
कृषि में AI तकनीकी का महत्व Publish Date : 11/03/2025
कृषि में AI तकनीकी का महत्व
प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं इं0 कार्तिकेय
Use of AI in Agriculture: किस प्रकार किसान AI के उपयोग से स्वयं को समृद्ध और भारत को मजबूत बना रहे हैं।
कृषि हमारी दुनिया का सबसे पुराना और ज़रूरी काम है, जो अब नई-नई तकनीक के साथ बदल रहा है। इस बदलाव में सबसे बड़ा रोल आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) का है। भारत में, खेती अर्थव्यवस्था की रीढ़ है और यहां की GDP में 15-18 प्रतिशत तक का हिस्सा देती है कृषि के क्षेत्र में AI नई उम्मीदें लेकर आया है।
इससे न सिर्फ किसानों की आय बढ़ रही है, बल्कि फसल उत्पादन भी बेहतर हो रहा है। ऐसे में हमारे विशेषज्ञ आपको बता रहे हैं कि भारत के कौन-कौन से राज्यों में किसान किस तरह से AI का उपयोग कर, स्वयं को समृद्ध और भारत को मजबूत बना रहे हैं। साथ ही ये भी जानेंगे कि नई तकनीक के उपयोग से किसानों को कितना फायदा हुआ है।
AI ने खेती को भी अब काफी आसान बना दिया है और किसानों को मज़बूत किया है। मिसाल के तौर पर, तेलंगाना के ‘सागु बागु’ प्रोजेक्ट में 7,000 मिर्च किसानों ने AI चैटबॉट से सलाह ली और पैदावार को 21 प्रतिशत तक बढ़ा लिया है। यह तकनीक मौसम का हाल बताती है, मिट्टी की सेहत चेक करती है, और बीमारियां भी पकड़ लेती है। पहले मिट्टी की जांच के लिए लैब जाना पड़ता था, लेकिन अब AI डेटा से बता देता है कि आपको कितनी खाद प्रयोग करनी चाहिए।
महाराष्ट्र में ‘कृषि तंत्र’ ने AI के माध्यम से मिट्टी टेस्ट करके खाद का सही इस्तेमाल करना सिखाया, जिससे फसल की पैदावार 15-20 प्रतिशत तक बढ़ गई। आंध्र प्रदेश में माइक्रोसॉफ्ट का AI ऐप मौसम देखकर बुआई का सही वक्त बताता है, जिससे पैदावार 30 प्रतिशत तक तक बढ़ गई है। सरकार भी अब इस पर काफी जोर दे रही है। उत्तर प्रदेश में ‘किसान ड्रोन’ योजना के तहत ड्रोन खेतों की देखभाल करते हैं, जिससे किसान की मेहनत 40 प्रतिशत तक कम हुई है और फसल उत्पादन 15 प्रतिशत तक बढ़ा है।
हाल ही में बारामती, महाराष्ट्र के गन्ना किसानों ने माइक्रोसॉफ्ट की एआई टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है। इसमें किसान खेत में एक मेटल स्ट्रक्चर लगाते हैं, जिससे मौसम और मिट्टी की क्वालिटी का पता लगता है। किसानों को Mobile app पर रोजाना alerts मिलते हैं। अब इस तकनीक को केवल बड़े किसान ही नहीं बल्कि छोटे किसान भी आसानी से अपना रहे हैं, क्योंकि इसके लिए बस एक फोन चाहिए होता है। अब सब कुछ बदल रहा है, या ये कहें कि AI अब दुनिया को बदल रहा है। आइए समझते हैं कृषि की दुनिया में ये बदलाव कहां और कैसे हो रहा है।
1. सागु बागु प्रोजेक्ट (तेलंगाना)
तेलंगाना सरकार ने वर्ष 2021 में ‘सागु बागु’ नाम का एक पायलट प्रोजेक्ट आरम्भ किया, जिसमें 7,000 मिर्च किसानों को AI टूल्स दिए गए। इसमें डिजिटल ग्रीन और माइक्रोसॉफ्ट जैसी कंपनियों ने साथ दिया। इसके लिए एक Whatsapp chatbot बनाया गया जो तेलुगु में किसानों को फसल की हर स्टेज पर सलाह देता था, जैसे कि कब पानी देना है, कब कीटनाशक डालना है, आदि।
साथ ही, AgNext नाम की कंपनी ने कंप्यूटर विजन से मिर्च की क्वालिटी चेक की, जैसे रंग, साइज़ और खराबी। इसका नतीजा यह रहा कि 18 महीने में किसानों की पैदावार प्रति एकड़ 21 प्रतिशत तक बढ़ी, कीटनाशक 9 प्रतिशत और खाद 5 प्रतिशत कम लगी। उनकी आमदनी भी प्रति एकड़ करीब 66,000 रुपये बढ़ गई। अब इसे 5 लाख किसानों तक ले जाने की योजना है। यह दिखाता है कि AI छोटे किसानों के लिए भी सस्ता और कारगर हो सकता है।
