प्लास्टिक मुक्त भारत 2025 का पर्यावरणीय मिशन      Publish Date : 23/08/2025

       प्लास्टिक मुक्त भारत 2025 का पर्यावरणीय मिशन

                                                                                                                                                             प्रोफेसर आर. एस. सेंगर

भारत, जहाँ नदियाँ देवी मानी जाती हैं, और वनों को ’वनदेवी’ कहा जाता है, आज जलवायु परिवर्तन, प्लास्टिक प्रदूषण, वायु और जल संकट जैसी गंभीर पर्यावरणीय चुनौतियों से जूझ रहा है। लेकिन संकट के इस क्षण में भारत ने समाधान की दिशा में ठोस कदम उठाए हैं। सरकार की योजनाएं, वैज्ञानिकों के शोध, और आम नागरिकों की जागरूकता - सभी मिलकर एक हरित भविष्य की नींव रख रहे हैं। यह लेख वर्ष 2025 के भारत में पर्यावरणीय नीतियों, नागरिक भागीदारी और आने वाले वर्षों की संभावनाओं का एक समग्र चित्र प्रस्तुत करता है।

हर वर्ष 5 जून को मनाया जाने वाला विश्व पर्यावरण दिवस केवल एक दिवस नहीं, बल्कि धरती के प्रति हमारी जिम्मेदारी की भावपूर्ण स्मृति है। यह दिन हमें याद दिलाता है कि प्रकृति सिर्फ एक संसाधन नहीं, बल्कि यह हमारा अस्तित्व है। वर्ष 2025 में, इस दिवस की थीम ’प्लास्टिक प्रदूषण समाप्त करें’ है, जिसे संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) द्वारा निर्धारित किया गया है। इस वर्ष की मेजबानी दक्षिण कोरिया कर रहा है, जो वर्ष 2040 तक प्लास्टिक प्रदूषण मुक्त बनने की दिशा में अग्रसर है।

भारत, जो विश्व की दूसरी सबसे बड़ी जनसंख्या वाला देश है, जो पर्यावरणीय चुनौतियों का सामना कर रहा है, लेकिन साथ ही सतत विकास और पर्यावरण संरक्षण की दिशा में महत्वपूर्ण कदम भी उठा रहा है। इस लेख में, हम भारत में पर्यावरणीय पहल, सरकारी नीतियों, और नागरिकों की भागीदारी आदि के बारे में विस्तृत चर्चा करेंगे।

प्लास्टिक प्रदूषण भारत के लिए क्यों है यह सबसे बड़ी चुनौती?

भारत हर साल लगभग 3.5 मिलियन टन प्लास्टिक कचरा उत्पन्न करता है। इस कचरे का एक बड़ा हिस्सा खुले में जलाया जाता है या इसे जलाशयों में बहा दिया जाता है, जिससे न केवल जैव विविधता पर खतरा मंडराता है, बल्कि मानव स्वास्थ्य भी खतरे में आता है। वर्ष 2022 में भारत सरकार ने ’सिंगल यूज प्लास्टिक’ (SUP) पर प्रतिबंध लगाया। वर्ष 2023 और 2024 में कई राज्यों ने पॉलीथीन थैलियों, स्ट्रॉ, प्लास्टिक कटलरी आदि के खिलाफ अभियान भी चलाए। हालांकि, जमीनी सच्चाई यह है कि यह प्लास्टिक अब भी रोजमर्रा की जिंदगी का हिस्सा बना हुआ है।

सरकार के द्वारा की गई पहल

  • प्लास्टिक वैस्ट मैनेजमेंट अमेंडमेंट रुल्स 2022।
  • भारत में 2011 से विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व (EPR) लागू किया गया है- यानी कंपनियों अपने उत्पादों का प्लास्टिक कचरा खुद वापस लेना चाहिए। लेकिन इसका व्यवस्थित और सख्त प्रावधान वर्ष 2022 में लागू हुआ, जब सरकार ने प्लास्टिक वेस्ट मैनेजमेंट अमेंडमेंट रुल्स, 2022 जारी किए।
  • शहरी स्थानीय निकायों (ULBs) को 100 प्रतिशत प्लास्टिक संग्रहण का लक्ष्य दिया गया है।

भारत का ”LIFE” मिशन जीवनशैली में बदलाव से क्रांति

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वर्ष 2021 में ग्लासगो में “LIFE-Lifestyle for Environment” का प्रस्ताव रखा। यह विचार इस मान्यता पर आधारित है कि यदि हर नागरिक अपने दैनिक व्यवहार में कुछ आवश्यक बदलाव करे जैसे ऊर्जा की बचत, प्लास्टिक से परहेज और जल संरक्षण तो एक वैश्विक परिवर्तन संभव है।

Mission LIFE के मुख्य 7 मंत्र

  • ऊर्जा की बचत (LED) का प्रयोग, पंखों का सीमित उपयोग)।
  • पानी की बचत (कम फ्लश, टपकते नल ठीक करना)।
  • कचरे का पुनर्चक्रण।
  • स्थानीय उत्पादों को प्राथमिकता।
  • सार्वजनिक परिवहन को बढ़ावा।
  • प्रकृति से जुड़ाव।
  • साझा संसाधनों का सम्मान।

