
बरसात के मौसम में रहें जरा बचकर Publish Date : 21/08/2025
बरसात के मौसम में रहें जरा बचकर
प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं अन्य
बरसात के मौसम की जहां अपनी खूबियां हैं, वहीं इस मौसम में लापरवाही बरतने पर स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं भी उत्पन्न हो सकती हैं। इसके सम्बन्ध में हमारे विशेषज्ञ, प्रोफेसर आर. एस. सेंगर आपको बता रहे हैं, कि इन समस्याओं से कैसे बचा जाए और इनका सही उपचार क्या हो सकता है।
देश के मानसून का सीजन चल है, लेकिन बारिश का मतलब केवल गर्मी से राहत नहीं बल्कि चिपचिपी यानी उमस भरी गर्मी की शुरुआत भी है। मानसून आने के साथ ही जल और मच्छर जनित बीमारियों की शुरुआत हो जाती है।
अशुद्ध पानी का कुप्रभाव
बारिश के दौरान अधिकांश स्थानों पर पानी में नुकसानदेह जैविक व रासायनिक तत्वों की अशुद्धियां बढ़ जाती हैं। सिर्फ देश की राजधानी दिल्ली में ही बीते साल के पानी के सैंपल में पचास फीसदी नमूने मानकों पर खरे नहीं पाए गए। जैविक अशुद्धियों के साथ ही पानी में क्लोराइड की मात्रा कहीं कम और कहीं जरूरत से अधिक देखी जाती है। जिन शहरों, कस्बों, गांवों में पाइपलाइन से पानी की आपूर्ति नहीं होती, वहां मानसून के दौरान भूमिगत जल अशुद्ध हो जाता है। कूड़े का सही ढंग से निस्तारण न हो पाने, जलभराव, सीवेज लीकेज आदि कुछ ऐसी समस्याएं हैं, जो बारिश में बीमारियों का मुख्य कारण बनती है। जलभराव से मच्छर पैदा होते हैं, जो बीमारियां फैलाते हैं।
इन तमाम परेशानियों के बावजूद मानसून के बाद मिली गर्मी से राहत और खुशी को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। अगर हम सजग रहें तो न केवल बरसात में आमतौर पर होने वाली बीमारियों, परेशानियों से अपने आपको बचा सकते है, बल्कि स्वस्थ रहकर बारिश का भरपूर लुत्फ भी उठा सकते हैं।
पानी की शुद्धता आवश्यक
बारिश का पानी भूमिगत जल और पाइप लाइन से आपूर्ति किए जाने वाले पानी को दुषित करता है। दरअसल, गांवों में खुले में शौच के चलते बारिश में पानी के अशुद्ध होने की आशंका दस गुना तक बढ़ जाती है। वहीं शहरों में सीवेज में लीकेज के कारण आपूर्ति होने वाले पानी के अशुद्ध होने की आशंका होती है। इसलिए बारिश में पानी की स्वच्छता के प्रति सजग रहना हो जाता है।
जैविक अशुद्धिः भिन्न प्रकार के जीवाणुओं से मिश्रित पानी की अशुद्धियों को जैविक अशुद्धि माना जाता है। बारिश में पानी की यह जैविक अशुद्धि आसानी से घरों तक पहुंच जाती है, जिससे डायरिया, पेचिश, टायफायड़ और हैजा आदि के लिए जिम्मेदार ई कोलाई के जीवाणु शरीर तक पहुंच जाते हैं।