2. माइक्रोसॉफ्ट का AI-सोइंग ऐप (आंध्र प्रदेश)
2016 में माइक्रोसॉफ्ट और ICRISAT ने मिलकर एक AI ऐप बनाया, जिसे आंध्र प्रदेश के 175 किसानों ने टेस्ट किया। यह ऐप पिछले 30 साल के मौसम का डेटा, मिट्टी की जानकारी और बारिश के पैटर्न को देखकर बताता था। बीज कब बोना चाहिए. किसानों को सलाह SMS के जरिए तेलुगु भाषा में भेजी जाती थी। इसका नतीजा यह रहा कि जिन किसानों ने इस ऐप का इस्तेमाल किया, उनकी पैदावार 30 प्रतिशत तक बढ़ गई। सही वक्त पर बोआई से बीज और खाद की बर्बादी भी कम हुई, जो यह साबित करता है कि AI के लिए बड़े-बड़े गैजेट्स की ज़रूरत नहीं, एक साधारण फोन ही बहुत होता है।
3. क्रॉपइन का स्मार्टफार्म (कई राज्य)
क्रॉपइन एक भारतीय स्टार्टअप है जो पंजाब, महाराष्ट्र, कर्नाटक जैसे राज्यों में किसानों के साथ काम करता है। इसके “Smart farm” से खेतों की निगरानी की जाती है। यह बताता है कि फसल की सेहत कैसी है, कीटों का खतरा है या नहीं और फसल को कितना पानी चाहिए। इस तकनीक से नतीजा ये निकला कि किसानों को रियल-टाइम अलर्ट मिलने से फसल का नुकसान 20-30 प्रतिशत तक कम हुआ और पैदावार में बढ़ोत्तरी हुई। बड़े व्यापारियों को भी इससे फसल की ट्रेसबिलिटी मिली। यह मॉडर्न और ट्रेडिशनल खेती के Prediction से खेतों की निगरानी की जाती है। यह बताता है कि फसल की सेहत कैसी है, कीटों का खतरा है या नहीं और फसल को कितना पानी चाहिए। इस तकनीक से नतीजा ये निकला कि किसानों को रियल-टाइम अलर्ट मिलने से फसल का नुकसान 20-30 प्रतिशत तक कम हुआ और पैदावार में बढ़ोत्तरी हुई। बड़े व्यापारियों को भी इससे फसल की ट्रेसबिलिटी मिली। यह मॉडर्न और ट्रेडिशनल खेती के fusion का एक अच्छा उदाहरण है।
4. प्लांटिक्स ऐप (देशभर में)
प्लांटिक्स एक जर्मन ऐप है, जिसे भारत में लाखों छोटे किसान इस्तेमाल करते हैं। किसान अपने फोन से फसल की फोटो खींचकर अपलोड करते हैं और AI इन तस्वीरों को देखकर बीमारी या कीट का पता लगाता है और उसका उपचार भी सुझा देता है। इस app का उपयोग करने का नतीजा यह हुआ कि शुरुआती स्टेज पर ही समस्या पकड़ने से, फसल का नुकसान 50 प्रतिशत तक कम हुआ। इससे मिट्टी की सेहत सुधारने की सलाह भी मिलती है। इसकी सबसे बात ये है कि इसका उपयोग करने के लिए किसानों को मात्र एक स्मार्ट फोन की ज़रूरत पड़ती है।
5. कृषि तंत्र (महाराष्ट्र)
कृषि तंत्र एक भारतीय स्टार्टअप है जो महाराष्ट्र में किसानों की मदद के लिए काम करता है, खासकर मिट्टी की जांच और खेती को बेहतर बनाने के लिए। इसका प्रयोग 2018 में शुरू किया गया था। कृषि तंत्र AI और मशीन लर्निंग का इस्तेमाल करके मिट्टी की टेस्टिंग करता है। इसके लिए महाराष्ट्र में AI बेस्ड सेंटर्स बनाए गए हैं। यहां किसान अपने खेत की मिट्टी का सैंपल देते हैं, और AI डेटा से सही सलाह देता है जैसे किसानों को बताता है कि उनकी मिट्टी में क्या कमी है और कितनी खाद या पानी चाहिए। इससे नतीजा यह रहा कि महाराष्ट्र में मिट्टी की सेहत बेहतर हुई और किसानों की पैदावार 15-20 प्रतिशत तक बढ़ी। साथ ही, ज़रूरत से ज़्यादा खाद डालने की आदत कम हुई, जिससे पैसे और पर्यावरण दोनों की बचत हुई है। यह खासतौर पर छोटे किसानों के लिए बनाया गया है, जो लैब टेस्ट का खर्चा नहीं उठा सकते।
