नए ब्लड टेस्ट से बच्चों में कई दुर्लभ आनुवंशिक बीमारियों का पता चल सकेगा      Publish Date : 22/07/2025

नए ब्लड टेस्ट से बच्चों में कई दुर्लभ आनुवंशिक बीमारियों का पता चल सकेगा

                                                                                                                                          डॉ0 दिव्यांशु सेंगर एवं मुकेश शर्मा

ऑस्ट्रेलिया के वैज्ञानिकों ने बच्चों और नवजात शिशुओं में पाए जाने वाले दुर्लभ रोगों की पहचान के लिए एक नई और तेज विधि विकसित की है।

दुनियाभर में करीब 7,000 दुर्लभ बीमारियां होती है, जिनमें से 5,000 से अधिक जीन में बदलाव (म्यूटेशन) के कारण होती हैं। इन बीमारियों से लाभा सिलखल, जिन मरीजों में है उनमें से लगभग आधे मरीजों में बीमारी का सही पता नहीं चल पाता है और जो तेलवे कभी पीपी लेती है। पेलवर्न यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने खून की मदद सेएक नई जाँच तकनीक बनाई है, जिसमें हजारों प्रोटीनों का एक साथ विश्लेषण किया जा सकता है।

एक संनिवर पोस्ट डॉक्टरल डॉ. कॅनएल बैंक ने जर्मनी में यूरोपीय सौखकटी औम चूमन जेनेटिक्स के वार्षिक सम्मेलन में शोध प्रस्तुत करते हुए कहा कि धातर जन एकर के जरिए प्रश्न बनाते हैं, और वे प्रोटीन हो हमारे शरीर की कोशिकाओं में काम करते है। बैंक ने कहा, हमारा नया परीक्षण फेरे पेरलसेल्लस (पीबीएमसीएस) में 8,000 से अधिक प्रोटीन की पहचान कर सकता है।

                                                                       

यह 50 प्रतिशत से अधिक ज्ञात आनुवंशिक और माइटोकॉन्ड्रियल बीमारियों से जुड़े कैन्स को कवर करता है और नए रोगों के जीन की भी पहचान कर सकता है। यह तकनीक खास इसलिए है क्योंकि यह जीन का नहीं, बल्कि प्रोटीन का विश्लेषण करती है। इससे यह समझाने में मदद मिलती है कि किसी जीन में बदलाव से प्रोटीन का काम कैसे प्रभावित होता है और बीमारी कैसे होती है।

                                                   

अगर किसी जीन में बदलाव को बीमारी की वजह साबित किया जा सके तो यह तकनीक बीमारियों के लिए उपयोगी हो सकती है, और इससे नई बीमारियों का भी पता लगाया जा सकता है। सबसे अच्छी बात यह है कि यह जांच बहुत कम खून (सिर्फ 1 मिलीलीटर) में हो जाती है और गंभीर स्थिति में इलाज पाने वाले बच्चों को तीन दिन के अंदर रिपोर्ट मिल सकती है।

बैंक के अनुसार, अगर कह जाए तो माता-पिता और बच्चो तीनों के रक्त के नमूनों पर की जाए, तो इसे ट्रायो (सालिसिस कहा जाता है।

यह नई तकनीक न केवल समय बचाती है, बल्कि कई महीनों और अलग-अलग जाचों की का एक ही जांच से सही परिणाम देती है, जिससे मरीज और अस्पताल दोनों का खर्च भी कम होता है।

लेखक: डॉ0 दिव्यांशु सेंगर, प्यारे लाल शर्मां, जिला चिकित्सालय मेरठ मे मेडिकल ऑफिसर हैं।