पेयजल और स्वच्छता विभाग, भारत सरकार द्वारा युनिसेफ और श्रीराम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडस्ट्रियल रिसर्च के साथ किए गए एक अध्ययन की रिपोर्ट के अनुसार बारिश के मौसम में ओडिसा, बिहार और पश्चिम बंगाल के 240 गांवों के पानी के सैंपल की जांच की गई। इसमें 121 गांव ऐसे थे, जिन्हें अभी भी खुले में शौचमुक्त नहीं किया जा सका है जबकि 119 गांव ऐसे थे जो ओडीएफ यानी खुले में शौचमुक्त थे।
रिपोर्ट के अनुसार जहां अभी भी खुले में शौच किया जा रहा है, उस गांव में ओडीएफ मुक्त गांव की अपेक्षा 3.54 गुना अधिक दूषित जल पाया गया। पानी की यह अशुद्धि भूमिगत और साधारण नल दोनों के पानी में बराबर पाई गई। घरों में संरक्षित पानी में 1.73 अशुद्धियां पाई गई।
मिश्रित अशुद्धिः बारिश के दौरान नदियों और एकत्र जलस्रोत के संसाधनों में मिश्रित अशुद्धियां देखी जाती है, जिसमें आर्गेनिक वेस्ट मैटर और अमिनो एसिड की अशुद्धि प्रमुख है। दूषित हवा या प्रदूषण के कारण पानी में मिली अशुद्धि, फैक्ट्रियों से निकला कचरा या डंपिंग ग्राउंड का पानी, नदियों के पानी में मृत पशु या सड़े-गले पौधों से होने वाली अशुद्धियां, शहरों में जहां नदी नालों का पानी, सीवेज प्लांट के जरिए शुद्ध करके घरों तक पहुंचाया जाता है, वहां बारिश के दिनों में इस तरह की अशुद्धियां पाई जाती हैं।
दूषित पानी के दुष्परिणाम
नेशनल ब्यूरो ऑफ हेल्थ इंटेलिजेंस के अनुसार पिछले पांच सालों में दुषित पानी की वजह से होने वाली मौत का आंकड़ा बढ़ा है। कॉलरा (हैजा), एक्यूट डायरिया, टायफायड और वायरल हेपेटाइटिस से वर्ष 2014 से 2018 तक कुल 11,768 लोगों की जानें गई। इसमें हैजा से 21, एक्यूट डायरिया से 7057, टायफायड से 2,283 और वायरल हेपेटाइटिस से 2,407 लोगों की मौतें हुई।
पेय जल एवं स्वच्छता मंत्रालय के अनुसार पिछले पांच साल में पानी में जियोजेनिक (प्रकृति जनित) और एंथ्रोपोजेनिक (मानव जनित) दो विशेष तरह की अशुद्धियां अधिक देखी गई। इसके लिए केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के साथ मिलकर मुहिम चलाने की जरूरत है।
मच्छर जनित रोग और सावधानियां
राष्ट्रीय मच्छर जनित रोग नियंत्रण कार्यक्रम के तहत रोगाणु वाहक बीमारियों को शामिल किया गया। इसमें मच्छर जनित बीमारियां पहले नंबर पर है। सभी तरह के संक्रमण से होने वाली कुल बीमारियों में 17 प्रतिशत बीमारियां मच्छर जनित होती है। ज्यादातर मच्छर जनित बीमारियां मादा मच्छरों के काटने से फैलती हैं। विश्व भर में हर साल चालीस हजार लोगों की मौतें मच्छर जनित बीमारियों की वजह से होती है।
वर्ष 2003-2004 में इस कार्यक्रम को शुरू किया गया था, जिसमें मलेरिया, फाइलेरिया, कालाजार, डेंगू, जैपनीज इंसेफ्लाइटिस और चिकुनगुनिया आदि को शामिल किया गया था।
