स्वस्थ जीवन के लिए योग      Publish Date : 23/06/2025

                     स्वस्थ जीवन के लिए योग

                                                                                                                                                       प्रोफेसर आर. एस. सेंगर

मौजूदा समय में योग सेहत के लिए अपनाया जाने वाला सबसे प्रमुख उपाय है। भारत में योग को एक विस्तृत अभ्यास गाना गया है जिसमें जीवन का हर पहलू शामिल है। वास्तव में यह जीने का एक संपूर्ण तरीका है। इस तरह के योग में किसी भी जीव को नुकसान नहीं पहुंचाने और सच्चाई के मार्ग पर चलने जैसे नैतिक पहलू भी शामिल हैं-

योगः अत्यंत सूक्ष्म विज्ञान पर आधारित एक आध्यात्मिक विधा है। इसका उद्देश्य मस्तिष्क और काया के बीच सामंजस्य स्थापित करना है। यह स्वस्थ जीवन की कला और विज्ञान है। डोग अपने दृष्टिकोण में संपूर्ण होने के नाते जीवन के सभी पक्षों में तालमेल लाता है। इसलिए इसे रोगों की रोकथाम्, स्वास्थ्य संवर्द्धन और जीवनशैली से संबंधित विसंगतियों के प्रबंधन के लिए जाना जाता है। योग का लक्ष्य आत्मानुभूति, सभी तरह की पीड़ाओं पर विजय और मोक्ष या कैवल्य की स्थिति की प्राप्ति है। योग साधना का मुख्य लक्ष्य जीवन के सभी पक्षों में स्वतंत्रता, स्वास्थ्य और सामंजस्य है। समझा जाता है कि योग साधना की शुरुआत सभ्यता के उदय के साथ ही हो गई थी। इसे ईसा से 2700 साल पुरानी सिंधु सरस्वती घाटी सभ्यता की अमर सांस्कृतिक देन माना जाता है। इसने मानवता के भौतिक और आध्यात्मिक उत्थान में अपनी भूमिका को साबित किया है।

योग का उद्‌गम और विकास

योग के विज्ञान की शुरुआत हजारों साल पहले हुई थी। इसका प्रारंभ शुरुआती धर्म या मान्यता के जन्म से भी पूर्व हुआ था। ऋषियों और मुनियों ने इस शक्तिशाली विज्ञान को एशिया, मध्य-पूर्व, उत्तर अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका समेत विश्व के विभिन्न भागों में पहुंचाया। लेकिन योग संस्कृति को अपनी पूर्ण अभिव्यक्ति भारत में ही प्राप्त हुई। अगस्त्य मुनि ने समूचे भारतीय उपमहाद्वीप की यात्रा कर योग पर आधारित जीवन के इर्द-गिर्द इस संस्कृति की रचना की।

सिंधु घाटी सभ्यता की अनेक मोहरों और अवशेषों में योग साधना करती आकृतियां दिखाई देती हैं। इससे पता चलता है कि योग प्राचीन भारत में भी मौजूद था। उस युग की लिग प्रतीक और मातृ देवी की आकृति वाली मोहरें तंत्र योग की ओर संकेत करती हैं। लोक परंपराजों, सिंधु घाटी सभ्यता, वेदों और उपनिषदों की विरासत, बौद्ध और जैन परंपराओं, दर्शनों, भगवद्‌गीता समेत महाभारत और रामायण की कथाओं, शैव और वैष्णव आस्तिक परंपराओं तथा तांत्रिक परंपराओं में योग की उपस्थिति दिखाई देती है।

वैदिक युग से पहले भी योग अभ्यास किया जाता रहा था। लेकिन महर्षि पतंजलि ने उस समय के योग, उसके अर्थ और उससे संबंधित ज्ञान को अपने योग सूत्रों के माध्यम से व्यवस्थित और सूत्रबद्ध किया। पतंजलि के बाद अनेक ऋषियों और योग गुरुओं ने अपने सुप्रलेखित अभ्यासों और साहित्य के जरिए योग के संरक्षण और विकास में काफी योगदान किया। मौजूदा समय में रोगों की रोकथाम तथा स्वास्थ्य को बनाए रखने और उसके संवद्धन में योग की भूमिका को हर कोई समझता है। महान हस्तियों और योग गुरुओं की शिक्षाओं की बदौलत योग का प्रसार समूचे विश्व में हो चुका है।

