भारत को चाहिए संदेह से परे एक चुनाव आयोग      Publish Date : 22/08/2025

       भारत को चाहिए संदेह से परे एक चुनाव आयोग

                                                                                                                                                         प्रोफेसर आर. एस. सेंगर

स्वतंत्रता के बाद से ऐसा कभी नहीं हुआ जब भारत के चुनाव आयोग (ईसीआई) पर लोगों का इतना अविश्वास रहा हो, जितना अब खुलकर व्यक्त किया जा रहा है। ईसीआई को चुनावी लड़ाई में एक तटस्थ अंपायर के रूप में अपना कर्तव्य निभाना चाहिए, लेकिन दुर्भाग्य से कई मौकों पर ऐसा लगा कि यह प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) का ही एक विस्तार है।

इस संवैधानिक निकाय की स्वायत्तता को कानूनी साधनों के द्वारा सीमित कर दिया गया है। चुनावों के दौरान, यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का पक्ष लेता हुआ देखा गया है, खास तौर पर उनके नफरत भरे भाषणों के मामले में, और चुनाव के बाद, यह चुनावी डेटा को भी मॉक कर रहा है।

                                                  

हरियाणा में चुनाव 5 अक्टूबर 2024 को और महस में चुनाव नवंबर 2024 में हुए। फिर भी लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी को अब 7-8 महीने की देरी के बाद चुनावी डेटा सौंपने के लिए सटीक तारीख मांगनी पड़ की है। उन्होंने पूरी, ’मतदाता सूची सौंपने के लिए चुनाव आयोग द्वारा उठाया गया पहला अच्छा कदम है। क्या चुनाव आयोग कृपया सटीक तारीख को घोषणा कर सकता है, जिस तक यह डेटा डिजिटल मशीन पठनीय प्रारूप में सौंप दिया जायेगा?’

सरकार किस तरह से चुनाव प्रक्रिया में हस्तक्षेप कर रही है और भारतीय चुनाव आयोग पीएमओ की इच्छा के आगे झुक रहा है, यह दिसंबर 2024 में तब स्पष्ट हो गया था, जब केंद्रीय कानून मंत्रालय ने 1961 के नियमों के नियम क (2) में संशोधन किया था, ताकि सार्वजनिक निरीक्षण के लिए खुले ’कागजात’ या दस्तावेजों के प्रकार को प्रतिबंधित किया जा सके।

यह मामला भारत के सर्वोच्च न्यायालय में भी गया, जिसमें याचिकाकर्ताओं ने कहा कि चुनाव संचालन (द्वितीय संशोधन) नियम, 2024 नागरिकों को चुनाव संबंधी महत्वपूर्ण दस्तावेजों तक पहुंच को प्रतिबंधित करके संविधान के अनुच्छेद 34, 19 और 21 का उल्लंघन करता है। सरकार ने कहा कि उसे मतदाताओं की गोपनीयता की रक्षा करने की आवश्यकता है।

यह था कि चुनावी डेटा प्रदान न करने के लिए सरकार एक इच्छुक पक्ष थी, और ईसीआई भी भी डेटा नहीं दे रहा है। सवाल यह है है कि डेटा को अवरुद्ध करके ईसीआई और मोदी सरकार क्या छिपाना चाहती है? फिर चुनावी प्रक्रिया में पारदर्शिता कहां है? और जब सरकार और ईसीआई दोनों द्वार सावधानीपूर्वक अंधकार बनाये रखा जा रहा है, तो कोई भी व्यक्ति चुरायी प्रक्रिया पर कैसे विश्वास कर सकता है?

मोदी सरकार की इच्छा के अनुसार चलने का ईसीआई का यह एकमात्र उदाहरण नहीं है। आइए चुरायी बॉन्ड योजना मामले को याद करें। लोकसभा चुनाव 2024 से कुछ महीने पहले ही मोदी सरकार को चुनावी योजना को भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अवैध घोषित किये जाने और दान दाताओं और लाभार्थी राजनीतिक दलों का विवरण प्रकाशित करने के लिए चुनाव आयोग को आदेश दिये जाने के बाद भी, चुनाव आयोग ने आयोग ने सर्वोच्च न्यायालय में अपील की है।

सरकार का कार्यकाल मुख्य चुनाव आयुक्त को इच्छा पर निर्भर करेगा। इसके अलावा, नये कानून के तहत उन्हें नियुक्त करने का अधिकार अंततः प्रधानमंत्री के पास है, जिसे नियुक्ति समिति से भारत के मुख्य न्यायाधीश को हटाकर सुरक्षित किया गया, जिससे चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति में निष्पक्षता खत्म हो गयी। चुनाव आयुक्तों को निर्युक्त में कोई पारदर्शिता नहीं यह गयी है।

                                                          

नवंबर 2021 में केंद्रीय कानून मंत्रालय ने ईसीआई को पीएमओ के साथ बैठक में शामिल होने के लिए कहा था और सीईसी ने बैठक में भाग लिया था। यह समान रूप से पीएमओ द्वारा ईसीआई की अधीनता का मामला था।

सरकार किस तरह से चुनाव प्रक्रिया में हस्तक्षेप कर रही है और भारतीय चुनाव आयोग पीएमओ की इच्छा के आगे झुक रहा है, यह दिसंबर, 2024 में स्पष्ट हो गया था, जब केंद्रीय कानून मंत्रालय ने 1961 के नियमों के नियम 93 (2) में संशोधन किया था, ताकि सार्वजनिक निरीक्षण के लिए खुले ’कागज़ात’ या दस्तावेज़ों के प्रकार को प्रतिबंधित किया जा सके। यह मामला भारत के सर्वोच्च न्यायालय में भी गया जिसमें कुछ तर्क देकर इसे प्रकाशित न करने की पूरे कोशिश की थी।

सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश के बाद चुनाव आयोग को प्रकाशित करना पड़ चुनाव आयोग को चुनावी बॉन्ड योजना 2018 के अनुसार दानदाताओं की गोपनीयता की रक्षा करने की आवश्यकता का तर्क देते हुए स्पष्ट रूप से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ तालमेल बिठाते हुए देखा।

तीन सदस्नीय चुनाव आयोग इतना कमजोर क्यों हो गया है कि उसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हुक्म का पालन करना पड़े? ऐसा इसलिए है क्योंकि मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त (निर्युक्त सेवा की और कार्यकाल) अधिनियम अधिनियम 2023 ने दो चुनाव आयुक्तों को संवैधानिक रूप से असुरक्षित बना दिया है। केवल मुख्य चुनाव आयुक्त ही इससे बचे हुए हैं। जब इस पर विवाद हुआ, तो केंद्रीय कानून मंत्री ने एक स्पष्टीकरण जारी किया, जिसमें कहा गया कि यह एक नोडल एजेंसी है और चुनाव सुधार से संबंधित कई मुद्दे वर्ष 2011 से लंबित हैं। पीएमओ ने भी किया कि यह एक अनौपचारिक बातचीत का विषय है।

ईसीआई को व्यवस्थित रूप से कमजोर किया गया है। इसे 2019 के चुनावों के दौरान हुई घटना में देखा जा सकता है। पीएम नरेंद्र मोदी और अमित शाह के खिलाफ चुनाव के लिए आदर्श आचार संहिता के उल्लंघन को शिकायतें थीं, जिसमें भूगा की भाषा भी शामिल थी। ईसीआई के बहुमत के फैसले ने उन्हें क्लीन चीट दे दी थी, लेकिन एक चुनाव आयुक्त ने असहमति नोट दिया था। इसके बाद आयकर विभाग ने चुनाव आयुक्त के रूप

चुनाव आयुक्त को ही हटाये जाने के विरुद्ध संवैधानिक रूप से संरक्षण प्राप्त में उनकी नियुक्ति से पहले की अवधि के लिए उनकी कंपनी को नोटिस जारी किये। इसके बाद असंतुष्ट चुनाव आयुक्त ने बैठकों में भाग लेना भी बंद कर दिया और कहा कि अल्पमत के निर्णयों’ की ’बहुसदस्यीम वैधानिक निकायों द्वारा पालन की जाने वाली मुख्यापित परंपराओं के विपरीत तरीके से दबाया जा रहा है।’

2024 के लोकसभा चुनाव के दौरान एक चुनाव आयुक्त ने भी इस्तीफा दे दिया था। कोलकाता में एक बैठक के दौरान मुख्य चुनाव आयुक्त और उक्त चुनाव आयुक्त के बीच मतभेद और विवाद भड़क गया था और दिल्ली लौटने के बाद उस चुनाव आयुक्त को इस्तीफा देना पड़ा, क्योंकि नये कानून के तहत चुनाव आयोग को हटाए जाने के खिलाफ संवैधानिक संरक्षण प्राप्त नहीं है।

ये कुछ ऐसे मामले हैं जो चुनाव आयोग की संवैधानिक स्वायत्तता के क्षरण का संकेत देते हैं। ऐसी पृष्ठभूमि में, चुनाव आयोग पर राहुल गांधी के आरोपों को सरसरी तौर पर खारिज नहीं किया जा सकता। उन्होंने आरोप लगाया है कि नवंबर 2024 में महाराष्ट्र चुनाव में धांधली’ हुई थी। उन्होंने पांच विशिष्ट कदम बताये जिनके माध्यम से चुनाव में धांधली हुई।

’पहला कदम चुनाव आयोग की नियुक्ति के लिए पैनल में हेराफेरी करना; दूसर कदमः फर्जी मतदाताओं को मतदाता सूची में शामिल करना; तीसर कदमः मतदान प्रतिशत बढ़ना चौथा कदमः फर्जी मतदान को ठीक उसी जगह लक्षित करना जहां भाजपा को जीतना है; पांचवां कदमः सुबूत छिपाना’ यह देखना मुश्किल नहीं है कि महाराष्ट्र में भाजपा इतनी हतारा क्यों थी। लेकिन हेराफेरी मैच फिक्सिंग की तक है। जो पक्ष धोखा देता है, वह खेल जीत सकता है, लेकिन (यह) संस्थाओं को नुकसान पहुंचायेगा और नतीजों में जनता का विश्वास खत्म कर देगा। सभी चिंतित भारतीयों को सबूत देखना चाहिए। खुद ही फैसला करें। जवाब मांगें, गांधी ने कहा।

अब कई अन्य विपक्षी नेताओं ने भी प्रमाण मांगे हैं। लोगों को सीधे चुनाव आयोग से जवाब चाहिए, लेकिन दुर्भाग्य से कथित तौर पर लाभार्थी पार्टी भाजपा और उसके नेता चुनाव आयोग की ओर से जवाब दे रहे हैं। फिर चुनाव आयोग की जवाब कहां है? भास भारत को निश्चित रूप से संदेश से परे चुनाव आयोग की जरूरत है जिसे उसे अब बहाल किया जाना ही उचित होगा।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।