गेहूं उत्पादन और अभी भी उत्तरोत्तर वृद्धि करना जरूरी      Publish Date : 04/10/2025

       गेहूं उत्पादन और अभी भी उत्तरोत्तर वृद्धि करना जरूरी

                                                                                                                                                   प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 शालिनी गुप्ता

बात रबी उत्पादन की हो और इसमें गेहूं उत्पादन के बढ़ोतरी की चर्चा न हो, ऐसा तो हो ही नहीं सकता। गेहूं की रोटी तथा आलू की सब्जी तो अब मुल्क के आम आदमी की खाद्य सुरक्षा की नस-नस में समा गयी हैं। इसलिए इसकी उत्तरोत्तर वृद्धि करते रहना अब बहुत जरूरी है। गेहूं उत्पादन का यह वर्ष तो इसके उत्पादन के इतिहास में, सुनहरे अक्षरों में ही लिखा जाएगा।

इसके कुल उत्पादन का सिलसिला, जो महज 1.09 करोड़ टनों से शुरू हुआ था, वर्ष 2000-01 में 6.97 करोड़ टनों का तथा इस वर्ष (2007-08) में इसने अपने रिकार्ड स्तर 7.84 करोड़ टनों का हुआ है। वर्ष 2005-06 के 6.94 करोड़ टन तथा वर्ष 2006-07 के 7.58 करोड़ टनों के उत्पादन के परिपेक्ष में भी शर्मिदगी के साथ मुल्क की बढ़ती जरूरतों को पूरा करने के लिए 53 लाख टन गेहूं का आयात किया गया पर इस वर्ष के रिकार्ड उत्पादन के चलते अब आयात करने से तो मुक्ति मिली ही है।

यदि यही स्थिति (अच्छे मानसून, लाभकारी समर्थन मूल्य अधिकाधिक लगभग 15 हजार गेहूं खरीदी केन्द्रों की) बनी रही तो, आने वाले वर्षों में इसकी कुछ मात्रा का निर्यात भी हो सकता है। इस आलेख में मुल्क में इस फसल के कुल उत्पादन, लाभकारी समर्थन मूल्य को बनाए रखने के औचित्य देश में आने वाले समय में गेहूं की कुल जरूरत, गेहूं उत्पादन को और बढ़ाये जाने के उपायों के साथ ही, इसके उत्पादन के बढ़ते कदमों की चर्चा की गई है, जिससे गेहूं उत्पादक किसानों को फायदा मिले और इसका भी उत्पादन उत्तरोत्तर बढ़ता रहे।

                                                               

कुल उत्पादन एवं अधिग्रहण की मात्रा- मुल्क में विगत 8 वर्षों (2001-2008) बीच गेहूं का कुल उत्पादन क्रमशः 6.97, 7.28,6.58, 7.22, 6.86, 6.94, 7.58 तथा 7.84 करोड़ टनों का प्राप्त किया गया है। बढ़त के हिसाब से तो इसे वर्ष 2002 03 के न्यूनतम 6.58 करोड़ टनों के बाद, क्रमशः इसे 6.94, 6.97, 7.228. 7.28, में 7.58 तथा वर्ष 2007-08 रिकार्ड 7.84 करोड़ टनों के क्रम में किया जा सकता है। 2006-07 के 7.58 करोड़ टनोंकी तुलना में इस वर्ष 2007 से 08 में, इसे 3.43 प्रतिशत बेहतर (7.84 करोड़ टनों) का हासिल हुआ है।

देश की वार्षिक गेहूं की जरूरत (यानी 140 लाख टनों) को तो केवल दो राज्यों (पंजाब तथा हरियाणा) से अधिग्रहित (प्रोक्योरर्ड) गेहूं ही पूरी हो गई है। इस वर्ष बेहतर गेहूं उत्पादन के चलते, न केवल घरेलू बाजारों के मूल्यों में स्थिरता आई है, बल्कि अंतरराष्ट्रीय मूल्य भी (लगभग 40 प्रतिशत तक) कम हुए हैं। सरकार द्वारा, जबकि गेहूं खरीदी का कुल लक्ष्य 150 लाख टनों का ही था, पर देश में इस वर्ष बेहतर उत्पादन, लाभकारी समर्थन मूल्य तथा अधिक (लगभग 15 हजार) गेहूं खरीदी केन्द्रों की स्थापना के चलते, कुल मिलाकर 221.6 लाख टन गेहूं खरीदा जा सका है और बाजार में निजी लोगों की खरीदारी केलिए अभी भी गेहूं 110.3 लाखटन गेहूं की खरीदी ही हो सकी थी।