योग के विभिन्न दर्शनों, प्रथाओं, घरानों और गुरु-शिष्य परंपराओं के कारण इसके अलग-अलग पारंपरिक मतों का उदय हुआ है। इनमें ज्ञान योग, भक्ति योग, कर्म योग, ध्यान योग, पतंजली योग, कुंडलिनी योग, हठ योग, मंत्र योग, लय योग, राज योग, जैन योग और बौद्ध योग शामिल हैं। योग के अंतिम लक्ष्य और उद्देश्य तक पहुंचने के लिए हर मत के अपने सिद्धांत और तौर-तरीके हैं।

योग की भूमि भारत के विभिन्न सामाजिक रीति-रिवाज और प्रधाएं पर्यावरण संतुलन के लिए अनुराग, अन्य विचारों के प्रति सहनशीलता तथा सभी जीवों से प्रेम को प्रतिबिंबित करती हैं। सभी प्रकार की योग साधनाओं को सार्थक जीवन और जीविका के लिए रामबाण माना जाता है। संपूर्ण व्यक्तिगत और सामाजिक स्वास्थ्य की ओर इसका झुकाव इसे सभी धर्मों, नस्लों और राष्ट्रीयताओं के लोगों के लिए उपयोगी बनाता है।

प्राचीनकाल से अब तक महान योग गुरुओं ने इस विधा को संरक्षित और संवर्धित किया है। इसके परिणामस्वरूप मौजूदा समय में लाखो लोग योग साधना से लाभान्वित हो रहे हैं।

स्वस्थ जीवन के लिए योग साधना

जिन योग साधनाओं का व्यापक तौर पर अभ्यास किया जाता है वे हैं- यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान, समाधि, बंध और मुद्राएं, शत कर्म, युक्त आहार, युक्त कर्म, मंत्र जाप, इत्यादि।

यम का मतलब निषेध और नियम का अर्थ अनुपालन है। इन दोनों को योग साधना की पूर्व शर्त माना जाता है। आसनों से काया और मस्तिष्क को स्थिरता मिलती है। इनमें शामिल विभिन्न शारीरिक मुद्राओं से व्यक्ति को अपने कायिक अस्तित्व के प्रति जागरूकता का आभास होता है। स्वस्थ जीवन के लिए योग आसनों का व्यापक तौर पर अभ्यास किया जा रहा है।

प्राणायाम से अपने श्वास के प्रति जागरूकता विकसित होती है। इसके जरिए व्यक्ति अपने अस्तित्व के क्रियाशील या महत्वपूर्ण आधार के रूप में श्वास का अपनी इच्छा से नियमन करता है। इससे अपने मस्तिष्क के प्रति जागरूकता विकसित होने के अलावा उस पर नियंत्रण स्थापित करने में भी मदद मिलती है। प्राणायाम की शुरुआत श्वास-प्रश्वास के बारे में समझ विकसित करने से होती है। बाद में नियमित, नियंत्रित और अनुवीक्षित श्वास और प्रश्वास के जरिए इस प्रक्रिया में बदलाव लाया जाता है। इससे श्वास के क्रम में पूरक और कुंभक तथा प्रश्वास के दौरान रेचक स्थिति के बारे में जागरूकता पैदा होती है।

प्रत्याहार बाहरी वस्तुओं से संपर्क बनाए रखने में मददगार इंद्रियों से व्यक्ति की चेतना के अलगाव का संकेतक है। धारणा का मतलब काया और मस्तिष्क के अंदर ध्यान का वह व्यापक क्षेत्र है जिसे आमतौर पर हम एकाग्रता के रूप में जानते हैं। ध्यान का अर्थ काया और मस्तिष्क के अंदर केंद्रित अवधान और समाधि की एकात्मकता है।

