पर्यावरणीय प्रौद्योगिकी से बनाना होगा जीवन सुगम      Publish Date : 30/08/2025

         पर्यावरणीय प्रौद्योगिकी से बनाना होगा जीवन सुगम

                                                                                                                                       प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 शालिनी गुप्ता

जलवायु परिवर्तन समय विश्व के समक्ष एक जटिल चुनौती है। वर्तमान समय में महत्वपूर्ण वैज्ञानिक और तकनीकी आयाम सृजित हुए हैं। विज्ञान और प्रौद्योगिकी आधारित नवाचार इन बहुमुखी चुनौतियों का सामना करने का अवसर प्रदान करता है। विभिन्न देशों द्वारा विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में सहयोग जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को सीमित करने की दिशा में एक अहम भूमिका निभा सकता है। वर्ष 2030 तक संयुक्त राष्ट्र सतत् विकास लक्ष्यों (Sustainable Development Goals) को प्राप्त करने हेतु विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी नवाचारों का अत्यधिक महत्व है।

भारत जैसे विविधता वाले देश में यह अपेक्षा की जाती है कि विज्ञान और प्रौद्योगिकी से लोग सशक्त होंगे और उनकी जीवनशैली आसान बनेगी तथा अंतर्राष्ट्रीय दायित्वों को पूरा करने की दिशा में भी यह महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।

विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी तथा जलवायु परिवर्तन

विज्ञान और प्रौद्योगिकी के माध्यम से मानव जीवन से संबंधित बहुत से नवाचार हुए हैं जो मानव जीवन को सरल बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इन्हीं नवाचारों से प्राप्त वस्तुएँ मनुष्य के जीवन को आसान बनाने के साथ पर्यावरण को हानि भी पहुँचाती हैं। उदाहरण के लिए फ्रिज, एसी, विमान यात्रा इत्यादि का प्रयोग एक तरफ मनुष्य के जीवन को बेहतर बनाते हैं और दूसरी ओर वातावरण में तापमान की वृद्धि के अहम कारक भी बनते हैं। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी में नवाचार के माध्यम से पर्यावरण को क्षति पहुँचाने वाली वस्तुओं के विकल्पों की तलाश करना संभव है। विज्ञान के उन्नयन से उत्पन्न जलवायु परिवर्तन एवं पर्यावरण प्रदूषण जैसी समस्याओं का निवारण विज्ञान के माध्यम से ही संभव है।

वैश्विक स्तर पर भारत द्वारा उठाए गए कदम

कुछ वर्ष पहले भारत ने वैश्विक नवाचार और तकनीकी गठबंधन (Global Innovation Technology Alliance-GITA) लॉन्च किया जो फ्रंटलाइन तकनीकी-आर्थिक गठजोड़ के लिए एक सक्षम मंच प्रदान करता है। इसके माध्यम से भारत के उद्यम कनाडा, फिनलैंड, इटली, स्वीडन, स्पेन और यूके सहित अन्य देशों के अपने समकक्षों के साथ गठजोड़ कर रहे हैं तथा विश्व स्तर पर मौजूद चुनीतियों से निपटने की दिशा में प्रयासरत हैं। भारत के नेतृत्व वाले और सौर उर्जा संपन्न 79 हस्ताक्षरकर्ता देशों तथा लगभग 116 सहभागी देशों वाला अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (International Solar Alliance - ISA) आधुनिक समय में वैज्ञानिक सहयोग का एक महत्वपूर्ण उदाहरण है। ISA का उद्देश्य सीर संसाधन संपन्न देशों के बीच सहयोग के लिए एक समर्पित मंच प्रदान करना है। इस तरह का मंच सदस्य देशों की ऊर्जा जरूरतों को सुरक्षित, सस्ती, न्यायसंगत और टिकाऊ तरीके से पूरा कर सौर ऊर्जा के उपयोग के सामान्य लक्ष्यों को प्राप्त करने की दिशा में सकारात्मक योगदान दे सकता है।

'आपदा प्रतिरोधी बुनियादी ढाँचे के लिए संगठन (CDRI)' 39 देशों के परामर्श से भारत द्वारा संचालित अंतर्राष्ट्रीय साझेदारी का एक और उदाहरण है जो जलवायु परिवर्तन के खतरों का सामना करने के लिये आवश्यक जलवायु और आपदा प्रतिरोधी बुनियादी ढाँचे के निर्माण हेतु विकसित और विकासशील देशों को सहयोग प्रदान करेगा। गठबंधन का उद्देश्य सदस्य देशोंके नीतिगत ढाँचे, भविष्य के बुनियादी ढाँचे के निवेश और क्षेत्रों में जलवायु से संबंधित घटनाओं और प्राकृतिक आपदाओं से होने वाले आर्थिक नुकसान को कम करने संबंधी योजनाओं पर सकारात्मक प्रभाव डालना है।

