घातक है संक्रमक रोग हेपेटाइटिस      Publish Date : 18/07/2025

                    घातक है संक्रमक रोग हेपेटाइटिस

                                                                                                                                           डॉ0 दिव्यांशु सेंगर एवं मुकेश शर्मा

आंकड़ों के अनुसार देश में इस समय चार करोड़ से अधिक लोग हेपेटाइटिस ‘बी’वायरस के वाहक बन चुके हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के द्वारा हेपेटाइटिस ‘बी’के टीके को भारतीय राष्ट्रीयकरण कार्यक्रम में शामिल करने की सिफारिश की गई है। परन्तु इसको लागू कर पाना फिलहाल सम्भव नहीं है, क्योंकि इसके लिए भारी रकम का व्यय करना होगा। हमारे इस लेख के लेखक का सुझाव है कि इस वायरस से बचाव हेतु तुरंत प्रयास किए जाने की आवश्यकता है क्योंकि हेपेटाइटिस एक संक्रामक रोग है और इसकी अवहेलना करना हमारे लिए घातक सिद्व हो सकती है।

इस समय चार करोड़ से अधिक लोग हेपेटाइटिस  ‘बी’वायरस के वाहक बन चुके हैं। हालांकि यह लोग देखने में स्वस्थ ही नजर आते हैं, परन्तु निकटतम सम्बन्ध स्थापित होने के बाद यह संक्रमित लोग ही दूसरे स्वस्थ लोगों को भी संक्रमित कर सकते हैं। परेशानी वाली बात तो यह है कि एक गर्भवती स्त्री इस वायरस को अपनी संतान तक पहुँचा सकती है। इस प्रकार से यह संक्रमित 90 प्रतिशत बच्चे मात्र 40 वर्ष की आयु में ही जिगर के कैंसर से पीड़ित हो जाते हैं।

                                                          

भारत में वर्तमान में सामान्य तौर पर केवल 6 प्रकार के संक्रामक रोगों से सुरक्षा प्रदान करने वाले टीके बच्चों को लगाए जाते हैं। यह संक्राम रोग टी.बी., डिप्थीरिया, पर्ट्रसिस, टिटनेस, पोलियो और खसरा हैं। वर्तमान में आवश्यकता इस बात की है कि बच्चों को इन समस्त टीकों के साथ हेपेटाइटिस ‘बी का टीका भी अनिवार्य रूप से लगाया जाना चाहिए। इसके सन्दर्भ में भारतीय बाल रोग चिकित्सा अकादेमी ने भी ऐसी ही सिफारिश की है। विश्व के 200 से अधिक देशों के अन्तर्राष्ट्रीय मंच विश्व स्वास्थ्य सभा ने सिफारिश की थी कि पूरे विश्व में व्यापक रूप से फैले हेपेटाइटिस ‘बी’की आशंका से मुक्ति प्राप्त करने के लिए राष्ट्रीय टीकारण कार्यक्रम संचालित किए जाने की आवश्यकता है। हालांकि कुछ देशों ने इसपर अमल करना भी शुरू कर दिया है। चीन, मलेशिया, फिलीपींस, इंडोनेशिया, थाईलैंड तथा सिंगापुर आदि देशों में हेपेटाइटिस ‘बी’का टीका लगाए जाने के सम्बन्ध में राष्ट्रीय कार्यक्रम संचालित किए जा रहे हैं।

डॉ0 रेमंड एस. कोफी (अमेरिकन लीवर फाउंडेशन के पूर्व सलाहाकार तथा अमेरिकन कॉलेज ऑफ गैस्ट्रोएंटरोलॉजी के गर्वनर) ने कहा था कि शायद महंगा होने के कारण भारत के राष्ट्रीय टीकाकरण कार्यक्रम में अभी हेपेटाइटिस ‘बी’के टीके को शामिल कर पाना सम्भव नहीं हो पा रहा है। इसके साथ ही उन्होने इस बात पर भी बल दिया था कि कुल मिलाकर हेपेटाइटिस से ग्रस्त होने पर देश को जो आर्थिक क्षति होगी, उसकी तुलना में इसके टीकाकरण पर होने वाला व्यय बिलकुल न के बराबर ही होगा।

यह बात तो स्पष्ट है कि हेपेटाइटिस के लिए विभिन्न वायरस जिम्मेदार होते हैं। इन वायरस में से ए, बी, सी, डी, तथा ई, आदि की तो पहचान की जा चुकी है। इन वायरसों के चलते व्यक्ति के लीवर में सूजन आ जाती है और इसी को हेपेटाइटिस का रोग कहा जाता है। आम बोलचाल की भाषा में इसे ‘पीलिया’कहा जाता है। कुछ समय पूर्व भारत के राष्ट्रीय प्रतिरक्षा विज्ञान संस्थान के वैज्ञानिकों के द्वारा हेपेटाइटिस ‘एफ’की खोज भी कर ली गई थी, परंतु अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इस इस दावे की पुष्टि नहीं की जा सकी है।