बंध और मुद्राएं प्राणायाम से जुड़े अभ्यास हैं। इन उच्चतर योग अभ्यासों में मुख्य तौर पर विशेष मनो-शारीरिक मुद्राएं अपनाना और श्वास पर नियंत्रण शामिल है। इससे मस्तिष्क पर नियंत्रण बढ़ने के अलावा उच्चतम योग प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त होता है। शतकर्म विषाक्तता निवारण की प्रक्रियाएं हैं। अपनी प्रकृक्ति में चिकित्सकीय इस प्रक्रिया से शरीर में जमा विषाक्तता को बाहर निकालने में सहायता मिलती है।

युक्ताहार में स्वस्थ जीवन के लिए पर्याप्त भोजन लेने और खानपान की समुचित आदतों को अपनाने पर जोर दिया जाता है। लेकिन योग साधना का मूल ध्यान को माना जाता है। यह आत्मबोध के जरिए उत्कृष्टता प्राप्त करने में मददगार होता है। रोजाना आसन, प्राणायाम और ध्यान के अभ्यास का तार्किक मेल व्यक्त्ति को स्वस्थ और रोगमुक्त रखता है।

योग साधना के ज्ञान के पहलू पर व्यापक अनुसंधान चल रहे हैं जिनका लाभ चिकित्सकों को मिलता है। आज हम योग-साधना के मनोवैज्ञानिक, संरचनात्मक और शारीरिक, जैव-रासायनिक तथा दार्शनिक पहलुओं को काफी अच्छी तरह समझ चुके हैं। यह समूची मानवता के लिए संतोष की बात है। इस ज्ञान के विश्व भर में प्रसार के लिए हमारे पास इंटरनेट जैसे विस्तृत और प्रभावशाली साधन भी मौजूद हैं। योग शिक्षा में आधुनिक शैक्षिक तौर-तरीकों को अपनाया जा रहा है। दुनिया भर में योग की शिक्षा देने वाले विद्यालयों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है। विश्व भर में हो रहे वैज्ञानिक और दार्शनिक साहित्यिक अनुसंधान योग के विकास के उत्साहवर्धक संकेत हैं।

योग और जीवनशैली

जीवनशैली का हमारे स्वास्थ्य पर काफी प्रभाव पड़ता है। हमारी जीवनशैली का विकास कम उम्र में ही हो जाता है। इसलिए स्वस्थ जीवनशैली की आदत बचपन से ही डालनी चाहिए। हमारी जीवनशैली कई कारकों से प्रभावित होती है। आर्थिक स्थिति के हिसाब से देखें तो गरीबों में कुपोषण और अमीरों में मोटापे की समस्या ज्यादा रहती है। हमारा खानपान समाज के सांस्कृतिक मूल्यों से प्रभावित होता है। जीवन में शारीरिक श्रम की कमी धमनियों के रोग का कारण बनती है। धूम्रपान और शराब सेवन जैसी आदतों से हृदय रोग और गुर्दे की सिरोसिस का खतरा बढ़ता है। स्वस्थ जीवनशैली में पोषक आहार, शारीरिक गतिविधि, अच्छी आदतों और आराम की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। अपनी प्रकृति में विस्तृत और संपूर्ण होने की वजह से योगसबसे उत्तम जीवनशैली प्रदान करता है। योग के सिद्धांत और जीवनशैली सकारात्मक स्वास्थ्य को मजबूत बनाने और विकसित करने में मददगार होती है। इससे हम तनाव का बेहतर ढंग से सामना करने में सक्षम बनते हैं। विभिन्न योग क्रियाओं के जरिए तनाव को असरदार ढंग से दूर किया जा सकता है। योग अपने चिकित्सकीय गुणों की वजह से मौजूदा समय में लोकप्रिय है। दुनिया भर में विभिन्न चिकित्सा पद्धतियों के चिकित्सक पूरक उपाय के तौर पर इसका इस्तेमाल कर रहे हैं।

