
मक्के से बने इथेनॉल का सच Publish Date : 03/08/2025
मक्के से बने इथेनॉल का सच
प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 रेशु चौधरी
मक्के से बने इथेनॉल की कीमत 71.86 रुपये प्रति लीटर है, जबकि गन्ने के रस से बने इथेनॉल की कीमत 65.61 रुपये प्रति लीटर है। इथेनॉल मूल्य निर्धारण को लेकर भी विशेषज्ञों ने भी सवाल उठाए हैं।
भारत में इथेनॉल ब्लेंडिंग कार्यक्रम के तहत मक्के की बढ़ती खपत ने कृषि, पोषण और व्यापार क्षेत्रों में चिंता बढ़ा दी है। विशेषज्ञों का कहना है कि यह रुझान खाद्य सुरक्षा, पशु चारे की उपलब्धता और फसल संतुलन के लिए गंभीर खतरा बन सकता है।
मक्का, जो भारत की खाद्य और पशु आहार अर्थव्यवस्था का एक अहम हिस्सा है, का उपयोग अब इथेनॉल उत्पादन के लिए बड़े पैमाने पर किया जा रहा है। आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2022-23 में जहां इथेनॉल के लिए 8 लाख टन मक्का का इस्तेमाल हुआ था, वहीं वर्ष 2024-25 में यह मांग बढ़कर 128 लाख टन तक पहुंचने का अनुमान है। यह देश की कुल मक्का उत्पादन (390 लाख टन) का 34 प्रतिशत से भी अधिक है।
मक्का की कमी से आयात बढ़ा
भारत, अमेरिका और ब्राजील जैसे इथेनॉल उत्पादन में अग्रणी देशों की तरह मक्के की अधिशेष पैदावार नहीं करता। इसकी बढ़ती मांग के चलते वर्ष 2024-25 में मक्के का आयात 8 लाख टन तक पहुंच गया है, जो पिछले वर्ष के 1.27 लाख टन से कई गुना अधिक है।
एक वरिष्ठ कृषि अर्थशास्त्री ने चेतावनी भी दी, “यह रुझान अस्थिर है। इससे हम न केवल अपनी फसल अर्थव्यवस्था को बिगाड़ रहे हैं, बल्कि इथेनॉल कार्यक्रम के मूल लक्ष्य तेल आयात पर निर्भरता कम करने की स्थिति को भी कमजोर कर रहे हैं।”
खाद्य और चारे दोनों के लिए अहम है मक्का
मक्का भारत के आदिवासी और ग्रामीण क्षेत्रों में एक मुख्य खाद्य अनाज है, वहीं पशुपालन और पोल्ट्री उद्योग के लिए यह मुख्य चारा भी है। पशु आहार में लगभग 60-65 प्रतिशत हिस्सा मक्के का होता है और अकेला पोल्ट्री सेक्टर देश के कुल मक्का उत्पादन का 47 प्रतिशत तक भाग का उपयोग करता है। मक्का के Diverted होने से चारे की लागत बढ़ रही है, जिससे अंडे और चिकन जैसे उत्पादों के दाम में भी तेजी आ रही है।
बिगड़ रहा है खेती का संतुलन
देश में करीब 77 प्रतिशत मक्का वर्षा पर आधारित खरीफ फसल के रूप में उगाया जाता है, जो मौसम के उतार-चढ़ाव के प्रति अधिक संवेदनशील होती है। वर्ष 2024-25 में मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में मक्के की खेती का रकबा क्रमशः 50 प्रतिशत और 94 प्रतिशत तक बढ़ गया है।
इस विस्तार ने दालें, सोयाबीन और तिलहन जैसी अहम फसलों की खेती को भी पीछे धकेल दिया है। भारत को वर्ष 2023-24 में 68.7 लाख टन दालों का आयात करना पड़ा, जो अब तक का दूसरा सबसे बड़ा आयात है। साथ ही, देश की 66 प्रतिशत खाद्य तेल आवश्यकता भी आयात के माध्यम से ही पूरी होती है।
इथेनॉल की कीमतों में असंतुलन
इथेनॉल के मूल्य निर्धारण को लेकर भी विशेषज्ञों ने सवाल उठाए हैं। मक्के से बने इथेनॉल की कीमत ₹71.86 प्रति लीटर है, जबकि गन्ने के रस से बने इथेनॉल की कीमत ₹65.61 प्रति लीटर है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह मूल्य संरचना पारिस्थितिक रूप से बेहतर विकल्पों को हतोत्साहित करती है।
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।