जलवायु क्षेत्र में भारत की प्रगति      Publish Date : 26/07/2025

                 जलवायु क्षेत्र में भारत की प्रगति

                                                                                                  प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 रेशु चौधरी

आज मानव द्वारा उत्पन्न जलवायु परिवर्तन के प्रभाव पूरी दुनिया में महसूस किए जा रहे हैं। जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल (आईपीसीसी) की छठी आकलन रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि 2011-20 के दशक में पृथ्वी का तापमान, पूर्व-औद्योगिक काल (1850-1900) की तुलना में 1.1 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ गया है। साथ ही, विकसित देश वैश्विक कार्बन बजट में असंगत हिस्सेदारी रखने के बावजूद जलवायु कार्यवाई को गति देने के लिए आवश्यक साधन प्रदान करने के प्रति इच्छुक नहीं दिखाई देते।

इस वैश्विक परिदृश्य के बीच भारत के ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः’ के प्राचीन वैदिक सिद्धांत ने सहस्राब्दियों से मानव सभ्यता का मार्गदर्शन किया है। आज जब पूरी दुनिया जलवायु परिवर्तन के कारण अस्तित्व की चुनौती से जूझ रही है, तो जलवायु प्रबंधन के प्रति भारत की कालातीत वैदिक ज्ञान की प्रतिध्वनि विश्व को मार्ग दिखा रही है। एक ओर, वैश्विक समुदाय अक्सर जलवायु परिवर्तन से उपजी तापमान वृद्धि, अनियमित मौसम पैटर्न और आपदाओं में वृद्धि जैसी ‘असुविधाजनक सच्चाइयों’ में उलझा हुआ है। दूसरी ओर, भारत ने ‘सुविधाजनक कार्यवाई’ के दर्शन को सामने रखा है। हमारे सभ्यतागत लोकाचार में निहित इस दृष्टिकोण ने पिछले ग्यारह वर्षों में भारत को एक कर्तव्यनिष्ठ वैश्विक जलवायु नागरिक में बदल दिया है।

अथर्ववेद का एक श्लोक है, ‘यत् किञ्च पृथिव्यां पृथिवीमनुत्तं हितं चेद् तत्तवायतु । मा नः पृथिव्याः परं हिंसिष्ठाः।’

अर्थात पृथ्वी का जो कुछ भी हम खनन करते हैं, उसे जल्दी से भरने दें, हम पृथ्वी के प्राण-तत्वों पर आघात न करें और न ही उसके हृदय को क्षति पहुंचाएं।

यह श्लोक आधुनिक जलवायु विज्ञान से हजारों साल पहले के पुनर्निर्माण पर आधारित प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन के सिद्धांतों को दर्शाता है। इस प्राचीन ज्ञान को जलवायु कार्रवाई के प्रति हमारे दृष्टिकोण पर आधारित समकालीन नीतिगत ढाँचों में पिरोया गया है, जिससे पारंपरिक ज्ञान और आधुनिक कार्यवाई का एक अनूठा तालमेल बना है।

इस दृष्टिकोण को ध्यान में रखते हुए, वर्ष 2014 में पदभार ग्रहण करने के कुछ सप्ताह के भीतर ही प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने एक सरल लेकिन दूरगामी प्रशासनिक निर्णय के माध्यम से अपनी जलवायु प्रतिबद्धता और दूरदर्शिता का परिचय दिया। पर्यावरण और वन मंत्रालय में ‘जलवायु परिवर्तन’ को जोड़कर, उन्होंने जलवायु कार्रवाई को क्षेत्र-संबंधी चिंता के सीमित दायरे से निकालकर शासन की प्राथमिकता में ला दिया।

वर्ष 2015 में जलवायु परिवर्तन के लिए राष्ट्रीय अनुकूलन कोष का निर्माण इस प्रतिबद्धता का ही उदाहरण है, जिसके द्वारा राज्यों को जलवायु संकट से निपटने से संबंधित संसाधन प्रदान किए जाते हैं। कई राज्य सरकारों ने अपने स्वयं के जलवायु परिवर्तन विभाग स्थापित करके इस कदम का समर्थन किया, जिससे जलवायु कार्रवाई की एक संघीय व्यवस्था तैयार हुई। वर्ष 2015 में, प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में, भारत ने वैश्विक जलवायु वार्ता में अग्रणी भूमिका निभाई है।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।