फेफड़े और लिवर में सिस्ट की समस्या का समाधान      Publish Date : 15/04/2025

फेफड़े और लिवर में सिस्ट की समस्या का समाधान

                                                                                                           डॉ0 दिव्यांशु सेंगर एवं मुकेश शर्मा

दुषित माहौल के चलते सिस्ट नामक रोग के होने का खतरा बढ़ जाता है और यह शरीर के किसी भी भाग में हो सकती है। अगर आप सड़कों के किनारे अस्वच्छ स्थानों पर बिकने वाले खाद्य पदार्थों जैसे चाट, भेलपुरी, छोले भटूरे. या चाऊमीन आदि नहीं खाते हैं और स्वच्छता बनाए रखते हैं, तो सिस्ट विशेषरूप से फेफड़े के सिस्ट की बीमारी से बचे रह सकते हैं।

अक्सर आपने सुना होगा कि किसी को बुरी तरह खांसी आती थी। इसके साथ छाती में दर्द होता था व खांसी में खून भी आता था। किसी डॉक्टर की सलाह पर छाती का एक्सरे कराया तो फेफड़े में सिस्ट यानी कैंसर रहित ट्यूमर पाया गया। जब सिस्ट में लीक हुआ और तरल पदार्थ सांस की नली में पहुंचा, वैसे ही लगातार खांसी का दौर और इसके साथ खून के छींटे आना शुरू हो गए।

कैसे पहुंचता है सिस्ट शरीर में

                                               

हमारे देश में गंदगी, कीचड़ व नालों की भरमार है। यहां खुले आम मल मूत्र व कचड़ा जमीन पर पड़ा रहता है और इस कारण जमीन के अलावा बातावरण भी दूषित होता हैं। कहने का मतलब यह है कि मिट्टी, पानी व हवा में इसके रोगाणु (इकाइनोकोकस ग्रेनुलोसस) के अंडों की भरमार हर जगह मौजूद है।

देश में इन दिनों गंदी जगहों पर खोमचे वाले, चाट वाले, फलों का रस निकालने वाले, भेलपुरी बेचने वाले लाइन लगाकर खड़े होते हैं। जाहिर है, ऐसे खुले वातावरण में बिकने वाले खाद्य पदार्थों का हवा व पानी के माध्यम से प्रदूषित होना तय है। इसमें कोई शक नहीं कि जब आप परिवार या मित्रों के साथ बाहर निकलेंगे, भला इन खुले आसमान में सड़कों के किनारे हवा के झोंकों से टकराते इन लुभावने भारतीय फास्ट फूड्स कर लुत्फ उठाने का मन बना सकते हैं।

गर्मागर्म मसालेदार खाना अब आपके पेट में पहुंचेगा तो वह अकेला तो नहीं होगा बल्कि अपने साथ सिस्ट बनाने वाले अंडे भी समेटे होगा। आपको पता भी नहीं चलेगा, क्योंकि ये कोड़े के अंडे इतने बारीक होते हैं कि यह नंगी आंख से दिखते ही नहीं है।

फेफड़े में मौजूदगी

                                             

पेट में इन अंडों के पहुंचने के बाद उसके अंदर का कीड़ा शरीर में स्थित खून की नलियों के माध्यम यसे आपके लिवर में पहुंच जाता है और वहां से फिर शरीर के अन्य अंगों की और बह जाता है। शरीर में प्रमुख रूप से यह लिवर और फेफड़े में अपना स्थायी डेरा डाल लेता है। अपने पड़ाव पर पहुंच कर यह बढ़ना शुरू कर देता है और अपने चारों और एक कवच का निर्माण कर हाइड्रेटिड सिस्ट को जन्म देता है और यह धीरे-धीरे आकार में बढ़ना शुरू कर देता है।

समस्या की पहचान

                                         

अगर कोई व्यक्ति या बच्चा गली में पाए जाने वाले आवारा कुते के साथ खेलता है या फिर इसे स्पर्श करता है तो ऐसी स्थिति में सिस्ट से ग्रस्त होने का खतरा बढ़ जाता है या इसके अलावा आपने घर पर जो कुत्ता पाल रखा है, उनसे न तो नियमित इंजेक्शन लगवाते हैं और न ही उसकी समुचित साफ-सफाई का ध्यान रखा जाता हो, तो ऐसी स्थिति में फेफड़े के सिस्ट होने का खतरा बढ़ जाता है।

इसके अलावा अगर आप खांसी, बलगम, सीने में दर्द, इस्नोफीलिया से ग्रस्त हैं और कभी-कभी खांसी के है कि साथ आप खून भी आ जाता है यह सिस्ट रोग तो संभावना से पीड़ित हो सकते हैं। अगर किसी व्यक्ति के पेट के दाहिने हिस्से में दर्द होता है और उसी हिस्से में उसे कोई गांठ भी महसूस होती है तो हो सकता है कि उसके लिवर में सिस्ट हो।