इस गठबंधन के माध्यम से किफायती आवास, स्कूल, स्वास्थ्य सुविधाओं और सार्वजनिक उपयोग की वस्तुओं को प्राकृतिक या मानव निर्मित खतरों से बचाने के लिए आवश्यक मज़बूत मानकों के अनुरूप बनाना इत्यादि बातों को सुनिश्चित करके भूकंप, सुनामी, बाढ़ और तूफान के प्रभावों को कम किया जा सकता है।

किसी भी राष्ट्र के पास बुनियादी ढाँचा और मानव संसाधन की वह क्षमता नहीं हैं, जिससे पृथ्वी और मानव जाति के समक्ष मौजूद विशाल चुनौतियों से निपटा जा सके। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के माध्यम से अंतर्राष्ट्रीय जुड़ाव के लिए प्रभावी उपकरणों को डिज़ाइन करने एवं उन्हें विकसित करने हेतु हित-धारकों के साथ-साथ वैज्ञानिक और तकनीकी समुदाय की सक्रिय भागीदारी अत्यंत आवश्यक है।

प्रौद्योगिकी के माध्यम से पर्यावरण अनुकूल वस्तुजों की खोज कर एवं उन तक आसान पहुँच प्रदान कर पर्यावरणीय क्षति को कम किया जा सकता है। टेक्नोलॉजी हर किसी के जीवन का हिस्सा बन गई है। पर्यावरण को अपूरणीय क्षति हुई है। प्रौद्योगिकी का सही उपयोग पर्यावरण को बचा सकता है।

पर्यावरण के लिए जीवनशैली (LIFE)

LIFE का विचार भारत द्वारा वर्ष 2021 में ग्लासगो में 26वें संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन (COP26) के दौरान पेश किया गया। यह विचार पर्यावरण के प्रति जागरूक जीवनशैली को बढ़ावा देता है जो 'विवेकहीन और व्यर्थ खपत' के बजाय 'सावधानी के साथ और सुविचारित उपयोगपर केंद्रित है। इसके अलावा इसमें स्वास्थ्य, परिवहन, खपत और उत्पादन, सुरक्षा, पर्यावरण एवं आध्यात्मिकता पर ध्यान केंद्रित करने वाले कई महत्वपूर्ण विषयों को शामिल किया जाएगा।

मिशन की योजना व्यक्तियों का एक वैश्विक नेटवर्क बनाने और उसका पोषण करने की है, जिसका नाम 'प्रो-प्लैनेट पीपल' (P3) है। P3 की पर्यावरण के अनुकूल जीवनशैली को अपनाने और बढ़ावा देने के लिए एक साझा प्रतिबद्धता होगी। P3 समुदाय के माध्यम से यह मिशन एक पारिस्थितिकी तंत्र बनाने का प्रयास है जो पर्यावरण के अनुकूल व्यवहारों को आत्मकेंद्रित होने के लिए सुदृढ़ और सक्षम करेगा।

पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में भारत की उपलब्धियाँ

वनावरण में वृद्धिः भारत का वन-क्षेत्र का विस्तार हो रहा है और इसलिए शेरों, बाघों, तेंदुओं, हाथियों एवं गैंडों की आबादी बढ़ रहीहै। वर्तमान आकलन के अनुसार, कुल वन और वृक्ष आवरण 8,27,357 वर्ग कि.मी. है, जो देश के भौगोलिक क्षेत्र का 25.17 प्रतिशत है। बनावरण का क्षेत्रफल लगभग 7,15,343 वर्ग कि.मी. (21.76 प्रतिशत) है जबकि वृक्ष आवरण का क्षेत्रफल 1,12,014 वर्ग कि.मी. (3.41 प्रतिशत) है। कुल वन-क्षेत्र वर्ष 2021 में कुल भौगोलिक क्षेत्र का 21.71%, 2019 में 21.67% और 2017 में 21.54% था।

स्थापित विद्युत क्षमताः गैर-जीवाश्म ईंधन आधारित स्रोतों से स्थापित विद्युत क्षमता के 40% तक पहुँचने की भारत की प्रतिबद्धता निर्धारित समय से 9 साल पहले हासिल कर ली गई है।

इथेनॉल ब्लेंडिंग लक्ष्यः दिसंबर 2024 में पेट्रोल में इथेनॉल मिश्रण अभूतपूर्व 18.2% पर पहुंच गया, जो अब तक का सबसे अधिक रिकॉर्ड है। पेट्रोल में 10% एथेनॉल सम्मिश्रण का लक्ष्य नवंबर 2022 के लक्ष्य से 5 महीने पूर्व ही प्राप्त किया जा चुका था। 2013-14 में सम्मिश्रण मुश्किल से 1.5% और 2019-20 में 5% था जबकि 2024 तक इथेनॉल मिश्रण का लक्ष्य 15% था। 20% इथेनॉल मिश्रण का लक्ष्य पहले 2030 तक था। जब इसे 2025 कर दिया गया है।

