
भारत में फेफड़ों की समस्या Publish Date : 06/09/2025
भारत में फेफड़ों की समस्या
डॉ0 दिव्यांशु सेंगर एवं मुकेश शर्मा
शोधकर्ताओं की एक अंतरराष्ट्रीय टीम की ओर से किए गए विश्लेषण के माध्यम से ज्ञात हुआ है कि भारत में 45 वर्ष और उससे अधिक आयु वर्ग के लगभग 14% से अधिक लोग फेफड़ों की समस्या से प्रभावित हो सकते हैं।
लर्निंग टूंडियन एजिंग स्टडीज इन इंडिया के एक भाग के रूप में 31000 से अधिक वयस्कों का स्पायरोमेट्री परीक्षण किया गया। इस परीक्षण का का उपयोग यह जानने के लिए किया जाता है कि किसी व्यक्ति के फेफड़े कितनी अच्छी तरह काम कर रहे हैं। इस परीक्षण का देश में पहला और दुनिया का सबसे बड़ा दीर्घकालिक डेटाबेस संकलित किया गया है। पल आस वन पत्रिका में प्रकाशित निष्कर्ष बताते हैं कि इस समस्या से महिलाओं की तुलना में पुरुष अधिक प्रभावित हो सकते हैं।
साथ ही उम्र के साथ ही यह समस्या अब बढ़ती जा रही है। ऑब्जेक्टिव पलमोनरी डिजीज फेफड़ों की एक स्थाई और प्रगतिशील बीमारी है। इसमें वायु मार्ग में सूजन आ जाती हैं और यह क्षतिग्रस्त हो जाते हैं। इससे सांस लेने में तकलीफ होने लगती है। सिगरेट पीने प्रदूषण और कार्य स्थल की धूल व रसायनों के संपर्क में आना इस समस्या के प्रमुख कारण होते है।
समस्या के लक्षणों में प्रभावित व्यक्ति का सांस फूलना खांसी और बलगम शामिल है जागरूकता का स्तर भी काम है। डेटा संग्रह का दूसरा चरण चल रहा है, इसलिए इन लोगों से बचने के लिए जागरूकता के साथ-साथ समय पर ट्रीटमेंट कराना भी आवश्यक होता है।
लेखक: डॉ0 दिव्यांशु सेंगर, प्यारे लाल शर्मां, जिला चिकित्सालय मेरठ मे मेडिकल ऑफिसर हैं।