कैसे काम करता है योग योग जिन पद्धतियों के जरिए मस्तिष्क और शरीर के लिए एकीकृत औषधि के तौर पर काम करता है उनमें कुछेक इस प्रकार है-

1. यह संचित विषाक्त पदार्थों को विभिन्न शुद्धि क्रियाओं के जरिए दूर करता है। शरीर के जोड़ों के सूक्ष्म व्यायाम से विश्रांति की भावना पैदा होती है। शरीर की सभी वाहिकाओं में मुक्त प्रवाह से विषाणुओं के जमाव से पैदा होने वाले संक्रमण दूर रहते हैं।

2 समुचित पोषण के साथ योग की जीवनशैली सकारात्मक एंटीऑक्सीडेंट को बढ़ाती है। इससे हमारी उपचय, विरोहक और उपचार की प्रक्रियाओं को बल मिलता है।

३. योग में हम बिना तनाव के स्थिर और आरामदेह ढंग से विभिन्न शारीरिक मुद्राओं का अभ्यास करते हैं। इससे हमारे समूचे शरीर को स्थिरता मिलती है। शारीरिक संतुलन और सहजता से हमारा मानसिक और भावनात्मक संतुलन भी बढ़ता है। इसके अलावा, हमारी सभी शारीरिक प्रक्रियाएं स्वास्थ्यवर्धक ढंग से संचालित होती है।

4. श्वास प्रतिमानों से स्वतः श्वास प्रणाली पर हमारा नियंत्रण बढ़ता है। इससे ऊर्जा पैदा होती है और भावनात्मक स्थिरता बढ़ती है। हमारा मस्तिष्क और भावनाएं श्वास के प्रतिमान और गति से जुड़ी हैं। लिहाजा श्वास की प्रक्रिया धीमी होने से स्वायत्त कार्यकलाप, चयापचय की प्रक्रियाएं और भावनात्मक प्रतिक्रियाएं प्रभावित होती है।

६. योग शारीरिक गतिविधि को श्वास से जोड़ कर मनोदैहिक तारतम्य पैदा करता है। योग में शरीर का संबंध अन्नमयकोष (संरचनात्मक अस्तित्व) से और मस्तिष्क का नाता मनोमयकोष (मनोवैज्ञानिक अस्तित्व) से है। प्राणायाम कोष (श्वास की ऊर्जा पर आधारित हमारा शारीरिक अस्तित्व) इन दोनों के बीच में स्थित है। इस तरह मनोदैहिक सामंजस्य में श्वास की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।

6. योग हमारे मस्तिष्क को हमारी गतिविधियों पर सकारात्मक ढंग से केंद्रित करता है। इससे ऊर्जा के प्रवाह में वृद्धि होती है। इसके परिणामस्वरूप शरीर के विभिन्न हिस्सों और अंदरूनी अंगों तक स्वस्थ प्रवाह संभव होता है। जहां हमारा मस्तिष्क होगा, प्राण का प्रवाह वहीं होता है।

7. ध्यान से एक शांत आंतरिक परिवेश का सूजन होता है। यह समस्थापन प्रणालियों को सामान्य बनाता है। योग का मतलब अस्तित्व के सभी स्तरों पर समन्वय या संतुलन है। मानसिक और शारीरिक संतुलन परस्पर एक-दूसरे को जन्म देते हैं।

8. योग शारीरिक और मानसिक प्रक्रियाओं के जरिए शरीर भावना और मस्तिष्क के समूह को आराम पहुंचाता है। इससे बाहरी और अंदरूनी तनावों के सामने हमारी दर्द सहने की क्षमता बढ़ती है। लिहाजा, जिन चरम स्थितियों में अन्य चिकित्सा कोई राहत नहीं दे पाती उनमें यह जीवन की गुणवत्ता में सुधार लाता है।

