
आयुर्वेदिक क्रोनिक पैन्क्रियाटाइटिस उपचार: कारण, प्रकार और प्रबंधन Publish Date : 14/09/2025
आयुर्वेदिक क्रोनिक पैन्क्रियाटाइटिस उपचार: कारण, प्रकार और प्रबंधन
डॉ0 सुशील शर्मा एवं मुकेश शर्मा
क्रोनिक पैन्क्रियाटाइटिस एक दुर्बल करने वाली स्थिति है जो समय के साथ अग्न्याशय में सूजन और अपरिवर्तनीय क्षति के कारण होती है। आयुर्वेद में, इस रोग को अग्नि (पाचन अग्नि) में गड़बड़ी के रूप में समझा जाता है और इसके लिए शरीर के संतुलन को बिगाड़ने वाले विभिन्न कारकों को जिम्मेदार ठहराया जाता है। आइए क्रोनिक पैन्क्रियाटाइटिस के आयुर्वेदिक दृष्टिकोण को समझें, इसके प्रकारों, अंतर्निहित कारणों और तीव्र से जीर्ण
क्रोनिक पैन्क्रियाटाइटिस क्या है?
आयुर्वेद में, क्रोनिक पैन्क्रियाटाइटिस को "पित्तज गुल्म" से जोड़ा जा सकता है, जहाँ पित्त दोष के बढ़ने से अग्न्याशय में एक गांठ या ट्यूमर जैसी संरचना बन जाती है। यह स्थिति अग्न्याशय के सामान्य कामकाज को बाधित करती है, जिससे पाचन, चयापचय और समग्र स्वास्थ्य प्रभावित होता है।
अग्नाशयशोथ के प्रकार:
तीव्र अग्नाशयशोथ: यह अग्नाशय की अचानक सूजन है, जो अक्सर छोटी पित्त पथरी या अत्यधिक शराब के सेवन के कारण होती है। यह आमतौर पर उचित उपचार से कुछ दिनों में ठीक हो जाती है।
क्रोनिक पैन्क्रियाटाइटिस: एक्यूट पैन्क्रियाटाइटिस के विपरीत, क्रोनिक पैन्क्रियाटाइटिस एक लगातार होने वाली सूजन है जो समय के साथ धीरे-धीरे बिगड़ती जाती है। इससे पैन्क्रियाज़ को स्थायी नुकसान हो सकता है, जिससे उसकी ठीक से काम करने की क्षमता प्रभावित हो सकती है।
क्रोनिक अग्नाशयशोथ के पीछे कारण:
आहार संबंधी कारक: अत्यधिक मात्रा में मसालेदार, तैलीय और प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों का सेवन करने से पित्त दोष बढ़ सकता है, जिससे अग्न्याशय में सूजन हो सकती है।
शराब का दुरुपयोग: आयुर्वेद में अत्यधिक शराब के सेवन को क्रोनिक अग्नाशयशोथ का एक प्रमुख कारण माना जाता है। शराब पित्त दोष को बढ़ाती है और अग्नाशय में आम के संचय का कारण बनती है।
धूम्रपान: आयुर्वेद के अनुसार, धूम्रपान दोषों के संतुलन को बिगाड़ता है और अमा के निर्माण में योगदान देता है, जो समय के साथ अग्न्याशय को नुकसान पहुंचा सकता है।
दीर्घकालिक तनाव: तनाव दोषों, विशेष रूप से वात और पित्त के संतुलन को बिगाड़ने के लिए जाना जाता है, जिससे पाचन संबंधी समस्याएं और अग्न्याशय में सूजन हो जाती है।
आनुवंशिक कारक: आयुर्वेद कुछ बीमारियों, जिनमें क्रोनिक पैन्क्रियाटाइटिस भी शामिल है, के लिए आनुवंशिक प्रवृत्ति को भी स्वीकार करता है। जिन लोगों के परिवार में अग्नाशय संबंधी विकारों का इतिहास रहा है, उनमें क्रोनिक पैन्क्रियाटाइटिस विकसित होने की संभावना अधिक हो सकती है।
क्रोनिक अग्नाशयशोथ के लक्षण:
क्रोनिक पैंक्रियाटाइटिस के लक्षणों को पहचानना शुरुआती निदान और हस्तक्षेप के लिए बेहद ज़रूरी है। मरीज़ों को लगातार पेट दर्द, मतली, उल्टी, वज़न कम होना और मल में तेल और दुर्गंध आना जैसी समस्याएँ हो सकती हैं। इसके अलावा, मधुमेह की शुरुआत और पित्ताशय की पथरी बनना इस स्थिति से जुड़ी आम जटिलताएँ हैं।
तीव्र से जीर्ण अग्नाशयशोथ में संक्रमण:
अनुपचारित तीव्र अग्नाशयशोथ: यदि तीव्र अग्नाशयशोथ का तुरंत उपचार नहीं किया जाता है या अंतर्निहित कारणों का समाधान नहीं किया जाता है, तो यह क्रोनिक अग्नाशयशोथ में परिवर्तित हो सकता है।
दोषों का लगातार बढ़ना: अग्न्याशय में तीव्र सूजन के बार-बार होने से दोषों, विशेष रूप से पित्त और वात में दीर्घकालिक असंतुलन पैदा हो जाता है, जिससे अंग को दीर्घकालिक क्षति होती है।
आम का संचयन: भोजन का अपूर्ण पाचन और चयापचय, साथ ही शराब और धूम्रपान के विषाक्त प्रभाव, अग्न्याशय में आम के संचयन में योगदान करते हैं, जिससे सूजन और क्षति बढ़ जाती है।
आयुर्वेदिक दृष्टिकोण और उपचार:
आयुर्वेद, प्राचीन भारतीय चिकित्सा पद्धति, क्रोनिक पैंक्रियाटाइटिस के प्रबंधन के लिए एक समग्र दृष्टिकोण प्रदान करती है। आयुर्वेदिक उपचार प्रत्येक व्यक्ति की शारीरिक संरचना के अनुसार आहार और जीवनशैली में बदलाव पर ज़ोर देता है। मसालेदार, तैलीय और वसायुक्त खाद्य पदार्थों से परहेज़ करना चाहिए, साथ ही तनाव प्रबंधन और नियमित नींद को प्रोत्साहित करना चाहिए।
आयुर्वेदिक उपचार में हर्बल उपचार महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, जिनका उद्देश्य पाचन में सुधार, सूजन कम करना और मल त्याग को बढ़ावा देना है। शंख, प्रवाल, कपर्दिका, शुक्त, सूतशेखर, सुंठ और आवला कुछ ऐसी जड़ी-बूटियाँ हैं जिनका उपयोग आमतौर पर लक्षणों को कम करने और अग्नाशय की कार्यप्रणाली को बहाल करने के लिए किया जाता है।
लेखकः डॉ0 सुशील शर्मा, जिला मेरठ के कंकर खेड़ा क्षेत्र में पिछले तीस वर्षों से अधिक समय से एक सफल आयुर्वेदिक चिकित्सक के रूप में प्रक्टिस कर रहे हैं।