हाल ही में इस प्रकार के एक वायरस ‘जी की खोज का दावा भी किया गया था, परनतु अभी इस खोज पर विवाद ही है। एक अन्य अध्ययन के अनुसार तथाकथित वायरस ‘जी’पीलिया के जीवाणु न होकर किसी अनय रोग के जीवाणु रहे होंगे। ऐसे में यह प्रश्न उठना भी स्वाभाविक ही है कि अभी तक खोजे जा चुके तमाम वायरसों के विरूद्व टीके की बात न करके केवल हेपेटाइटिस ‘बी’के टीके की ही बातें क्यों की जा रही है? इसका एक मुख्य कारण तो यह ह कि अभी तक इन वायरसों के विरूद्व टीके बन ही नहीं पाए हैं जबकि वायरस ‘बी’का टीका वायरस ‘डी’के विरूद्व भी सुरक्षा प्रदान करता है।

                                                    

असल में वायरस ‘डी’उन्हीं लोगों पर आक्रमण करता है जो कि पहले से ही वायरस ‘बी’से संक्रमित होते हैं, जबकि वायरस ‘सी’और ‘ई’के टीके अभी नहीं बन पाए हैं और दुनियाभर में किए जा रहे अनुसंधानों के माध्यम से ज्ञात होता है कि वायरस ‘ई’और वायरस ‘सी’ का टीका आने वाले समय में आ सकता है। वायरस ‘ए’अक्सर बच्चों को सताता है। संक्रमित अन्न एवं जल के माध्यम से ही इस वायरस का आक्रमण होता है। अतः शुद्व पेयजल और भोजन की व्यवस्था करना भी आवश्यक है और वायरस ‘ई’भी इसी के कारण फैलता है। आमतौर पर वायरस ‘बी’को ही सबसे अधिक खतरनाक माना जाता है, जिसका संक्रमण मुख्य रूप से रक्त के माध्यम से होता है।

हालांकि रक्त की जांच करवाना ही इसका एकमात्र हल होता है, यह कहना भी उचित होगा कि यह वायरस शरीर के अन्य स्रावों जैसे लार, वीर्य और योनि- स्रावों के माध्यम से भी यह संक्रमण एक व्यक्ति से दूसरे के शरीर में जा सकता है। दूसरे शब्दों में कहें तो असुरक्षित यौन सम्बन्धों के चले तो हेपेटाइटिस ‘बी’का संक्रमण निश्चित तौर पर होने की सम्भावनाएं होती हैं। इस सम्बन्ध में अमेरिका में किए गए कुछ विशेष अध्ययनों में यह बात सामने आई है कि अमेरिका में हेपेटाइटिस ‘बी’वायरस के प्रसार का एक मुख्य कारण अरसुक्षित यौन सम्बन्ध ही हैं।

हेपेटाइटिस ‘बी’वायरस के आक्रमण के शुरूआत में थकावट, भूख न लगना, हल्का बुखार और शरीर में दर्द आदि होता है। बाद में रोगी की आंखें और उसकी त्वचा पीली पड़ जाती है। इसके अलावा रोगी का मूत्र भी गहरे रंग का हो जाता है। आगे चलकर रोगी के लीवर में सूजन आ जाती है और यहां तक कि उचित देखभाल के अभाव में मरीज लीवर कैंसर से भी पीड़ित हो जाता है। लीवर कैंसर के प्रति 10 मामलों में से 8 मामलों का प्रमुख कारण हेपेटाइटिस ‘बी’ वायरस ही होता है।

इसके सम्बन्ध में उल्लेखनीय है कि बाजार में दो प्रकार के टीके हैं, जिनमें से एक रक्त के प्लाज्मा से और दूसरा जेनेटिक इंजीनियरिंग के द्वारा बनाया जाता है। हालांकि यह दोनों ही प्रकार के टीके वायरस के प्रति पूर्ण सुरक्षा प्रदान करते है, परन्तु अमेरिका जैसे विकसित देशों में वर्तमान में केवल जेनेटिक इंजीनियरिंग के माध्यम से बनाए गए टीकों का प्रयोग अधिक किया जाता है।

भारत सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने भी यह स्वीकार किया है कि विश्व स्वास्थ्य सभा ने हेपेटाइटिस ‘बी’के टीके को राष्ट्रीय टीकाकरण कार्यक्रम में शामिल करने की सिफारिश की है, परन्तु अधिक लागत होने के चलते यह अभी राष्ट्रीय टीकाकरण कार्यक्रम में शामिल किया जाना मुश्किल है। कहा जा सकता है कि हेपेटाइटिस ‘बी’के टीके को अभी राष्ट्रीय टीकाकरण कार्यक्रम में शामिल करन बेशक एक कठिन कार्य है, परन्तु सच तो यह है कि इस वायरस से बचाव के प्रयास अभी से आरम्भ किए जाने चाहिए क्योंकि हेपेटाइटिस एक घातक संक्रामक रोग है, जिसकी अवहेलना करना घातक सिद्व हो सकता है।

लेखक: डॉ0 दिव्यांशु सेंगर, प्यारे लाल शर्मां, जिला चिकित्सालय मेरठ मे मेडिकल ऑफिसर हैं।