रासायनिक खाद का विकल्प है ब्लू ग्रीन एलगी      Publish Date : 10/03/2025

       रासायनिक खाद का विकल्प है ब्लू ग्रीन एलगी

                                                                                                  प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 रेशु चौधरी

नील हरित शैवाल धान की फसल में कम लागत में बेहतर उत्पादन देने वाली जैविक खाद है, जो काई के आकार में उपलब्ध होती है। यह मिट्टी में मौजूद वायुमंडलीय नाइट्रोजन को स्थिर कर पौधों के लिए उपलब्ध कराने में सहायता करता है। इसका उपयोग करने से न केवल धान की उपज में वृद्धि होती है, बल्कि धान के बाद ली जाने वाली रबी फसलों के लिए मिट्टी में नाइट्रोजन और अन्य पोषक तत्वों की वृद्धि होती है।

                                                     

कृषि वैज्ञानिक खेतों में रासायनिक खादों का कम से कम प्रयोग करने की सलाह देते हैं, लेकिन इसके उलट कृषि में रासायनिक खादों का उपयोग कम होने के स्थान पर बढ़ता ही जा रहा है, जबकि रासायनिक खादों के अत्यधिक और अविवेकपूर्ण उपयोग से खेत बंजर होने की दिशा में बढ़ रहे हैं। ऐसे में किसानों के पास रासायनिक खादों का एक विकल्प नील हरित शैवाल (ब्लू ग्रीन एलगी) के रूप में उपलब्ध है, जो कि एक बायो फर्टिलाइजर है। असल में ब्लू ग्रीन एलगी वातावरण में मौजूद नाइट्रोजन को अवशोषित कर पौधों के लिए उपलब्ध करता है। वैज्ञानिकों की मानें तो एक किलो ब्लू ग्रीन एलगी, एक बोरी रासायनिक खाद के बराबर काम करता है।

दरअसल, ब्लू ग्रीन एलगी जलीय सूक्ष्म जीवाणुओं का एक समूह होता है, जिसे साइनोबैक्टीरिया भी कहा जाता है। यह काई के आकार का होता है, जो अपना भोजन स्वयं बनाने में सक्षम होता है। इसके साथ ही यह मिट्टी में मौजूद वायुमंडलीय नाइट्रोजन को स्थिर कर पौधों के उपयोग के लिए उपलब्ध कराता है। इसके उपयोग करने से न केवल धान की उपज में वृद्धि होती है, बल्कि धान के बाद ली जाने वाली रबी फसलों के लिए मिट्टी में नाइट्रोजन, कार्बनिक  और अन्य पोषक तत्वों की वृद्धि होती है, जिससे भूमि का उपजाऊपन बढ़ता है।

ब्लू ग्रीन एलगी उत्तम जैविक खाद

                                             

सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, मेरठ के प्रोफेसर आर. एस. सेंगर ने बताया कि ब्लू ग्रीन एलगी एक कम लागत पर उपलब्ध होने वाली एक उत्तम जैविक खाद है जो मिट्टी, लोगों के स्वास्थ्य और पर्यावरण को नुकसान पहुंचाए बिना कृषि को टिकाऊ बनाने के लिए उपयोग किया जा रहा है। प्रोफेसर सेंगर के अनुसार वायु में 78 फीसदी नाइट्रोजन विद्यमान होती है।

वहीं इसके सापेक्ष 100 किलोग्राम यूरिया में केवल 46 फीसदी नाइट्रोजन ही आती है। उनमें से कुछ हवा में भी उड़ते हैं, ऐसे में ब्लू ग्रीन एलगी किसानों के लिए यूरिया एक अच्छा विकल्प है। इससे लाभ यह है कि यूरिया मिट्टी की गुणवत्ता को कम करता है, जबकि एलगी इसे सुधारता है। इसका उपयोग अम्लीय और क्षारीय मिट्टी के उपचार के लिए भी किया जा सकता है।

