कोलेस्ट्रॉल पर आयुर्वेदिक कंट्रोल      Publish Date : 12/05/2025

                 कोलेस्ट्रॉल पर आयुर्वेदिक कंट्रोल

                                                                                                                                               डॉ0 सुशील शर्मा एवं मुकेश शर्मा

हृदय रोगों का एक प्रमुख कारण ‘कोलेस्ट्रॉल’ अथवा रक्त में वसा की अधिक मात्रा का होना होता है। कोलेस्ट्रॉल की अधिक मात्रा के कारण रक्त वाहिनियों (ब्लड वेसेल्स) की दीवाल में वसा या फैट की पर्त जमने लगती है। इस कारण उच्च रक्तचाप, धमनियों का सँकरापन और हृदय-धमनी अवरोध (हार्ट ब्लॉकज) जैसी गंभीर समस्याओं का सामना करना पड़ता है। यही नहीं रक्त में कोलेस्ट्रॉल की अधिक मात्रा होने से मोटापा भी बढ़ता है और मोटापा अनेक बीमारियों की जड़ होता है।

कारण

कोलेस्ट्रॉल की मात्रा के बढ़ने का एक प्रमुख कारण गलत खानपान और तनावपूर्ण जीवनशैली है। फॉस्टफूड का चलन भी कोलेस्ट्रॉल की मात्रा के बढ़ने के लिए उत्तरदायी है। व्यायाम या शारीरिक परिश्रम न करना भी इस शिकायत का एक कारण होता है। आयुर्वेद में वर्णित आहार-विहार, दिनचर्या और ऋतुचर्या का सही ढंग से पालन करने से कोलेस्ट्रॉल को नियंत्रित कर हृदय रोगों से बचा जा सकता है। प्राणायाम व योगासनों का नियमित अभ्यास भी हृदय रोगों को नियंत्रित करने में कारगर है। दैनिक जीवन में प्रयुक्त होने वाले कुछ खाद्य पदार्थों के नियमित प्रयोग से शरीर में कोलेस्ट्रॉल की मात्रा को नियंत्रित रखा जा सकता है।

मेथी का महत्व

                                                  

मेथी रक्त शर्करा (ब्लड शुगर) और रक्त वसा (कोलेस्ट्रॉल) को कम करने में बेहद लाभप्रद है। यह मधुमेह रोग में भी फायदेमंद है। राष्ट्रीय पोषण संस्थान, हैदराबाद के एक अनुसंधान के अनुसार 25 से 50 ग्राम मेथी के दानों को रात में पानी में भिगो दें। सुबह इसे मसल कर और फिर छानकर पिएं। इसका प्रयोग करने से शरीर में कोलेस्ट्रॉल और ट्राईग्लिसराइड्स की मात्रा कम हो जाती है।

अन्य प्रयोग

अमेरिका के हार्वर्ड चिकित्सा शोध संस्थान के डॉ0 विक्टर के अनुसंधानों से यह तथ्य सिद्ध हुआ है कि कच्चे प्याज के नियमित प्रयोग से कोलेस्ट्रॉल की मात्रा कम होती है। विशेष रूप से अच्छे कोलेस्ट्रॉल एचडीएल की मात्रा बढ़ती है और हानिप्रद एलडीएल कोलेस्ट्राल की मात्रा कम होती है। एक अन्य विदेशी शोधकर्ता डॉ0 रोबर्टलिन के अनुसार लहसुन की 3-4 कलियों का प्रतिदिन सेवन करने से रक्त में कोलेस्ट्राल की मात्रा कम होती है। लहसुन यकृत में कोलेस्ट्राल के बनने की प्रक्रिया को कम करता हैं। आयुर्वेद में तो लहसुन को एक स्वास्थ्यकर रसायन माना जाता है।

धनिया व सूर्यमुखी

                                                           

धनिया कोलेस्ट्रॉल को कम करने में अतिलाभप्रद है। 2 चम्मच धनिया (सूखी-खड़ी) को 2 कप पानी में उबालें। 1/2 कप शेष रहने पर इसे ठंडाकर और फिर छानकर सुबह-शाम पिएं। इस प्रयोग से 2-3 माह में अपेक्षित लाभ प्राप्त होते हैं। इसी तरह सूर्यमुखी (सनफ्लॉवर) में पाया जाने वाला लिनोलिक एसिड भी कोलेस्ट्रॉल को नियंत्रित करने में सहायक है। वहीं सोयाबीन भी कोलेस्ट्रॉल को कम करने में काफी उपयोगी सिद्व होती है। इसमें भी लिनोलिक एसिड प्रचुर मात्रा में पायी जाती है। इसके अलावा सोयाबीन में लिसीथिन नामक तत्व भी प्रचुर मात्रा में पाया जाता है, जो कोलेस्ट्रॉल कम करने में सहायक है।

गाजर व सेब का प्रयोग

                                                                   

एक अमेरिकी कृषि शोध संस्थान के वैज्ञानिक डॉ0 फिलिप पैफर पीटर हागलैंड के अनुसार गाजर में कोलेस्ट्रॉल को कम करने वाले तत्व प्रचुर मात्रा में पाये जाते हैं। गाजर का नियमित प्रयोग करने से कोलेस्ट्राल की मात्रा 2-3 महीनों में 10 से 20 प्रतिशत तक कम हो जाती है। इसी तरह फ्रांस के वैज्ञानिकों की एक शोध के अनुसार सेब भी कोलेस्ट्रॉल कम करने में सहायक है। सेब में पाया जाने वाला तत्व ‘पैक्टिन’ विशेष रूप से लाभप्रद है। प्रतिदिन 2 से 3 सेब खाने से एलडीएल कोलेस्ट्राल की मात्रा कम होने लगती है और लाभप्रद एचडीएल की मात्रा बढ़ती है।

अर्जुन की छाल

                                                            

आयुर्वेद चिकित्सा में सदियों से अर्जुन की छाल का प्रयोग हृदय रोगों की चिकित्सा में किया जा रहा है। 10 से 15 ग्राम अर्जुन की छाल को 2 कप पानी में पकाएं। जब पानी 1/2 कप शेष रह जाए, तो इसे छानकर सुबह-शाम पिएं। इस प्रयोग से कोलेस्ट्रॉल की मात्रा कम होने के अलावा हृदय रोगों में भी राहत मिलती है।

लेखकः डॉ0 सुशील शर्मा, जिला मेरठ के कंकर खेड़ा क्षेत्र में पिछले तीस वर्षों से अधिक समय से एक सफल आयुर्वेदिक चिकित्सक के रूप में प्रक्टिस कर रहे हैं।