स्वास्थ्य के लिए खतरनाक है मिलावट का जहर      Publish Date : 20/04/2025

       स्वास्थ्य के लिए खतरनाक है मिलावट का जहर

                                                                                                   प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 रेशु चौधरी

मिलावट का अजगर आज हमें, हमारे बच्चों और युवाओं के स्वास्थ्य और जीवन को धीरे-धीरे निगल यहा है और हम लाचारी से यह दृश्य स्तब्ध होकर देख रहे हैं। कुछ लोग जानकारी के बावजूद और कुछ अनजाने में इस अजगर का शिकार होते जा रहे है। सरकार से लेकर जनता तक, अमीर से लेकर अरीब तक और ज्ञानवान से लेकर अनपढ़ तक सभी इसकी चपेट में हैं। आखिर कब तक धकेलते रहेंगे हम अपने आपको और अपनी आने वाली पीढ़ी को मिलावटी पदार्थों का रूप धारण किये हुए इस अजगर के मुंह में? ऐसे में हमारे विशेषज्ञ आपको बता रहे हैं, अनेक सूचनाओं से परिपूर्ण इस ज्ञान रूपी लेख की तलवार से विज्ञान के प्रकाश में इस मिलावट के अजगर का अंत किसर प्रकार करें।

आखिर क्या है मिलावट?

                                                

दूध में पानी, देशी घी में डालडा, दाल में कंकड़, धनिये में धोड़े की लीद आदि की मिलावट तो अब आम हो चुकी है और लोग दशकों से जानते हैं, परन्तु दूय और घी में केमिकल, दाल में सिंथेटिक रंग और वेजस कोटिंग, सब्जियों में हॉर्माेन के इंजेक्शन तथा सिटिक रंग, उत्पादों में एलोपैथिक दवाइयां तथा मिकाम सौदों प्रसाधनों में पशुओं की चर्बी होने की जानकारी ताजा है और इसे अभी कम लोग ही समझ पा रहे हैं। मिलावटी पदार्थों के उपयोग से शरीर को नुकसान होता ही है, बस इतनी जानकारी भर से जनता त्राहि-त्राहि कर रही है परन्तु क्या आप जानते हैं कि मिलावट और उससे होने वाले नुकसान की यह जानकारी ती मिलावट के अजगर की एक झलक मात्र ही है (ए टिप ऑफ आइसबर्ग)।

रोजमर्स में उपयोग किये जाने बाले उत्पादों में मिलावट के कितने रूप हो सकते है और इसकी कितनी गहराई तक पेठ है, यह जानकर आपके पैरों से जमीन खिसक सकती है। क्या ब्रांडेड और क्या लोकल, सभी कम्पनियां मिलावट करती हैं या फिर अपने उत्पाद की असलियत के बारे में भ्रम पैदा करके रखती है तथा उनमें उपस्थित अवयवों के नुकसानदायक अवगुणों की जानकारी उपभोक्ता की नहीं देती हैं।

                                        

कानूनन किसी भी विषय अथवा वस्तु के प्राकृतिक तथा अनुमोदित रूप में फेरबदल करना मिलावट के दायरे में आता है। दूध में पानी या किसी अन्य पदार्थ को मिलावट, भैंस के दूध में गाय के दूध की मिलावट अथवा गाय के दूध की भैंस कर दूध बताकर बेचना आदि मिलावट के ही विभिन्न रूप है। खाय पदार्थों] सौंदर्य प्रसाधनों में मिलावट की परिभाषा अलग-अलग देशों में अलग-अलग है। आजकल खाद्य पदार्थों में शायद ही कोई ऐसा खाद्य पदार्थ होगा जिसमें मिलावट न पाई जा रही हो। खाद्य पदार्थों में मिलावट को विभिन्न रूपों में लिया जाता है जैसे-

