आखिर हादसों की जगह क्यों बन रहे हैं श्मशान स्थल      Publish Date : 08/04/2025

    आखिर हादसों की जगह क्यों बन रहे हैं श्मशान स्थल

श्मशान स्थलों की बदहाली को लेकर चुप्पी तोड़ें, प्रशासन पर दबाव बनाएं, ताकि ये हादसों की वजह न बनें

                                                

मृत्यु अपने आप में एक अटल सत्य है और किसी की मौत के बाद शव में बदले इस शरीर का क्रिया-कर्म करने के लिए श्मशान स्थल हर गांव और शहर की जरूरत होते हैं, लेकिन इनके नाम से ही डर लगता है। सामान्य दिनों में तो लोग इन स्थलों की ओर जाना तक भी पसंद नहीं करते। यही कारण है कि इनके रखरखाव में पंचायत, प्रशासन और आम आदमी की कोई रूचि भी नहीं होती है। यही कारण है कि इन स्थानों पर अक्सर हादसे होते रहते हैं।

श्मशान स्थलों पर मधुमक्खियों के हमले में शव यात्रा में शामिल लोगों के घायल होने की घटनाएं तो आए दिन सामने आती ही रहती है। अभी भीलवाड़ा के जबरकिया गांव में गत सोमवार को हुआ हादसा भी इस समस्या की गंभीरता को दर्शाता है। मधुमक्खियों ने शव यात्रा में शामिल 60 लोगों को काट लिया, जिनमें से नौ लोगों की हालत अभी भी गंभीर बनी हुई है। दुःख इस बात का है कि इस प्रकार के हादसों को रोकने के लिए कहीं कोई भी सक्रियता दिखाई नहीं देती है।

दरअसल देखभाल के अभाव में अक्सर इन श्मशान स्थलों पर झाड़ियां फैली रहती हैं और पेड़ जंगल की तरह से फैले रहते हैं। इनकी समय-समय पर छितराई कराने पर ध्यान नहीं दिया जाता। साथ ही यह भी देखा गया है कि इन स्थानों तक पहुंचने का रास्ता भी ठीक नहीं होता है।

                                           

बारिश के दिनों में तो लोगों को कीचड़ में अपनी जान जोखिम में डालकर इन स्थानों पर जाना पड़ता है। श्मशान स्थलों को लेकर फैले अंधविश्वास के कारण सामान्य लोग तो इन स्थानों का नाम तक लेने से बचते हैं, लेकिन जनप्रतिनिधियों, पंचायतों और प्रशासन को तो अपनी जिम्मेदारी समझनी चाहिए।

कुछ शहरों में तो श्मशान स्थलों की देखरेख के लिए समितियां भी बनी हुई हैं। शहरों में प्रशासन के साथ आम जन भी जागरूक है, लेकिन गांवों में तो यह समस्या बहुत गंभीर है। इस अवयवस्था के चलते शवों का दाह संस्कार करना भी एक चुनौती बना हुआ है।

जिन गांवों-पंचायतों में जनप्रतिनिधि जागरूक है, वहां के श्मशान स्थलों की देखरेख को लेकर जरूर जागरूकता है, लेकिन अधिकतर गांवों में श्मशान स्थल हादसों को आमंत्रित करते ही नजर आते हैं। आम जनता की भी यह जिम्मेदारी है कि वह अपनी समस्याओं को मुखरता से उठाए। श्मशान स्थलों की बदहाली को लेकर चुप्पी तोड़ें। पंचायतों और प्रशासन पर दबाव बनाएं, ताकि यह स्थल हादसों की वजह न बनें। बेहतर तो यह है कि पूरे प्रदेश में श्मशान स्थलों की हालत ठीक करने का अभियान चलाया जाना चाहिए।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल   कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।