9. योग जीवन के प्रति सही दृष्टिकोण विकसित करने में सहायक होता है। यम नियम और विभिन्न मनोवैज्ञानिक सिद्ध ातों के माध्यम से यह हमें नैतिक जीवन की ओर ले जाता है।उपचार, आरोग्य, पुनरोद्धार और अनुप्राणन के लिए विश्वास, आत्मविश्वास और अंदरूनी ताकत सबसे ज्यादा जरूरी है।

10. योग मानव शरीर के सभी तंत्रों में सामान्यता की बहाली की दिशा में काम करता है। इसमें मनोतत्रिका प्रतिरक्षा अंतःस्राविका धुरी पर खासतौर से जोर दिया जाता है। अपनी प्रतिरोधक और स्वास्थ्यवर्धक क्षमताओं के अलावा यह सकारात्मक स्वास्थ्य को भी बढ़ावा देता है ताकि हम जीवन में आने वाली सेहत की चुनौतियों का सामना कर सकें। सकारात्मक स्वास्थ्य का सिद्धांत आधुनिक स्वास्थ्य सेवा में योग के अनूठे योगदानों में से एक है। जनसाधारण को स्वास्थ्य सेवा प्रदान करने में योग की प्रतिरोधात्मक और सवर्धक दोनों भूमिकाएं हैं। यह किफायती है और रोगी के लाभ के लिए चिकित्सा की अन्य प्रणालियों के साथ मिले-जुले ढंग से इसका उपयोग किया जा सकता है।

पूर्व और पश्चिम में योग

योग पश्चिम की चकाचौंध भरी फिटनेस प्रणालियों को भारत का जवाब है। विश्व भर में इसका काफी प्रसार हो चुका है। हम हर साल 21 जून को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस मनाते है। इस खास अवसर पर भारत के लगभग हर शहर में कोई-न-कोई आयोजन जरूर होता है।

योग को लेकर पूर्व और पश्चिम, दोनों के लक्ष्य एक ही है। लेकिन गुरु और शिष्य के बीच संबंध, पोशाक और योग की बढ़ती लोकप्रियता जैसी कुछेक चीजें दोनों को एक-दूसरे से अलग करती है। पश्चिम की तुलना में पूर्व में लैंगिक समानता का स्तर फिलहाल कुछ कम है। पूर्वी समाज में खासतौर से पुरुष शिक्षकों को काफी सम्मान मिलता है। लैंगिक असमानता के अलावा पूर्व और पश्चिम के माहौल में भी फर्क है। भारत में योग कक्षाओं में तेज संगीत नहीं बजता और महंगे कपड़े भी नहीं पहने जाते। पश्चिम की तुलना में पूर्व के लोगों में पारंपरिक मूल्य ज्यादा मजबूत हैं।

पूर्व में योग एक से दूसरी पीढ़ी तक प्रवाहित होने वाली वैज्ञानिक परंपरा है। विश्व के इस हिस्से में अनेक लोग योग का अभ्यास अपने घरों के अंदर ही किया करते हैं। इसका उतना व्यापक सामूहिक अभ्यास या प्रचार नहीं किया जाता। दूसरी तरफ, पश्चिमी जगत ने इसे जनसाधारण के लिए फिटनेस के तरीके के रूप में अपनाया है। वहां योग सार्वजनिक ज्यादा है। लेकिन वास्तविक योग सार्वजनिक नहीं हो सकता। यह गुरु और शिष्य के बीच निजी या गोपनीय ज्ञान क्षेत्र में होता है। पश्चिमी जगत योग के मूल तत्व को पहचान नहीं पाया है। गोपनीय योग व्यक्ति को सर्वव्याप्त निजता की पहचान की ओर ले जाता है। यह योगी को आसन में बैठ कर इस सृजन के कोने-कोने तक पहुंचने में सक्षम बनाता है। क्रिया योग ही आत्मबोध या मुक्ति के लिए वास्तविक या गोपनीय योग अभ्यास है।