अक्षय ऊर्जा लक्ष्यः भारत सरकार अक्षय ऊर्जा पर बहुत अधिक ध्यान दे रही है। अक्टूबर 2024 को देश की कुल नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता 200 गीगावाट पार कर गई है। यह उल्लेखनीय वृद्धि वर्ष 2030 तक गैर-जीवाश्म स्रोतों से 500 गीगावॉट प्राप्त करने के, देश केमहत्वाकांक्षी नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्य के अनुरूप है। केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण के अनुसार, कुल नवीकरणीय ऊर्जा पर आधारित बिजली उत्पादन क्षमता अक्टूबर 2024 में 203.18 गीगावॉट है।

यह उपलब्धि स्वच्छ ऊर्जा के प्रति भारत की बढ़ती प्रतिबद्धता और हरित भविष्य के निर्माण में इसकी प्रगति को दर्शाती है। भारत की कुल नवीकरणीय ऊर्जा स्थापित क्षमता में महज़ एक साल में 24.2 गीगावॉट (13.5%) की शानदार वृद्धि हुई है। ये अक्टूबर 2023 में 178.98 गीगावॉट थी। इसके अतिरिक्त, परमाणु ऊर्जा को शामिल करने पर, भारत की कुल गैर-जीवाश्म इंधन क्षमता 2023 में 186.46 गीगावॉट की तुलना में साल 2024 में बढ़कर 211.36 गीगावॉट हो गई। भारत की कुल बिजली उत्पादन क्षमता 452.69 गीगावॉट तक पहुंच गई है।

राष्ट्रीय वनीकरण कार्यक्रमः यह वनों के आसपास के अवक्रमित वनों के पुनस्थापना और वनरोपण पर केंद्रित है।

हरित भारत के लिए राष्ट्रीय मिशनः यह जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्ययोजना के अंतर्गत है और इसका उद्देश्य जलवायु अनुकूलन एवं शमन रणनीति के रूप में वृक्षों के आवरण में सुधार तथा वृद्धि करना है।

राष्ट्रीय जैवविविधता कार्ययोजनाः इसे प्राकृतिक आवासों के क्षरण, विखंडन और नुकसान की दरों में कमी के लिए नीतियों को लागू करने हेतु शुरू किया गया है।

ग्रामीण आजीविका योजनाएँ: ग्रामीण आजीविका से आंतरिक रूप से जुड़े प्राकृतिक संसाधनों की नान्यता महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) और राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (एनआरएलएम) जैसी प्रमुख योजनाओं में भी परिलक्षित होती है।

वायु प्रदूषण

वायु प्रदूषण से आशय मानवीय गतिविधियों और प्राकृतिक प्रक्रियाओं, हानिकारक पदाथों के कारण पृथ्वी के वायुमंडल का अपने प्राकृतिक स्तर से अधिक दूषित होने से है। इसका स्रोत औद्योगिक उत्सर्जन, वाहन से निकलने वाले धुएँ, कृषि प्रथाएँ और प्राकृतिक घटनाएँ होती हैं, जिससे वायु गुणवत्ता, मानव कल्याण, पारिस्थितिकी तंत्र तथा पृथ्वी के समग्र स्वास्थ्य पर व्यापक नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। सामान्य वायु प्रदूषकों में PM2.5, PM10, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (NO,) और नाइट्रिक ऑक्साइड (NOx), सल्फर डाइऑक्साइड (SO₂), कार्बनमोनोऑक्साइड (CO) आदि शामिल हैं।

वायु प्रदूषण पर अंकुश के लिए प्रौद्योगिकी आधारित परियोजनाएँ

बसों में परियायंत्र फिल्ट्रेशन इकाइयों की स्थापना, यातायात चौराहों पर 'WAYU' वायु शोधन इकाइयों। मध्यम बड़े पैमाने के स्मॉग टावरों की स्थापना-पर्याप्त वायु शोधक के रूप में कार्य करने वाले इन टावरों का लक्ष्य व्यापक पैमाने पर कण पदार्थ और प्रदूषकों को कम करना है। परिवेशी वायु प्रदूषण में कमी के लिये आयनीकरण तकनीक इस तकनीक का उद्देश्य आयनीकरण प्रक्रियाओं के माध्यम से प्रदूषकों को निष्प्रभावी करना है जिससे लक्षित क्षेत्रों में वायु की गुणवत्ता में वृद्धि होती है।

