
किसानों को बेहतर आर्थिक आधार प्रदान करती केले की सहफसली खेती Publish Date : 13/04/2025
किसानों को बेहतर आर्थिक आधार प्रदान करती केले की सहफसली खेती
प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 रेशु चौधरी
पश्चिमी उत्तर प्रदेश का किसान अब कृषि विविधीकरण को भी प्रथमिकता दे रहा है। किसानों का आय को बढ़ाने की राह पर नौकशाह एवं नीति नियंता किसानों को फल और सब्जी के सहित अन्य फसलों के उत्पादन करने के लिए प्रोत्साहित कर रहें हैं। इसी दिशा में क्षेत्र के सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि विश्वविद्यालय के कृषि वैज्ञानिक स्थानीय किसानों को केले की खेती करने की सलाह दे रहे हैं और इसके साथ ही किसानों के खेतों तक केले की खेती से सम्बन्धित उन्नत खेती की तकनीकों को पहुँचा रहे हैं। टियू कल्चर तकनीक का प्रशिक्षण प्राप्त कर किसान भी केले की खेती ओर अपनी रूचि को दर्शा रहें हैं।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में किसान गन्ना, हल्दी एवं अन्य फसलों के साथ अब केले की सहफसली खेती कर रहें हैं। कले के फल के साथ ही साथ इसके पौधों पर लगने वाले फूल भी अपने औषधीय गुणों के लिए जाने जाते हैं। वहीं विभिनन कृषि वैज्ञानिक भी केले की खेती करने से किसानों की आर्थिक हालात में अपेक्षित सुधार आने की आशा व्यक्त कर रहे हैं।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में किसान प्रमुख रूप से गन्ना एवं गेंहूँ आदि की फसलों का उत्पादन करते रहें हैं। परन्तु अब क्षेत्र के किसान भी अब परम्परागत खेती के साथ ही अन्य फसलों जैसे धान, फूल, सब्जी और बागवानी फसलों की खेती को अपना रहें हैं। केन्द्र और राज्य सरकार के द्वारा भी इस क्षेत्र में केला, पपीता, आम, लोकाट और अम्ररूद सहित अन्य फलों के साथ ही सब्जी की फसलों का उत्पादन बढ़ाने पर फोकस किया गया है।
सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि विश्वविद्यालय के कृषि वैज्ञानिक क्षेत्र के किसानो के लिए पपीते के उन्नत बीज के साथ ही इसकी खेती करने के लिए नवीनतम तकनीक उपलब्ध करा रहें हैं। इससे क्षेत्र के विभिन्न जनपदों के किसानों में कुदरत की इस अनमोल देन यानी बागवानी की खेती करने की ओर रूझान भी बढ़ा है। सहफसली खेती के तौर पर वह सब्जी और दलहनी फसलों के साथ ही पपीते की बागवान भी कर रहें हैं। उत्तर प्रदेश में मुख्य रूप से उगाई जा रही केले की प्रजाति ग्रैंड नैने इन (जी-9) रही है। प्रदेश के सिद्वार्थ नगर, बस्ती, संत कबीरनगर, महाराजगंज, कुशीनगर, फैजाबाद, बाराबंकी, सुल्तानपुर, लखनऊ, सीतापुर, कौशाम्बी और इलाहाबाद सहित अन्य जनपदों में एक लम्बे समय से केले की की जाती रही है।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में लगभग 5 वर्ष पूर्व केले की खेती को बढ़ावा प्रदान करने के लिए टिश्यू कल्चर तकनीकी के माध्यम से रोगमुक्त केले के पौधों का उत्पादन कराया गया था। इसके सम्बन्ध में कृषि वैज्ञानिक बताते हैं कि केले के पौधों की रोपाई करने का उचित समय 1 जून से 31 जुलाई तक का समय माना जाता है। केले के पौधे के भूमिगत कने से अलैंगिक रूप से प्रजनन करते हैं। एक वर्ष से भी कम समय में फसल को तैयार किया जा सकता है। केला बारहमासी फसल है जो जल्द ही उगती है और पूरे वर्ष इसे काा जा सकता है। मेरठ, मुजफ्फरनगर हापुड, बुलंदशहर, बागत, बिजनौर, मुरादाबाद, रामपुर और गाजियाबाद आदि जनपदों के किसान जगरूक हो रहे हैं।
इस सम्बन्ध में विश्वविद्यालय के कृषि वैज्ञानिक वैज्ञानिक प्रोफेसर आर. एस. सेंगर बताते हैं कि एक नकदी फसल होने के चलते केले की खेती फसल विविधीकरण के लिए भी महत्वपूर्ण है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान केले को एक वैकल्पिक फसल के रूप में अपना रहे हैं।
साथ ही गन्ना, हल्दी एवं अन्य फसलों के साथ सहफसली खेती के तौर पर केले का उत्पादन कर रहें हैं। डॉ0 सेंगर का कहना है कि केले का पेड़, तना, पत्ती, फल फूल और बीज आदि सभी भाग मानव के स्वास्थ्य एवं उसकी त्वचा के लिए लाभेारी होते हैं। केले का पुष्प तो बहुत से औषधीय गुणों से भरपूर होता है। केले के फूल में प्रोटीन, फाइबर, पोटेशियम, कैल्शियम, आयरन, फॉस्फोरस, कॉपर और विटामिन ई प्रचुर मात्रा में उपलब्ध होते हैं।
केले के फूल में कैल्शियम भरपूर मात्रा में होने के कारण यह हड्डियों की कमजोरी अथवा ओस्टियोपोरोसिस की समस्या को दूर करने में भी सहायक रहते हैं। वहीं कुछ वैज्ञानिकों का मत है कि केला कार्बोहाइड्रेट और विशेषरूप से विटानि बी का एक समृद्व स्रोत होता है। केला पोटेशियम, फॉस्फोरस, कैल्शियम और मैग्नीशियम आदि का भी एक उत्तम स्रोत होता है। पिछले कुछ वर्षों के दौरान कैमिकलों का अंधाधुंध प्रयोग करने के प्रतिकूल प्रभावों को देखेते हुए केले की जैविक उत्पादन की पवृत्ति को भी तेजी के साथ अपनाया जा रहा है। इसके लिए इस विधि को एक नया नाम ‘ग्रीन फूड्स’ दिया गया है।
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।