अगर इलाज न कराया जाए

अगर फेफड़े की सिस्ट का इलाज ही न करवाएं तो देर-सवेर मरीज की भीतर इसके लीक होने का खतरा बढ़ जाता है। फेफड़े के सिस्ट रोग से पीड़ित मरीज को किसी अनुभवी थॉरेंसिक सर्जन से परामर्श लेना चाहिए और उनकी निगरानी में जल्द से जल्द इलाज शुरू करवाना चाहिए, अन्यथा फेफड़े की सिस्ट के फट जाने पर पीड़ित मरीज को गंभीर परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं।

विभिन्न प्रकार की जांचें

छाती का एक्सरे कराना सिस्ट की गांठ को प्रमाणित करने वाली सबसे सस्ती व सरल जांच है। इसके अलावा सिस्ट का आकार, उसकी मौजूदगी का स्थान और इलाज का निर्धारण करने के लिए कुछ अन्य आधुनिक जांचें जैसे छाती का मल्टी स्लाइड सी.टी. स्कैन और एम. आर. आई. कराने की भी आवश्यकता के अनुसार जरूरत पड़ती है।

सिस्ट के उपचार के सम्बन्ध में

                                       

सिस्ट के इलाज के निर्धारण में कई बातों का ध्यान रखना होता है। जैसे सिस्ट का आकार, छाती के अंदर उसका मौजूद रहने का स्थान और मरीज की शारीरिक अवस्था। फेफड़े की सिस्ट का सबसे उत्तम और कारगर समाधान एकमात्र ऑपरेशन कराना ही होता है, परन्तु यदि आप चाहें तो इसके लिए होम्योपैथिक उपचार का सहारा लेकर बिना आपॅरेशन के ही इसका उपचार करा सकते हैं हालांकि इस तरह से ठीक होने में समय समय लग सकता है, परन्तु आप ऑपरेशन से बच सकते हैं।

सिस्ट से ग्रस्त मरीज को जितनी जल्दी हो सके ऑपरेशन या होम्योपैथिक दवाओं के माध्यम से फेफड़े की सिस्ट को उपचार कराना चाहिए, अन्यथा सिस्ट के फट जाने पर जानलेवा जटिलताएं उत्पन्न हो सकती हैं। इस तरह के ऑपरेशन के लिए एक अनुभवी थोरेसिक सर्जन का चुनाव करना बहुत जरूरी है। हालांकि अब अत्याधुनिक तकनीक व सुविधाओं के फलस्वरूप ऑपरेशन में सफलता मिलने की संभावना अधिक हो जाती है। कभी-कभी ऑपरेशन के स्थान पर एक सुई डालकर फेफड़े की सिस्ट का पानी निकालकर उसमें दवाई डाली जाती है, परन्तु यह इसका स्थायी उपचार नहीं है।

असल में क्या है सिस्ट

शरीर के अंदर पाई जाने वाली सिस्ट को मेडिकल भाषा में ‘सइडेटिङ सिस्ट’ के नाम से जाना जाता है। यह सिफ्ट एक विशेष प्रकार के कीडे का अंडा होता है, जिस पर कवच चढ़ा होता है और यह अंड़ा शरीर के जिस भी अंग में पहुंचता है. वहां धीरे-धीरे आकार में बड़ा होना शुरू हो जाता है। ऐसे सिस्ट शरीर के अंदर सबसे ज्यादा फेफड़े में पाए जाते है या फिर लिवर में। ऐसा सिस्ट मानव शरीर के अन्य अंगों में भी पाया जा सकता है। जैसे दिमाग, दिल, हाथ व पैर आदि की मासपेशियों में।

इस तरह के सिस्ट के अंडों को जन्म देने वाले कीड़े को मेडिकल भाषा में इकाइनोकोकस ग्रनुलोसस कहा जाता है। यह कीड़ा केवल 5 मिलीमीटर लंबा होता है। यह कीड़ा मनुष्य के शरीर में निवास न करके कुत्ते की आतों में रहता है और इस कीड़े की जीवन अवधि सिर्फ पांच महीने से लेकर तकरीबन दो साल तक होती है। अपनी इस जीवन यात्रा में यह कुते की आंतों से निकलने वाले मल के माध्यम से लाखों की संख्या में अंडे धरती की मिट्टी में मिल जाते हैं।

लेखक: डॉ0 दिव्यांशु सेंगर, प्यारे लाल शर्मां, जिला चिकित्सालय मेरठ मे मेडिकल ऑफिसर हैं।