
बच्चों का मोबाइल के प्रति गहरा लगाव है खतरनाक Publish Date : 26/08/2025
बच्चों का मोबाइल के प्रति गहरा लगाव है खतरनाक
डॉ0 दिव्यांशु सेंगर एवं मुकेश शर्मा
किसी बच्चे के हाथ से स्मार्टफोन या टैबलेट छीनकर देखिए, वो आप पर लगभग चीख पड़ेगा। दरअसल, स्मार्टफोन की लत है ही ऐसी। इसका बच्चे की की सेहत पर क्या असर पड़ता है, बता रहें हैं हमारे स्वास्थ्य विशेषज्ञ डॉ0 दिव्यांशु सेंगर-
आज टेक्नोलॉजी ने हमारी जिंदगी को जहां एक ओर तो बेहद आसान बना दिया है, वहीं दूसरी ओर यह सेहत के लिए बेहद खतरनाक साबित हो रही है। आज की पीढ़ी बचपन से ही टेक्नोलॉजी और गैजेट्स की इस प्रकार से आदी होती जा रही हैं कि इसका उनके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर गलत प्रभाव पड़ रहा है। पर, क्या आप जानती हैं कि गैजेट्स के अधिक उपयोग से बच्चों के सीखने की क्षमता प्रभावित होती है, वह ध्यान भी नहीं लगा पाते हैं, खाना ठीक से नहीं खा पाते हैं, आंखें खराब हो जाती हैं, अतिसक्रिय हो जाते हैं और साथ ही उनमें अनुशासन संबंधी समस्या भी उत्पन्न हो जाती है? विशेषज्ञों द्वारा किए गए एक अनुमान के अनुसार छोटे बच्चों पर बड़ों की तुलना में गैजेट्स के इस्तेमाल का दुष्प्रभाव 4 से 5 गुना तक अधिक होता है।
विकास में अवरोध
आजकल अधिकतर माता-पिता अपने बच्चे की तारीफ करते नहीं थकते हैं कि वह मोबाइल व टैब को एकदम बड़ों की तरह से ही इस्तेमाल करना जानता है। दरअसल सारा दिन टीवी, मोबाइल या फिर टैब पर गेम खेलकर बिताने से बच्चों की गतिविधियां सीमित हो जाती हैं और इससे उनका शारीरिक विकास प्रभावित होता है। ऐसे बच्चे को शारीरिक रूप से सक्रिय रहने में काफी दिक्कत आती है। केवल इतना ही नहीं, उनकी शैक्षणिक क्षमता व आउटडोर खेलों में भाग लेने की योग्यता भी इससे प्रभावित होती है। इसके विपरीत जो बच्चे शारीरिक रूप से सक्रिय रहते हैं वे किसी भी काम पर आसानी से ध्यान केंद्रित कर पाते हैं और नई चीजों को सीखने की उनकी क्षमता भी काफी बेहतर होती है।
आंखों पर नकारात्मक प्रभाव
आजकल बच्चों में छोटी उम्र में ही चश्मा लग जाना एक आम समस्या बन चुकी है। अनुवांशिक कारण के अतिरिक्त इनमे से अधिकतर मामलों में इस समस्या का कारण टीवी, मोबाइल, कंप्यूटर, लैपटॉप आदि का अधिक प्रयोग करना होता है। दरअसल फोन, टैब और कंप्यूटर आदि की स्क्रीन हजारों छोटे-छोटे पिक्सल से बनी होती है, जो लगातार हिलती रहतीहै। हमारी आंखें उन पिक्सल की गति के अनुसार उन पर ध्यान केंद्रित नहीं कर पाती हैं। विशेषरूप से फोन की स्क्रीन, कंप्यूटर की स्क्रीन की अपेक्षा काफी छोटी होती है, इसलिए फोन पर काम करने से आंखों पर अधिक दबाव पड़ता है। इस कारण से कंप्यूटर विजन सिंड्रोम व ड्राई आई जैसी परेशानी बढ़ जाती है।