वायु गुणवत्ता निगरानी के लिए स्वदेशी फोटोनिक प्रणालीः विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) की परियोजना वायु गुणवत्ता मापदंडों की वास्तविक समय की दूरस्थ निगरानी हेतु एक स्वदेशी फोटोनिक प्रणाली विकसित करने पर केंद्रित है। इस पहल का उद्देश्य वायु गुणवत्ता डेटा की सटीकता और पहुँच को बढ़ाना है, जिससे प्रदूषण प्रबंधन रणनीतियों को अधिक सूचित निर्णय लेने में सक्षम बनाया जा सके।

इलेक्ट्रिक वाहन (EV) प्रौद्योगिकीः ईवी-आधारित स्वायत्त वाहनों पर केंद्रित एक स्वायत्त नेविगेशन फाउंडेशन की स्थापना डीएसटी अंतःविषयक साइवर-भौतिक प्रणालियों पर राष्ट्रीय मिशन (National Mission on Interdisciplinary Cyber-Physical Systems- NM-ICPS) के तहत की गई थी। EV में स्वायत्त प्रौद्योगिकी का एकीकरण डाइविंग पैटर्न को अनुकूलित करने, यातायात की भीड़ को कम करने और परिणामस्वरूप ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने का अवसर प्रदान करता है।

प्रदूषण कारक

मशीनों और ऑटोमोबाइल के उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। प्रौद्योगिकी में लगातार विकास के कारण औद्योगिक क्रांति हुई जिसके परिणामस्वरूप जीवन की बेहतर गुणवत्ता हुई और इसलिए, तकनीकी विकास और औद्योगीकरण के माध्यम से पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा। प्रौद्योगिकी के आगमन ने मानव जीवन के सभी पहलुओं में क्रांति ला दी, लेकिन इसने पर्यावरण को भी प्रभावितकिया है। पर्यावरण के क्षरण का प्रमुख घटक ग्लोबल वार्मिंग में वृद्धि का संकेत है। सदी की शुरुआत से पृथ्वी की औसत सतह का तापमान 0.8 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि के साथ अब तक के उच्च्चतम स्तर पर रहा है। CO, का स्तर लगभग 4.5 मिलियन वर्षों में सबसे अधिक है, जिसका प्राथमिक घटक जीवाश्म ईंधन का जलना और वनों की कटाई है।

उद्योगों से नाइट्रोजन ऑक्साइड और अन्य प्रकार के गैसीय उत्सर्जन और वाहनों से होने वाला उत्सर्जन पानी की खराब गुणवत्ता का प्रमुख कारण है। जल निकायों में विषाक्तता बढ़ने का कारण है कि नाइट्रोजन का जमाव पानी में उर्वरक की तरह काम करता है जो शैवाल के निर्माण को बढ़ावा देता है जो बदले में पानी की गुणवत्ता के लिए हानिकारक है क्योंकि यह जलीय जीवन के लिए ऑक्सीजन की अवरुद्ध करता है और उनके लिए यूट्रोफिक स्थिति बनाता है। जो उन्हें धीरे बीरे नष्ट कर देता है। पानी की खराच गुणवत्ता का एक अन्य कारण खेतों से पानी में कीटनाशकों का बहाव है, जिससे यह प्रदूषित होता है और इस तरह यह जलीय जीवन के लिए अनुपयुक्त वातावरण बन जाता है।

मुख्य प्रदूषकों में ओजोन, सीसा, नाइट्रोजन और कार्बन मोनोऑक्साइड शामिल हैं जो जीवाश्म ईचन के जलने से उत्पन्न होते हैं। कचरे कीमात्रा में वृद्धि हुई है। बिजली की खपत में वृद्धि हुई है। विश्व पर्यावरण हानि का एक और बड़ा हिस्सा वनों की कटाई से है जहां मनुष्य शहरों का विस्तार करने के लिए जंगलों को साफ कर रहे हैं। बहुत सारी प्रजातियों विलुप्त हो गई हैं। फोन और टैबलेट जैसे तकनीकी उत्पाद मानव जाति के लिए अपरिहार्य हो गए हैं। युद्ध के कारण भी पर्यावरण, अर्थव्यवस्था और प्राकृतिक दुनिया पर विनाशकारी प्रभाव पड़ता है।

प्रौद्योगिकी-पर्यावरणको बचाने की क्षमता

बढ़ती जनसंख्या, विश्व स्तर पर सबसे अधिक दबाव वाले मुद्दों में से एक है। जियोइंजीनियरिंग की एक अन्य तकनीकी अवधारणा ने वायुमंडल से CO, को हटाने और विषाक्त पदार्थों के हानिकारक प्रभावों को बेअसर करने का प्रयास किया है। बायोरेमेडिएशन का कार्यान्वयन एक ऐसी खोज है जो मिट्टी या पानी में धातुओं की विषाक्तता को कम करने के लिए प्रदूषकों को हटाने के लिए सूक्ष्मजीयों का उपयोग करती है।

