
अमचूर के उत्पादन से अधिक मुनाफा Publish Date : 23/03/2025
अमचूर के उत्पादन से अधिक मुनाफा
प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 वर्षा रानी
आम के उत्पादक क्षेत्रों में आम के फलन के दौरान लगभग 3-4 बार आंधी आती है, जिसके कारण लगभग 15-20 प्रतिशत कच्चे फल नीचे गिर जाते हैं। यदि आंधी तीव्र हो तो इससे अधिक फल भी गिर सकते हैं। इसके अलावा फलों की तुड़ाई के दौरान भी लगभग 10-12 प्रतिशत फल फट जाते हैं। इन फलों का बाजार में उचित मूल्य नहीं मिल पाता है, इन फलों उपयोग से अमचूर का उत्पादन कर बिक्री करने से आम उत्पादक किसानों को अतिरिक्त आय की प्राप्ति हो सकती है।
अमचूर के विभिन्न उपयोग
अमचूर का उपयोग विभिन्न व्यंजन बनाने में किया जाता है। अमचूर का उपयोग दाल, सांभर तथा गोलगप्पे के पानी में भी किया जाता है। इसके अलावा अमचूर, चाट मसाला, करी, बिरयानी, चिकन करी इत्यादि का भी एक मुख्य घटक होता है। अमचूर, नीबू एवं इमली के विकल्प के रूप में भी उपयोग किया जा सकता है।
एक चम्मच अमचूर की अम्लता, तीन चम्मच नीबू रस के बराबर होती है। अच्छे अमचूर की पहचान अमचूर हल्के भूरे रंग का होना चाहिए। अमचूर में फफूंद का संक्रमण नहीं होना चाहिए और इसमें नमी की मात्रा 8-10 प्रतिशत से अधिक नहीं होनी चाहिए। अमचूर की अम्लता 12-15 प्रतिशत तक होनी चाहिए।
अमचूर उत्पादन की विधिः
अमचूर दक्षिणी, पश्चिमी तथा समुद्र तटीय क्षेत्रों में अप्रैल-मई में तथा उत्तरी भारत में मई-जून में बनाया जा सकता है।
फांकें बनाना
आंधी के कारण गिरे हुए कच्चे फलों या तुड़ाई के दौरान खराब हुए फलों को एकत्रित कर पानी से साफ कर लेना चाहिए, फिर स्टील के चाकू या पीलर से फल का छिलका निकालकर उसकी फांकें बनाई जाती हैं। इसकी फांकें पतली बनानी चाहिए, जिससे वे आसानी से एवं शीघ्र ही सूख सकें।
परिरक्षक से उपचार
फांकों में फफूंद के लगने से उनका रंग भूरा या काला हो जाता है। इसके कारण सूखी हुई फांकों का उचित मूल्य नहीं मिलता है। ऐसे में यदि इन फांकों को चूर्ण के रूप में परिवर्तित किया जाए तो उसका रंग भी भूरा या काला हो जाता है। इन फांकों में फफूंद लगने से बचाने के लिए फांकों को सुखाने से पहले पोटेशियम मेटाबाइसल्फाइट के घोल में 5 मिनट तक डुबोना चाहिए।
फांकों को सुखाना
फांकों को धूप में या कम लागत के सोलर ड्रायर में आसानी से सुखाया जा सकता है। सामान्यतः फांकों को धूप में छत पर सुखाया जाता है, इसके कारण धूल या मिट्टी के कण लगने से इन फांकों का रंग भूरा हो जाता है। धूप में सुखाने में समय भी अधिक (2-3 दिन) का समय लग जाता है। वहीं सोलर ड्रायर में फांकें एक दिन में ही सूख जाती है, क्योंकि सोलर ड्रायर का तापमान बाहरी तापमान से 8-120 सेल्सियस तक अधिक होता है। इसलिए उच्च गुणवत्ता ख्ुक्त अमचूर बनाने के लिए फांकों को सोलर ड्रायर में ही सुखाना उचित रहता है।
अमचूर बनाना
ग्राइंडर या पल्वेराइजर से सूखी हुई फांकों से अमचूर बनाया जा सकता है। यह स्टेनलैस स्टील का बना होता है तथा इसमें 2 हॉर्स पावर की मोटर लगी होती है। इसके अलावा इसमें एक ब्लोअर भी लगा हुआ होता है, जो फांकों व चूर्ण में बची हुई नमी को भी सुखा देता है।
अमचूर बनाते समय सावधानी
- बहतु छाटे फलो को छीलना, काटना एवं फांकों से पाउडर बनाना कठिन होता है, इनमें फीनोल की मात्रा के अधिक होने से सूखने के बाद फांकों तथा अमचूर का रंग काला हो जाता है।
- फलों को छीलने के लिए स्टील के चाकू या पीलर का ही उपयोग करना चाहिए, क्योंकि लोहे के चाकू से छीलने से फांकों का रंग गहरा भूरा या काला हो जाता है।
- फांकें पतली काटनी चाहिए, पतली फांकों को सूखने में कम समय लगता है एवं उनका पाउडर बनाने में भी आसानी होती है।
- अमचूर बनाने की प्रक्रिया एवं भंडारण के दौरान फफूंदी से बचाने के लिए फांकों को सुखाने से पहले परिरक्षक से विधिपूर्वक उपचारित कर लेना चाहिए।
- फांकों को धूप में सुखाना हो तो साफ कपड़ा या काली पॉलीथीन शीट के ऊपर फैलाकर सुखाना चाहिए। यदि सोलर ड्रायर उपलब्ध हो तो फांकों को उसमें ही सुखाना चाहिए।
- ग्रामीण इलाकों में सूखी फांकों (जिसे खटाई कहा जाता है), को ही बेच दिया जाता है, जिससे किसानों को अधिक लाभ नहीं मिल पाता। इससें अधिक लाभ कमाने के लिए सूखी फांकों को पाउडर (अमचूर) में परिवर्तित कर एवं आकर्षक पैकेजिंग करके विपणन करना चाहिए।
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।