मानसून के समय दमा (अस्थमा) रोग से बचाव कैसे करें      Publish Date : 07/07/2025

    मानसून के समय दमा (अस्थमा) रोग से बचाव कैसे करें

                                                                                                                                             डॉ0 सुशील शर्मा एवं मुकेश शर्मा

इस समय तक मानसून लगभग भारत के सभी प्रदेशों में बरस चुका है। गरम व नम वातावरण में इस मौसम में जो फफूंद पनपती है, कई रोगियों में दमे के लक्षण पैदा कर सकती है। ऐसा उन्हीं रोगियों में होता है जो फफूंद के प्रति एलर्जिक होते हैं, उन्हें बरसात के मौसम के पश्चात दमे के लक्षणों में तीव्रता महसूस होती है।

बरसात के मौसम में पैदा हुई सीलन व नमी के कारण कई वस्तुओं में फफूंद लग जाती है जैसे- सड़े कूड़ा-करकट फेंकने के स्थान, गीले जूते व लकड़ी इत्यादि। फफूंद के सूक्ष्म बीजाणु मुक्त होकर हवा में उड़ते रहते हैं और दमे के रोगी को परेशान करते हैं। अक्सर दमे के रोगी यह सोचकर चितित होते रहतें हैं कि उन्हें यह दमे का दौरा क्यों पड़ता है और इससे बचाव कैसे किया जा सकता है आदि-आदि। भिन्न-भिन्न कारणों को लेकर दमे के रोगी अक्सर परेशान रहते है।

                                                    

दमे के रोगी इन बातों पर दें ध्यान

दमे के रोगी को व्यायाम करना चाहिए या नहीं?

दमे के रोगियों को सलाह दी जाती है कि जब दौरा पड़ा हो तब व्यायाम न करें, परन्तु इसका अर्थ यह नहीं कि वह व्यायाम ही छोड़ दें। वास्तव में दमे के रोगी के लिए बेहतर है कि वह सीमित व्यायाम करें। इससे उसकी श्वसन क्रिया में सुधार होगा। यौगिक क्रियाएं उनके लिए काफी लाभकारी सिद्ध होती हैं। सूर्य नमस्कार व शव आसन का अभ्यास अवश्य करें तो लाभ मिलता है।

दमे के रोगी तैराकी कर सकते हैं या नहीं?

तैराकी को दमे के रोगी के लिए एक अच्छा व्यायाम माना जाता है। हालांकि, स्वीमिंग पूल में पानी साफ करने के लिए जब क्लोरीन मिलाई जाती है तो उसके तुरंत बाद तैराकी करने पर उन्हें सांस का दौरा पड़ सकता है। इसलिए उस स्थिति में तैराकी करना उचित नहीं है।

कई बार बिस्तर पर लेटते ही दौरा पड़ जाता है?

दमे के रोगी को अपनी तकिया को प्लास्टिक या पोलीथीन से लपेट लेना चाहिए। रूई के महीन रेशों से कई बार अस्थमा का दौरा पड़ जाता है।

घर में सफेदी (व्हाइट वॉश) व पेंट करवाने पर रोगी को दौरा पड़ सकता है?

ऐसी स्थिति में रोगी, हो सके तो घर से दूर चला जाए। अक्सर पेंट व सफेटी के रसायनों व धूल के कारण श्वास नलिकाओं में ऐंठन आ जाती है, जिससे वे सिकड़ कर तंग हो जाती हैं और इसके परिणामस्वरूप दमे के रोगी को दौरा पड़ जाता है।

छमे के रोगी को घर में कार्पेट (कालीन) बिछाना चाहिए या नहीं?

दमे के रोगी को शयन कक्ष या स्नान गृह में जाने पर, जहां अत्यंत सूक्ष्म कंण व कीटाण आदि फर्श के गलीचों व कंबल आदि में पनपते हैं, इससे रोगी की सांस फूलने लगती है। इसलिए हो सके तो कालीन न बिछाएं। कंबल का प्रयोग भी कम से कम ही करें।

क्या रोगी अपने घर में पालतू जानवर पाल सकते हैं?

दमे के रोगी अक्सर पालतू जानवरों के साथ भी नहीं रह सकते, क्योंकि इन जंतुओं के शरीर से रोम, बाल या पंखों द्वारा दमे के रोगियों को एलर्जी होती है और उन्हें इसके कारण दमें का दौरा भी पड़ सकता है।

क्या रोगी के घर में लाइब्रेरी बनाई जा सकती है?

दमे से पीड़ित लोगों को यदि घर में लाइब्रेरी बनानी हो तो किताबें खुले खानों में रखने के स्थान पर बंद अल्मारियों में रखनी चाहिए, ताकि किताबों पर धूल न जमा होने पाए। रखी किताबों पर जमी पुरानी धूल के कारण रोगी को दमे का दौरा पड़ सकता है।

क्या दमे का रोगी कुछ भी खा पी सकता है?