प्रौद्योगिकी का सबसे महत्वपूर्ण लाभ इंटरनेट है जो लोगों को विश्व स्तर पर जुड़ने में मदद करता है जिससे सूचना का मुक्त प्रवाह होता है और ज्ञान के बारे में जागरूकता बढ़ती है।

प्रौद्योगिकी सभी पयांवरणीय मुद्दों को ठीककरने में सक्षम नहीं हो सकती है, लेकिन सही ढंग से उपयोग किए जाने पर यह निश्चित रूप से इसकी बेहतरी में योगदान दे सकती है। जलवायु परिवर्तन, ग्लोबल वार्मिंग और प्रदूषण प्रौद्योगिकी के कुप्रबंधन से हैं। प्रौद्योगिकी का अनियंत्रित और अनधिकृत उपयोग पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभाव डालता है लेकिन अगर सही तरीके से लक्षित किया जाए तो इसमें पर्यावरण को बहाल करने की क्षमता है।

पर्यावरण अनुकूल प्रबंधन

पर्यावरण अनुकूल प्रबंधन प्रथाओं और नवीन प्रौद्योगिकियों के माध्यम से पर्यावरण संरक्षण और संवर्धन कार्यक्रमों की योजना बनाना, समन्वय करना, बढ़ावा देना और निगरानी द्वारा प्रदूषण की रोकथाम की जा सकती है। वेब आधारित जीआईएस अनुप्रयोगों के माध्यम से निगरानी और मूल्यांकन, विकेंद्रीकृत योजना और निर्णय लेने की सुविधा प्रदान करना, ग्लेशियरों की बेहतर निगरानी और ग्लेशियरों की सूची को अद्यतन करने सहित जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के अनुकूलन और शमन के लिए उचित रणनीतियों को तैनात करना, पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधनों को संरक्षित और सुधारने के लिए इनका प्रयोग वांछनीय है।

पर्यावरणीय प्रौद्योगिकी

पर्यावरण प्रौद्योगिकी (एन्वायरोटेक) या हरित प्रौद्योगिकी (ग्रीनटेक) या स्वच्छ प्रौद्योगिकी (क्लीनटेक) प्राकृतिक पर्यावरण और संसधानों के संरक्षण और मानव हस्तक्षेप के फलस्वरूप हुए नकारात्मक प्रभावों को रोकने हेतु पर्यावरणीय विज्ञान का एक अनुप्रयोग है।जैवनिस्पंदन (बायोफिल्ट्रेशन), बायोस्फीयर प्रौद्योगिकी, जैवोपचारण (बायोरेमेडिएशन), मल से खाद बनाना, विलवणीकरण (डिसैलिनेशन), दोहरे-संभरण वाली इलेक्ट्रिक मशीनें, ऊर्जा संरक्षण, ऊर्जा की बचत करने वाले मॉड्यूल, हाइड्रोजन ईंधन सेल, महासागरीय ऊष्मीय ऊर्जा रूपांतरण, सौर ऊर्जा, ऊष्मीय डिपॉलीमराइज़ेशन, पुनर्चक्रण, जल शोधन इत्यादि नवीन प्रौद्योगिकियों का उपयोग करके हम प्रदूषण को कम करने पर जोर दे रहे हैं।

जल शोधनः इसका मूल विचार पूरे पर्यावरण में बहने वाले जल को धूल जीवाणु/प्रदूषण रहित करना है। पानी के शोधन कीयह अवधारणा कई अन्य घटनाओं से उत्पन्न हुई है। दुनिया भर में जल को शोधित करने के लिए कई अभियान व गतिविधियां आयोजित की गयी हैं। वर्तमान में जल के उपयोग के परिमाण को देखते हुए, यह अवधारणा अति महत्वपूर्ण है।

वायु शोधनः मूलभूत व साधारण हरे पौधों को वायु को स्वच्छ करने के लिए घर के अन्दर भी उगाया जा सकता है क्योंकि सभी पौधे CO, को हटा कर उसे ऑक्सीजन में परिवर्तित करते हैं। इसके सबसे अच्छे उदाहरण हैं: डाइपसिस ल्यूटेसेन्स, सान्सेवीरिया ट्रीफैसीयाटा तथा एपीप्रेम्नम अंरियम।

मलजल प्रशोधनः मलजल प्रशोधन की अवधारणा जल शोधन के बहुत निकट है। चूंकि यह जल में प्रदूषण के स्तर को कम करता है इसीलिए मलजल प्रशोधन एक बहुत महत्वपूर्ण अवधारणा है। जल जितना अधिक प्रदूषित होता है उतना ही अधिक अनुपयोगी होता है, जिन क्षेत्रों में पानी का अधिक उपयोग होता है, वहां न्यूनतम प्रदूषित जल की आपूर्ति की जाती है। यह पर्यावरण संरक्षण, सततता आदि अन्य अवधारणाओं के लिए मार्ग खोलता है।

