भीड़ प्रबंधन के लिए हमें एक राष्ट्रीय नजरिया चाहिए      Publish Date : 21/08/2025

    भीड़ प्रबंधन के लिए हमें एक राष्ट्रीय नजरिया चाहिए

                                                                                                                                                              प्रोफेसर आर. एस. सेंगर

भारत अपने जलसों-जन-समूहों से फलता-फूलता हुआ एक देश है। चाहे क्रिकेट की जीत के जश्न हों, राजनीतिक रैलियां हों, धार्मिक उत्सव हों या फिर सेलीब्रिटी के कार्यक्रम, हजारों, बल्कि कई बार तो लाखों का हुजूम सड़कों पर, मैदानों में उमड़ आता है। यह भीड़ हमारे देश की जीवंतता तो प्रदर्शित करती है, मगर यह सुरक्षा और प्रबंधन के लिए एक चुनौती भी पेश कर देती है।

हाल के दिनों में हुई त्रासदियों ने भीड़ के कुप्रबंधन की स्थिति को उजागर किया है। इस समस्या का समाधान केवल सख्त पुलिस निगरानी या हादसे के बाद की जांच से नहीं किया जा सकता है। इसका हल व्यवस्थित योजना के बनाने से ही सम्भव है और इस मामले में हमारे देश का प्रशासन अक्सर कमजोर साबित होता है। भारत में भीड़ बढ़ती जा रही है। पहले वार्षिक तीर्थ यात्राओं या चुनावी रैलियों की भीड़ का आकलन करना आसान था, परन्तु अब तो सोशल मीडिया से प्रेरित होकर मिनटों में अचानक भारी भीड़ जमा हो जाती है।

                                                        

अचानक जमा होने वाली यह प्रवृत्ति ज्यादातर कस्बाई इलाकों में देखी जाती है, जहां भीड़ को संभालने की कोई मशीनरी भी नहीं होती।

इस भीड़ को संभालने के लिए बैरिकेड लगाने, लाठीचार्ज आदि की पारंपरिक व्यवस्थाएं लगातार बेमानी साबित होती जा रही हैं। हमारी पुलिस कुशल और साहसी है, मगर इस तरह की समस्या से निपटने के लिए जरूरी साजो-सामान से लैस नहीं है।

भारत को भीड़ प्रबंधन के लिए एक राष्ट्रीय ढांचे की तत्काल आवश्यकता है, जो भीड़ के आकार, आयोजन के प्रकार और स्थानीय बुनियादी ढांचे के अनुरूप लचीली व बहुस्तरीय प्रणाली हो। भीड़ की सुरक्षा की जिम्मेदारी केवल जिला पुलिस पर छोड़ना उचित नहीं है। इसे शहरी नियोजन और आपदा प्रबंधन की रणनीतियों के अन्तर्गत शामिल किया जाना चाहिए।

स्थानीय स्तर पर संयुक्त संचालन केंद्र (जेओसी) गठित होने पर भी समन्वय के तरीके बदल सकते हैं। पुलिस, अग्निशमन सेवाएं, स्वास्थ्य टीमें, परिवहन विभाग और नगर पालिकाएं सामूहिक रूप से एक स्पष्ट कमांड के तहत काम करती हुई दिखाई दें। जेओसी फैसलों और संसाधनों को सुव्यवस्थित कर सकते हैं, ताकि जरूरत पड़ने पर तत्काल सक्रियता से प्रभावी कदम उठाए जा सकें।

                                                     

कई शहरों में पहले से ही सीसीटीवी नेटवर्क और ड्रोन निगरानी प्रणाली मौजूद हैं। इन्हें एआई (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस) संचालित भीड़ प्रबंधनजन-सघनता की जांच करने वाले ट्रैकिंग सॉफ्टवेयर से जो2ड़कर उचित समय पर अलर्ट किया जा सकता है। लेकिन समस्या यह है कि देश की अधिकांश पुलिस इकाइयों के पास ऐसे एकीकृत उपकरण उपलब्ध ही नहीं हैं।

केंद्रीय गृह मंत्रालय पुलिस बलों के आधुनिकीकरण योजना के तहत इस समस्या का समाधान कर सकता है। इसके लिए राज्यों को आवश्यक संसाधन मुहैया करा सकता है। इस काम में भारतीय प्रौद्योगिकी कंपनियों और शोध संस्थानों को भी लगाया जा सकता है।

हमारे यहाँ बहुत से शहरों में स्पष्ट चेतावनी संकेतकों, अनेक निकास द्वारों या सुरक्षित आवागमन के लिए आवश्यक दिशा-निर्देश प्रणाली का अभाव है। इसलिए स्मार्ट सिटी जैसे शहरी विकास कार्यक्रमों को अपनी नियमित विकास योजनाओं में भीड़ को ध्यान में रखते हुए डिजाइन को प्राथमिकता देनी चाहिए। कुंभ या स्थानीय मेलों जैसे बार-बार होने वाले आयोजनों के बारे में भी सोचने की जरूरत है। इसे अस्थायी तौर पर बनाए गए ढांचे से प्रबंधित किया जा सकता है। इसके लिए बहुत ज्यादा धन की जरूरत नहीं होगी, बस सटीक योजना बनाने की आवश्यकता है।

                                                      

भारत जैसे विशाल देश में भीड़ को पूरी तरह नियंत्रित करना वास्तव में एक बड़ी चुनौती है, पर इससे कोई समझौता नहीं किया जा सकता। भारत में इस चुनौती का सामना करने के लिए प्रतिभाओं, उपकरणों और संस्थानों की कोई कमी नहीं है, बस नीति और क्रियान्वयन, केंद्र, राज्य और स्थानीय एजेंसियों में तालमेल की आवश्यकता है।

भारत जैसे देश में, जहां लोग अक्सर इकट्ठा होते ही रहेंगे, सार्वजनिक सुरक्षा अपनी प्रणालियों को व्यवस्थित करने में निहित है। समय आ गया है कि हम बेहतर योजना बनाएं और यह सुनिश्चित करें कि भारत के ये जीवंत धार्मिक, सामाजिक और राजनीतिक आयोजन जोखिम का नहीं, बल्कि गर्व का स्रोत बनें।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।