गैंदे की खेती: किसान की कमाई का एक शानदार माध्यम      Publish Date : 24/06/2025

गैंदे की खेती: किसान की कमाई का एक शानदार माध्यम

                                                                                                                                               प्रोफेसर आर. एस. सेंगर

गैंदे की खेती देश में लगभग सभी प्रकार की भौगोलिक जलवायु और मृदओं में उगाया जा सकता है। देश के मैदानी क्षेत्रों में एक वर्ष में गैंदे की तीन फसलें ली जा सकती है। इस प्रकार पूरे साल फूलों के मिलने से इसकी खेती करने वाले किसानों को आमदनी प्राप्त होती रहती है।

गैंदे की उत्पत्ति मध्य एवं दक्षिण अमेरिका विशेष रूप से मैक्सिको की मानी जाती है। 16वीं शताब्दी के प्रारम्भ में ही गैंदा मैक्सिको से दुनिया के अन्य भागों में पहुँचा। गैंदे की प्रमुख रूप से दो प्रजातियां जिनमें से पहली है अफ्रीकन गैंदा और दूसरी फ्रैंच गैंदा, जो अधिक प्रचलित है, जबकि इसकी एक और प्रजाति टैजेटिस माइन्यूटा भी कुछ स्थानों पर उगाई जाती है, इस प्रजाति से तेल निकाला जाता है।

अफ्रीकन गैंदे का सबसे पहला प्रवेश 16वीं शताब्दी में हुआ था और यह ‘रोज आॅफ द इंडीज’ के नाम से पूरे दक्षिणी यूरोप में प्रसिद्व था। भारत में गैंदे का प्रवेश पुर्तगालियों ने कराया था। गैंदे का अधिक उत्पादन प्राप्त करने के लिए इसका उत्पादन नई तकनीक और वैज्ञानिक विधि से ही करना चाहिए।

                                                     

जलवायुः गैंदे से अधिक मात्रा में फूल प्राप्त करने के लिए खुली जगह, जहां सूरज की रोशनी सुबह से लेकर शाम तक रहती हो, उपयुक्त रहती है। गैंदे के सफल उत्पादन के लिए इसकी खेती विशेष रूप से शीतोष्ण और समशीतोष्ण जलवायु अधिक उपयुक्त होती है। इसके साथ ही गैंदे के उत्पादन के लिए 15 से 29 डिग्री सेल्सियस का तापमान फूलों की संख्या और गुणवत्ता के लिहाज से उपयुक्त रहता है।

मृदाः गैंदे का पौधा सहिष्णु प्रकृति का होता है। गैंदे की खेती लगभग समस्त प्रकार की मृदओं में की जा सकती है। हालांकि उच्च गुणवत्तायुक्त अधिक उपज प्राप्त करने के लिए उत्तम जलन्निकास वाली रेतीली दोमट मृदा, जिसका पीएच मान 7.5 हो और जिामें जीवांश भी प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हो उत्तम मानी जाती है।

खेत की तैयारीः गैंदे की खेती के लिए पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से और 2 से 3 जुताई देशी हल अथवा कल्टीवेटर से करनी चाहिए। इसके बाद खेत में पाटा लगाकर मिट्टी को भुरभुरा और समतल बना लेना चाहिए।

गैंदे का प्रवर्धन: बीज और कटिंग (कलम), दोनों ही विधियों से आसानी से किया जा सकता है, परन्तु बीज के द्वारा तैयार किए गए पौधे अच्छे एवं अधिक उपज प्रदान करने वाले होते हैं, अतः गैंदे की व्यवसायिक खेती करने के लिए आमतौर पर बीज के माध्यम से ही नए पौधों को तैयार किया जाता है।

पौध तैयार करने हेतु उचित समयः गैंदे की पौध तैयार करने का सबसे उचित समय स्थानीय जलवायु एवं प्रयोग की जाने वाली किस्म पर निर्भर करता है। उत्तरी भारत में गैंदे की रोपाई वर्ष के तीनों मौसम अर्थात सर्दी, गर्मी एवं वर्षा में की जा सकती है। ध्यान रखें कि गैंदे की किस्म का चयन भी मौसम के अनुरूप ही किया जाना उचित रहता है। उत्तरी भारत के इलाकों में गैंदा सर्दियों में ही उगाया जाता है और इसी मौसम में इसकी अधिकतर किस्मों का प्रदर्शन बेहतर रहता है।

गैंदे की किस्में

गैंदे की निम्न दो प्रजातियां बहुत अधिक प्रचलित हैं:-

अफ्रीकन गैंदाः- गैंदे का यह एक वार्षिक पौधा है, जिसकी ऊँचाई एक या एक अधिक मीटर तक होती है। इसका पौधा सीधा और बड़ी-बड़ी शाखाओं वाला होता है। इसके फूल भी बड़े आकार (7-10 से.मी.) तथा फूलों का रंग पीला, सुनहरी पीला एवं नारंगी रंग के होते हैं। इस प्रजाति की द्विगुणित गुणसूत्रों की संख्या 24 होती है तथा इसकी प्रचलित प्रमुख किस्में इस प्रकार हैं-