पर्यावरण उपचारिकरणः पर्यावरण के सामान्य संरक्षण के लिए प्रदूषकों व संदूषकों को हटाये जाने को पर्यावरण उपचारिकरण कहाजाता है। यह विभिन्न रासायनिक, जैविक तथा बड़े परिमाण के अंतरण की प्रणालियों के द्वारा किया जाता है, इसके साथ ही पर्यावरण की निगरानी भी की जाती है (एनसाइक्लोपीडिया ऑफ मेडिकल कनसेप्ट्स)।

ठोस अपशिष्ट प्रबंधनः ठोस अपशिष्ट प्रबंधन, ठोस अपशिष्ट के शुद्धिकरण, उपभोग, पुनर्प्रयोग, प्रशमन तथा उपचार को कहा जाता है जिसकी निगरानी सरकार अथवा शहर कस्बों की शासकीय इकाइयों द्वारा की जाती है।

मौसम के प्रभावों का पूर्वानुमानः किसी इमारत पर पड़ने वाले मौसम के प्रभावों का पूर्वानुमान लग सकता है। मौसम के पूर्वानुमान पर ताप के आधार को समायोजित करके, यह प्रणाली अतिरिक्त ताप के प्रयोग को समाप्त कर देती है, जिसके कारण ऊर्जा का उपभोग तथा ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन कम हो जाता है।

ऊर्जा संरक्षणःऊर्जा संरक्षण ऐसे उपकरणों का प्रयोग है जो ऊर्जा की कम मात्रा का प्रयोग करते हैं जिससे विद्युत का उपभोग कम हो जाता है। विद्युत के प्रयोग को कम करने से जीवाश्म ईंधन को जलाये जाने की आवश्यकता कम हो जाती है जिनका प्रयोग उस विद्युत का उत्पादन करने में किया जाता।

वैकल्पिक और स्वच्छ ऊर्जा

वैज्ञानिक हमारे वर्तमान शक्ति उत्पादन के तरीकों से अलग स्वच्छ ऊर्जा के विकल्पों की खोज में लगे हुए हैं। ऐनेरोबिक डाइजेशन (अवायवीय पाचन) जैसी कुछ तकनीकें अपशिष्ट पदार्थों से अक्षय ऊर्जा उतपन्न कर सकती हैं। ग्रीन हाउस गैसों में वैश्विक कमी औद्योगिक स्तर पर ऊर्जा संरक्षण तकनीकों के प्रयोग के साथ ही साथ स्वच्छ ऊर्जा के उत्पादन पर निर्भर है। इनमें शामिल हैं सीसा-रहित पेट्रोल, सौर ऊर्जा तथा वैकल्पिक ईंधन वाले वाहन, जिनमें प्लग-इन हाइब्रिड व हाइब्रिड विद्युत् वाहन सम्मिलित हैं।

वैश्विक ऊर्जा प्रौद्योगिकी

स्मार्ट ग्रीन प्रौद्योगिकियों हाइब्रिड से लेकर ऑन-साइट और नवीकरणीय ऊर्जा और भंडारण तक होती हैं। मूल विचार यह है कि नवीकरणीय ऊर्जा प्रणालियों को भवन निर्माण में एकीकृत किया जाए। ऊर्जा के साथ-साथ सौर एलईडी बल्बों से संरक्षण और वाई-फाई और अन्य ऑन-साइट स्मार्ट सिस्टम के माध्यम से दक्षता।

परिवहन और इमारतों के लिए जीवाश्म ईंधन के उपयोग को कम करना, समाप्त करना और प्रतिस्थापित करना महत्वपूर्ण है। गैस माइलेज बढ़ाने और कार्बन उत्सर्जन कम करने के दबाव में वाहन उद्योग बदलाव कर रहा है। वाहन निर्माता गैसोलीन इंजनों को अपग्रेड कर रहे हैं और कंप्यूटर-सहायता वाले ट्रांसमिशन के साथ अधिक कुशल टर्बोचार्जर का उपयोग कर रहे हैं। फोर्ड अपने F-150 ट्रकों से 500 पाउंड वजन कम करने के लिए स्टील की जगह एल्युमीनियम का उपयोग कर रहा है, जिससे गैस माइलेज में भारी बचत होगी।