गेहूं के भण्डार खाली रहे, जो इस साल लबालब भर गयें हैं। वैसे तो, इस वर्ष के देश में गेहूं का उत्पादन अधिक होने से बाजार में इसके मूल्यों में कुछ गिरावट ही आनी चाहिये, पर वैश्वीकरण की वजह से डब्ल्यू.टी.ओ. संधि के अनुरूप देश के खाद्यान भण्डारों को अन्तरराष्ट्रीय बाजार के लिए खोले जाने की वजह से इस जिन्स का दाम घरेलू उत्पादन तथा खपत पर नहीं, बल्कि अन्तरराष्ट्रीय बाजार के रूख पर अब तय होने लगे हैं। इसलिए गेहूं की घरेलू कीमतें भी बाजार में कम नहीं हुई। वर्ष 2005-06 के दौरान, गेहूं का वैश्विक उत्पादन लगभग 61.5 करोड़ टनों का था, जबकि बिश्व बाजार में इसकी कुल मांग 62.2 करोड़ टनों की थी, इसलिए इस वर्ष गेहूं की कीमतों में 11 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गई थी। सितंबर 2007 में विश्व बाजार में गेहूं की कीमतें 1550 से 1650 रूपये प्रति क्विंटल तक चढ़ गई थी। बढ़ते उत्पादन के परिपेक्ष में, घरेलू एवं अन्तरराष्ट्रीय बाजार में भी, अभी इस वर्ष गेहूं की कीमतें 1100 या 1200 रूपये प्रति क्विंटल पर स्थिर रहने के अनुमान लगाए जा रहे हैं।

इसलिए इस वर्ष 2009 में भी, पिछले वर्ष की तरह लाभकारी समर्थन मूल्य का फायदा लें तथा गेहूं का अधिक से अधिक उत्पादन करें किसान-भाई।

वैसे देश को 2020 तक चाहिये 109 मिलियन टन गेहूं की मात्रा- एक अनुमान के मुताबिक देश की बढ़ती जनसंख्या की बढ़ती जरूरतों को पूरा करने के मद्देनजर सन् 2020 तक देश को कुल 10 करोड़ 90 लाख टन गेहूं की जरूरत होगी, जबकि इस वर्ष 2007-08 का मौजूदा उत्पादन 7 करोड़ 84 लाख टनों का है। इस तरह आने वाले 12 वर्षों में मौजूदा उत्पादन की तुलना में इसे लगभग 3 करोड़ 6 लाख टनों तक और भी बढ़ना होगा और यह वृद्धि भी मूलतः तो अब इसकी प्रति हेक्टेयर उत्पादकता की बढ़ोतरी करके ही लानी होगी। देश में इस समय इस फसल की औसत उपज लगभग 2800 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की है, जिसे वर्ष 2020 तक यदि 3800 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर तक नहीं बढ़ाया गया तो, देश की सिर्फ गेहूं की लगभग 3 से 4 करोड़ टन मात्रा का आयात करने के लिए लगभग 40,000 करोड़ रूपये तक खर्च कटुने पड़ सकते हैं।

अगले 12 वर्षों में देश को 10 से 11 करोड़ टन गेहूं की दरकार भी बन सकती है। इसलिए मुल्क में अब ऐसी किस्मों को विकसित करने पर जोर है जिनकी क्षमता 7 टन प्रति हेक्टेयर उपज देने की हो फ्रांस, चीन यू.एस.ए. व कनाडा जैसे गेहूं उत्पादक देशों में अब ऐसी व्यवसायिक प्रजातियां लगाई जा रही हैं, जिनकी उपज 5 से 7.70 प्रति हेक्टेयर की है। वर्ष 2005 में अपने देश में पंजाब, हरियाणा तथा उत्तर प्रदेश जैसे प्रमुख उत्पादक राज्यों में क्रमशः 43.4, 40.2 तथा 26.7 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की तथा मध्य प्रदेश एवं बिहार राज्यों में क्रमशः 16.1 तथा 18.9 क्विटल/हेक्टेयर की औसत उपज दर्ज की गई है।