मौजूदा समय में योग सेहत के लिए अपनाया जाने वाला सबसे प्रमुख उपाय है। भारत में योग को एक विस्तृत अभ्यास माना गया है जिसमें जीवन का हर पहलू शामिल है। वास्तव में यह जीने का एक संपूर्ण तरीका है। इस तरह के योग में किसी भी जीव को नुकसान नहीं पहुंचाने और सच्चाई के मार्ग पर चलने जैसे नैतिक पहलू भी शामिल है। दया और उदारता जैसे संबंध आधारित निर्देशों को भी इसमें शामिल किया गया है। इसके अलावा, ध्यान और ज्ञान के जरिए चेतना का विकास तथा शरीर और मस्तिष्क की शुद्धता के लिए शारीरिक अभ्यास भी इसके दायरे में आते हैं। लेकिन पश्चिमी समाज में योग का मतलब आसन का अभ्यास है। पश्चिमी देशों के लगभग हर शहर में आसन केंद्रित योग प्रशिक्षण और अभ्यास केंद्र आसानी से मिल जाते हैं। आसनों से लचीलापन आने के साथ ही ताकत में इजाफा होता है। इसलिए योग को फिटनेस के तरीके के तौर पर अपनाया जा रहा है।

उपसंहार

वर्तमान में दुनिया भर में स्वास्थ्य सेवा पर आधुनिक चिकित्सा का वर्चस्व है। दवाओं की कीमतें गरीबों और मझध्यवर्ग के लोगों की पहुंच से बाहर जा रही हैं। इसलिए सुरक्षित असरदार, किफायती और सुलभ स्वास्थ्य सेवा की जरूरत शिद्दत से महसूस की जा रही है। योग और अन्य प्राचीन संपूर्ण स्वास्थ्य प्रणालियां इस तरह की जरूरत को पूरा करती है। परिणामस्वरूप सिर्फ विकासशील राष्ट्रों में ही नहीं बल्कि औद्योगिक और विकसित पश्चिमी देशों में भी वैकल्पिक चिकित्सा पद्धतियों का प्रचलन बढ़ रहा है। एक चिकित्सा पद्धति के रूप में योग को अब तक पूरी तरह समझा नहीं गया है। आधुनिक चिकित्सा के संदर्भ में इसमें ज्यादा शोध भी नहीं हुए हैं। मगर दिलचस्प बात यह है कि इसका विकास उन देशों में हो रहा है जिनमें पश्चिमी विज्ञान और वैज्ञानिक तरीकों को स्वास्थ्य सेवा की बुनियाद के तौर पर स्वीकार किया गया है और साक्ष्य आधारित प्रणालियां प्रभावी हैं। हम औषधि के क्षेत्र में ज्ञान के विस्फोट को अनुभव कर रहे हैं और जीनोमिक दवा ने चिकित्सा सेवा में एक नए दृष्टिकोण का द्वार खोल दिया है। फिर भी, जनसाधारण में चिकित्सा के प्राचीन दर्शनों और दृष्टिकोणों के प्रति जबर्दस्त लगाव दिखाई देता है।

पूरक और पारंपरिक दवाओं की लोकप्रियता का एक कारण आधुनिक एलोपैथिक चिकित्सा की तेजी से बढ़ती कीमत और उससे जुड़े दुष्प्रभाव है। नई प्रौद्योगिकियों का विकास तेज रफ्तार से हो रहा है। अनेक चिकित्सकीय, शल्य चिकित्सकीय और नैदानिक नवाचार सामने आ रहे हैं। ये बेशक अच्छे हैं मगर इनकी ऊंची कीमत इन्हें आबादी के एक बड़े हिस्से की पहुंच से बाहर पहुंचा देती है। नतीजतन, जनसाधारण को बीमारियों और खासतौर से गैर-संक्रामक रोगों से बचाव और इलाज के लिए व्यापक पूरक पद्धतियों की दरकार है। मौजूदा माहौल में योग स्वास्थ्य सेवा की सबसे ज्यादा इच्छित, पूरक और पारंपरिक प्रणाली साबित हो रहा है।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।