नई हरित प्रौद्योगिकियों

दशकों से चली आ रही हानिकारक मानवीय गतिविधियों की प्रतिक्रिया में नई हरित प्रौद्योगिकियों उभर रही हैं। उनमें से माइक्रोबियल ईंधन सेल (एमएफसी), इलेक्ट्रिक ट्रांसड्यूसर हैं जो एनारोविक सूक्ष्मजीवों के इलेक्ट्रोएक्टिव श्वसन के माध्यम से गीले कार्बनिक पदार्थ को बिजली में बदलते हैं। पिछले दो दशकों में, एमएफसी में अनुसंधान ने शक्ति और उपचार दक्षता दोनों के मामले में प्रदर्शन में काफी सुधार किया है। व्यापक बाज़ार में शामिल करने के लिए एमएफसी कीउपयुक्तता प्रदर्शित करने के लिए, व्यावहारिक कार्यान्वयन के उदाहरणों की आवश्यकता है। ऊर्जा संचयन इलेक्ट्रॉनिक्स को नियोजित किया जा सकता है जो एमएफसी को एयर फ्रेशनर, स्मोक अलार्म, ट्रांसमीटर और मोबाइल फोन चार्ज करने जैसे अधिक ऊर्जा-गहन अनुप्रयोगों को सक्रिय करने में सक्षम बनाता है।

प्रौद्योगिकी और सूचना

सरकारें कुछ पर्यावरणीय मानकों, कचरे के लिए संग्रह दरों को निर्धारित करना और उदाहरण के लिए रीसाइक्लिंग या ई-गतिशीलता के लिए नवीन प्रौद्योगिकियों के कार्यान्वयन को "बल" देना चाहती हैं। पर्यावरणीय प्रौद्योगिकियों के बाज़ार, विशेष रूप से वैश्विक बाज़ार, विभिन्न विकासों से संचालित होते हैं, जो एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं। हाल के दशकों में उभरती अर्थव्यवस्थाओं के साथ-साथ विकासशील देशों में भी मजबूत आर्थिक विकास द्वारा समर्थित बढ़ती पर्यावरणीय जागरूकता, सरकारों पर वायु, जल या मिट्टी प्रदूषण को कम करने के लिए दबाव डालती है। कई शहरी समूहों में जीवन की गुणवत्ता कम हो गई है। कुछ हद तक, यह चीन या भारत के कई बड़े शहरों की स्थिति को दर्शाता है, उदाहरण के लिए, लगातार वायु प्रदूषण के संबंध में उनकी समस्याएं।

बढ़ती पर्यावरणीय जागरूकता

अधिक से अधिक पर्यावरणीय नियमों के साथ, विशेष रूप से उभरती अर्थव्यवस्थाओं में, और औद्योगिक देशों में अधिक प्रतिबंधात्मक पर्यावरण मानकों के साथ। बेशक, ये नियम, यदि सरकारों द्वारा पर्याप्त रूप से लागू किए जाते हैं, तो पर्यावरण प्रौद्योगिकियों का निर्माण करने वाले उद्योग के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं। इनमें से कई नियमों में प्रदूषण नियंत्रण के लिए सटीक प्रावधान हैं, लेकिन जब तक इन प्रावधानों को प्रभावी ढंग से लागू नहीं किया जाता है, प्रदूषण जारी रह सकता है।

इस संदर्भ में, चीन में वायु प्रदूषण नियंत्रण के मामले में, पहला प्रदूषण नियंत्रण कानून 1987 में पारित हुआ, जिसके बाद 1995, 2000 और 2015 में संशोधन किए गए। हालाकि, प्रभावी परिवर्तन के बिना, उच्च कानूनी मानक चीन के कुछ प्रमुख शहरों में व्यापक रूप से विगड़ती वायु प्रदूषण की समस्याओं को नहीं रोक सकते। भारत एक और उदाहरण प्रस्तुत करता हैः वायु (प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण) अधिनियम 1981 में लागू किया गया था, जिसके बाद विभिन्न संशोधन किए गए। फिर भी, विभिन्न भारतीय शहर गंभीर वायु प्रदूषण से पीड़ित हैं, जिसका उत्सर्जन मुख्य रूप से परिवहन और उद्योग से होता है, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में वायोमास जलने से भी होता है।

स्वच्छ प्रौद्योगिकी पूल

स्वच्छ प्रौद्योगिकी पूल कई प्रौद्योगिकी सिद्धांतों से बना है जैसे नवीकरणीय ऊर्जा, नवीकरणीय कच्चे माल, जीवन-चक्र मूल्यांकन, प्रतिक्रिया सह पृथक्करण के सिद्धांत, गैर-वाष्पशील सॉल्वेंट्स, विषम उत्प्रेरक, जैव प्रौद्योगिकी दृष्टिकोण, सुपरक्रिटिकल तरल पदार्थ, ऑक्सीडेंट के रूप में हवा, विलायक रहित प्रतिक्रियाएँ, इत्यादि। बदले में ये प्रौद्योगिकियां अंतर्निहित विज्ञान की अच्छी समझ पर आधारित हैं, जैसे सिंथेटिक के क्षेत्र कार्बनिक रसायन विज्ञान, भौतिक रसायन विज्ञान, उत्प्रेरण, और रासायनिक इंजीनियरिंग। इसलिए, स्वच्छ प्रौद्योगिकी के लिए एक अंतःविषय दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है, जिसमें विभिन्न विषयों के इंजीनियर और वैज्ञानिक एक साथ मिलकर एक स्वच्छ वातावरण बनाते हैं, जो वर्तमान में मौजूद संसाधनों को खत्म नहीं करता है और जहरीले रसायनों के डंपिंग के माध्यम से वनस्पतियों और जीवों को नष्ट नहीं करता है। प्रक्रिया डिज़ाइन हरित रसायन विज्ञान प्रतिमान और कई अन्य इंजीनियरिंग सिद्धांतों को शामिल करता है।

