शिक्षक दिवस की महत्वता      Publish Date : 07/09/2025

                               शिक्षक दिवस की महत्वता

                                                                                                                                                                                       प्रोफेसर आर. एस. सेंगर

‘जब हम सोचते हैं कि हम जानते हैं, तब सीखने का समय होता है’’

                                                                                                                                            -राधाकृष्णन

जिस समय भारत गुलामी की जंजीरों में जकड़ा हुआ था और आम लोगों के लिए बेसिक लेवल की शिक्षा पाना भी किसी बड़े संघर्ष से कम नहीं था। उस दौर में डॉ0 सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने न सिर्फ शिक्षा हासिल की, बल्कि 8 से भी अधिक डिग्रियां प्राप्त करके इतिहास ही रच दिया था। वह एक ऐसे विचारक, शिक्षाविद और राजनेता थे, जिन्होंने भारत की शिक्षा और दर्शन को अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाई।

भारत में 5 सितम्बर को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह दिन डॉ0 सर्वपल्ली राधाकृष्णन की जयंती का भी है, जो एक महान दार्शनिक, विद्वान, शिक्षक और स्वतंत्र भारत के प्रथम उपराष्ट्रपति एवं द्वितीय राष्ट्रपति के पदों पर भी रहे थे। उन्होंने कहा था, “यदि आप मुझे सम्मानित करना चाहते हैं तो इसे देश के समस्त शिक्षकों को समर्पित करो।” इसी भावना से यह दिवस शिक्षकों को समर्पित किया गया है।

डॉ0 सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने दर्शन, शिक्षा और राजनीति समेत विभिन्न क्षेत्रों में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। डॉ0 राधाकृष्णन भारत के पहले उपराष्ट्रपति और दूसरे राष्ट्रपति भी बने। उन्हें दर्शनशास्त्र के क्षेत्र में उनके काम के लिए जाना जाता है। उन्होंने हिंदू धर्म की गहराई को वैश्विक मंच पर प्रस्तुत किया। वह न केवल भारतीय, बल्कि पाश्चात्य दर्शन में सहज रूप से संवाद कर सकते थे। देश के सर्वाेच्च नागरिक सम्मान से नवाजे गए वर्ष 1954 में डॉ0 सर्वपल्ली राधाकृष्णन को भारत रत्न से सम्मानित किया गया था।

डॉ0 राधाकृष्णन की उच्च क्वालिफिकेशन के साथ कई शैक्षणिक उपाधियां भी प्राप्त की थी। इनमें एमए (MA) से लेकर डीलिट (मानद) (D.Litt) (Honorary) एलएलडी (LL.D), डीसीएल (D.C.L.), लिटडी (Litt.D.), डीएल (D.L.) एफआरएसएल PO(F.R.S.L.), एफबीए (F.B.A.) जैसी प्रतिष्ठित डिग्रियां शामिल हैं। उन्हें ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के ऑल सोल्स कॉलेज का मानद फेलो (Honorary Fellow) भी बनाया किसी भी राष्ट्र की प्रगति का आधार उसकी शिक्षा व्यवस्था और उसके शिक्षक होते हैं। डॉक्टर राधाकृष्णन अनेक विचारधाराओं के बीच समन्वय की बात करते हैं।

भारत में चिंतन के धरातल पर अनेक विचारधाराएँ खड़ी हुई हैं। उनके बीच तात्विक समानताएँ भी हैं। भारतीय विचारकों ने परंपरा से आई हुई बहुत सी चीजें जो युगानुरूप नहीं हैं उनमें संशोधन किया है। पूर्व में की गई व्याख्याओं को अपने समक्ष रखकर नई स्थापनाएँ दी हैं। परंपरा के प्रति निष्ठा और भक्ति की चेतना को उन्होंने स्थापित किया, भारतीय दर्शन’ में उन्होंने लिखा है- ‘‘जो दो धाराएँ भारतीय विचारकों के समस्त प्रयत्नों में किसी न किसी रूप में समानांतर रूप में पाई जाती हैं।

वे हैं प्रचलित परंपरा के प्रति निष्ठा तथा सत्य के प्रति भक्ति। प्रत्येक विचारक इस विषय को अनुभव करता है कि उसके पूर्वजों के सिद्धांत ऐसी आधारशिलाएँ हैं, जिनके ऊपर आध्यात्मिक भवन खड़ा है और यदि उनके ऊपर कलंक लगा तो उसकी अपनी संस्कृति की निंदा होगी। एक ऐसी उन्नतिशील जाति जिसकी प्राचीन परंपरा इतनी समृद्ध हो, उसकी उपेक्षा नहीं कर सकती, यद्यपि इसमें कुछ तत्व हो सकते हैं जो ज्ञानवर्धक न हों। ‘‘नारी को शिक्षा दिये जाने पर भी हमेशा सार्थक प्रयास करना उनके जीवन का अभिन्न अंग रहा।

शिक्षक केवल ज्ञान ही नहीं देते, बल्कि विद्यार्थियों के भीतर संस्कार, अनुशासन और समाज के प्रति जिम्मेदारी भी जगाते हैं। वे भविष्य की नींव रखते हैं। आज के परिप्रेक्ष्य में जब तकनीक और इंटरनेट ज्ञान का बड़ा स्रोत बन चुके हैं, तब भी शिक्षक का महत्व कम नहीं हुआ। डिजिटल साधन जानकारी दे सकते हैं, लेकिन जीवन जीने का मूल्य, सही और गलत की समझ तथा चरित्र निर्माण केवल शिक्षक ही कर सकते हैं। शिक्षा का उद्देश्य केवल रोजगार पाना नहीं, बल्कि अच्छे नागरिक बनाना भी है और यह कार्य शिक्षक ही कर सकते हैं।

आज शिक्षा क्षेत्र में कई चुनौतियाँ हैं- बढ़ती व्यावसायिकता, संसाधनों की कमी, शिक्षक-छात्र अनुपात की समस्या और शिक्षकों के सामाजिक-आर्थिक सम्मान का अभाव।

इन चुनौतियों को दूर किए बिना गुणवत्तापूर्ण शिक्षा संभव नहीं है। शिक्षक दिवस केवल औपचारिकता नहीं, बल्कि समाज और सरकार दोनों के लिए एक अवसर है कि वे शिक्षकों की भूमिका को पहचानें और उन्हें उचित सम्मान दें। यदि हम अपने शिक्षकों को सम्मान देंगे और उन्हें बेहतर सुविधाएँ देंगे, तो न केवल शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ेगी, बल्कि राष्ट्र का भविष्य भी उज्ज्वल होगा।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।