
हो सीखने की ललक, तो उम्र बाधा नहीं Publish Date : 10/08/2025
हो सीखने की ललक, तो उम्र बाधा नहीं
प्रोफेसर आर. एस. सेंगर
किशोर उम्र में जब अधिकांश लड़कियां स्कूलों में बेहतर अंक लाने, अपनी सहेलियों के साथ मौज-मस्ती करने, सजने-संवरने में समय गुजारती हैं, तो 26 जनवरी, 1997 को चेन्नई में जन्मी सिंधुजा राजारमन देश की सबसे कम उम्र की सीईओ और 2डी एनिमेटर के रूप में विख्यात हो गई। हालांकि इसके लिए उन्होंने कोई योजना नहीं बनाई थी। एनिमेशन के प्रति उनके मन में दिलचस्पी अपने पिता आर राजारमन के कार्यों से जगी, जो तमिलनाडु में पहली पीढ़ी के फ्रीलांस के रिकैचर बनाने वालों में थे।
बचपन से ही एनिमेशन में से एक दिलचस्पी होने के कारण सिंधुजा ने छठी कक्षा से ही एनिमेशन बनाना सीखना शुरू कर दिया था। उन्हें एक आईटी कंपनी से एनिमेशन सीखने का मौका मिला। टेंथ प्लानेट टेक्नोलॉजीज नामक उस कंपनी के संस्थापक कुमारण मणि थे, जिनकी निगरानी में उन्होंने कंपनी के लिए एनिमेशन का काम किया। लेकिन उन्होंने अपनी पढ़ाई भी जारी रखी।
पहली सफलता
जब वह चेन्नई के बेलाम्मल मैट्रिकुलेशन स्कूल में नौवीं कक्षा की छात्रा थीं, तो उन्होंने एक स्वयंसेवी संगठन द्वारा आयोजित एनिमेशन प्रतियोगिता में हिस्सा लिया। वहां उन्होंने 10 घंटों के भीतर तीन मिनट की एक एनिमेशन फिल्म बनाई, जिसे सबसे तेजी से बनने वाली एनिमेशन फिल्म के रूप में गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉहर्स में दर्ज किया गया।
सबसे कम उम्र की सीईओ
उसके अगले ही दिन उन्हें एक सॉफ्टवेयर कंपनी से फोन आया और कंपनी का सीईओ बनने का प्रस्ताव दिया गया। सिंधुजा ने स्वीकृति तो दे दी, लेकिन तब तक उन्हें सीईओ का मतलब भी पता नहीं था। एनिमेशन बनाने वाली उस सॉफ्टवेयर कंपनी का नाम सेप्पन डॉट कॉम था। और फिर उसके बाद उसने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और आज एक सफल उद्यमी के रूप में वह युवाओं के प्रेरणास्त्रोत बन गई हैं।
वहां उन्होंने कई परियोजनाओं पर काम किया, जिनमें से एक त्यागराया नगर की एनिमेटेड प्रतिकृति (रिप्लिका) बनाने का भी काम था। त्यागराया नगर चेन्नई के लोगों का प्रसिद्ध शॉपिंग सेंटर है।
सीईओ के रूप में चुनौती
सेप्पन कंपनी की सीईओ बनने के बाद सबसे पहली चुनौती उनके सामने यही आई कि उस कंपनी में काम करने वाले सभी 10 लोग उनसे उम्र में बड़े थे। ऐसे में अपने से बड़ी उम्र के लोगों से काम लेने में उन्हें थोड़ी मुश्किल तो जरूर हुई, लेकिन इसका समाधान उन्होंने कर्मचारियों के बीच टीम भावना विकसित करके किया। कुछ लोगों को सिंधुआ से आदेश लेने में कठिनाई होती थी, लेकिन कामकाजी रिश्तों को सहज बनाने के लिए उसने स्वयं गंभीरता के काम किया।
जहां तक उनकी क्षमता का सवाल था, तो उम्र उसमें कोई बाधा नहीं बनी। वह किसी कंपनी के आम सीईओ की तरह मीटिंग की अध्यक्षता करती थीं, कॉन्फ्रेंस में हिस्सा लेती थीं और क्लाइंट से मिलती थीं। हालांकि वह किसी दस्तावेज पर हस्ताक्षर नहीं करती थीं।
अन्य उपलब्धियां
