
मुंजा घास से निर्मित विभिन्न उत्पाद Publish Date : 20/03/2025
मुंजा घास से निर्मित विभिन्न उत्पाद
प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 कृशानु
मुंजा एक बहुवर्षीय घास है, जो गन्ना प्रजाति की होती है। यह ग्रेमिनी कुल की सदस्य है। इसका प्रसारण जड़ों एवं सकर्स द्वारा होता है। यह वर्ष भर हरी-भरी रहती है। इसके पौधों की लम्बाई 5 मीटर तक होती है। वैसे देखा जाये तो यह एक खरपतवार है, जो खेतों में पाया जाता है। बारानी एवं मरूस्थलीय प्रदेशों में इसका उपयोग मृदा कटाव व अपक्षरण रोकने में बहुत किया जाता है। मुंजा के पौधा नहीं पनपता, वहां पर यह खरपतवार आसानी से विकसित हो जाती है।
यह गोचर, ओरण आदि जगहों पर प्राकृतिक रूप से उग जाती है। इसकी पत्तियां बहुत तेज होती है, हाथ या शरीर का कोई भाग लग जाये तो एह स्थान कट जाता है और खून बहने लगता है। इस प्रकृति के कारण किसान अपने खेत के चचारों ओर मेड़ों पर लगाते हैं। इससे जंगली जानवरों से फसल सुरक्षा मिलती है।
मुंजा, नदियों के किनारे, सड़कों, हाईवे, रेलवे लाइनों और तालाबों के पास जहाँ खाली जगह हो, वहां पर प्राकृतिक रूप से उग जाती है। इसके पौधे, पत्तियों, जड़ व तने सभी औषधीय या अन्य किसी न किसी प्रकार उपयोग में लाये जाते हैं। इसकी हरी पत्तियां पशुओं के चारे के लिए प्रयोग में आती हैं। जब अकाल पड़ता है इउस समय इसकी पत्तियों को शुष्क क्षेत्रों में गाय व भैंस को हरे चारे के रूप में खिलाया जाता है। पत्तियों की कूट्टियों करके पशुओं को खिलाने से हरे चारे की पूर्ति हो जाती है।
यह बहुवर्षीय घास भारत, पाकिस्तान एवं अफगानिस्तान के सूखा प्रभावित क्षेत्रों में पायी जाती है। इसकी जड़ों से औषधियां भी बनाई जाती हैं। राष्ट्रीय स्तर पर इनकी और खपत बढ़ने की प्रबल संभावनाएं हैं। पुराने समय में जब अंग्रेजी दवाइयों का प्रचलन नहीं था तो औषधिय पौधों को वैद्य और हकीम विभिन्न बीमारियों के उपचार के लिए प्रयोग में लाते थे। हमारे कई ग्रंथों में बहुत से बहुमूल्य जीवनरक्षक दवाइयां बनाने वाली बूटियों का विस्तृत वर्णन किया गया है।
इसमें सरकंडा (मुंजा) की जड़ों का औषधीय उपयोग का भी उल्लेख है। आधुनिक युग में औषधीय पौधों का प्रचार व उपयोग अत्यधिक बढ़ गया है। इसका सीधा असर इनकी उपलब्धता व गुणवत्ता पर पड़ता है।
कैसे करें खेती
यह ढलानदार, रेतीली, नालों के किनारे व हल्की मिट्टी वाले क्षेत्रों में आसानी से उगाया जा सकता है। यह मुख्यतः जड़ों द्वारा रोपित किया जाता है। एक मुख्य पौधे (मदर प्लांट) से तैयार होने वाले 25 से 40 छोटी जड़ों द्वारा इसे लगाया जाता है। जूलाई में जब पौधों से नए सर्कस निकलने लगे तब उन्हें मेड़ों, टिब्बों और ढलान वाले क्षेत्रों में रोपित करना चाहिए। नई जड़ों से पौधे दो महीने में पूर्ण तैयार हो जाते हैं इनको 30x30x30 सें मीटर आकार गड्ढों में 75x60 सें. मी. की दूरी लगाना चाहिए।