बड़े फूल वाली किस्में- पूसा नारंगी, पूसा बसंती, पूसा बहार, यैलो सुप्रीम क्लाईमैक्स, जीबिया गोल्ड, सन जौइंट, गोल्ड कंचन और मैन इन द मून आदि प्रमुख हैं।

मध्यम आकार के फूलों वाली किस्में- हैप्पी फेस, लोड़ी, गोल्ड जैलोेट और जुबली सीरीज आदि।

छोटे आकार के फूलों वाली किस्में- हैप्पीनेस, स्पेसराज सीरीज, अपोलो मून शाट, मैरीनेट, गोल्डन-रे, स्पेन पीला, क्यूपिड अैर जिटेंक डोली आदि।

फ्रैंच गैंदाः- इस प्रजाति का पौधा बौना होता है जो लगभग 20 से 60 से.मी. ऊँचाई वाला, एक वार्षिक पौधा होता है। इस प्रजाति के फूल आकार में छोटे लगभग 3-5 से.मी. के तथा पीले, सुनहरे पीले या नारंगी रंग के फूल लगते हैं। इस प्रजाति में द्विगुणित गुणसूत्रों की संख्या 48 होती है और इसकी प्रमुख किस्में इस प्रकार से हैं-

पूसा अर्पिता, पूसा दीप, हिसार ब्यूटी, हिसार जाफरी-2, रस्टी रैड, रैड बोकार्डो फ्लैश, बटर स्काच तथा सुकना बालेसिया आदि।

खाद एवं उर्वरक

                                                      

खाद एवं उर्वरक देने का उद्देश्य पौधों की समुचित बढ़वार और जमीन में अनुकूल पोषण दशाओं को बनाए रखना होता है। उर्वरको की मात्रा और सही समय मिट्टी के स्वभाव, पोषक तत्व, जलवायु और फसल की स्थिति पर निर्भर करता है। यदि खाद और उर्वरक संतुलित मात्रा में दिए जाएं तो निश्चित् ही पौधों का विकास होता है। अतः मृदा की जांच के उपरांत ही उर्वरकों का उपयोग करना श्रेयकर होता है।

रोपाई करने की विधिः पौध की रोपाई बीज बुवाई के 25 से 30 दिन बाद, जब पौधों पर 3-4 पत्तियां आने के बाद करना उचित है। अनुभव से ज्ञात हुआ है कि अधिक पुरानी पौध की रोपाई करने से पैदावार में कमी आती है। पौध की रोपाई सदैव शाम के समय ही करनी चाहिए और पौधें के चारो ओर की मिट्टी को अच्छी तरह से दबा देना चाहिए।

सिंचाईः गैंदे की फसल की सिंचाई मृदा की किस्म, मृदा में उपस्थित कार्बनिक पदार्थ की मात्रा, मौसम और गैंदे की किस्म विशेष पर निर्भर करती है। वैसे पहली सिंचाई पौध रोपने के तुरंत बाद कर देनी चाहिए और इसके बाद सर्दियों में 15-20 दिन के अंतराल और गर्मियों में 7-10 दिन के बाद सिंचाई करते रहना उचित रहता है। बारिश के मौसम में आवश्यकता के अनुसार सिंचाई करते रहना चाहिए।

अफ्रीकन गैंदे की एक अहम प्रक्रिया यह है जिस पर अधिकतर किसान भाई ध्यान नही देते हैं, जब पौधों की ऊँचाई 15 से 20 से.मी. तक की हो जाए तो गैंदे के पौधों को गिरने से बचाने के लिए मिट्टी चढ़ा देनी चाहिए। इसके साथ ही पौधों को सहारा देने के लिए बांसी की खपच्ची लगा देने से पौधे सीधे रहते हैं और फूलों की गुणवत्ता भी अच्छी रहती है।

पौध संरक्षण के उपायः

खरपतवार नियंत्रणः गैंद की पौध रोपने के कुछ समय बाद पौधों के आसपास खरपतवार उग आते हैं, जो पौधों के साथ पोषक तत्वों, नमी एवं स्थान आदि के लिए प्रतिस्पर्धा करते हैं। खरपवार के नियंत्रण के लिए प्रत्येक 25-30 दिन में निराई-गुड़ाई करते रहें।

फूलों की तुड़ाई:

                                                    

गैंदं के फूलों की तुड़ाई फूलों के पकने के बाद करनी चाहिए और फूलों की तुड़ाई सुबह या शाम के समय करनी चाहिए। इसके अतिरिक्त फूलों की तुड़ाई से एक दिन पूर्व हल्की सिंचाई कर देनी चाहिए, ऐसा करने से फूल ताजे बने रहते हैं। फूलों को तोड़ते समय यह भी ध्यान रखना चाहिए कि फूलों का नीचे से लगभग 0.5 से.मी. लम्बा हरा डण्ठल फूल के साथ जुड़ा हो।

उपज

गैंदे के फूलों की उपज उगाई गई किस्म, मृदा पौधों के मध्य दूरी, खाद एवं उर्वरक की मात्रा और फसल की देखभाल आदि कारकों पर निर्भर करती है। वैज्ञानिक विधि से उगाई गई अफ्रीकन गैंदे की 15-20 टन और फ्रैंच गैंदे की 12-15 टन प्रति हेक्टेयर तक की उपज प्राप्त की जा सकती है।    

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।