक्षण के माध्यम से कृषि के उत्पादन में वृद्वि होती है।
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इससे भूमि की उर्वरता को दीर्घकालिक बनाए रखना सम्भव होता है।
निष्कर्ष
मिट्टी की जांच वैज्ञानिक तरीके से कराने से मृदा की गुणवत्ता और उपयोगिता को समझने में आसानी होती है। परीक्षण की विभिन्न प्रक्रियाओं के माध्यम से मिट्टी की संरचना, पोषक तत्व और उसकी जैविक स्थिति का विशलेषण किया जाता है, जिसके माध्यम से कृषि, बागवानी और निर्माण कार्य आदि के सर्वोत्तम परिणामों को प्राप्त किया जा सकता है।
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।