ऐसे थे हमारे चौधरी साहब      Publish Date : 11/04/2025

                       ऐसे थे हमारे चौधरी साहब

                                                                                                                      प्रोफेसर आर. एस. सेंगर

दुनिया को अलविदा कहते समय उनके पास न अपना कोई घर था, न खेती की जमीन और न कार। बीमारी से इलाज कराने के बाद 22 हजार के बैंक बैलेंस में से केवल 4,500 की रकम बची थी। उनके पास न कभी खेती थी और न अंतिम समय तक अपना निजी मकान। लेकिन जीवन भर वह गांव, गरीब, किसान और खेत के लिए ही लड़ते रहे। हालात कभी उनका हौसला तोड़ न सके और वह ईमानदारी, शिष्टाचार, नैतिकता और भारतीय संस्कारों की मिसाल बन गए। बेहतरी की जंग के जज्बे ने उन्हें किसानों का मसीहा बना दिया। इसी पूंजी के बदौलत वह किसानों के दिलों में आज तक भी जिंदा ीि बने हुए हैं।

                                               

जी हाँ ऐसे ही थे हमारे देश के पांचवे प्रधानमंत्री, उपप्रधानमंत्री और दो बार यूपी के मुख्यमंत्री रहे चौधरी चरण सिंह। तत्कालीन मेरठ जिले के (अब हापुड़ में) एक छोटे से गांव नूरपुर की मंडैया की झोपड़ी में जन्मे चौधरी चरण सिंह ने किसानों को स्वाभिमान के साथ जीने और सियासत पर निगाह बनाए रखने का सलीका सिखाया। बचपन में ही आर्थिक संकट से जूझता उनका परिवार नूरपुर की मंडैया से ब्लॉक जानी के पास भूपगढ़ी गांव में चला गया। लेकिन दो जून की रोटी की लड़ाई यहां से भी उनके परिवार को खरखौदा के निकट स्थित भदौला गांव ले गई।

                                                   

किसी तरह चरण सिंह ने अपनी पढ़ाई पूरी की और मेरठ आगरा यूनिवर्सिटी से लॉ की डिग्री हासिल कर ली। देश के प्रधानमंत्री बने तो आज के दौर की तरह अपने लिए कुछ करने के बजाए वह दिन रात किसानों के लिए ही जुटे रहे। चुनाव आते तो गांव-गांव गली-गली में सम्पर्क के लिए निकल पड़ते। रात में किसानों के घरों में ही रुकते और उन्हीं से चुनाव के लिए एक वोट और एक नोट मांगते।

इस प्रकार से जो चंदा इकट्ठा होता, उसी से उनकी पार्टी चलती थी। चौधरी चरण सिंह के करीबी रहे चौधरी नरेन्द्र सिंह एडवोकेट बताते हैं कि जब सर्दियां आती थीं तो वह पूछते अब तो कोल्हू चल पड़े हैं। पार्टी दफ्तर में जो कर्मचारी काम कर रहे हैं उन्हें कई महीनों से तनख्वाह नहीं मिली। सर्दी है सो इन्हें भी लिहाफ-रजाई तो चाहिए ही। तब वह बागपत जिले के बड़ौत में एक पब्लिक मीटिंग रखते और उसमें जो चंदा मिलता उससे कर्मचारियों की तनख्वाह और दूसरे बिल चुकाते थे। वह किराए की गाड़ी लेकर आते थे और गांवों में चौपालों पर बैठकर लंबे-लंबे भाषण देते थे। उनका कोई भाषण तीन घंटे से कम का नहीं होता था।

वह किसानों और कार्यकर्ताओं से कहा करते थे कि अगर प्रेस उनकी तारीफ करने लगे तो समझ लेना कि चरण सिंह में कहीं कोई गडबड हो गई है। चरण सिंह के जन्म स्थान नूरपुर मंडैया गांव के पीतम सिंह ने कुछ साल पहले मुझे बताया कि चौधरी साहब की खूबी थी कि जो कह दिया वही कर दिया। उनकी याददाश्त और लोगों की पहचान भी कमाल की थी।

                                                  

एक बार बुलंदशहर में एक जनसभा में आए, तो भीड़ में सामने बैठे फकीर अल्ला मेहर का नाम माइक से बुलाकर अपने पास बुला दिया था। बोले ऐसे क्यों देख रहे हो, हम दोनों चौथी क्लास में साथ-साथ ही पढ़े हैं। वह सुबह गाय का दूध पीते थे। सन अस्सी में हुए माया त्यागी कांड ने उन्हें झकझोर दिया था। उन्होंने माया को न्याय दिलाने के लिए प्रदेश भर में आंदोलन चलाया और इसमें एक लाख से ज्यादा लोग जेल गए। चौधरी साहब इस घटना से बेहद आहत थे।

