हल्दी की सूखी पत्तियों के तेल से मरेंगे मच्छर      Publish Date : 22/03/2025

        हल्दी की सूखी पत्तियों के तेल से मरेंगे मच्छर

                                                                                                            प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 कृशानु

गर्मियों में मक्खी और मच्छरों के कारण प्रतिवर्ष देश में लाखों लोग बीमार पड़ते हैं और इनके कारण फसल को भी नुकसान होता है। बचाव के लिए बाजार में नुकसानदायक केमिकल्स से बने कुछ उत्पादों का प्रयोग करना पड़ता है, लेकिन अब लोगों को इनकी जरूरत नहीं होगी और न ही दम घोंटने वाले क्वायल को जलाना पड़ेगा।

                                          

हल्दी के पत्तों से तैयार तेल इसका विकल्प बनने के लिए अब बिलकुल तैयार है। पूरी तरह से प्राकृतिक इस तेल को बनाने में सफलता पाई है बिहार के समस्तीपुर जिले के पूसा स्थित डा. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय के विज्ञानियों ने। उन्होंने इसका नाम ‘करक्यूमिन आयल’ रखा है। यह तेल बीजों का संरक्षण करने में भी उपयोगी है। इससे बीजों का अंकुरण प्रभावित नहीं होता है।

इस तेल को पेटेंट कराने की तैयारी की जा रही है। कृषि विश्वविद्यालय द्वारा हल्दी के पत्ते से तेल निकालने पर अनुसंधान वर्ष 2019 में शुरू किया गया था। अब इस तकनीक से किसानों को भी अवगत कराया जा रहा है।

विज्ञानी डॉ0 किरण बताती हैं हल्दी के पत्तों में करक्यूमिन रसायन नामक एक पाया जाता है। यह रसायन ही हल्दी को औषधीय गुण प्रदान करता है। प्रयोगशाला में पत्तों से तेल तैयार करने की प्रक्रिया स्तरों में सम्पन्न होती हैं।

‘‘वन डिस्ट्रिक्ट-वन प्रोडक्ट’’ में समस्तीपुर की हल्दी चयनित

                                         

समस्तीपुर के किसान रामजी प्रसाद बतातें हैं कि समस्तीपुर में करीब पांच हजार हेक्टेयर क्षेत्र में हल्दी की खेती की जाती है। ‘‘वन डिस्ट्रिक्ट-वन प्रोडक्ट’’ के तहत समस्तीपुर के लिए हल्दी का चयन किया गया है। किसान अब तक हल्दी के पत्तों खेत में ही जला देते थे, लेकिन अब इनसे तेल निकालने की विधि के अंतर्गत इसके पत्तों का उपयोग किया जा सकेगा।

विश्वविद्यालय के विज्ञानी महत्वपूर्ण शोध कर रहे हैं। हल्दी से तेल निकालने और उसके प्रयोग पर विज्ञानियों ने बेहतर काम किया है। यह कई प्रकार से महत्वपूर्ण है। अब हल्दी के तेल का पेटेंट कराने के लिए भेजे जाने की तैयारी चल रही है। इससे किसानों को दोहरा लाभ होगा और वायु प्रदूषण की समस्या भी कम होगी।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल   कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।