
भारत में उपलब्ध जल संसाधन का कुशल उपयोग Publish Date : 19/04/2025
भारत में उपलब्ध जल संसाधन का कुशल उपयोग
प्रोफेसर आर. एस. सेंगर
आमतौर पर जल संसाधनों को दो मुख्य स्रोतों में वर्गीकृत किया जाता है, पहला् (i) पृष्ठीय जल और दूसरा (ii) भौमजल। इनकी माप करने की इकाई विलियन घन मीटर (bcm) है। वर्षा से पानी विशाल मात्रा में प्राप्त होता है, जो अधिकतर बरबाद ही चला जाता है। इसके अलावा, उपलब्ध जल भी पूरी तरह से प्रयुक्त नहीं किया जाता है, क्योंकि उपयोगिता तो उसके भंडारण और प्रयोग के अपेक्षित स्थानों पर आपूर्ति पर निर्भर है।
इस संदर्भ में “प्रयोज्य जल संसाधन क्षमता” को उपलब्ध जल स्रोत से पृथक करना आवश्यक है। हम भलीभांति जानते हैं (और साथ में इकाई में पढे़ंगे) भारत के ऐसे भाग हैं जहां बाढ़ की पुनरावृत्तिक स्थिति होती है। वैसे ही, अन्य ऐसे भाग हैं, जहां जल एक स्थान पर एकत्र किया जाता है और तब उन स्थानों पर नहर के माध्यम से पहुंचाया जाता है जहां समय.समय पर गंभीर सूखा पड़ता रहता है।
इसलिए जब तक एक स्थान पर उपलब्ध अतिरिक्त जल एकत्र कर उसे ऐसे स्थान पर नहर के द्वारा नहीं ले जाया जाता है जहां यह दुर्लभ है, तब तक उपलब्ध जल संसाधनों का भरपूर प्रयोग नहीं हो पाएगा।
भारत में उपलब्ध/प्रयोज्य जल
प्रयोज्य जल संसाधन क्षमता तालिका-1 में भारत में उपलब्ध और प्रयोग योग्य जल संसाधनों का सार दिखाया गया है। पृष्ठीय जल की कुल उपलब्धता का अनुमान 1953 bcm लगाया गया है जिसमें से केवल 35 प्रतिशत का उपयोग ही किया जाता है। परन्तु भौमजल की कुल उपलब्धता (अनुमानतः 432 bcm) में से लगभग 92 प्रतिशत का (काफी अधिक) उपयोग किया जाता है। इस प्रकार यह परिदृश्य पृष्ठीय जल क्षमता की तुलना में भौमजल क्षमता का बहुत अधिक उपयोग किए जाने का ही सूचक है।
अब यदि हम जल संसाधनों के दोनों स्रोतों की बात करें तो वर्तमान उपयोग का प्रतिशत लगभग 46 प्रतिशत है। पृष्ठीय जल संभावना को एकत्र करने और नहर से (या परिवहन) ले जाने के लिए अपेक्षित आधारभूत संरचना के निर्माण की अपर्याप्त उपलब्धि के कारण भौमजल क्षमता की निकासी बहुत अधिक है। इसलिए स्पष्टतः उपलब्ध पृष्ठीय जल क्षमता को काम में लाने पर ध्यान केंद्रित करना बहुत आवश्यक है, जिसके लिए अपेक्षित भंडारण क्षमता निर्माण करना आवश्यक है।
प्रयोग जल की कुल उपलब्धता का अनुमान 1086 bcm लगाया गया है जो कि वर्ष 2050 तक 1180 bcm की अनुमानित कुल जल की अनुमानित आवश्यकता से कम है। इस स्थिति में जल संरक्षण और प्रबंधन उपायां का गंभीरतापूर्वक अनुसरण करना अति आवश्यक है। जबकि यह जल की उपलब्धता/उपयोग की संक्षिप्त विवरण है, इसके उपयोग पर विचार करने का दूसरा तरीका उसकी क्षेत्रीय मांग/आवश्यकता के आधार पर है।
तालिका-1: भारत में जल संसाधन की उपलब्धता
(उपलब्धता/उपयोग क्षमता, जल की मात्रा सभी आंकड़े bcm में हैं।)
उपलब्धता/प्रयोजन क्षमता के अनुसार जलस्रोत |
मात्रा/क्षमता |
उपलब्ध पृष्ठीय जल |
1953 |
प्रयोज्य पृष्ठीय जल |
690 (35.3) |
उपलब्ध भौमजल |
432 |
प्रयोज्य भौमजल |
396 (91.7) |
कुल उपलब्ध जल (पृष्ठीय + भौम) |
2385 |
कुल प्रयोग जल (पृष्ठीय + भौम) |
1086 (45.5) |
प्रयोग की अनुमानित वर्तमान मात्रा |
600 |
वर्ष 2050 में अनुमानित कुल जल आवश्यकता |
973/1180 (निम्न/उच्च मान) |
भारतीय भू.संहति पर वर्षा |
4000 |
नोट: कोष्ठकों के आंकड़े संबंधित योग का प्रतिशत हैं।
तालिका-2: प्रयोग के क्षेत्रानुसार अनुमानित जल मांग-2010 से 2050
सैक्टर |
वर्ष में जल की मांग (bcm में) |
||
वर्ष 2010 |
वर्ष 2025 |
वर्ष 2050 |
|
सिंचाई |
688 (84.6) |
910 (83.2) |
1072 (74.1) |
पेयजल |
56 (6.9) |
73 (6.7) |
102 (7.0) |
उद्योग |
12 (1.5) |
23 (2.1) |
63 (4.4) |
ऊर्जा |
5 (0.6) |
15 (1.4) |
130 (9.0) |
अन्य |
52 (6.4) |
72 (6.6) |
80 (5.5) |
कुल |
813 (100.0) |
1093 (100.3) |
1447 (100.0) |
स्रोत: ग्यारहवी पंचवर्षीय योजना
भारत में जल के लिए क्षेत्रानुसार मांग पर ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना (2007-12) में सिंचाई के लिए (वर्ष 2025 तक) लगभग 83 प्रतिशत की उच्चतम मांग रखी गई है। जबकि पेयजल जल और सिंचाई संसाधन 4 2 कृषि और आर्थिक विकास के लिए मांग मोटेतौर पर वैसी रहने की आशा व्यक्त की गई है। (2010 से 2050 की अवधि में कुल मांग का लगभग 7 प्रतिशत) “ऊर्जा सेक्टर’’ और ”औद्योगिक सेक्टर’’ को वर्ष 2050 तक उसकी वर्तमान और अनुमानित मांग की तुलना में) अधिक की आवश्यकता होगी।
स्पष्ट है कि जीवन स्तर में सुधारों और बढ़ती हुई जनसंख्या से इन दो सेक्टरों (अर्थात्) ऊर्जा और उद्योग) से जल की मांग अधिक होगी। चिंता के क्षेत्र इन सेक्टरों के समानांतर वह क्षेत्र हैं जो प्रदूषण के स्तर को बढ़ा रहे हैं और परिमाणतः जल संसाधनों की गुणवत्ता घटा रहे हैं। इसलिए ये भी ऐसे संवेदनशील क्षेत्र हैं जिन पर उच्च नीति और अनुसंधान की आवश्यकता है।
लेखकः प्रोफेसर आर. एस. सेंगर, निदेशक प्रशिक्षण, सेवायोजन एवं विभागाध्यक्ष प्लांट बायोटेक्नोलॉजी संभाग, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।