
मानव कल्याण के लिए प्रकृति Publish Date : 31/08/2025
मानव कल्याण के लिए प्रकृति
प्रोफेसर आर. एस. सेंगर
इतिहास हमें बताता है कि परिवर्तन मानव जीवन का एक हिस्सा है। जैसे-जैसे मनुष्य बड़ा होता है, वैसे-वैसे पूर्व-अप्रत्याशित कारणों से उसकी समझ और व्यवहार में भी परिवर्तन होता रहता है। भौतिक विज्ञान में विकास के साथ-साथ प्रकृति के रहस्यों से धीरे-धीरे पर्दा उठाया जा रहा है, जिसके कारण प्रकृति की शक्तियों पर मनुष्य का आधिपत्य बढ़ रहा है। प्रकृति के रहस्यों को उजागर करने में पिछले सौ वर्षों में अविश्वसनीय वृद्धि हुई है। इस प्रगति के कारण ही हम आज जिस समय में रह रहे हैं, उसे परमाणु युग कहा जाता है।
प्रकृति की इन शक्तिशाली शक्तियों पर मनुष्य के नियंत्रण के कारण नित नई समस्याएँ भी उत्पन्न हो रही हैं, क्योंकि ऊर्जा अच्छी या बुरी, उपयोगी या विनाशकारी हो सकती है, यह इस बात पर निर्भर करता है कि कोई इसका किस तरह से उपयोग करता है। इसके कारण धरती स्वर्ग बन सकती है तो साथ ही इसके नष्ट होने का खतरा भी बना रहता है।
इस प्रकार, यह अभिशाप या वरदान दोनों ही हो सकती है। इसका उपयोग खुशी, बीमारी से मुक्ति और बहुत सी बेहतर सुविधाएँ प्रदान करने के लिए किया जा सकता है, जो आज के लोगों की अपेक्षाओं से परे हैं। लेकिन, यह विनाश का क्रूर साधन भी बन सकती है।
मनुष्य ने इन शक्तियों का उपयोग करने के लिए नए-नए तरीके भी ईजाद किए हैं। इसलिए उसका मानवीय या शैतानी स्वभाव पूरी तरह से उसी पर निर्भर करता है। यह संसार स्वर्ग बनेगा या नर्क, यह इस बात पर निर्भर करता है कि मनुष्य अंततः दैवीय या राक्षसी गुणों से युक्त होता है या नहीं।
प्रकृति के बचे हुए भाग तथा अपने ही भाइयों के साथ जिस प्रकार मानव व्यवहार कर रहा है, उसे देखते हुए हम किस परिणाम की आशा कर सकते हैं?
मनुष्य जिस तरह से पहाड़ों को समतल कर रहा है, जंगलों को काट रहा है, धरती माता के संसाधनों को नष्ट करने के लिए किसी भी हद तक जा रहा है, जिस प्रकार से मानव प्राकृतिक जल स्रोतों का दुरुपयोग कर रहा है और उन्हें अपनी मर्जी से बहा रहा है, यह सब इस बात की ओर इशारा करता है कि प्रकृति के प्रति उसका सम्मान कितना कम हो चुका है।
अत्यधिक आत्म-प्रशंसा और आत्म-केंद्रित अहंकार से लदा हुआ मानव आज बड़ी-बड़ी परियोजनाएं तो शुरू कर रहा है, जैसे कि वह सर्वज्ञ और सर्वशक्तिमान है या जैसे कि वह दूसरा भगवान बन गया है, जो प्रकृति के जन्म और प्रवाह को नियंत्रित करने में सक्षम है। उसकी हठधर्मिता उसे अपनी विशाल परियोजनाओं के दुष्प्रभावों पर ध्यान देने की अनुमति नहीं देती है।
जब तक प्रकृति प्रतिक्रिया नहीं करती, तब तक उसके साथ खेला जा सकता है। लेकिन, जब वह पलटवार करेगी - जो कि उसे एक न एक दिन जरूर करना ही है - तो मानव जाति को कौन बचा पाएगा? लेकिन मनुष्य जल्दबाजी में प्रकृति के रास्ते को बदलना चाहता है, बिना इसके परिणामों की परवाह किए।
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।