धान की सीधी बुवाई की मशीन की विशेषताएँ      Publish Date : 09/07/2025

           धान की सीधी बुवाई की मशीन की विशेषताएँ

                                                                                                                   डॉ.आर.एस.सेंगर, डॉ0 शालिनी गुप्ता एवं गरिमा शर्मा

सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय में धान की सीधी बुवाई प्रारंभ कर दी गई है। धान की सीधी बुवाई को प्रोत्साहित करने के लिए कृषि विश्वविद्यालय में अंतरराष्ट्रीय धान अनुसंधान संस्थान फिलीपींस के सहयोग से अंतरराष्ट्रीय परियोजना पर कार्य किया जा रहा है। यह परियोजना कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉक्टर के. के. सिंह के दिशा निर्देशन में चलायी जा रही है।

इस परियोजना की मुख्यअन्वेषक प्रोफेसर शालिनी गुप्ता ने बताया की अंतर्राष्ट्रीय धान अनुसंधान संस्थान फिलिपींस से एक्सपेरिमेंट हेतु 250 लाइन विभिन्न चरण प्लाजा की तथा दूसरे टाइल्स के लिए 228 लाइन जर्मप्लाज्म की भेजी गई है। इनको बोने के उपरांत यह देखा जाएगा कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में कौन सी जर्मप्लाज्म धान की सीधी बुवाई के लिए सबसे उपयुक्त हैं, क्योंकि उनके सभी मोरफ़ोलॉजिकल, एग्रोनॉमिक और फिजियोलॉजिकल कैरेक्टर के आधार पर विभिन्न जर्मप्लाज्मो की गुणवत्ता को पहचाना जाएगा। कृषि विश्वविद्यालय में अंतर्राष्ट्रीय धान अनुसंधान संस्थान के सहयोग से यह परियोजना विगत दो वर्षों से संचालित की जा रही है।

                                                             

समय समय पर अंतरराष्ट्रीय अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों की टीम प्रयोगात्मक कार्यों के अवलोकन के लिए आती है और धान की गुणवत्ता की परख करती है, जिसके अच्छे परिणाम आ रहे हैं। उन्होंने कहा कि आने वाले समय में पश्चिम उत्तर प्रदेश में धान की सीधी बुवाई होने वाले किसानों की संख्या में बढ़ोतरी होगी और लागत में कमी आएगी।

धान भारत की एक प्रमुख खाद्यान्न फसल है, जिसकी खेती पारंपरिक रूप से रोपाई (Transplanting) पद्धति से की जाती है। इसमें पहले पौधशाला में बीज बोकर नर्सरी तैयार की जाती है, फिर खेतों की जुताई व पलेवा कर उसमें रोपाई की जाती है। यह प्रक्रिया श्रमसाध्य, अधिक जल-खपत वाली और समय लेने वाली होती है। लेकिन बदलते पर्यावरणीय परिदृश्य, जल संकट और मजदूरों की अनुपलब्धता को देखते हुए अब धान की सीधी बुवाई (Direct Seeding of Rice – DSR) एक उभरती हुई तकनीक है, जिसमें मशीन की सहायता से बीजों को सीधे खेत में बोया जाता है। इस प्रक्रिया में धान की सीधी बुवाई की मशीन (DSR मशीन) का महत्वपूर्ण योगदान है।

नीचे इस मशीन की प्रमुख विशेषताएँ प्रस्तुत लेख में दी जा रही हैं:

जल की बचत

धान की सीधी बुवाई की मशीन जल संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। पारंपरिक पद्धति की तुलना में इसमें लगभग 25-30 प्रतिशत तक कम पानी की आवश्यकता होती है, क्योंकि खेत को बार-बार भरने या ज्यादा समय तक पानी में डुबोकर रखने की आवश्यकता नहीं होती।

श्रम की बचत

यह मशीन श्रम की लागत को कम करती है। पारंपरिक धान की खेती में भारी संख्या में श्रमिकों की आवश्यकता होती है, विशेषतः रोपाई के समय। वहीं डीएसआर मशीन के माध्यम से केवल एक व्यक्ति ही बीज बोने का कार्य कर सकता है, जिससे श्रम पर निर्भरता कम होती है।