6. AI Drones (पंजाब)
पंजाब के कुछ किसानों ने एक स्टार्टअप, फास्टैग के साथ मिलकर AI बेस्ड ड्रोन का इस्तेमाल शुरू किया। यह प्रोजेक्ट वर्ष 2022 में शुरू किया गया था। इसमें ड्रोन खेतों की हवाई तस्वीरें लेते हैं और AI उनकी मदद से फसल की सेहत, पानी की कमी, या कीटों की मौजूदगी का पता लगाता है। साथ ही, ये ड्रोन सटीक मात्रा में कीटनाशक या खाद का छिड़काव भी करते हैं। इस तकनीक की मदद से कीटनाशक का इस्तेमाल 30 प्रतिशत तक कम हुआ और पानी की बर्बादी भी 25 प्रतिशत तक कम हुई है। किसानों ने बताया कि उनकी फसल की गुणवत्ता में सुधार हुआ और लागत भी कम हुई है। यह छोटे किसानों के लिए तकनीक का सस्ता और प्रैक्टिकल प्रयोग दिखाता है।
7. नीति आयोग का डिजिटल एग्री स्टैक (देशभर में)
नीति आयोग ने वर्ष 2021 में डिजिटल एग्री स्टैक नाम का एक प्लेटफॉर्म लॉन्च किया था, जिसमें AI का बड़ा रोल है। यह कई राज्यों में पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर चल रहा है। यह प्लेटफॉर्म सैटेलाइट डेटा, मौसम की जानकारी और मिट्टी के टेस्ट को मिलाकर किसानों को फसल चुनने, बोने का सही वक्त बताने और बाजार की कीमतों का अंदाज़ा देने में मदद करता है। इससे किसानों को अपनी फसल बेचने का सही वक्त पता चला, जिससे उनकी आय में 15-20 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी हुई है। खासकर हरियाणा और उत्तर प्रदेश में यह असर देखा गया है।
8. किसान ड्रोन प्रोजेक्ट (उत्तर प्रदेश)
वर्ष 2023 में उत्तर प्रदेश सरकार ने ‘किसान ड्रोन’ योजना की शुरूआत की, जिसमें हजारों किसानों को सब्सिडी पर ड्रोन दिए गए। इन ड्रोन्स में AI सॉफ्टवेयर लाँच है जो खेतों की मैपिंग करता है और फसल की ग्रोथ, पानी की ज़रूरत, और बीमारियों की पहचान करता है। साथ ही, यह सही जगह पर स्प्रे भी करता है। इसका परिणाम यह रहा कि प्रति एकड़ पैदावार में 10-15 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी हुई और मैनुअल लेबर की ज़रूरत 40 प्रतिशत तक कम हुई। प्रदेश के गांवों में ये प्रोजेक्ट अब तेज़ी से फैल रहा है।
9. एग्रोस्टार का AI सपोर्ट (गुजरात और राजस्थान)
एग्रोस्टार एक भारतीय एग्रीटेक कंपनी है, जो गुजरात और राजस्थान के किसानों के साथ वर्ष 2020 से काम कर रही है। इसका मोबाइल ऐप AI की मदद से किसानों को उनकी फसल के हिसाब से सलाह देता है, जैसे कौन सा बीज चुनें, कब खाद डालें, और मौसम के हिसाब से क्या करें। यह लोकल भाषाओं में काम करता है। 3 लाख से अधिक किसानों ने इसे यूज़ किया और उनकी पैदावार में औसतन 20 प्रतिशत तक का इज़ाफा हुआ और इसके साथ ही लागत भी 10-15 प्रतिशत तकः कम हुई। यह मोबाइल बेस्ड AI का आसान और स्केलेबल उदाहरण है।
10. ICAR का AI बेस्ड पेस्ट मैनेजमेंट (तमिलनाडु)
इंडियन काउंसिल ऑफ एग्रीकल्चरल रिसर्च (ICAR) ने तमिलनाडु में 2022 में एक प्रोजेक्ट शुरू किया था। इसके तहत AI मॉडल्स का यूज़ करके कीटों की पहचान और उनके हमले की भविष्यवाणी की गई। इसमे डेटा सैटेलाइट और लोकल सेंसर्स से लिया गया था। इसका लाभ यह हुआ कि कीटों से होने वाला नुकसान 35 प्रतिशत तक कम हुआ और जहरीले कीटनाशकों का इस्तेमाल भी कम किया गया।
ड्रोन से लेकर मोबाइल ऐप्स तक, और सरकारी प्रोजेक्ट्स से लेकर प्राइवेट स्टार्टअप्स तक, AI अब पुराने तरीकों को नया रंग दे रहा है, ताकि किसानों की मेहनत कम और कमाई बढ़ सकें।
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।