
ईटिंग डिस्ऑर्डर होती है एक मनोवैज्ञानिक समस्या Publish Date : 02/04/2025
ईटिंग डिस्ऑर्डर होती है एक मनोवैज्ञानिक समस्या
डॉ0 दिव्यांशु सेंगर एवं मुकेश शर्मा
यह अपने आपमें एक विरोधाभास ही है कि एक ओर तो लोग अपने स्वास्थ्यको लेकर काफी सचेत हुए हैं तो दूसरी ओर ई डी यानी कि ईटिंग डिस्ऑर्डर की समस्या भी निरंतर बढ़ रही है। मुख्य रूप से ई डी को तीन श्रेणियों में बांटा जा सकता है, जिनमें से पहला एनोरेक्सिया, दूसरा बुलिमिया और तीसरा बिंज ईटिंग।
एनोरेक्सयाः आजकल बहुत सी लड़कियाँ, जीरो फिगर के क्रेज के चलते अपने वजन को जरा भी बढ़ा हुआ नहीं चाहती हैं। हालांकि मोटी लड़कियों के लिए यह काफी कारगर युक्ति है क्योंकि इसके माध्यम से वह अपने वजन को कम करके अपना वजन सामान्य स्तर तक ला सकती हैं, परन्तु सामान्य से भी 15 प्रतिशत तक वजन के कम हो जाने के बाद भी यदि वजन को कम करने की सनक हो तो कह सकते हैं कि वह लड़की एनोरक्सिया से पीड़ित है।
ऐसे में कुछ लड़कियाँ बिना वजह के भूखे रहकर वजन को कम करने के चक्कर में अपने स्वास्थ्य के साथ भयंकर खिलवाड़ कर रही होती हैं, जो आगे चलकर उनके लिए परेशानी का सबब भी बन जाता है। इस प्रकार से आई कमजोरी का उनके इम्यून सिस्टम पर बुरा प्रभाव पड़ता है। शरीर की ऊर्जा कम होने लगती है और चेहरे की रौनक के कम होने से ऐसी लड़की टीबी के मरीज के जैसी नजर आने लगती है।
इस समस्या से ग्रस्त पड़िता को पहले साइकोलॉजिकल ट्रीटमेंट दिलवाकर उसके मन से मोटी होने के वहम को निकालने का प्रयास करना चाहिए। इस वहम के दूर हो जाने के बाद ही उसके परिवार के लोग उसे पोष्टिक खाने के लिए राजी कर सकेंगे। डिप्रेशन के उपचार के लिए मनोचिकित्सक मूड स्टेबलाइजर अथवा ऐंटीडिप्रेसेट दवाएं दी जाती है। वे जैसा भी उचित समझेंगे, वैसा ही ट्रीटमेंट पीड़िता को देंगे।
बुलिमियाः विलपावर के नही होने से मरीज का क्या करें, कंट्रोल ही नहीं होता की तर्ज पर ओवर ईटिंग का नॉन-स्टॉप कार्यक्रम चलता ही रहता है और इसके बाद गलती का अहसास होने पर वह इसे उलट देता है और यह प्रभावित का सेकेंड नेचर बन जाता है। सोभाग्य से यह दौर लम्बे समय तक जारी नहीं रहता, लेकिन जब तक समस्या रहती है तक तक मरीज हा हाल बुरा ही रहता है।
गले का सूखना और खराब रहना, दांतों का पीलापन, पेट में गड़बड़ी रहना, डिहाइड्रेशन और मूडी होने के साथ ही वजन का अधिक बढ़ना आदि के जैसी समस्त प्रॉब्लम्स आने लगती हैं।
लेखक: डॉ0 दिव्यांशु सेंगर, प्यारे लाल शर्मां, जिला चिकित्सालय मेरठ मे मेडिकल ऑफिसर हैं।