
विश्व की महाशक्तियां अपने विनाश की ओर Publish Date : 04/08/2025
विश्व की महाशक्तियां अपने विनाश की ओर
प्रोफेसर आर. एस. सेंगर
पहले कभी विश्व दो महा-शक्तियों के बीच बंटा दिखाई देता था, एक तरफ साम्यवादी रूस तो दूसरी तरफ पूंजीवादी अमेरिका। बीसवीं सदी के उत्तरार्द्ध में सोवियत रूस के विघटन के बाद उसने महाशक्ति होने के अपने स्वरूप खो दिया। विगत वर्षों से युद्धरत रूस और भी कमजोर होता जा रहा है, और अमेरिकी राष्ट्राध्यक्ष की आजकल की हरकतें महाशक्ति हाथ से निकलने की छटपटाहट ही दिखाती है।
अमेरिका फर्स्ट का नारा देने की आवश्यकता इसीलिए पड़ी क्योंकि उन्हें अपनी शक्ति कम होती और प्रासंगिकता समाप्त होती लग रही है। विश्व ने अनुभव किया कि इन महाशक्तियों ने किसी को सुख और शांति नहीं दी बल्कि सबको समाप्त करने की चाहत को ही बनाए रखा।
इन शक्तियों के उदय के समय विश्व में बंदर बांट मची हुई थी। यह शाश्वत सत्य है कि जो किसी की अशांति का कारण बनेगा उसका अपना जीवन भी कभी शांति पूर्वक नहीं चल सकता, चाहे वह कोई व्यक्ति हो, समाज हो या फिर कोई राष्ट्र। शक्ति को प्राप्त करना एक अलग बात है और उसे दीर्घ काल तक संचित रखना उससे भी अधिक महत्व की बात होती है, और यह शक्ति तब तक ही रहती है जब तक कि उसका उपयोग सकारात्मकता में होता रहता है। भारत अनेक शताब्दियों तक विश्व की बड़ी शक्ति बनकर इसलिए रहा क्योंकि हमारे विचार में सभी का कल्याण करना प्राथमिकता में रहा है।
हमारी शक्ति का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि हजार वर्षों के निरंतर आक्रमण के बाद भी हम न केवल अड़े हुए हैं बल्कि हम सीना ताने खड़े हुए भी हैं। जैसा कि आजकल चल रहा है ऐसे में क्या अमेरिका या रूस 10-20 वर्षों तक भी आक्रमण झेल सकेंगे? और क्या उसके बाद इनका अस्तित्व बचा रह सकेगा?
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।