इसकी 30,000 से 35,000 जड़ें या सकर्स प्रति हे. लगाई जा सकती हैं। पहाड़ों और रेतीले टिब्बों पर ढलान की ओर इसकी फसल लेने पर मृदा कटाव रूक जाता है। जब पौधे खेत में लगा देते हैं तो उसके दो माहीने बाद पशुओं से बचाना चाहिये। सूखे क्षेत्रों में लगाने के तुरंत बाद पानी अवश्य देना चाहिए। इससे पौधे हरे व स्वस्थ रहते हैं तथा जड़ों का विकास अच्छी तरह से होता है।
पानी का जमाव पौधे की जड़ों का विकास कम हो जाता है। इसकी खेती सूखाग्रस्त क्षेत्रों के लिए काफी उपयोगी हो सकती है। पहली बार लगभग 12 महीने के बाद मुंजा को जड़ों से 30 सें. मी. ऊपर काटना चाहिए। इससे दुबारा फुटान अधिक होती है। यदि देखा जाये तो एक पूर्ण विकसित पौधे से जड़ों का गुच्छा बन जाता है। इससे लगभग 30-50 कल्लों, सरकंडों) का गुच्छा बन जाता है, जो 30 से 35 वर्षों तक उत्पादन देता रहता है।
पूर्ण विकसित मुंजा के गुच्छे से प्रतिवर्ष कटाई करते रहना चाहिए। इससे मिलने वाले उत्पादों से अधिक लाभ कमाया जा सकता है। इसे बाजार में 4-5 रूपये प्रति कि. ग्रा. की दर से ताजा भी बेचा जा सकता है। मुंजा को रासायनिक खाद की आवश्यकता नहीं पड़ती फिर भी यदि आवश्यकता हो तो 15-20 टन प्रति हे. देसी खाद डालनी चाहिए। इसकी औसत पैदावार 350-400 क्विं. प्रति हे. प्राप्त की जा सकती है।
उपयोग
मुंजा को ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी बहुत अधिक प्रयोग में लाया जाता है। इसको जड़ों और पत्तियों का प्रयोग विभिन्न प्रकार की औषधियां बनाने में किया जाता है। मुंजा एक लाभदायक खरपतवार है। इसके लाभ ज्यादा हैं और ग्रामीण क्षेत्रों में इससे ग्रामीणों को रोजगार मिलता है। भारत, पाकिस्तान एवं अफगानिस्तान आदि देशों में मुंजा से ग्रामीण क्षेत्रों में लगभग 33 प्रतिशत रोजगार मिलता है।
आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में शादी-पार्टियों में इससे बने उत्पाद काम में लिए जाते हैं। वैज्ञानिक तौर पर देखें तो पाया गया है कि इसकी रस्सी से बनी चारपाई बीमार व्यक्तियों के स्वास्थ्य के लिए बहुत उपयोगी है। मुंजा की रस्सियों से बनी चारपाई पर सोने से कमर दर्द और हाथ-पैर में दर्द नहीं होता है। पशुओं के पैर में हड्डियां टूट जाने पर इसके सरकंडों को मुंजा की रस्सी से चारों तरफ बांधने पर आराम मिलता है। पशुओं व मनुष्यों में इससे बने छप्पर के नीचे सोने पर गर्म लू का प्रभाव कम हो जाता है।
कटाई एवं उपज