वह हमेशा एक ही बात कहते और समझाते थे कि असली भारत गांव में बसता है और देश की खुशहाली का रास्ता भी खेत-खलिहान से होकर ही गुजरता है।

पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह- प्रोफाइल

                                                            

  • जन्म 1902 तत्कालीन मेरठ (अब गाजियाबाद में) जिले के नूरपुर मंडैया गांव में हुआ।

  • मृत्यु 29 मई 1987 को दिल्ली में।

चौधरी साहब का सियासी सफर:-

  • देश के पांचवे प्रधानमंत्री- 28 जुलाई 1979 से 14 जनवरी 1980 तक।

  • उप प्रधानमंत्री- 24 मार्च 1977 से 28 जुलाई 1979 तक।

  • केंद्रीय वित्त मंत्री- 24 मार्च 1977 से 28 जुलाई 1979 तक।

  • केंद्रीय गृह मंत्री- 24 मार्च 1977 से 1 जुलाई 1978 तक।

  • उप्र के मुख्यमंत्री- 18 फरवरी 1970 से एक अक्तूबर 1970 तक और 3 अप्रैल 1967 से 25 फरवरी 1968 तक।

  • उप्र सरकार में राजस्व मंत्री वर्ष 1952 में।

  • राजनीतिक पार्टी- स्वतंत्रता सेनानी, 1967 तक कांग्रेस में रहे और उसके बाद जनता पार्टी सेक्यूलर 1979 में बनाई।

  • 1937 पहली बार में बागपत की छपरौली सीट से लेजिस्लेटिव एसेंबली सदस्य चुने गए।

  • महात्मा गांधी से प्रभावित होकर आगरा यूनिवर्सिटी से लॉ की डिग्री लेकर सत्याग्रह आंदोलन में कूदे।

  • 1930 में नमक का कानून तोड़ने के जुर्म में छह माह जेल में रहे।

  • सत्याग्रह आंदोलन में भी जेल गए।

- अंग्रेजी राज में 1942 में फिर जेल गए।

भारतीय आर्थिक नीति और कोऑपरेटिव खेती पर किताबें लिखीं ।

भूमि सुधारों ने बनाया किसानों का मसीहा

31 मार्च 1938 के हिन्दुतान टाइम्स में छपा था चौधरी चरण सिंह का बिल

चौधरी चरण सिंह ने अंग्रेजी राज के खिलाफ चल रहे स्वतंत्रता संग्राम के दौरान ही अपना सियासी सफर शुरू कर दिया था। 34 वर्ष की उम्र में फरवरी 1937 में वह यूनाइटेड प्राविंसेज की लेजिस्लेटिव एसेंबली की छपरौली सीट से चुने गए। 1938 में उन्होंने एग्रीकल्चरल प्रोड्यूस मार्केट बिल असेंबली में पेश किया। यह बिल 31 मार्च 1938 के हिन्दुस्तान टाइम्स में प्रकाशित हुआ था। पंजाब ने सबसे पहले किसान हित के इस बिल को 1940 में लागू किया और बाद में यह देश के अधिकांश राज्यों में इसे लागू कर दिया गया।

1952 में वह प्रदेश सरकार में राजस्व मंत्री बने। उन्होंने तब जमींदारी उन्मूलन और भूमि सुधार एक्ट लागू किया। जमींदारी उन्मूलन में बाधा पैदा करने पर उन्होंने एक साथ पूरे प्रदेश में पटवारियों के बस्ते छिनवा लिए थे।

इस कदम के बाद वह किसानों के चौंपियन बन गए और उनके भूमि सुधारों को दुनिया भर में सराहा गया। आर्थिक नीतियों और खासतौर पर कोऑपरेटिव खेती पर उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के मॉडल का खुलकर विरोध किया। उनका कहना था कि भारत में किसानों को जमीन पर मालिकाना हक देना जरूरी है। उनके प्रयासों से यह हुआ भी।

                                                          

1967 में इसी के चलते उन्हें कांग्रेस छोड़नी पड़ी। लेकिन उन्होंने जनता पार्टी का गठन कर कांग्रेस के खिलाफ एक मजबूत विपक्ष खड़ा कर दिया। इमरजेंसी के बाद जनता पार्टी सत्ता में आई। उन्होंने दुनिया में भारतीय अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए श्रम कानूनों में बदलाव की ठोस पहल की। केंद्रीय गृह मंत्री रहते हुए उन्होंने  इजरायल के साथ कूटनीतिक संबंध बेहतर बनाए और पाकिस्तान की परमाणविक शक्ति बनने की धमकियों पर उन्होंने 15 अगस्त 1979 को ऐतिहासिक भाषण दिया।