मानसून में घरों के गमले, एक्वेरियम में रखे पानी में भी मच्छरों के लार्वा पनप जाते हैं, जिन पर अक्सर हमारा ध्यान नहीं जाता है। मानसून आने से पूर्व सबसे पहले सभी गमलों को निकालकर टैरेस या फिर छत पर रख देना चाहिए। इंडोर प्लांट का पानी रोज बदलते रहें। पक्षियों के लिए रखे पानी के बर्तन को रोजाना साफ करें। डेंगू, चिकुनगुनिया से बचाव के लिए स्कूलों में पाठ्यक्रम लागू किया जा चुका है, जिससे बच्चों को मच्छर जनित बीमारियों के बारे में जागरूक किया जा सके। चूंकि डेंगू के रोकथाम की वैक्सीन अभी तक तैयार नहीं हुई है, इसलिए व्यक्तिगत रूप से अपनाई गई सावधानियों से बेहतर बचाव किया जा सकता है।
आंखों की सुरक्षा
यह कतई जरूरी नहीं है कि मानसून में हमेशा बारिश हो होती रहे। इस दौरान निकलने वाली धूप को अल्ट्रावायलेट किरणें (यूवी रेज) जून महीने की यूवी किरणों से कहीं अधिक तेज व चुभने वाली होती हैं। इससे आंखों में संक्रमण खासकर कॅन्जक्टिवाइटिस हो जाता है. जिस व्यक्ति को कॅन्जक्टिवाइटिस हो तो उसकी इस्तेमाल की जाने वाली वस्तुओं जैसे तौलिया आदि का इस्तेमाल स्वस्थ लोग न करें।
बढ़ जाता है त्वचा संक्रमण
बारिश के मौसम में त्वचा से संबंधित संक्रमणों के मामले अन्य ऋतुओं की तुलना में कहीं ज्यादा बढ़ जाते हैं। जमीन पर फैले प्रदूषित पानी के संपर्क में आने के कारण आसानी से त्वचा के जरिए संक्रमण फैलाने वाले जीवाणु शरीर में प्रवेश कर जाते हैं। इसलिए अगर पैर के साथ शरीर के अन्य अंग 10 से 15 मिनट भी बारिश के पानी के संपर्क में रहे हैं तो शीघ्र ही साफ पानी से नहाना और माइश्चराइजर का इस्तेमाल करना बेहतर बताया गया है।
खानपान पर दें विशेष ध्यान
बाजार की तली-भुनी चीजों से दूर रहें। इसी तरह बाजार से मौसमी फलों का चयन सावधानी से करें। उन्हें अच्छी तरह धोकर खाएं। कटे-खुले फल भी संक्रमण को उत्पन्न कर सकते हैं। इसके लिए आयुर्वेद में बताए गए वर्षा ऋतु के खानपान को अपनाया जा सकता है। आयुर्वेद में मानसून को संधि ऋतु भी कहा जाता है। अधिक स्टार्च वाली सब्जियां जैसे भिंडी और अरबी पेट से संबंधि दिक्कतें बढ़ा सकती हैं, जबकि अंदरूनी रूप से जीवाणुग्रस्त मौसमी फल जैसे आम और लीची आदि भी डायरिया का कारण हो सकते हैं। इस मौसम में दही का सेवन न करें। दही के विकल्प के रूप में दूध का सेवन करें। बीमारी से दूर रहने के लिए स्वच्छता रखना भी जरूरी है, जिसकी कमी से बीमारी फैलाने वाले सूक्ष्म कीटाणु तेजी से घर में अपनी जगह बना लेते हैं।
कुछ जरूरी बातें
- जुकाम होने पर सिर व पसली की हल्की मालिश करें।
- आहार में दूध को जरूर शामिल करें।
- यदि आपको कफ की समस्या है तो स्टार्च वाली सब्जियों का इस्तेमाल कम करें।
- अधिक देर तक हाथ व पैरों को बारिश के पानी के संपर्क में न रहने दें।
- अंगुलियों के बीच में नारियल का तेल लगाएं।
- घर में यदि पालतू पशु हैं तो उन्हें बिल्कुल न भीगने दें।
- इस मौसम में चेहरे पर तेल का प्रयोग न करें।
- बालों में स्टीम या भाप करें क्योंकि बारिश में सबसे अधिक डैंड्रफ की समस्या होती है।
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।