बोगेनविलिया एक पुष्पीय पौधा      Publish Date : 04/08/2025

                  बोगेनविलिया एक पुष्पीय पौधा

                                                                                                                                                         प्रोफेसर आर एस. सेंगर

बोगेनविलिया एक सुन्दर पुष्प देने वाला पौधा होता है, इसकी उत्पत्ति दक्षिण अमेरिका में हुई, जहां से यह विश्व के अन्य देशों में पहुंचा। भारत में इसका प्रवेश वर्ष 1860 में यूरोप से बताया जाता है। वास्तव में जो इसमें रंगीन पुष्प दिखाई देते हैं वह ब्रैक्ट्स होते हैं तथा पुष्प ट्यूबलर शक्ल का रंगीन ब्रैक्ट्स के अन्दर पाया जाता है।

वर्तमान में बोगेनविलिया में ऐसी किस्में विकसित हो चुकी हैं जो वर्ष के हर मास में पुष्पों से लदी रहती हैं और इन किस्मों को जमीन व गमलों दोनों ही में आसानी से उगाया जा सकता है। इसके अतिरिक्त यह पहाड़ी चट्टानों वाली भूमि में भी सफलता पूर्वक उगाया जा सकता है।

स्थान का चुनावः

                                                        

इस पौधे के रोपण के लिये किसी ऐसे स्थान का चुनाव करना चाहिए, जहां अधिक धूप आती हो, ऐसा स्थान जहां पाला पड़ता हो छोटे पोधों के लिये घातक हो सकता है। पाले से इसके पुष्प मुरझा जाते हैं। अधिक नमी व वर्षा वाले स्थानों में इसमें पुष्प के स्थान पर पत्तियों का अधिक विकास होता है।

भूमिः

वैसे तो इसका उत्पादन विविध प्रकार की भूमियों में किया जा सकता है। परन्तु इसके लिये हल्की दोमट भूमि, जिसमें जल निकास की उत्तम व्यवस्था हो उपयुक्त होती है।

भूमि की तैयारी व खाद उर्वरकः

इस पौधे के रोपण हेतु जुलाई से सितम्बर तथा पर्याप्त पानी उपलब्ध होने पर फरवरी मार्च का समय उपयुक्त होता है। इसको भूमि पर लगाने के लिए 8-10 फुट (250 से 300 सेंमी०) की दूरी पर 1.5 से 2 फुट (45 से 60 सेंमी०) गहरा एवं चौड़ा गड्ढा खोदकर, उसमें 10-15 किलो गोबर की सड़ी खाद व मिट्टी से भरकर पौधा लगाना चाहिए । अमनोनियम सल्फेट, सुपर फास्फेट तथा म्यूरेट ऑफ पोटाश का 1:2:3 के अनुपात में मिश्रण जुलाई में एक बार 250 ग्राम प्रति पौधा देने से पौधों की बढ़वार अच्छी व पुष्प चमकदार और अधिक संख्या में आते हैं।

सिंचाईः

छोटे पौधों में गर्मी में सप्ताह में एक बार तथा जाड़े में 10-15 दिन बाद सिंचाई करना चाहिए। बड़े पौधों को अधिक पानी देने से पत्तियां अधिक पैदा होती हैं और पुष्प कम आते हैं।

कटाई-छटाईः

इसकी छटाई का उपयुक्त समय मई-जून का माह होता है। बरसात के बाद छटाई नहीं करनी चाहिए क्योंकि इस समय इसकेे पौधे में नई शाखाओं पर पुष्प आते हैं। पुष्प समाप्त होने पर पुष्प वाली शाखाओं की टिपिंग कर देना चाहिए, जो शाखा सूख गयी हो अथवा बीमारी युक्त हो उसको काट कर निकाल देना चाहिए।