धान की फसल में कैसे करे उपयोग

                                                

प्रोफेसर सेंगर ने कहा कि धान के लिए नील हरित शैवाल और अजोला को दो जैव उर्वरक संस्थान द्वारा तैयार किया गया है। यह एलगी पाउडर के रूप में उपलब्ध है। धान की बुवाई के एक सप्ताह के अंदर ब्लू ग्रीन एलगी खाद का प्रयोग किया जाता है। उन्होंने बताया कि प्रति एकड़ 500 ग्राम पैकेट कल्चर उपलब्ध है जिसे 4 से 5 किलोग्राम सुखे खेत की मिट्रृटी में मिलाकर  प्रयोग किया जाता है। इस  खाद को पूरे खेत में खड़े पानी के स्थिति में बुरक दिया जाता है। अगर इसका प्रयोग अधिक मात्रा में भी किया जाए तो यह कोई नुकसान नहीं पहुँचता है।

प्रोफेसर सेंगर ने कहा कि एलगी पाउडर का प्रयोग करते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि खेत में लगभग दस दिनों तक पानी भरा रहे। इसका उपयोग खासतौर पर उन फसलों के लिए किया जा सकता है, जिन्हें अधिक पानी की जरूरत होती है। अगर खेत में पानी भरा होगा होगा तो यह बेहतर परिणाम देता है। यदि धान की फसल में ब्लू ग्रीन एलगी का प्रयोग करना है तो खेत में इसकी मात्रा 20 से 25 किग्रा नाइट्रोजन प्रति एकड़ निर्धारित की जाती है, यानि इसका प्रयोग करने से 40 से 50 किलोग्राम यूरिया की बचत होती है।

साथ ही इसके प्रयोग से मिट्टी में कार्बनिक पदार्थ और अन्य पादप वृद्धि रसायनों जैसे ऑक्सिन, जिबरेलिन, पाइरिडोक्सिन, इंडोल एसिटिक एसिड आदि की मात्रा और उनकी उपलब्धता बढ़ जाती है।

किसानों की होगी भारी बचत

प्रोफेसर सेंगर ने बताया कि धान में ग्रीन ब्लू एलगी के प्रयोग से शैवाल तेजी से बढ़ता है। उन्होंने बताया कि अगर किसान चार से पांच बार ग्रीन ब्लू एलगी जैविक खाद का प्रयोग करते हैं तो खेत में नाइट्रोजन स्थिरीकरण करने वाले जीवाणुओं की संख्या इतनी बढ़ जाती है और भविष्य में ग्रीन ब्लू एलगी का प्रयोग करने की कोई ज़रूरत नहीं होती है।

ऐसे में धान की खेती में लागत कम आती है। प्रोफेसर सेंगर का कहना है यूरिया के लिए किसान का काफी पैसा खर्च होता है। भारत में लगभग 43 मिलियन हेक्टेयर में धान की खेती की जाती है, अगर धान उगाने वाले क्षेत्र के आधे भाग में भी नील हरित शैवाल का प्रयोग किया जाए तो 10 लाख टन रासायनिक नाइट्रोजन की बचत की जा सकती है। पूसा शैवाल प्रति हेक्टेयर 25 किलोग्राम नाइट्रोजन का योगदान देता है।

जल्द बाजारों में भी बिक्री के लिए होगा उपलब्ध

IARI के द्वारा ब्लू ग्रीन एलगी को विकसित किया गया है। मौजूदा समय में ब्लू ग्रीन एलगी पूसा के माइक्रोबॉयोलाजी विभाग में उपलब्ध है, जहां से संपर्क करके किसान इसे खरीद सकते है। वहीं जल्द ही इसे बिक्री के लिए बाजार में भी उतारने की तैयारियां की जा रही है। इसको लेकर निजी कंपनियों के साथ IARI ने एक करार किया है। बाजार में इसकी सम्भावित कीमत 100 प्रति किलोग्राम तक हाने की उम्मीद है।       

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल   कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।