दिल के दौरे के बाद मनोवैज्ञानिक तनाव      Publish Date : 23/09/2025

                    दिल के दौरे के बाद मनोवैज्ञानिक तनाव

                                                                                                                                                                                 डॉ0 दिव्यांशु सेंगर एवं मुकेश शर्मा

हाल ही में वैज्ञानिकों ने है एक रिपोर्ट में दावा किया है कि दिल का दौरा पड़ने के बाद अगले 12 महीने तक बने रहने वाला मनोवैज्ञानिक तनाव हृदय संबंधी तमाम अन्य कई बीमारियों की जोखिम को 1.3 गुना तक बढ़ा सकता है। इस सम्बन्ध में विशेषज्ञों का कहना है कि हार्ट अटैक आने के बाद शारीरिक स्वास्थ्य पर तो ध्यान दिया जाता है, लेकिन मानसिक स्वास्थ्य को उतना महत्व नहीं दिया जाता, जितना कि देना चाहिए। आमतौर पर हार्ट अटैक के बाद मस्तिष्क में विभिन्न प्रकार के हार्माेनल और केमिकल परिवर्तन होते हैं, जिससे तनाव और अवसाद बढ़ सकता है।

दिल के दौरे के बाद होने वाले मानसिक तनाव दूर करने के लिए कॉग्निटिव बिहेवियर थेरेपी और साथ रूडी दावों और तनाव कम करने की तकनीक को अपनाकर जीवन की गुणवत्ता में सुधार किया जा सकता है। अमेरिका हार्ट संगठन के अनुसार दिल का दौरा झेलने वाले 33 से 50 प्रतिशत तक लोग मनोवैज्ञानिक परेशानी से गुजरते हैं। इस दौरान वह अवसाद चिंता या पोस्ट ऑटोमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर से गुजर सकते हैं। रिसर्च टीम ने हार्ट अटैक एक्ट कोरोनरी सिंड्रोम अवसाद तनाव चिंता स्ट्रास और पीटीएसडी पर पूर्व प्रकाशित शोधों की समीक्षा करके यह रिपोर्ट तैयार की है।

                                                            

समूह के लेखक और प्रमुख शोधकर्ता अमेरिका के वायरस कॉलेज आफ मेडिसिन के प्रोफेसर प्लान ए. इलेवन ने कहा कि दिल के दौरे के बाद मनोवैज्ञानिक परेशानी होना अपने आप में काफी आम है, हालांकि इस पर कम  गौर किया जाता है। ऐसे में हम अधिकतर हृदय रोग के भौतिक पहलू पर ध्यान केंद्रित करते हैं, जबकि मनोवैज्ञानिक सेहत भी शारीरिक स्वास्थ्य से ही जुड़ी हुई होती है। शोधकर्ताओं ने बताया कि दिल के दौरे के बाद हृदय की मांसपेशियों में इन्फ्लेमेशन ट्रिगर हो सकती है, जिससे मस्तिष्क में हॉर्मोन और रासायनिक स्तर पर बदलाव हो सकते हैं।

इस बदलाव से अवसाद, चिंता या पीटीएसडी के लक्षण उभर सकते हैं। गंभीर मनोवैज्ञानिक तनाव से हृदय की धमनियों में सिकुड़न भी हो सकती है। हृदय में रक्त का प्रवाह भी कम हो सकता है और धड़कनों में उतार-चढ़ाव भी बढ़ सकता है।

वहीं इस अध्ययन में देखा गया है कि मनोवैज्ञानिक परेशानी के कारण भविष्य में हार्ट अटैक आने का खतरा भी 28 प्रतिशत तक बढ़ सकता है। वहीं अगर यह तनाव अधिक हो तो दोबारा हार्ट अटैक आने का खतरा 60 प्रतिशत तक भी बढ़ जाता है। हृदय घात से बचे 50 प्रतिशत मरीजों को अस्पताल में भर्ती होने के दौरान चिंता और तनाव प्रभावित कर सकता है, जबकि 20 या 30 प्रतिशत मरीजों में अस्पताल से छुट्टी मिलने के बाद भी यह कई महीनों या उससे भी अधिक समय तक बना रहता है। अतः हमेशा ऐसी कोशिश करें कि मरीज मानसिक तनाव से दूर रहे।

लेखक: डॉ0 दिव्यांशु सेंगर, प्यारे लाल शर्मां, जिला चिकित्सालय मेरठ मे मेडिकल ऑफिसर हैं।