वर्ष 2025 तक LIFE का लक्ष्य है कि 10 करोड़ नागरिक इस मिशन से जुड़े।

राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (NCAP) वायु गुणवत्ता में सुधार

भारत के लगभग 14 शहर विश्व के सबसे प्रदूषित शहरों में गिने जाते हैं। इसमें दिल्ली, कानपुर, लखनऊ, पटना, और आगरा जैसे शहर शामिल हैं। 2019 में शुरू हुआ राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (NCAP) इसका समाधान खोजने का प्रयास है। NCAP के माध्यम से, सरकार वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए विभिन्न उपायों को लागू कर रही है, जैसे कि हरित क्षेत्र का विस्तार, सार्वजनिक परिवहन को बढ़ावा देना, और उद्योगों में प्रदूषण नियंत्रण उपकरणों की स्थापना।

मुख्य लक्ष्य

  • 130 शहरों में PM-10 और PM2-5 के स्तर को 2026 तक 40% तक कम करना।
  • वायु गुणवत्ता निगरानी के लिए PRANA पोर्टल लॉन्च।

2025 की प्रगति रिपोर्ट के अनुसार, कानपुर में PM10 में 28% कमी और लखनऊ में 31% कमी देखी गई है यह नीति और तकनीक के मेल का परिणाम है।

जल संरक्षण उत्तर प्रदेश और अन्य राज्यों की पहल

पानी का संकट आने वाले दशक की सबसे बड़ी वैश्विक चुनौती माना जा रहा है। भारत में कई राज्य पहले से ही जल संकट से जूझ रहे हैं। उत्तर प्रदेश में 2023-25 के दौरान ट्यूबवेलों के आधुनिकीकरण, ड्रिप इरिगेशन, और रेनवॉटर हॉर्वेस्टिंग को बढ़ावा मिला।

कुछ उदाहरण

  • 1750 सौर ऊर्जा आधारित ट्यूबवेल का आधुनिकीकरण।
  • 2.5 लाख किसान परिवारों को सिंचाई सुविधा उपलब्ध कराई गई ।
  • गंगा नदी में प्रदूषण नियंत्रण हेतु 152 STPs में से 141 क्रियाशील।

स्वच्छ भारत मिशन और जल गुणवत्ता में सुधार

स्वच्छ भारत मिशन के तहत, उत्तर प्रदेश में नदियों और जलाशयों की जल गुणवत्ता में 68.8% का सुधार देखा गया है। राज्य में 152 सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट्स (STPs) स्थापित किए गए हैं, जिनमें से 141 चालू है और 126 पर्यावरणीय मानकों को पूरा कर रहे हैं। इन प्रयासों से गंगा, यमुना, और गोमती जैसी प्रमुख नदियों की स्वच्छता में सुधार हुआ है, जो पारिस्थितिकी तंत्र और जन स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण है।

वृक्षारोपण और जैव विविधता संरक्षण

भारत सरकार ने ’मिशन अमृतवन’ के अंतर्गत 75 शहरों में शहरी वनों की स्थापना की। इसके अलावा 2024-25 में ’राष्ट्रीय वन मिशन’ के तहत 5 करोड़ पौधे लगाए गए। दिल्ली, मुंबई और जयपुर में बटरफ्लाई गार्डन विकसित किए गए।

जैविक समाधानः तेल खाने वाले बैक्टीरिया की खोज

हैदराबाद के नाचाराम में वैज्ञानिकों ने”RhodococcusIndonesiensis” नामक एक बैक्टीरिया की खोज की है, जो पेट्रोलियम हाइड्रोकार्बन को 90% तक विघटित करने में सक्षम है। यह खोज प्रदूषित क्षेत्रों की सफाई के लिए जैविक समाधान प्रदान करती है और पर्यावरणीय संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।

ओडिशा से लेकर गुजरात तक ’हरित परिवहन’

2025 में ओडिशा ने राजधानी भुवनेश्वर में हाइड्रोजन बसों की शुरुआत की। यह भारत में पहली बार हुआ है। इससे पहले गुजरात और महाराष्ट्र में ई-बसों का उपयोग हो रहा था। यह पहल सार्वजनिक परिवहन को स्वच्छ और सतत बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। यदि यह परियोजना सफल होती है, तो इसे राज्य के अन्य क्षेत्रों में भी विस्तारित किया जाएगा। इससे न केवल वायु प्रदूषण में कमी आएगी, बल्कि ऊर्जा की खपत में भी सुधार होगा।

हरित परिवहन नीति के लक्ष्य

  • 2030 तक सभी सार्वजनिक परिवहन इलेक्ट्रिक या हाइड्रोजन आधारित हों।
  • 25 शहरों में ’ग्रीन मोबिलिटी जोन्स’ की स्थापना।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।