समय की बचत

धान की सीधी बुवाई मशीन समय की दृष्टि से भी अत्यंत लाभकारी है। इसमें नर्सरी तैयार करने, पौध उखाड़ने और रोपाई करने की आवश्यकता नहीं होती। सीधे खेत में बुवाई करने से लगभग 10-15 दिन की बचत होती है, जिससे किसान समय पर अगली फसल भी ले सकते हैं।

मशीन की बनावट और कार्यप्रणाली

धान की सीधी बुवाई मशीन ट्रैक्टर या पावर टिलर से जुड़कर कार्य करती है। इसमें निम्नलिखित घटक होते हैं:

बीज डिब्बे (Seed Boxes): इस बॉक्स में धान के बीज भरे जाते हैं।

बीज नलिकाएं (Seed Tubes): ये बीज को नीचे मिट्टी में छोड़ती हैं।

फर्टिलाइज़र टैंकः कुछ मशीनों में खाद डालने की भी व्यवस्था होती है।

डिस्क ओपनर या टाइनः मिट्टी को हल्का सा चीरकर बीज डालने की व्यवस्था करती है।

व्हील्सः मशीन को आगे बढ़ाने में सहायता करते हैं।

यह मशीन बीज को एक समान गहराई और दूरी पर बोती है, जिससे अंकुरण अच्छा होता है और पौधों की वृद्धि समान होती है।

समुचित बीज दर एवं गहराई

इस मशीन से बीजों की एक समान बुवाई संभव हो पाती है। बीज न तो बहुत गहरे और न ही सतह के बहुत पास बोये जाते हैं, जिससे उनका अंकुरण अच्छा होता है। सामान्यतः 8-10 किग्रा/हेक्टेयर की दर से बीज बोना पर्याप्त होता है।

खरपतवार नियंत्रण में सहायक

सीधी बुवाई के समय खेत में खरपतवार भी उग सकते हैं, किंतु मशीन से बोने पर पंक्तियों में बीज डाले जाते हैं, जिससे मशीन या हाथ से खरपतवार निकालना सरल हो जाता है। साथ ही हर्बीसाइड का छिड़काव भी प्रभावी होता है।

मल्चिंग और स्ट्रॉ मैनेजमेंट

कुछ उन्नत सीधी बुवाई मशीनों में फसल अवशेष प्रबंधन (Residue Management) की सुविधा होती है। ये मशीनें भूसे (Straw) को हटाए बिना सीधे बुवाई कर सकती हैं, जिससे मिट्टी की ऊपरी परत की नमी बनी रहती है और पर्यावरणीय संतुलन बना रहता है।

उर्वरकों के साथ बुवाई

कुछ मॉडल ऐसे होते हैं जिनमें बीज और उर्वरक दोनों की बुवाई एक साथ की जा सकती है, जिससे समय और श्रम दोनों की बचत होती है और फसल को आरंभ से ही पोषण मिल जाता है।

बहु-उपयोगिता

यह मशीन केवल धान के लिए ही नहीं बल्कि गेहूं, जौ, मक्का और सरसों जैसी अन्य फसलों की बुवाई के लिए भी उपयोगी हो सकती है, जिससे किसानों को इसे वर्षभर उपयोग में लाने की सुविधा मिलती है।

आर्थिक लाभ

हालांकि शुरुआत में मशीन की लागत थोड़ी अधिक हो सकती है, परंतु जल, श्रम, समय और उत्पादन लागत में बचत होने से यह लंबी अवधि में अत्यधिक लाभदायक सिद्ध होती है। सरकार द्वारा कई योजनाओं के अंतर्गत इन मशीनों पर अनुदान (subsidy) भी दिया जाता है।

धान की सीधी बुवाई की मशीन

आधुनिक कृषि तकनीक की दिशा में एक क्रांतिकारी कदम है। यह न केवल संसाधनों की बचत करती है बल्कि किसानों को अधिक उत्पादन, कम लागत और पर्यावरण संरक्षण का अवसर भी प्रदान करती है। जलवायु परिवर्तन, जल संकट और श्रम की कमी जैसी समस्याओं को ध्यान में रखते हुए डीएसआर तकनीक को व्यापक रूप से अपनाने की आवश्यकता है।

लेखकः लेखक सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय, मेरठ के प्रोफेसर हैं।