वर्ष 2005-06 तथा 2006-07 के दो वर्षों के औसत के आधार पर किसानों के खेतों पर प्रथम पंक्ति के उपज परीक्षणों में उन्नत कृषि विधियों को अपना कर क्षेत्रीय औसत के ऊपर उन्नत कृषि-विधियों से गेहूं उत्पादन के पश्चिमोत्तर मैदानी क्षेत्र में इसकी (39.1/46.9) किंवटल/हेक्टेयर यानी 20 प्रतिशत की बेहतर उपज, देश के पूर्वोत्तर मैदानी क्षेत्र में (24.8/31.3 क्विटल/हेक्टेयर) यानी 25.9 प्रतिशत की बेहतर उपज तथा मध्यवर्ती क्षेत्र में 23.1/31.6 किंवटल./हेक्टेयर यानी 40.8 प्रतिशत की बेहतर उपज प्राप्त की गई है।

इसलिए इन क्षेत्रों में अब गेहूं के प्रति हेक्टेयर के उत्पादन की बढ़ोतरी में उन्नत कृषि विधियों को बड़े स्तर पर अपनाया जाना चाहिये, जिससे अब और भी बेहतर प्रति हेक्टेयर उपज ली जा सके। देश में अनुमानतः 270 लाखहेक्टेयरों में बोई जाने वाली इस फसल में उन्नत कृषि-विधियों 2.5 क्विटल/हेक्टेयर की प्रति बढ़ोतरी भी करें तो इससे 66.3 टन लाख टनों को और भी बेहतर उपज मिल सकती है। वैसे किसानों के खेतों पर किए गए उपज परीक्षणों में पंजाब तथा हरियाणा में उन्नत कृषि-विधियों से 7.9 तथा उत्तर प्रदेश में 6.5 किंवटल/हेक्टेयर तक की भी बेहतर उपज प्राप्त की गई है।

अब कैसे ले बेहतर उपज देर से बुवाई की दशा में ?

                                                           

पूर्वीभारत (पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिमी बंगाल आदि) में धान की कटाई के बाद गेहूं की बुवाई में अक्सर देर (20 दिसंमबर से 15 जनवरी तक) हो जाती है। यदि इन दशाओं में गेहूं की बुवाई के लिए जीरो-टिल सीड़ ड्रिल का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल हो तो देर से बुवाई की 20 से 35 दिनों तक की बचत करके इन बचे हुए दिनों का फायदा लिया जा सकता है। इस प्रकार इससे पूर्वी उत्तरी मैदानी क्षेत्र औसतन 35 से 40 क्विटल प्रति/हेक्टेयर की है। प्रयोगों देर से बुवाई से प्रतिदिन 40 में से 50 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर प्रतिदिन गेहूं की उपज में हास तो देखा ही गया है।

वैसे, इन क्षेत्रों में जोरों टिलेज पद्धति द्वारा गेहूं की बुवाई की विश्वसनियता तो अब लगभग स्थापित हो चुकी है। इससे डीजल तथा मानव श्रम की 30 प्रतिशत (या लगभग 1500 से 2000 रूपये प्रति हेक्टेयर तक) की तथा सिंचाई के पानी की 20 से 25 प्रतिशत भाग की बचत की जा सकती है। भाग्य से अब जीरो टिल विधि से बुवाई में किसानों की अभिरूचि कुछ बढ़ी है पर इस विधि के अन्र्तगत बुवाई का क्षेत्रफल वैसे अधिकतर तो पश्चिमोत्तर मैदानी क्षेत्र में ही अधिक बढ़ा है। पूर्वी मैदानी क्षेत्र में, जहां इसे बढ़ना चाहिये था जीरो-टिल मशीनों के अभाव में उतना तो नहीं बढ़ पाया है। इसलिए इस क्षेत्र में सरकारी तंत्र के लोग, कृषि एजेन्सियों कृषि वैज्ञानिक तथा किसान हाथ से हाथ मिलाकर कार्य करें, बुवाई के लिए जीरो-टिल मशीनों का प्रचार प्रसार बढ़े तो पूर्वोत्तर मैदानी क्षेत्र वाले राज्य भी गेहूं उत्पादन में अहम योगदान दे सकते हैं और इस फसल के उत्पादन में और बेहतर भी हो सकती है।

