
सटीकता का विज्ञान: जीवन, रोगी, और फसल – एक संतुलन की खोज Publish Date : 28/03/2025
सटीकता का विज्ञान: जीवन, रोगी, और फसल – एक संतुलन की खोज
डॉ. वीरेन्द्र सिंह गहलान
जीवन एक प्रयोगशाला है, जहाँ हर निर्णय एक सटीक गणना की माँग करता है। चाहे वह किसी रोगी के लिए दी जाने वाली औषधि की मात्रा हो, खेत में फसलों को दी जाने वाली खाद या जल की खुराक हो, या फिर मनुष्य के सामाजिक जीवन में उसके कार्यों की सीमा—हर जगह संतुलन और सटीकता अनिवार्य है। एक छोटी सी चूक भी जीवन की दिशा को बदल सकती है।
1. रोगी को चाहिए सटीक औषधि मात्रा
एक डॉक्टर जब किसी रोगी को दवा देता है, तो वह "न कम, न ज्यादा" की अवधारणा पर काम करता है। यदि दवा कम दी जाए, तो रोग ठीक नहीं होगा; यदि अधिक दी जाए, तो दवा स्वयं ज़हर बन सकती है। यही कारण है कि मेडिकल साइंस में “Therapeutic Dose” और “Toxic Dose” के बीच एक सटीक सीमा तय की जाती है। यह ठीक वैसा ही है जैसे ऊँट की कहानी में 100 ग्राम का फ़ैसला था— सीमा के भीतर रहे, तो संतुलन; सीमा पार की, तो अनर्थ निश्चित् है।
2. फसल को चाहिए सटीक पोषण और सुरक्षा
खेती में भी यही सिद्धांत लागू होता है। यदि किसी खेत में खाद, पानी या कीटनाशक जरूरत से कम डाला जाए, तो उत्पादन घट जाता है। यदि जरूरत से अधिक डाल दिया जाए, तो मिट्टी की उर्वरता बिगड़ सकती है और पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। कृषि विज्ञान में “Law of Minimum” और “Law of Tolerance” यही बताता है कि संतुलन बनाए रखना क्यों ज़रूरी है।
3. मनुष्य को चाहिए सटीकता का मार्ग
मनुष्य के सामाजिक और व्यक्तिगत जीवन में भी सटीकता का वही महत्व है। यदि व्यक्ति अपने शब्दों और कार्यों में संतुलन नहीं रखता, तो या तो वह लोगों से कट जाता है या फिर विवादों में घिर जाता है। किसी भी समाज में सफलता उन्हीं लोगों को मिलती है जो अपने व्यवहार में संयम, संतुलन और सटीकता रखते हैं।
सटीकता का विज्ञान हमें क्या सिखाता है?
1. हर चीज़ की एक सीमा होती है: किसी भी वस्तु, व्यवहार या प्रक्रिया की एक Critical Difference (CD) Limit होती है, जिसे पार करने पर परिणाम अस्थिर हो सकते हैं।
2. छोटी चीज़ें भी बड़ा फर्क डालती हैं: 100 ग्राम का फ़ैसला केवल ऊँट पर ही नहीं, बल्कि हर क्षेत्र में लागू होता है— चाहे वह मानव स्वास्थ्य हो, फसल उत्पादन हो, या सामाजिक आचरण।
3. संतुलन और सटीकता सफलता की कुंजी है: व्यक्ति को अपने कार्यों, विचारों और निर्णयों में सटीकता रखनी चाहिए, ताकि वह अपने जीवन और समाज में सकारात्मक योगदान दे सके।
निष्कर्ष
जीवन में किसी भी चीज़ की अधिकता या कमी संतुलन को बिगाड़ सकती है। चाहे रोगी के लिए औषधि हो, फसलों के लिए पोषण हो, या जीवन में लिए गए निर्णय हों— हर जगह सटीकता और संतुलन ही सही परिणाम लाते हैं। जो व्यक्ति इस सटीकता को समझता है, वही अपने स्वास्थ्य, कृषि, व्यवसाय और सामाजिक जीवन में सफल होता है।
"सबको चाहिए एक सटीक खुराक, न कम न ज्यादा। जीवन में सटीकता ही वास्तविक सफलता की कुंजी है।"
लेखक: डॉ. वीरेन्द्र सिंह गहलान, सस्यविद, Ex. Chief Scientist, CSIR-IHBT, Palampur Himachal Pradesh.