
अब किलकारियों पर नहीं लगेगा ग्रहण Publish Date : 25/08/2025
अब किलकारियों पर नहीं लगेगा ग्रहण
डॉ0 दिव्यांशं सेंगर एवं मुकेश शर्मा
वर्तमान में निरंतर बदलती जीवनशैली के कारण अब विभिन्न प्रकार की बीमारियां अपने पैर पसार रही हैं। चिंता की बात है कि बच्चे भी इन बीमारियों के शिकार हो रहे हैं। कौन-सी हैं ऐसी बीमारियां, बता रहे हैं हमारे विशेषज्ञ डॉ0 दिव्यांशु सेंगर-
बच्चे मन के सच्चे तो निस्संदेह होते ही हैं, लेकिन बच्चों में होने वाली बीमारियां भला यह सब कहां समझ पाती हैं! वह चाहे कोई शारीरिक रोग हों या फिर कोई मानसिक रोग, यह सब गलत जीवनशैली का ही नतीजा हैं। बड़ों में तो ये बीमारियां देखने को मिलती ही थीं, लेकिन अब बच्चे भी इन रोगों से ग्रस्त हो रहे हैं।
इस संबंध में हुए कई सर्वेक्षण और शोध खुलासा करते हैं कि भारतीय स्कूली बच्चे मोटापे का शिकार होते जा रहे हैं। जंक फूड, लंबे समय तक टीवी और मोबाइल फोन देखना और व्यायाम की कमी, आदि इसके तीन महत्वपूर्ण कारक हैं जिसके कारण बच्चों को यह सब बीमारियां अपनी गिरफ्त में लगातार ले रही हैं।
मोटापे का प्रकोप
पेडियाट्रिक ओबेसिटी में प्रकाशित किए गए एक नए अध्ययन के अनुसार, भारत में वर्ष 2025 तक 17 मिलियन बच्चों के मोटापे से ग्रसित होने की आशंका है। जब एक बच्चे का वजन अपने उम्र के अनुरूप अधिक होता है तो उस बच्चे को मोटापे से ग्रसित बच्चा कहा जाता है। यही बच्चे जब बड़े होते हैं तो उन्हें मधुमेह, उच्च रक्तचाप और उच्च कोलेस्ट्रॉर्ल की समस्या से जूझना पड़ सकता है। पिज्जा, बर्गर, फ्रेंच फ्राइज, पैक्ड भोजन, कोल्ड ड्रिंक आदि उच्च कैलोरी वाले जंक फूड बच्चों में मोटापा बढ़ाने के प्रमुख कारण हैं।
यह है उपायः बच्चो की डाइट में फल और सब्जियों की मात्रा बढ़ाई जानी चाहिए। उन्हें शारीरिक गतिविधियों में हिस्सा लेने के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए और टीवी अथवा मोबाइल से उनकी दूरी बढ़ाई जानी चाहिए।
अस्थमा का वार
अस्थमा एक ऐसा रोग है जो किसी भी उम्र में किसी को भी अपनी चपेट में ले सकता है। कुछ महीने का बच्चा भी इसके चपेट में आ सकता है। यह एक तरह की एलर्जी प्रतिक्रिया है, जो बच्चों को खांसी, छींकने और सांस लेने में समस्या का कारण बन सकती है। बढ़ते प्रदूषण के कारण अस्थमा का खतरा और भी बढ़ रहा है।
यह है उपायः इससे बचने के लिए एलर्जी फैलाने वाली चीजों से बच्चे को दूर रखा जाए। संभव हो तो घर में एयर प्यूरीफायर लगवाएं और बच्चों के घर से बाहर जाने पर उन्हें एन95 या एन99 मास्क पहनने के लिए कहें। जब प्रदूषण का स्तर बाहर ज्यादा हो तो उन्हें घर के अंदर ही खेलने की आवश्यकता पर बल दिया जाए। घर में धूल इकट्ठा न होने दें। बच्चे की चादरों को सप्ताह में एक बार गरम पानी में जरूर धोएं।
त्वचा संबंधी समस्याएं और एलर्जी
आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि एलर्जी त्वचा पर भी अपन प्रभाव दिखाती है। रूखी त्वचा, डायपर रैशेज और एटॉपिक डर्मेटाइटिस या एग्जीमा आदि त्वचा से संबंधित आम समस्याएं हैं। ये सिर्फ बैक्टीरियल, वायरल या फंगल संक्रमण की वजह से नहीं होते हैं। गरम पानी से स्नान भी बच्चों में त्वचा संबंधी दिक्कतों का कारण बनती है।
कुछ बच्चों को दूध, सोया, मछली, मटर, मूंगफली आदि से एलर्जी होती है, तो कुछ को विशेष दवा के सेवन के बाद रैशेज हो जाते हैं। कुछ बच्चों को पालतू जानवरों की वजह से भी एलर्जी होती है।
यह है उपायः नहाने के बाद बच्चों की त्वचा पर बेबी लोशन जरूर लगाएं। दिन में कम-से-कम दो बार उन्हें लोशन लगाएं। साथ ही यह भी सुनिश्चित करें कि उनके शरीर में पानी की कमी नहीं हो अर्थात वह हाइड्रेट रहें। इसके लिए उन्हें पानी के अलावा जूस व सूप आदि भी पीने के लिए देते रहें।
मानसिक समस्याएं और चिंता
चिंता एक तरह का दबाव ही है, जो आजकल के बच्चों को भी परेशान कर रहा है। एंग्जाइटी डिसऑर्डर, ईटिंग डिसऑर्डर, मूड डिसऑर्डर, अटेंशन डेफिसिट हाइपर एक्टिविटी डिसऑर्डर कुछ खास मानसिक समस्याएं हैं, जिनसे आज के बच्चे पीड़ित हैं। बहुत ज्यादा समय तक घर के अंदर रहने और किसी गतिविधि में भाग न लेने के कारण भी बच्चे इन समस्याओं से खुद को घिरा पा सकते हैं।
यह है उपायः बच्चे के आसपास स्वस्थ माहौल रखें और उनसे लगातार बातें करते रहें। चीजों के प्रति संवेदनशीलता सही तरह से बनी रहे, इसके लिए उनके साथ लगातर बातें करना और उन्हें समझना एवं समझाना बहुत जरूरी है। जरूरत पड़ने पर विशेषज्ञ की मदद जरूर लें।
खून की कमी
जब किसी व्यक्ति के शरीर में हीमोग्लोबिन का स्तर कम रहता है तो उसे एनीमिया का शिकार माना जाता है। भारतीय बच्चों में यह प्रमुख पांच जीवनशैली से संबंधित बीमारियों में से एक है। एनीमिया से बच्चों की बोलने की क्षमता, मोटर स्किल्स और समन्वय करने की क्षमता प्रभावित होती है। आयरन की कमी से बच्चों को थकान, उनके विकास में धीमापन, भूख न लगना, व्यवहार संबंधी परेशानी और जल्दी होने वाले संक्रमण का डर बना रहता है।
यह है उपायः बहुत छोटे बच्चों को तब तक आयरन सप्लीमेंट दें जब तक कि वे खाना खाने योग्य न हो जाएं। बड़े बच्चों को हरी पत्तेदार सब्जियां, दाल, मछली, अंडे और मेवे खाने चाहिए। विटामिन-सी युक्त खट्टे फल, शिमला मिर्च, टमाटर आदि खाने से आयरन आसानी से पचता है।
लेखक: डॉ0 दिव्यांशु सेंगर, प्यारे लाल शर्मां, जिला चिकित्सालय मेरठ मे मेडिकल ऑफिसर हैं।