हरित प्रौद्योगिकी-वरदान

हरित प्रौद्योगिकी आधुनिक औद्योगिक दुनिया के लिए एक वरदान है। हरे पौधों और सूक्ष्मजीवों के उपयोग द्वारा हरे नैनो-मैटेरियल के संश्लेषण की तकनीकों का मूल्यांकन किया गया है। पर्यावरणीय सुधार के लिए हरित-संश्लेषित नैनो-कणों के बहुमुखी अनुप्रयोगों की एक अद्यतन विधि है। कई समीक्षाओं से पता चलता है कि सूक्ष्मजीवों की तुलना में पौधों का उपयोग करके काफी अधिक काम किया गया है। फिर भी, अधिक पौधों और रोगाणुओं (यानी, समुद्री शैवाल, आदि) का उपयोग करके नैनो-मैटेरियल्स के हरित संश्लेषण का पता लगाने की व्यापक संभावना है। अपशिष्ट जल उपचार में नैनो-मैटेरियल्स के इन विविध अनुप्रयोगों के बावजूद, पर्यावरण में नैनो-कणों के तंत्र, भाग्य और परिवहन और उनके विषाक्त प्रभाव को समझने में कुछ चुनौतियों का अध्ययन करने के लिए अभी भी अधिक जगह है।

हरित संश्लेषण को नैनो-मैटेरियल के भौतिक-रासायनिक संश्लेषण के लिए एक स्थायी विकल्प माना जाता है; इस प्रकार पानी/अपशिष्ट जल अनुप्रयोग में ऐसे हरे संश्लेषित नैनो-मैटेरियल का उपयोग रासायनिक रूप से संश्लेषित नैनो-मैटेरियल के उपयोग के परिणाम स्वरूप होने वाले खतरनाक प्रभावों को समाप्त कर देगा। हालाँकि, जल उपचार में नैनो-मटेरियल्स से आने वाली चुनौतियों का अध्ययन करने के लिए और अधिक शोध की आवश्यकता है। पर्यावरण संबंधी मुद्दों पर विचार करते हुए हरित नैनो-मैटेरियल के अनुसंधान और विकास की संभावना को लैब स्केल से लेकर औद्योगिक स्तर के उत्पादन तक विस्तारित करने पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए,क्योंकि उपचारात्मक उद्देश्यों के लिए उपयोग किए जाने वाले नैनो-मैटेरियल को संभावित पर्यावरण प्रदूषक के रूप में कार्य नहीं करना चाहिए। उपचारात्मक उद्देश्यों के बाद पर्यावरण में छोड़े जाने के बाद नैनो-कणों का अध्ययन करने के लिए भविष्य का शोध आवश्यक है।

हरित प्रौद्योगिकी एक तेजी से बढ़ता वैज्ञानिक क्षेत्र है, जिसने अपने प्रचुर अनुप्रयोगों के कारण पिछले कुछ वर्षों में काफी रुचि पैदा की है। यह एक बहु-विषयक क्षेत्र है, जो नैनोकणों के संश्लेषण के लिए उपयोग की जाने वाली रासायनिक और भौतिक विधियों के विपरीत, सुरक्षित, गैर-खतरनाक और पर्यावरण के अनुकूल है। संश्लेषण के लिए उपयोग की जाने वाली बायो-मैटेरियल्स में अंतर से नैनो-कणों के विभिन्न आकार, आकार और बायो-एक्टिविटी का विकास होगा। वर्तमान अध्याय नैनो-कणों के निर्माण के लिए विभिन्न पौधों के हिस्सों और कृषि-अपशिष्ट के आधार पर हरित संश्लेषण के विभिन्न तरीकों पर वर्तमान जानकारी का सारांश प्रस्तुत करता है। इन सामग्रियों का उपयोग न केवल संश्लेषण लागत को कम करता है, बल्कि हानिकारक रसायनों के उपयोग की आवश्यकता को भी कम करता है और "जैव-संश्लेषण" को प्रोत्साहित करता है। इसके अलावा, संश्लेषण प्रक्रिया और दर को प्रभावित करने वाले विभिन्न कारकों के प्रभाव पर भी चर्चा की जाती है।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।