पौध तैयार करनाः

इसके पौधे कटिंग, लेयरिंग, गूटी तथा बडिंग द्वारा तैयार किये जाते हैं।

(अ) कटिंग कटिंग द्वारा पौधे जुलाई-अगस्त तथा फरवरी मार्च में तैयार किये जाते हैं। इसके लिए एक वर्ष पुरानी पेसिंल के समान गोलाई 9 इंच (22 से 23 सेमी) लम्बी कटिंग काटकर निचले भाग पर सेराडिक्स (हारमोन) पाउडर लगाकर जमीन में गाड़ दिया जाता है जिसमें 4-6 सप्ताह में नयी कलियां निकल आती हैं।

(ब) लेयरिंग- इसकी शाखाओं को जमीन या गमले में चीरा लगाकर दबा देने से 1.5 माह में नए पौधे तैयार हो जाते हैं।

(स) गूटी- इस विधि से पौधे जुलाई-अगस्त में तैयार करते हैं। इस क्रिया में उंगली के बराबर मोटी शाखा के बराबर 1 या 2 इंच (2.5 से 5 सेंमी०) रिंग के रूप में छीलकर उसमें सेराडिक्स पाउडर शाखा के सिरे की तरफ रिंग पर लगाकर गोली मास-घास भिगोकर तथा पानी निचोड़कर पॉलिथीन पेपर से बांध देते हैं। 3-4 सप्ताह में पॉलिथीन पेपर में जड़े दिखाई देने लगती हैं, तब इन्हें काटकर जमीन या गमलों में छाया वाले स्थान में लगाना चाहिए।

(द) बर्डिंग- बोगेनविलिया उपरोक्त विधि से तैयार नहीं हो पाती उसे बर्डिंग से तैयार करते हैं। यह कार्य फरवरी से मार्च तक टी-बर्डिंग द्वारा किया जाता है। इसके लिये डा० पाल किस्म की बोगेनविलिया रूट स्टाक के रूप में प्रयोग की जाती है।

बोगेनविलिया के प्रयोगः

                                                  

इसके अनेको प्रयोग किये जाते हैं जो संलिप्त में निम्न प्रकार से हैं।

1- लता के रूप में, दिवालों तारों आदि पर चढ़ाकर।

2- झाड़ी के रूप में, स्थान विशेष को ढकने के लिये।

3- स्पेसीमैन पौधे के रूप में।

4- स्टैण्डर्ड रूप में विकसित करना।

5- पेड़ पर चढ़ाना।

6- स्लोप व टीलों पर रोपित करना।

7- काट-छांट कर कलाकृतियां बनाना ।

8- गमलों में लगाना आदि।

किस्मों का चुनावः

  • लता के लिये मेरीपामर, थीमा, मिसेज बक, सुबरा आदि। झाड़ी के लिये मरीपामर, सोनेर समरटाईम, थीमा आदि का प्रयोग किया जाता है।
  • स्पेसीमेन के लिये डा० राब, थीमा, मेरीपामर, बेगम सिकन्दर, वाजिद अलीशाह, महरा आदि किस्में।
  • हेज के लिए डा० आर० आर० पाल, मेरीपासर, थीमा, ग्लेबरावेरीगेटेड, पारथा, मिसेज बक आदि।
  • परगोला के लिये थीमा, डा० राव, मेरीपामर, महरा आदि।
  • स्टैण्डर्ड के लिये मेरीपामर, थीमा, रूजवेल्ट डिलाइट, पैस थ्यूनिम, लेडी मेरी बेरिंग सुबरा आदि किस्में उपयुक्त हैं।
  • स्लोप व टीले के लिये थीमा, मेरीपामर, मिसेज बब, सुबरा आदि।
  • गमलों के लिये ब्लानडी, थीमा, बेगम सिकन्दर, वाजिद अलीशाह, महरा, लौस व्यूनिस व्यूटी, चौरी ब्लासम, रूजवेल्ट डिलाइट, डा० राव०, समर टाईम सीनेट, लेडी मेरी बेरिंग आदि किस्में उपयुक्त रहती हैं।
  • विभिन्न आकृतियों के लिये मिसेज बक, मेरी पामल, थीमा, पारथा, डा० आर०आर० पाल आदि।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।