
शौक को ही बनाया कारोबार Publish Date : 28/04/2025
शौक को ही बनाया कारोबार
प्रोफेसर आर. एस. सेंगर
अपने शौक को कारोबार का रूप देने वाली बेंगलुरु की महिला, अमिता रघु ने वर्ष 2017 में ‘कृष्णा टैसेल्स’ की नींव रखी और देखते ही देखते भारत समेत दुनिया के अलग-अलग देशों में इनकी साड़ी ‘‘कुचु’’ की मांग बढ़ती जा रही है। अब तक सैकड़ों महिलाओं को इस प्राचीन कला में पारंगत बनाने वाली अमिता कहती हैं कि जब वे अपने ग्राहकों के चेहरे पर चमक और मुस्कुराहट देखती हैं, तो कुछ नया करने के लिए प्रेरित होती हैं।
अमिता के लिए अपने लक्ष्य को हासिल करना, महिलाओं को सशक्त बनाना और वापस समाज को लौटाना अपने आप में काफी मायने रखता है। उनका कहना है कि क्लाइंट्स के साथ परिवार और कर्मचारियों की खुशी मेरी प्राथमिकता होती है।
मैं बेंगलुरु में ही जन्मी और वहीं पली-बढ़ी हूं। साइंस ग्रेजुएट हूं। पिता हॉर्टीकल्चरिस्ट और किसान थे। वर्ष 2008 में शादी के समय एक निजी एयरलाइंस के साथ ग्राउंड स्टाफ एजेंट के रूप में काम कर रही थी। बाद में नोकिया सर्विस फ्रेंचाइज में बतौर कस्टमर सर्विस मैनेजर काम किया। बच्चे की परवरिश के लिए नौकरी से इस्तीफा दे दिया और मां से पारंपरिक साड़ी की कला कुचु सीखने लगी। साड़ी टैसेल्स जिसे साड़ी कुचु भी कहते हैं एक पारंपरिकके खूबसूरत लेसेज तैयार किए जाते हैं।
इस तरह शौक के रूप में शुरुआत हुई और धीरे धीरे मैंने सोशल नेटवर्किंग साइट्स के माध्यम से इस कला को लोकप्रिय बनाने का बीड़ा उठाया। आज यह विश्वभर की महिलाओं के बीच लोकप्रिय हो चुकी है। 100 से ज्यादा महिलाएं सोशल नेटवर्किंग साइट के जरिये साड़ी टेसलिंग सर्विस उपलब्ध करा रही हैं।
कारोबार के साथ कला का संरक्षणः नौकरी छोड़ने के बाद मुझे अपनी महत्ता का एहसास हुआ। मुझे लगा कि एक महिला के लिए उसकी आर्थिक उन्नति कितनी आवश्यक है। इसके बाद ही वर्ष 2017 में मैंने ‘‘कृष्णा टैसेल्स’’ की नींव रखी और इसकी वेबसाइट को लॉन्च किया। इसके माध्यम से घर बैठे महिलाएं समूह में काम करके अपनी आर्थिक जरूरतों को पूरा कर सकती हैं। अपने वेंचर के जरिये हमने 6000 से अधिक साड़ियां तैयार की हैं और 600 से अधिक साड़ी लेसेज विदेश भेजे हैं। अब तक 700 से ज्यादा महिलाओं को इस क्राफ्ट में प्रशिक्षित किया जा चुका है।
कई स्तरों पर रहीं चुनौतियां मेरे सामने बड़ी चुनौती कारीगरों को लेकर आई। अधिकतर कारीगर समय के साथ या मार्केट की जरूरतों के अनुसार बदलने से संकोच करते हैं। वे नई परिस्थितियों से जल्दी सामंजस्य नहीं बिठा पाते। यहां तक कि अपने कौशल को निखारने में भी उनकी ज्यादा दिलचस्पी नहीं होती। ऑनलाइन अपने काम को पेश करने की बात तो काफी दूर है। हालांकि अब आहिस्ता आहिस्ता सोच बदल रही है। दूसरी चुनौती साड़ियों की सुरक्षित डिलीवरी को लेकर आती है। साड़ी महंगी तो होती ही है, उससे एक भावनात्मक जुड़ाव भी होता है, इसलिए उसे हिफाजत से भेजना पड़ता है। इसके अलावा, फैशन इंडस्ट्री लगातार बदलती रहती है, इसलिए हमें निरंतर नए डिजाइंस पर ध्यान देना पड़ता है।
इसी प्रकार डिजिटल मार्केटिंग पर भी नजर रखनी होती है। इच्छा को बदलें लक्ष्य में इस सफर में मैंने खुद काफी कुछ सीखा है। स्थानीय महिलाएं इस कला को सीखने के बाद आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर हुई हैं। परिवार में उनका सम्मान बढ़ा है। वे अपने फैसले खुद ले रही हैं। इसके अलावा, वे अन्य महिलाओं को भी प्रेरित कर रही हैं। इन सबसे अच्छा और क्या हो सकता है? हमारे लिए इससे बड़ी सफलता क्या हो सकती है कि कि हमने एक पुरानी और पारंपरिक कला को संरक्षित किया है। छोटे शहरों के उद्यमी प्रेरित हुए हैं। वे अपने इलाके के क्राफ्ट को आगे बढ़ाने का प्रयास कर रहे हैं। मैं मानती हूं कि अगर कुछ नया शुरू करना चाहते हैं, तो अपनी इच्छा को लक्ष्य में तब्दील करें और फिर उसे हासिल करने में लग जाएं। इसके अलावा, ग्राहकों से फीडबैक लेते रहना भी जरूरी है।
डिजिटल प्लेटफॉर्म्स से मिली मदद
वर्ष 2014 में हमने प्रोडक्ट्स को फेसबुक बिजनेस पेज पर देना शुरू किया, जिसके बाद से साड़ियों की मांग कई गुना बढ़ गई। यह क्रम आगे भी जारी रहा, जब वर्ष 2017 में हमने कृष्णा टैसेल्स की प्रोफाइल गूगल माय बिजनेस पेज पर क्रिएट की। उसके एक महीने बाद ही खुद की वेबसाइट शुरू हुई। देखते ही देखते भारत के अलावा, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, मध्य एशिया और मलेशिया जैसे देशों से ऑर्डर आने लगे।
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।