मुंजा की कटाई प्रतिवर्ष अक्टूबर से नवंबर में करनी चाहिए। कटाई उस समय उचित मानी जाती है, जब इसकी ऊंचाई 10 से 12 फीट हो जाये तथा पत्तियां सूखने लगे व पीले रंग में परिवर्तित हो जाएँ। कटाई के बाद सरकंडों को सूखने के लिए 5-8 दिनों तक खेत में इकट्ठा करके फूल वाला भाग ऊपर तथा जड़ वाला भाग नीचे करके खेत में मेड़ों के पास खड़ा करके सुखाना चाहिए। सूखने के बाद कल्लों से फूल वाला भाग अलग कर लेना चाहिए। सूखे हुए सरकंडों से पत्तियां, कल्ले और फूल वाला भाग अलग कर लेना चाहिए। इस प्रकार प्रति हे. 350-400 क्विं उपज प्राप्त की जा सकती है। एक अनुमान के अनुसार इससे प्रतिक हे. औसतन 85,000 से 10,000 रूपये आय प्राप्त की जा सकती है।
मुंजा के विभिन्न उपयोग
- मुंजा को घरेलू घरेलू जरूरत की वस्तुयें बनाने में अधिक प्रयोग में लाया जाता है। जैसा- मचला, चारपाई, बीज साफ करने के लिए छाज, रस्सी, बच्चों का झूला, छप्पर, बैठने का मूढ़ा आदि सजावटी समान बनया जाता है।
- रेगिस्तान क्षेत्र जहाँ पर रेतीली मृदा हो, उन क्षेत्रों में हवा द्वारा मृदा कटाव एक बड़ी समस्या है। ऐसे स्थानों मुंजा एक सफल पौधा हम जो मृदा कटाव को 75 प्रतिशत तक कम करता है।
- बड़े-बड़े खेतों के चारों ओर मेड़ों पर मुंजा लगाने से बाहरी तेज व गर्म हवाओं स फसल को लू के प्रकोप से बचाया जा सकता है।
- गर्मी में खीरावार्गीय सब्जियों की रोपाई के बाद तेज धुप से बचाव के लिए मुंजा के सरकंडों का प्रयोग छाया के लिए किया जाता है। इससे लू का प्रकोप लताओं पर्ण नहीं पड़ता तथा लताएँ स्वस्थ रहती हैं।
- इसके सरकंडों का प्रयोग छप्पर बनाने में किया जाता है। बड़े-बड़े राष्ट्रीय मार्गों पर होटलों एवं रेस्तरां में विभिन्न प्रकार के आकर्षक छप्पर बनाने में भी इसका प्रयोग किया जाता है। यह गर्मी में बहुत ठंडी रहती है। रेतीले क्षेत्रों में वर्षों के समय जब पानी का बहाव ज्यादा जो, उस वक्त इसका प्रयोग मृदा कटाव रोकने में किया जाता है।
- ग्रामीण महिलाऐं इसकी फूल वाली डंडी से विभिन्न प्रकार की आकर्षक वस्तुयें जैसे- छबड़ी, चटाई, पंखी, इंडी का घेरा आदि बनाती है।
- सरकंडों का प्रयोग ज्यादातर पौधशाला एवं वर्मीकम्पोस्ट बनाने वाली इकाइयों को छायादार बनाने में किया जाता है।
- इसका उपयोग जैविक पलवार के रूप में भी किया जाता है।
- मुंजा का प्रयोग ग्रीसिंग पेपर बनाने में किया जाता है।
- इसकी जड़ों के पास से निकली नई सकर्स का उपयोग चावल के साथ उबालकर खाने में किया जाता है।
- कम वर्षा वाले क्षेत्रों में इसके सरकंडों से चारा संग्रहण के लिए एक गोल आकार की संरचना बनाकर किसान सूखे चारे व बीजों को स्टोर करते हैं, जो 10-12 वर्षों तक ख़राब नहीं होता है।
- यह पशुओं के लिए बिछावन बनाने काम आता है।
- फसलों को पाले से बचाने में किसान इसका उपयोग करते हैं।
- भेड़ बकरियों का बाड़ा बनाने में इसके सरकंडों का इस्तेमाल किया जाता है।
- इसकी राख से कीटनाशक जैविक उत्पादक बनाया जाता है।
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।