मोटापे का बढ़ना
लैप्रोस्कोपी एवं बैरिएट्रिक सर्जन डॉ. कपिल अग्रवाल बताते हैं कि जिन बच्चों को उनके कमरे में ही टीवी, मोबाइल या टैब का इस्तेमाल करने दिया जाता है, उनमें मोटापे के शिकार होने की आशंका 30 प्रतिशत तक अधिक हो जाती है। केवल इतना ही नहीं, ऐसे बच्चों में बड़ा होने पर डायबिटीज और हृदय रोग सम्बन्धी बीमारियों का खतरा भी अधिक होता है और यह सारे खतरे मिलकर ऐसे बच्चों की औसत आयु को भी कम कर देते हैं।
मानसिक रोगों का भ रहता है खतरा
गैजेट्स के अनियंत्रित प्रयोग से बच्चों में अवसाद, एंग्जाइटी, अटैचमेंट डिसऑर्डर, ध्यान केंद्रित करने की क्षमता में कमी, बाइपोलर डिसऑर्डर, उन्माद और असामान्य व्यवहार सहित अनके समस्याएं देखने को मिलती हैं।
डिजिटल डिमेशिया
वर्तमान के इस डिजिटल युग में अधिक समय तक फोन, लैपटॉप या टैब आदि का प्रयोग करने और एनीमेटिड हिंसात्मक चीजें देखने के चलते बच्चों के दिमाग में भी वही कैरेक्टर और कहानियां हर समय घूमती रहती है। विशेषरूप से ऐसे बच्चे जो बिल्कुल भी आउटडोर एक्टिविटी में भाग नहीं लेते और लोगों से बिल्कुल भी नहीं मिलते-जुलते हैं, उनकी स्थिति और भी गंभीर हो सकती है। ऐसे बच्चे हमेशा उन्हीं कैरेक्टर में खोए रहते हैं और यहां तक कि रोजमर्रा की बातचीत में भी उन्हीं कैरेक्टर की तरह बात करने की कोशिश करने लगते हैं। ऐसे बच्चे को पढ़ने के बाद कुछ भी याद नहीं रह पाता है। उन्हें डिजिटल डिमेंशिया की शिकायत हो जाती हैं। वह पढ़ाई में भी ध्यान केंद्रित ही नहीं कर पाते हैं।
हानिकारक रेडिएशन का प्रभाव
मोबाइल फोन, लैपटॉप, टैब और टीवी आदि गैजेट्स बच्चों के लिए काफी खतरनाक हो सकते हैं। इनसे निकलने वाली रेडिएशन न सिर्फ बच्चों की आंखों को बुरी तरह प्रभावित करती है बल्कि यह रेडिएशन इन बच्चों में कैंसर जैसी खतरनाक बीमारियों की आशंका को भी बढ़ा देती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के अनुसार इन गैजेट्स से निकलने वाली 2ए व 2 बी श्रेणी की रेडियो फ्रिक्वेंसी एक्पोजर कैंसर के लिए जिम्मेदार होती हैं।
छुटकारे के लिए आजमाएं ये तरीके
- बच्चे के सामने गैजेट्स का इस्तेमाल करने से बचें। बच्चा वही काम करता है, जो वह अपने पेरेंट्स को करते हुए देखता है।
- फोन, टैब या लैपटॉप हाथ लगते ही बच्चे उस पर गेम खेलना व वीडियो देखना पसंद करते हैं। अपने गैजेट्स में पासवर्ड प्रोटेक्शन लगाकर रखें और पासवर्ड को लगातार बदलती रहें।
- बच्चे को ज्यादा से ज्यादा खेलकूद और बाहरी गतिविधियों में व्यस्त रखना बेहद जरूरी होता है। उन्हें डांस क्लास ज्वॉइन करवाएं या उनके साथ आउटडोर गेम्स खेलें।
लेखक: डॉ0 दिव्यांशु सेंगर, प्यारे लाल शर्मां, जिला चिकित्सालय मेरठ मे मेडिकल ऑफिसर हैं।