
उत्तम आय अर्जन के लिए पपीते की खेती Publish Date : 04/08/2025
उत्तम आय अर्जन के लिए पपीते की खेती
प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 रेशु चौधरी
वर्तमान में पपीता की खेती चित्तौडगढ़ जिले के किसानों की आर्थिकी का आधार बन चुकी है। एक बार जिस किसान ने पपीता का उत्पादन करना शुरू किया, वह एक साल में ही लखपति बन गया। ऐसे में ऐसे अनेक किसान है जो पपीता की खेती में अपनी पहचान बना चुके है।
गौरतलब है कि पपीता का एक पेड़ किसान को एक हजार रूपए से अधिक तक की आय देता है। यह जिले के किसान गौरी शंकर सालवी का अनुभव है। पपीता की खेती से गौरीशंकर अपने परिवार का जीवन यापन आसानी से कर रहे हैं।
किसान गौरी शंकर के अनुसार पपीते का एक पेड़ किसान को एक हजार से अधिक रूपए तक की आय दे सकता हैं। बशर्ते, पपीते के बगीचे की देखरेख अच्छी की जाए। पपीते के एक पेड़ से एक हजार रूपए तक की आय लेने वाला यह किसान है गौरी शंकर सालवी। गैरी शंकर, खेत में लगे 200 पपीते के पेड़ों से अभी तक डेढ़ से दो लाख रूपए की आय ले चुका है। तिजोरी की लक्ष्मी बढ़ाने का यह प्रयास किसान गैरी शंकर ने तीन साल पहले शुरू किया था।
कृषि वैज्ञानिकों के मार्गदर्शन में अपनाई गई पपीता की खेती से न केवल उनकी आमदनी का ग्राफ बढ़ा है, बल्कि, गांव में बागवां के रूप में नई पहचान भी मिली है। किसान गौरी शंकर का कहना है कि पम्परागत फसलों में लाख मेहनत करने के बाद भो इतनी आय संभव नहीं हो पाती है।
किसान गौरी शंकर ने हमारी टीम को बताया कि उनके परिवार के पास मात्र 6 बीघा जमीन ही है। उन्होंने बताया कि 10वीं कक्षा पास करने के दौरान ही मेरी मम्मी का आकस्मिक देहांत होने के कारण घर संभालने की जिम्मेदारी मुझ पर आ गई। पिताजी खेती करते थे और मैं के सारे का काम देखता था। इसी के चलते 10वीं के बाद पढ़ाई भी छोड़नी पड़ी। उन्होंने बताया कि पांच साल पहले मैने खेती का पूरा काम संभाला।
दिन में कृषि विज्ञान केन्द्र, चित्तौडगढ़ में मजदूरी करता हूँ। वहीं, सुबह-शाम का समय अपने खेतों को देता हूँ। कृषि विज्ञान केन्द्र पर मजदूरी करने के दौरान ही मुझे वैज्ञानिक खेती के तौर-तरीके बारीकी से सीखने का मौका मिला।
इस कृषि विज्ञान केन्द्र के उद्यानिकी वैज्ञानिक डॉ. राजेश जलवानिया से एक दिन मैंने अपनी कृषिगत आय के बढ़ाने बारे में सवाल किया तो उन्होंने मुझे पपीते के साथ सब्जी फसलों की खेती करने की सलाह दी। इसके बाद मैं पिछले तीन साल से पपीते का उत्पादन अपने खेतों से ले रहा हूँ। उन्होंने बताया कि परम्परागत फसलों में मैं गेहूं और मक्का का उत्पादन भी लेता हूँ।
किसान गौरी शंकर ने अपने अनुभव को साझा करते हुए बताया कि कृषि वैज्ञानिकों की सलाह ने मेरे जीवन को बदल दिया हैं। इससे मुझे अब न तो दिहाड़ी की फिक्र हैं और न ही अपने परिवार के गुजर-बसर की। खेतों की आमदनी से अब परिवार की समृद्धि भी साल दर साल बढ़ती जा रही हैं।
ऐसी बदली किस्मत
किसान गौरी शंकर ने बताया कि सबसे पहले उन्होंने अपने एक बीधा के क्षेत्र में पपीते का उत्पादन लेना आरम्भ किया था। कृषि वैज्ञानिकों की सलाह पर उन्होनें उसी खेत में पपीता का रोपण करना शुरू कर दिया, जिस खेत में पशुपालन के लिए रिजके की फसल लेते थे और इससे पशुओं के लिए हरा चारा भी मिलता रहा और उनकी आय का ग्राफ भी बढ़ता रहा। हमारी टीम को उन्होंने बताया कि पपीता की फसल से उन्हें सालना डेढ़ से दो लाख रुपए तक की आय हो जाती है। पपीते के एक पौधे पर लगभग एक क्विंटल तक पपीते के फलों का उत्पादन मिल जाता है।
इसके अलावा की आधा बीधा से एक बीघा के क्षेत्र में सब्जी फसल का उत्पादन भी ले रहा हूँ। सब्जी फसलों में मिर्च और टमाटर सहित दूसरी मौसमी सब्जियों की फसल भी शामिल हो तो इससे भी सालाना 40 हजार रुपए तक की आय हो जाती है। एक बीधा क्षेत्र में गन्ने की फसल से भी 40-50 हजार रुपए तक आमदनी हो जाती है।
उन्नत पशुपालन
किसान गौरी शंकर ने बताया कि पशुधन में मेरे पास 4 भैंस है, जिनसे प्रतिदिन 10-12 लीटर दुग्ध का उत्पादन मिलता है। इसमें से एक समय के दूध को वह फ्रिज कर देता हूँ और इससे प्रति माह मक्खन निकालने के बाद 10 हजार रुपए की शुद्ध बचत मिल जाती है। दूध की इस आय से परिवार का खर्च निकल जाता है तो वहीं, पशु अपशिष्ट का उपयोग खेतों में कर रहा हूँ, इससे कम लगात में फसलों का अच्छा उत्पादन मिलने से भी आय में बढ़ोत्तरी होती है।
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।