ध्यान अभाव अतिसक्रियता विकार से ग्रस्त बच्चों के लिए आयुर्वेदिक उपचार      Publish Date : 05/08/2025

ध्यान अभाव अतिसक्रियता विकार से ग्रस्त बच्चों के लिए आयुर्वेदिक उपचार

                                                                                                                                                        डॉ0 सुशील शर्मा एवं मुकेश शर्मा

आजकल बच्चों में एडीएचडी यानि ध्यान अभाव अतिसक्रियता विकार एक बढ़ती हुई चिंता का विषय है, जो उनकी ध्यान केंद्रित करने, आवेगों को नियंत्रित करने और अतिसक्रियता को नियंत्रित करने की क्षमता को प्रभावित कर रहा है। पारंपरिक उपचार अक्सर दवाओं के माध्यम से लक्षणों के प्रबंधन पर केंद्रित होते हैं, लेकिन आयुर्वेद इस विकार के लिए एक समग्र विकल्प प्रदान करता है। आहार, जीवनशैली में बदलाव और प्राकृतिक उपचारों के माध्यम से मूल कारणों का समाधान करके, आयुर्वेद एडीएचडी से ग्रस्त बच्चों के लिए संतुलन और दीर्घकालिक कल्याण को बढ़ावा देने में सहायता प्रदान करता है।

बच्चों में ADHD (अटेंशन डेफिसिट हाइपरएक्टिविटी डिसऑर्डर) की पहचान:

एडीएचडी के लक्षण प्रत्येक बच्चे में अलग-अलग हो सकते हैं, लेकिन आमतौर पर इनमें ध्यान, अतिसक्रियता और आवेग नियंत्रित करने की समस्याएँ शामिल होती हैं। यह व्यवहार अक्सर बच्चे की स्कूल में अच्छा प्रदर्शन करने, दोस्ती बनाए रखने और दैनिक कार्यों को प्रबंधित करने की क्षमता को बाधित करते हैं। इन लक्षणों को जल्दी पहचानने से एडीएचडी की पहचान करने और आयुर्वेदिक उपचार जैसे उचित उपचार प्राप्त करने में सहायता प्राप्त हो सकती है।

बच्चों में एडीएचडी के सामान्य लक्षणः

                                                      

असावधानीः बच्चे का आसानी से विचलित हो जाना, कार्यों को भूल जाना, स्कूल के काम या गतिविधियों पर ध्यान केंद्रित करने में कठिनाई होना आदि।

अतिसक्रियताः बच्चे का लगातार हिलना-डुलना, बैठे रहने में कठिनाई होना, बेचैनी या अत्यधिक बातें करना आदि।

आवेगशीलताः बिना सोचे-समझे कार्य करना, बातचीत में बाधा डालना, या जल्दबाजी में निर्णय लेना आदि।

भावनात्मक विनियमनः बच्चे को अपनी भावनाओं को नियंत्रित करने में कठिनाई होना, बच्चे की मनोदशा में उतार-चढ़ाव, हताशा और चिड़चिड़ापन आदि का होना।

अव्यवस्थाः कार्यों को व्यवस्थित करने में परेशानी का समाना करना, सामान खोना, या निर्देशों का पालन करने में विफल होना आदि।

इन लक्षणों की शुरुआत में ही पहचान करने से माता-पिता और देखभाल करने वालों को आयुर्वेदिक पद्धतियों सहित उपचार के विकल्पों का पता लगाने में सहायता प्राप्त होती है, जिससे बच्चे की ऊर्जा को प्रबंधित करने और उसे संतुलित करने में सहायता मिलती है।

एडीएचडी (अटेंशन डेफिसिट हाइपरएक्टिविटी डिसऑर्डर) के प्रकारों का आयुर्वेदिक वर्गीकरणः

