
नई रोशनी की मिसाल कैसे बनी सीमा कुमारी Publish Date : 17/03/2025
नई रोशनी की मिसाल कैसे बनी सीमा कुमारी
प्रोफेसर आर. एस. सेंगर
रूढ़ियों को तोड़कर जागी शिक्षा की अनोखी अलख
झारखंड में एक छोटा सा रूढ़िवादी और काफी पिछड़ा गांव है दहू जहां कभी लड़कियों से घर पर रहने और पढ़ाई न करने की अपेक्षा की जाती थी। बात साल 2012 की है जब एक गैर लाभकारी संगठन (एनजीओ) इस गांव में आया, यह लड़कियों को सशक्त बनाने के उद्देश्य से एक फुटबॉल कार्यक्रम के लिए स्थानीय बच्चों की तलाश कर रहा था।
9 साल की गरीब व पिछड़े समाज की भोली भाली एक लड़की सीमा कुमारी एक दिन घास लेने जा रही थी। इस संस्था की ओर से फुटबॉल खेलने वाली लड़कियों पर उसकी नजर पड़ी और वह भी इस फाउंडेशन से जुड़ गई। अपने घरवालों से अनुमति लेकर वह प्रतिदिन फुटबॉल के मैदान जाने लगी। फुटबॉल के माध्यम से यह लड़की न केवल अपने गांव से बाहर निकली, बल्कि राष्ट्रीय टूर्नामेंट और फिर अंतरराष्ट्रीय कैंप तक जा पहुंची।
सीमा कुमारी ने खेल के साथ ही अपनी पढ़ाई भी जारी रखी और उसकी मेहनत और लगन का ही परिणाम था कि उसने झारखंड के ऐसे इलाके से निकलकर, जहां लड़कियों से कम उम्र में ही शादी करके चूल्हा चौका करने की अपेक्षा की जाती थी, हर्बल विश्वविद्यालय तक का सफर तय किया। ऐसा करने वाली वह अपने इलाके की पहली लड़की बन गई। जी हाँ, हम बात कर रहे हैं सीमा कुमारी की जिसने बेड़ियों को तोड़कर इतिहास बनाने तक सीमा की यात्रा की। सीमा कुमारी ने धैर्य साहस और हार न मानने की मिसाल पेश की है।
पेट पालने की जद्दोजहद में लगे
सीमा के गांव में महज 1000 लोग ही होंगे, जिनमें से ज्यादातर लोग अनपढ़ किसान है। सीमा के माता-पिता भी इन्हीं में से एक थे, जो एक स्थानीय धागा फैक्ट्री में काम करके अपना व परिवार का गुजारा करते थे। वह अपने भाइयों के साथ मिलकर परिवार के 19 सदस्यों के साथ एक ही छत के नीचे रहते थे। आर्थिक तंगी के चलते दो वक्त की रोटी नसीब हो जाए तो वही काफी था। अच्छी पढ़ाई लिखाई करना मानो ख्वाब देखने जैसा ही था। हालांकि फिर भी सीमा के माता-पिता ने उसका सरकारी योजना के तहत सरकारी स्कूल में दाखिला करवा दिया, जहां से वह अपनी पढ़ाई करती थी।
कम उम्र में फुटबॉल कोच
सीमा उसे क्षेत्र से आती है जहां लड़कियों के लिए शिक्षा वर्जित है और बाल विवाह अभी भी चलन में है। बावजूद इसके वह सरकारी स्कूल से शिक्षा ले रही थी और पढ़ाई के साथ-साथ वह अपने मवेशी चरती, पानी भरती, खेतों में अपने परिवार की मदद करती और आर्थिक तंगी को दूर करने के लिए चावल की बियर भी बनायाा करती थी। इसके अलावा भी वह कई अन्य छोटे-मोटे काम करके अपने माता-पिता की मदद करती थी।
अच्छी शिक्षा पाने के लिए सीमा ने झारखंड के एक अच्छे स्कूल में दाखिला तो ले लिया लेकिन उसकी फीस भरने के पैसे सीमा के पास नहीं थे। चूँकि सीमा बहुत बढ़िया फुटबॉल खेल लेती थी, इसलिए इस फेडरेशन ने उन्हें युवा लड़कियों का फुटबॉल कोच बना दिया। इस काम से मिले पैसे से वह अपने स्कूल की फीस भरती थी।
बाल विवाह का किया विरोध
चूकि गांव के रीति-रिवाज और गरीबों की बेटियों से सीमा भी आजाद नहीं थी, इसलिए उस पर भी कम उम्र में शादी करने का दबाव बनाया जाने लगा। हालांकि उसने बाल विवाह जैसी सामाजिक कुरीतियों का डटकर सामना किया और कम उम्र में शादी करने से मना कर दिया। उन्होंने अपने सपनों को पूरा करने के लिए शिक्षा के अधिकार से अपने समाज को भी रूबरू कराया। उनके स्कूल के प्रिंसिपल और अन्य शिक्षकों ने उन्हें हार्वर्ड जैसे वैश्विक संस्थानों में आवेदन करने के लिए प्रोत्साहित किया और हर संभव मदद की पेशकश की और उन्होंने ऐसा किया भी।
भारत से अमेरिका तक का सफर
शिक्षकों के सहयोग और अपनी काबिलियत के दम पर वर्ष 2018 में उन्हें वाशिंगटन विश्वविद्यालय में ग्रीष्मकालीन कार्यक्रम के दिए चुना गया और वर्ष 2019 में उन्होंने इंग्लैंड के कैंब्रिज विश्वविद्यालय में एक कार्यक्रम में भाग लिया। कैंब्रिज के बाद वह अमेरिका में एक वर्षीय एक्सचेंज प्रोग्राम के लिए चुने गए 40 छात्राओं में से एक थी। इसके बाद उन्हें हार्वर्ड में पढ़ाई के लिए छात्रवृत्ति मिली। सीमा कुमारी की भारत से शुरू की यात्रा अमेरिका की हार्वर्ड विश्वविद्यालय में जाकर रुकी। वह हार्वर्ड से इसी साल अर्थशास्त्र में स्नातक हो जाएगी जो कि उनके लिए एक बहुत बड़ी उपलब्धि थी।
युवाओं को क्या मिलती है सीख
- परेशानियां और बाधाओ को पीछे छोड़कर जो निरंतर आगे बढ़ता रहता है, वास्तव में सफलता उसी के कदम चूमती है।
- सपनों में हकीकत के रंग भरने के लिए अक्सर मेहनत की स्थाई की जरूरत पड़ती है।
- जीवन में कामयाब होने के लिए किसी भी स्थिति के लिए तैयार रहना होगा।
- खुद पर विश्वास करके बड़े से बड़ा लक्ष्य भी हासिल किया जा सकता है।
- हौसले बुलंद कर रास्तों पर चलते रहे तो एक दिन मंजिल मिल ही जाएगी।
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।