जलवायु परिवर्तन का आम और लीची की फसल पर घातक प्रभाव      Publish Date : 25/05/2025

जलवायु परिवर्तन का आम और लीची की फसल पर घातक प्रभाव

                                                                                                                                  प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 रेशु चौधरी

यदि आम और लीची उत्पादकों ने उचित समय पर एहतियाती उपाय और रोग के खिलाफ उपचारात्मक कदम न उठाए तो यह नुकसान 40 फीसदी तक भी हो सकता है। सहारनपुर का बेहट क्षेत्र फल-पट्टी के रूप में विकसित और जाना पहचाना जाता है।

जलवायु परिवर्तन का बागवानी विशेष रूप से लीची और आम की फसलों पर इस बार अधिक बुरा प्रभाव देखने को मिल रहा है। फल उत्पादकों और उद्यान विभाग के शुरूआती आंकलन के अनुसार इस बार फसल में 15-20 फीसदी तक की गिरावट हो सकती है। ऐसे में उत्पादकों ने एहतियाती उपाय और रोग के खिलाफ उपचारात्मक कदम न उठाए होते तो नुकसान 40 फीसदी तक भी हो सकता है। सहारनपुर का बेहट क्षेत्रफल पट्टी के रूप में विकसित है। जहां के 26 हजार 600 हैक्टेयर क्षेत्रफल में आम की पैदावार होती है। सोलह गांवों के किसानों को उद्यान विभाग फल ढकने वाले थैले वितरित करेगा। उद्यान अधिकारी गमपाल सिंह ने आज बताया कि विभाग करीब तीन सौ बाग मालिकों को 67 हजार 200 थैले वितरित करेगा। इस थैले को पेडों पर लगे आम को ढका जाएगा।

                                                      

इससे फसल बढ़ेगी, फल का आकार, और गुणवत्ता दोनों में वृद्धि होगी। फल स्वास्थ्य यानि निरोगी होगा। बेहट क्षेत्र के बाग मालिक सचिन जैन ने बताया कि विगत तीन वर्षों से मौसम बिगड़ रहा है। तापमान में उतार-चढ़ाव से आम की फसल प्रभावित हो रही है। मार्च-अप्रैल में कभी तापमान 30 डिग्री सेन्टीग्रेड हो जाता है तो कभी बारिश के कारण अथवा जलवायु बदलाव के चलते तापमान में गिरावट आ जाती है। आर्द्रता भी बढ़ती घटती है। आम की अगेती प्रजाति ज्यादा प्रभावित होती है। देशी आम पर कम तो दशहरी, लंगडा, चौसा की फसल पर भी बुरा असर पड़ता दिख रहा है। वुड कार्निंग एक्सपोर्टर असलम के बाग में भी 15-20 फीसद पर विपरीत प्रभाव पड़ा है। वह उपचार के साथ-साथ सावधानी भी बरत रहे है।

                                                       

जिला उद्यान अधिकारी ने बताया कि सहारनपुर से बड़ी मात्रा में आम का एक्सपोर्ट होता है। विदेशों में यहां के आम के भाव आठ सौ रुपये प्रति किग्रा दर से मिलते है। उन्होंने बताया कि बाग मालिकों ने समय रहते सावधानियां बरती है और रोग लगने पर उचित रोग एवं कीटनाशकों का छिड़काव कराया है। फिर भी 15 से 20 फीसदी फसल कम होने की संभावना है।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।