  • यदि विक्रेता उपभोक्ता को उसकी आवश्यकतानुसार माँगे गए उत्पाद की जगह कोई अन्य उत्पाद बेचता है जो मांगे गए उत्पाद से प्रकृति, सामग्री तथा गुणवत्ता में भिन्न हो।
  • यदि उत्पाद में कोई अन्य वस्तु या सामग्री मिली हो जिससे उत्पाद या उसकी गुणवत्ता प्रभावित हो।
  • यदि उत्पाद का संघटन परिवर्तित किया गया हो. जैसे दूध से क्रीम या बादाम से तेल निकाल लेना आदि।
  • यदि उत्पाद को अस्वच्छ जगह निर्मित, डिब्बाबंद अथवा भडारित किया गया हो जिसके कारण उत्पाद संक्रमित वा स्यात्त्थ्य के लिए हानिकारक हो गया हो।
  • यदि उत्पाद पूर्ण या आशिक रूप से गंदी, सड़ी हुई. बदबूदार, बीमारी से संक्रमित ग्रसित पशु या वनस्पति से निर्मित हो अथवा कीड़े-मकोड़ों से संक्रमित हो या अन्य किसी कारण से मनुष्य द्वारा उपयोग के लायक न रह गया हो।
  • सड़ी-गली सब्जियां, धुने अनाज, दालें व उनसे बने आटे व पदार्थ।
  • यदि उत्पाद बीमार पशु से प्राप्त किया गया हो।
  • यदि उत्पाद में स्वास्थ्य के लिए हानिकारक कोई पदार्थ मौजूद हो।
  • यदि खाद्य पदार्थ ऐसे बर्तन में रखा हो जो हानिकारक पदार्थों से मिलकर बना हो।
  • यदि पदार्थों में अनावश्यक, निर्धारित सीमा से अधिक तथा गैर-अनुमोदित रंग का प्रयोग किया गया हो।
  • यदि पदार्थों में प्रतिबंधित या निर्धारित सीमा से अधिक मात्रा में परिरक्षक का प्रयोग किया गया हो।
  • यदि पदार्थ की शुद्धता तथा गुणवत्ता निर्धारित विभिन्नता से परे हो जिसके कारण पदार्थ स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकता है अथवा पदार्थ के लिए निर्धारित गुणवत्ता और संघटन मानकों से बाहर हो, आदि।

मिलावट का इतिहास

खाद्य पदार्थों में मिलावट के पुरातन लिखित प्रमाणों में 1820 में जर्मन रसायनज्ञ फ्रेडरिक एक्यूम द्वारा किया गया अध्ययन है जिसमें उन्होंने ड्रिंक्स और खाद्य पदार्थों में जहरीले मेटल कलरिंग्स का पता लगाया। इसके बाद फिजिशियन आर्थर हिल हस्सल ने अपने द्वारा किये गए अध्ययन, जिनका प्रकाशन किया गया तथा बाद में यह प्रकाशन अमरीका के फूड एडल्टरेशन एक्ट 1860 का आधार बना।

भारत में मिलावटी पदार्थों की शुरुआत कब हुई इसके बारे में निश्चित रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता है, परन्तु यह निश्चित है कि इसकी दिखाई पड़ने वाली शुरुआत तथा उसकी बढ़ोतरी स्वतंत्रता के बाद विकास के बढ़ते दौर के साथ ही हुई है। जनसंख्या, पिज्ञान और व्यापारिक गतिविधियों में वृद्धि के साथ-साथ जैसे-जैसे वस्तुओं की मांग बढ़ी, वैसे-वैसे मिलावट में भी वृद्धि होती गई।

मिलावटी उत्पादों का स्वास्थ्य पर प्रभाव

                                                          

मिलावटी उत्पाद आपके जीवन में क्या-क्या उत्पात मचा सकते हैं यह जानकर आपकी रूह कांप सकती है। अनेक मिलावटी सामग्रियों में से सबसे ज्यादा खतरनाक हैं केमिकल्स और दुर्भाग्य से ज्यादातर पदार्थों में केमिकलों की मिलावट ही की जाती है। ये केमिकल मानव स्वास्थ्य पर अल्पकालीन प्रभाव से लेकर दीर्घकालीन प्रभाव तक छोड़ते हैं। अल्पकालीन प्रभावों में खुजली, चक्कर आना, जी मचलाना, पेट की बीमारियां उत्पन्न हो जाना, पीला पेशाब आना, ज्यादा प्यास लगना, भूख खत्म हो जाना आदि शामिल हैं, जबकि दीर्घकालीन प्रभावों में कैंसर, त्वचा रोग, जैसे ल्यूकोडर्मा तथा एलजी, रोगरोधक क्षमता का नाश होना, आंखों की ज्योति कम हो जाना, मधुमेह, रक्तचाप, शरीर पर अवांछित बालों का उगना, गंजापन, मोटापा, हड्डियों का खोखलापन आदि शामिल हैं।

लेखकः प्रोफेसर आर. एस. सेंगर, निदेशक प्रशिक्षण, सेवायोजन एवं विभागाध्यक्ष प्लांट बायोटेक्नोलॉजी संभाग, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।