सिंधुजा कोरल सॉफ्टवेयर कंपनी के ब्रांड एंबेसडर के रूप में भी काम करती हैं, जिसने उन्हें डिजिटल कार्टून के सबसे कम उम्र के निर्माता के रूप में प्रमाणित किया है। उन्हें चेन्नई में साउथ इंडियन स्टार्टअप अवॉर्ड द्वारा वर्ष 2018 के युवा उद्यमी से सम्मानित किया गया। सिंधुजा ने ग्लोबल वार्मिंग और तपेदिक जैसे सामाजिक रूप से प्रासंगिक विषयों पर लघु फिल्में भी बनाई हैं, जिन्हें सार्वजनिक स्थानों पर प्रदर्शित किया गया है।
पारिवारिक पृष्ठभूमि
सिंधुजा के लिए यह सुखद संयोग है कि वह एक ऐसे परिवार से ताल्लुक रखती है, जहां हर किसी ने अपने-अपने क्षेत्र में उपलब्धि हासिल की है। उनके पिता तमिलनाडु के पहले डिजिटल कैरिक्युरिस्ट थे, और उनकी बहन ने देश की सबसे कम उम्र की हाइकु (जापानी शैली की कविता) कवयित्री का गौरव हासिल किया।
एनिमेशन का भविष्य
यह कहती है कि भारत में एनिमेशन का दायरा हर दिन बढ़ रहा है। एनिमेशन के क्षेत्र में भारत में एक बड़ा उछाल देखने को मिल रहा है और सभी उद्योगों में एनिमेशन एवं मल्टीमीडिया की मांग बढ़ रही है, जो रोजगार का एक बड़ा क्षेत्र बन सकता है। कोई भी व्यक्ति एनिमेशन का काम सीख सकता है और इसके लिए उम्र की कोई सीमा नहीं है। मुझे एनिमेशन के क्षेत्र में काम करके बहुत अच्छा लग रहा है और मैं हमेशा चुनौतीपूर्ण काम करना पसंद करती हूं।
सामाजिक सरोकार
आज एनिमेशन के क्षेत्र में एक सफल उद्यमी बन चुकी सिंधुजा युवाओं को अपनी पढ़ाई खत्म करने के बाद एनिमेशन और ग्राफिक्स में काम करने का अवसर प्रदान करना चाहती है। वह कहती है कि भारत एक बहुत बड़ा बाजार है, और यहां बहुत सी ऐसी प्रतिभाएं है, जिनका उपयोग नहीं किया जा सका है। वह उन प्रतिभाओं के लिए अवसर पैदा करना चाहती है।
सिंधुजा ने ग्लोबल वार्मिंग और तपेदिक जैसे सामाजिक रूप से प्रासंगिक विषयों पर लघु फिल्में भी बनाई है, जिन्हें सार्वजनिक स्थानों पर प्रदर्शित किया गया है।
युवाओं को सीख
- सीखने के लिए कोई भी उम्र बाधा नहीं बनती, बस लगन चाहिए।
- चुनौतियां सबके जीवन में आती है, लेकिन उनसे घबराने के बजाय निपटने के तरीके तलाशने चाहिए।
- सहज और दोस्ताना रवैये से आप किसी को भी अपने अनुकूल बना सकते हैं।
- बेरोजगारी का रोना रोने के बजाय खुद को हुनरमंद बनाएं, नौकरी खुद चलकर आएगी।
- चुनौतीपूर्ण कार्य करने से आपके सामने अवसरों के दरवाजे खुलते हैं।
पढ़ाई और काम में तालमेल
पढ़ने की उम्र में ही कामकाजी दुनिया में व्यस्त होने के बावजूद उन्होंने अपनी पढ़ाई से कोई समझौता नहीं किया। हालांकि सॉफ्टवेयर कंपनी में काम करने के लिए उन्हें अपने स्कूल से विशेष अनुमति लेनी पड़ी। स्कूल प्रशासन की मदद की वजह से उन्हें जरूरी उपस्थिति से छूट मिल गई, जिस वजह से वह आराम से काम कर सकती थीं।
सिंधुजा के पिता हर रोज उन्हें सुबह साढ़े आठ बजे काम पर ले जाते थे, जहां वह अगले बारह घंटे समर्पित कॉरपोरेट कर्मचारी के रूप में काम करती थीं। सिंधुजा ने दसवी कक्षा तक ही स्कूल में पढ़ाई की और बारहवीं की पढ़ाई प्राइवेट स्टूडेंट के रूप में पूरी की। आईकैट डिजाइन एवं मीडिया कॉलेज में भी उन्हें जरूरी उपस्थिति से छूट मिल गई।
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।