आयुर्वेद में, एडीएचडी को तीन दोषों- वात, पित्त और कफ की दृष्टि से समझा जाता है। यह प्रत्येक दोष एक अलग प्रकार की ऊर्जा का प्रतिनिधित्व करता है, और इनमें से किसी एक में असंतुलन एडीएचडी के विशिष्ट लक्षणों को जन्म दे सकता है।

चिकित्सीय अभ्यासः

आयुर्वेद में मन और शरीर में संतुलन बहाल करने के उद्देश्य से कई चिकित्सीय उपचार शामिल किए गए हैं। यह उपचार शरीर को विषमुक्त करने, तंत्रिका तंत्र को शांत करने और मानसिक एकाग्रता में सुधार करने में सहायता प्रदान करते हैं। एडीएचडी से ग्रस्त बच्चों के लिए पंचकर्म, शिरोधारा और नास्य आमतौर पर इस्तेमाल की जाने वाली चिकित्सा पद्धतियाँ हैं, जो एक समग्र उपचार सहायता प्रदान करती हैं।

पंचकर्मः एक विषहरण प्रक्रिया है जो शरीर से विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालती है और संतुलन बहाल करती है।

शिरोधाराः मस्तिष्क को शांत करने और अति सक्रियता को कम करने के लिए माथे पर डाला जाने वाला सौम्य तेल उपचार है।

नास्यः एक नासिका चिकित्सा जो साइनस को साफ करने और मानसिक स्पष्टता में सुधार करने में मदद करती है, अक्सर वात और कफ असंतुलन के लिए उपयोग की जाने वाली एक प्रक्रिया है।

जीवनशैली में अपेक्षित बदलावः

एक व्यवस्थित दिनचर्या बनाने और शांत वातावरण को बढ़ावा देने से एडीएचडी के लक्षणों में उल्लेखनीय सुधार हो सकता है। आयुर्वेद बच्चों को सुरक्षित और केंद्रित महसूस कराने के लिए नींद, काम और खेल में नियमितता पर ज़ोर देता है। योग या ध्यान जैसी सचेतन गतिविधियों को प्रोत्साहित करने से मानसिक स्पष्टता और भावनात्मक संतुलन को और बढ़ावा मिल सकता है।

शारीरिक गतिविधि को प्रोत्साहित करें: हल्के व्यायाम, जैसे योग या पैदल चलना, ऊर्जा के स्तर को प्रबंधित करने और ध्यान में सुधार करने में मदद कर सकते हैं।

नियमित दिनचर्या स्थापित करें: नियमित नींद, अध्ययन और खेल का समय एडीएचडी से पीड़ित बच्चों को ध्यान केंद्रित करने में मदद करता है।

ध्यान का अभ्यास करें: ध्यान या गहरी साँस लेने जैसी गतिविधियाँ आवेग और चिंता को कम कर सकती हैं।

आयुर्वेद शरीर के दोषों में असंतुलन के मूल कारण को दूर करके एडीएचडी (अटेंशन डेफिसिट हाइपरएक्टिविटी डिसऑर्डर) के प्रबंधन के लिए एक विचारशील दृष्टिकोण प्रदान करता है। आहार समायोजन, हर्बल उपचार और ध्यान संबंधी प्रथाओं सहित व्यक्तिगत उपचारों के माध्यम से, आयुर्वेद एडीएचडी से ग्रस्त बच्चों को बेहतर एकाग्रता, भावनात्मक संतुलन और समग्र स्वास्थ्य विकसित करने में मदद कर सकता है।

इन विधियों को अपनाकर, माता-पिता एक ऐसा सहायक वातावरण बना सकते हैं जो उनके बच्चों के दीर्घकालिक स्वास्थ्य और सामंजस्य को बढ़ावा देता है।

लेखकः डॉ0 सुशील शर्मा, जिला मेरठ के कंकर खेड़ा क्षेत्र में पिछले तीस वर्षों से अधिक समय से एक सफल आयुर्वेदिक चिकित्सक के रूप में प्रक्टिस कर रहे हैं।