मंडराता खतरा यू.जी. 99 जनित रोग का अब अपने कुल गेहूं उत्पादन पर- गेहूं के उत्पादन में यू.जी. 99 द्वारा जनित गेरूई रोग से संयुक्त राज अमेरीका में लगभग 40 प्रतिशत तक की क्षति देखी गई है। अब यह रोग लगभग एक वैश्विक समस्या बनता जा रहा है। कारण है कि अब यह अफ्रीका से होते हुए इरान, अफगानिस्तान तथा पड़ोसी देश पाकिस्तान तक फैल गया है। यू.जी. 99 द्वारा जनित गेरूई (पक्सीलियां, गैमिनिस, ट्रीटीसाई) फफूंदी अभी फिलहाल तो अपने देश में तो नहीं पाई गई है, पर देश की सबसे ज्यादा रकबे में उगाई जाने वाली प्रचलित प्रजाति पी.बी.डब्ल्यू 343 में इस रोग से लड़ने की क्षमता नहीं है।

अतीत में सत्तर के दशक में एक बार इसी तरह गेरूई रोग से पाकिस्तान वाले पंजाब प्रान्त में गेहूं का बड़ा नुकसान हुआ, पर इससे सटे अपने देश के पंजाब प्रान्त में गेहूं की किस्मों की बेहतर प्रतिरोधिता एवं प्रतिरोधी जीन के विविधिकरण बीज उत्पादन के चलते, गेहूं की फसल बच गई थी। अब भी दशा तो लगभग वैसी ही बन रही है, पर भाग्य से अब इस रोग से लड़ने वाली प्रजाति राज 4120 की पहचान कर ली गई है। देश की कई प्रजातियां यू.जी.99 तथा इसके वैरियन्टों की प्रतिरोधी हैं। वर्ष 2007-08 के दौरान एहतियात के तौर पर ऐसी ग्यारह प्रजातियों का 4000 क्विटल से अधिक प्रजनक बीज पैदा किया गया है, जिनमें यू.जी.99 के प्रति प्रतिरोधिता का गुण है।

इन प्रजातियों में जी.डब्ल्यू. 273, डी.डब्ल्यू. 322, एच.आई. 8498, यू.पी.2338, डी.एल. 153-3 और एच.डब्ल्यू. 1085 प्रमुख हैं। भविष्य में इन प्रजातियों के माध्यम से यू.जी. 99 जनित गेरूई रोग की चुनौतियों का सामना करने मेंमदद मिल सकती है।

केन्द्रीय खाद्य पूल में कितना है भण्डारः गेहूं एवं चावल का ?

केन्द्रीय खाद्य-पूल में (अप्रैल 2007 से अप्रैल 2008 के बीच) गेहूं का कुलस्टाक, जहां अप्रैल 2007 में 11.6 मिलियन टनों (मि.ट.) का था, जून 2007 में 12.8 मि.ट. का, अगस्त 2007 में 10.9 मि.ट. का, दिसंबर 2007 में 12.8 मि.ट. का, मार्च 2008 में सबसे कम 5.5 मि.ट. का तथा अप्रैल 2008 में बेहतर - गेहूं खरीदी के चलते, पुनः 1 बढ़कर 17.5 मि.ट. का हुआ। जैसा की उपर कहा गया है जून 2008 में कुल मिलाकर न रिकार्ड स्तर के 22.16 मि.ट. की गेहूं का अधिग्रहण हुआ है।

इसी तरह केन्द्रीय पूल में चावल के स्टाक की स्थिति, जो अप्रैल 2007 में 13.5 मि.ट. की थी, जून 2007 में 10.6 मि.ट. की अगस्त 2007 में 6.7 मि.ट. दिसंबर 2007 में 11.2 मि.ट. मार्च 2008 में 13.5 मि.ट. तथा अप्रैल 2008 में 12.6 मि.ट. की दर्ज की गई है। तुलनात्मक रूप से, वैसे तो केन्द्रीय पूल में गेहूं के स्टाक की मात्रा, चावल की तुलना में उत्तरोत्तर मार्च 2008 तक कम हुई है पर अप्रैल 2008 में काफी 17.5 मि.ट.तक बढ़ी है, जो इस माह के स्टाक की तुलना में 4.9 मि.ट. बेहतर ही थी गेहूं के बाजार में अब कई बहुराष्टर्षीय कम्पनियों ने बड़े स्तर पर प्रवेश किया है और गेहूं को आटा, मैदा, सूजी, रवां, बिस्कुट, डबलरोटी, पावरोटी आदि सरीखे से उत्पादों बदलकर बड़े स्तर पर बेचने भी बाजार में गेहूं की मांग बढ़ी है और इस जिन्स के बेहतर उत्पादन के बाद भी इसके बाजार भाव मूल्य स्थिर है, गिरे नहीं हैं।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।