जी हाँ! दमे का रोगी कुछ भी खा पी सकता है। बशर्ते उनमें से किसी खाद्य पदार्थ से एलर्जी न होती हो। कुछ रोगियों को दूध, खमीर, अंडों तथा मछली से एलर्जी के कारण दौरा पड़ जाता है। इसके साथ ही रोगी को यह जानना चाहिए कि हर बार उस वस्तु के खाने पर ही उसे दौरा पड़ता हो तब उसे न खाए।

रात का भोजन करने के दो घंटे पश्चात ही सोए और पेट भर खाना भी न खाएं। कई रोगियों को पेट में अत्यधिक अम्ल बनने पर (हाइपर एसीडिटी) दमे का दौरा पड़ता है। इसलिए जिन पदार्थों से पेट में अम्ल बनता हो उन्हें न खाये या फिर हाइपर एसीडिटी का इलाज करें।

दौरा पड़ने पर हमेशा एंटीबायोटिक्स इस्तेमाल करने चाहिए?

जी नहीं। यदि दौरे का कारण श्वास नली में संक्रमण हो तभी एंटीबायोटिक्स का सेवन करना चाहिएं अन्यथा एलर्जी दूर करने वाली दवाओं के प्रयोग से ही दौरा ठीक हो जाता है।

इन्हेलर्स का उपयोग कर सकते हैं?

कई बार घर से बाहर श्वास में कठिनाई आने पर रोगी इन्हेलर्स का उपयोग करते हुए शर्म महसूस करते हैं, परन्तु इसमें शर्म की कोई बात नहीं है। यदि किन्हीं परिस्थितियों में सांस उखड़ रही हो तो तुरंत इन्हेलर का प्रयोग कर लेना चाहिए। इससे दौरा उसी समय रुक जाता है। हालांकि आजकल बाजार में ‘‘नेबोलाइजर्स’’ भी उपलब्ध है। इनके द्वारा तुरंत सूक्ष्म मात्रा में दवा फेफड़ों तक पहुंच कर रोगी को जल्द आराम पहुंचाती है।

क्या तनाव की स्थिति में भी दमे का दौरा पड़ सकता है?

जी हाँ! तनाव के कारण या भावनात्मक परिवर्तन जैसे कि क्रोध, भय, चिता, शोक, प्रसत्रता आदि पर भी व्यक्ति की सांस फूलने लगती है।

धूम्रपान करने के कारण भी दमा होता है?

जी हाँ! दमे के रोगी बहुत-सी गैसों, गाड़ियों से निकलने वाली गैस तथा धूम्रपान के धुएं के प्रति भी अधिक संवेदनशील होते हैं। इसलिए दमे के रोगी केा धूम्रपान करना या सिगरेट से निकलने वाले धुएं से दूर रहना उचित है।

क्या ‘‘पोल्यूशन’’ या प्रदूषण से भी दमे के रोगी प्रभावित होते हैं?

वायुमंडल में तापक्रम में परिवर्तन व प्रदूषण के कारण भी दमे की समस्या होती है। फफूंदी, काई आदि के अत्यंत सूक्ष्म बीजाण वायुमंडल में उड़ते रहते हैं और दमे के रोगी के लिए परेशानी पैदा कर देते हैं। इसलिए कुछ लोगों को ठंडे व सीलन वाले घरों, बेसमेंट या गोदामों में जहां फफूंद या काई लगी होती है, रहने पर या काम करने पर सांस फूलने की शिकायत हो जाती है।

क्या दवाओं के कारण भी अस्थमा हो सकता है?

जी हाँ! कुछ औषधियों के द्वारा भी दमे का दौरा पड़ सकता है। एस्त्रीन खाने पर यदि दौरा पड़ता हो तो इसकी जांच करवानी चाहिए। रोगियों को कोई भी दवा लेने से पहले अपने डॉक्टर से राय ले लेनी चाहिए।

परिवार में मां या पिता को दमा होने पर बच्चे को यह शिकायत हो सकती है?

जी नहीं, दमा रोग एक प्रकार की एलर्जी है। जरूरी नहीं कि परिवार में किसी को दमा ही हो।

बच्चे को यदि यह रोग हो तो स्कूल में अध्यापक को बताना जरूरी है?

जी हां! बच्चे के रोग के बारे में स्कूल में अध्यापक को अवश्य बताना चाहिए। कई बार ऐसा देखा गया है कि स्कूल में व्यायाम या श्रम वाला कार्य करने पर बच्चा अपनी बीमारी के कारण कतराता है, जिससे वह झूठ बोलने व भागने का सहारा लेता है। इसलिए अध्यापक को जानकारी रहने पर बच्चा सच्चाई से अपनी परेशानी अध्यापक के सामने रख सकता है। यदि दौरा न पड़े तो बच्चा आसानी से खेल-कूद में भाग ले सकता है।

दमे के रोगियों को इन बातों का ध्यान रखते हुए रोग से अपना बचाव करना चाहिए। किंतु तेज दौरा पड़ने पर डॉक्टरी राय व चिकित्सा करवानी चाहिए और हमेशा इस बात की तरफ ध्यान देना चाहिए कि किन कारणों से उन्हें यह दौरा पड़ता है और उन कारणों को दूर करने का प्रयत्न करना चाहिए, साथ ही व्यायाम द्वारा अपने फेफड़ों को मजबूत बनाना चाहिए।

लेखकः डॉ0 सुशील शर्मा, जिला मेरठ के कंकर खेड़ा क्षेत्र में पिछले तीस वर्षों से अधिक समय से एक सफल आयुर्वेदिक चिकित्सक के रूप में प्रक्टिस कर रहे हैं।