वह देश के एकमात्र ऐसे प्रधानमंत्री रहे हैं जिन्होंने एक दिन के लिए भी संसद फेस नहीं की। चौधरी साहब राजनीतिक अर्थशास्त्र के प्रकांड विद्धान थे और उन्प्होंने इंडियन इकॉनॉमिक पॉलिसी- द गांधियन ब्लूप्रिंट नामक पुस्तक लिखी। इसके साथ ही उन्होंने कोऑपरेटिव फार्मिंग- एक्स रेड और इकॉनॉमिक नाइटमेयर ऑफ इंडिया इट्स क्योर एंड कॉज नामक पुस्तकें लिखीं। चौधरी साहब के द्वारा लिखी गई पुस्तकें अमेरिकी विश्वविद्यालयों में भी पढ़ाई गईं।

जातिवाद के घोर विरोधी

चौधरी साहब जातिवाद को समाज के लिए जहर मानते थे। वह छुआछूत नहीं मानते थे। उनका रसोइया दलित था जिसने उनके यहां 20 साल तक खाना बनाया। वह समाज में महिलाओं की बराबरी के भी पैरोकार थे। अपनी बेटे-बेटियों को उन्होंने अर्न्तजातीय विवाह करने से नहीं रोका। वह परिवारवाद के सख्त खिलाफ थे। उनकी पूरी सोच गांव, गरीब और कृषि के ईद-गिर्द रहती थी।

व्यापारियों से भी वह कहा करते थे तुम्हारा चूल्हा भी तभी जलेगा जब किसान की जेब में पैसा आएगा। चौधरी साहब के यहां किसानों की सीधे एंट्री थी। पूरे अधिकार के साथ वे उनसे जाकर मिलते थे। किसानों में उनके बारे में प्रचलित है कि वह कभी किसी काम के लिए आए किसान को आश्वासन नहीं देते थे। जब तक किसान घर वापस पहुंचता था तो पता चलता था कि जिस समस्या के हल के लिए वह दिल्ली गया था वह तो हल हो गई।

वह जातियों के नही किसान बिरादरी के मसीहा थे। वेस्ट यूपी से शुरू हुआ उनकी सियासी ताकत का कारवां हरियाणा, बिहार, मध्यप्रदेश, राजस्थान, उड़ीसा तक फैला। चौधरी साहब राजनीति की पाठशाला थे। आजादी के बाद भी उन्होंने वेस्ट यूपी के अगुआ तत्वों की परख कर कर राजनीति में प्रवेश कराया। आज राजनीति के कई बड़े दिग्गजों ने उन्हीं से राजनीति की एबीसीडी सीखी थी।

जैसा चौधरी चरण सिंह के कहने पर पीसीएस की नौकरी छोड़ने वाले जयपाल सिंह नौरोजपुर ने बताया, सरलता, स्वाभिमान और शिष्टाचार की पाठशाला थे चौधर साहब। मैं जब आठ दस साल का ही था तो तभी चौधरी साहब के संपर्क में आया था। वह गांव-गांव में जाते थे। हर गांव में दस बीस लोगों को वह नाम से जानते थे। पब्लिक मीटिंगों में राजनीतिक अर्थशास्त्र और शिष्टाचार की वह बड़े सीधे सरल शब्दों में व्याख्या करते थे।

मेरठ के घमंडी नामक नाई के काम के वह कायल थे और हमेशा मशीन से बाल कटाते थे। एक बार घमंडी ने चौधरी साहब से कहा कि उसे लड़की की शादी करनी है और पैसे हैं नहीं। इस पर चौधरी साहब बोले घमंडी पैसे तो मेरे पास भी नहीं हैं, पर तू शादी कर देखा जाएगा। घमंडी ने किसी तरह बेटी की शादी की तो चौधरी साहब उसके दरवाजे पर कुर्सी डालकर बैठ गए। देखते ही देखते आसपास के क्षेत्र के लोग शादी में पहुंचने लगे और कन्यादान में ही शादी के खर्च इंतजाम हो गया।

मैँ पांच बार एमएलए रहा तब वह कहा करते थे कि तुम जनप्रतिनिधि हो कभी कोई ऐसा काम मत करना जिससे तुम्हारे परिवार या रिश्तेदारी के किसी व्यक्ति को आर्थिक लाभ हो। जनप्रतिनिधि की गरिमा को बनाए रखना बड़ा जरूरी है। वर्तमान में बागपत का छपरौली क्षेत्र पश्चिमी उत्तर प्रदेश उस समय मेरठ जिला आज के समय बागपत जिला चौधरी चरणसिंह सिंह जी की कर्म भूमि से पांच बार विधायक रहे नरेन्द्र सिंह एडवोकेट ने बताया कि जब तक वह विधायक रहे तो अपने क्षेत्र की जनता के लिए या किसी की व्यक्तिगत कोई भी समस्या के लिए प्रशासनिक अधिकारी, पुलिस आदि के कार्यालय में काम लिए आता तो वह उसके पीछे साईकिल पर बैठ कर ही सरकारी कार्यालयों में चले जाते थे।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल   कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।