कचरे के पहाड़ों पर खेती करें होगी कमाई      Publish Date : 19/07/2025

             कचरे के पहाड़ों पर खेती करें होगी कमाई

                                                                                                                                                       प्रोफेसर आर. एस. सेंगर

वर्तमान में कचरा एक गंभीर वैश्विक समस्या बन कर उभरा है। भारत की बात करें, तो वर्ष 2023 में पर्यावरण की स्थिति पर जारी एक रिपोर्ट के अनुसार, देश में प्रतिदिन लगभग डेढ करोड़ टन ठोस कचरा पैदा हो रहा है, जिसमें से केवल एक-तिहाई से भी कम कचरे का उचित तरीके से निष्पादन हो पाता है। बाकी बचे कचरे का हम खुले स्थानों पर ढेर लगाते हैं, जिसे कचरे की लैंडफिलिंग कहते हैं। हमारे देश में कचरे की लैंडफिलिंग कचरे के निष्पादन का प्रमुख तरीका है, जो बिलकुल अवैज्ञानिक है।

देश में हजारों लैंडफिल के स्थान हैं, जहां हजारों टन ठोस कचरा जमा होता है, जिनमें दिल्ली का गाजीपुर, ओखला, भलस्वा, मुंबई की मुलुंड, देवनार, नागपुर की भांडेवाड़ी, अहमदाबाद की पिराना और बैंगलुरु की मंदर लैंडफिल साइट्स ऐसी डंपिग साइट्स हैं, जहां कचरे के बड़े-बड़े पहाड़ बन चुके हैं। एक अनुमान के अनुसार देशभर में मौजूद कचरे के पहाड़ों के नीचे लगभग 15,000 एकड़ जमीन दबी हुई है. जिस पर लगभग 16 करोड़ टन कचरा जमा है।

देश में बढ़ते यह कचरे के पहाड़ पानी, हवा एवं मिटटी को दूषित कर पर्यावरण एवं मानव की मेहत के लिए गंभीर खतरा बने हुए हैं। कचरे के पहाड़ों को खत्म करने के लिए सरकार ने ‘स्वच्छ भारत मिशन’ के अन्तगर्त 10 वर्ष में सैकड़ों करोड़ रुपए खर्च किए, लेकिन आवास एवं शहरी मामलों के मंत्रालय के ताजा आंकड़ों के अनुसार केवल 15 फीसदी ही कचरे के पहाड़ों को साफ एवं 35 फीसदी कचरे को निष्पादित किया जा सका है।

अगर इस गति और इतने खर्च से कचरे के पहाड़ों के निष्पादन का काम होगा, तो शायद यह कचरे के पहाड़ कभी भी खत्म नहीं हो पाएंगे और अगर कचरे के पहाड़ खत्म हो भी जाते हैं, तो उन्हें खत्म करने में जो खर्चा आएगा, वह शायद कचरे के पहाड़ों से होने वाले नुकसान से भी कहीं अधिक होगा, इसलिए मौजूदा कचरे के पहाड़ों को साफ करने की व्यवस्था के साथ-साथ कचरे के पहाड़ों पर खेती करने की कार्ययोजना बनाई जाए, क्योंकि देश में मौजद अधिकतर कचरे के पहाड़ों में 50 फीसदी से अधिक जैव कचरा होता है, इसलिए कचरे के पहाड़ों पर खेती संभव हो सकती है।

कचरे पर खेती करने की तकनीक

                                                   

कचरे पर खेती करने की तकनीक पर्यावरण हितैषी, आर्थिक रूप से सस्ती और सामाजिक रूप से स्वीकार्य तकनीकी है। इस तकनीक में कचरे के पहाड़ों पर खेती की जाती है, जिस में सजावटी पौधों, फूलों, औषधीय पौधों और हरित खाद की खेती के साथ-साथ बड़े पेड़-पौधों और झाड़ियां आदि को भी उगाया जाता हैं। कचरा पर खेती करने के दौरान अनाज, दलहन एवं तिलहन आदि की फसलें, फल एवं सब्जियों की खेती नहीं की जा सकती, क्योंकि इन कचरे के पहाड़ों में जहरीला कचरा भी मौजूद होता है जैसे भारी धातुएं और जैव रासायनिक प्रक्रिया से बहुत से जहरीले कैमिकल पैदा होते हैं, जो उगाए गए पौधों में समाहित हो जाते हैं। यदि इन पौधों के किसी भी भाग का उपयोग पशुओं या मानव के द्वारा किया जाता है, तो यह जहरीले तत्त्व पौधों के माध्यम से मानव एवं पशुओं के शरीर में जा कर गंभीर सेहत संबंधी समस्याएं उत्पन्न कर सकते हैं।

कचरे के पहाड़ों पर खेती करने के लिए सबसे पहले कचरे के पहाड़ों को सीढ़ीनुमा खेत में बदलते हैं, जिसमें सीढ़ी का ढाल अंदर की ओर रखते हैं। जिससे कचरे के पहाड़ से निकलने वाला जहरीला तरल पदार्थ बह कर पहाड़ के बाहर न जाए।

इस के बाद सीढ़ीनुमा कचरे के खेत में न सड़ने वाला कचरा जैसे पॉलीथिन, प्लास्टिक और धातु के कचरे को लगभग 30 फिट की गहराई की परत से छांट कर निकाल देते हैं और बचे कचरे को महीन कर लेते हैं। इस के बाद खेत की उपजाऊ मिट्टी में आवश्यकता के अनुसार गोबर या केंचुए या कंपोस्ट खाद और उर्वरकों को मिला कर सीढ़ीनुमा कचरे के खेत में अच्छी तरह मिला देते हैं। यदि कचरे मेें नमी उपलब्ध न हो, तो पानी का छिड़काव कर कचरे को नम बना लेते हैं। इस के बाद सीड़ीनुमा खेत के अंदर नर्सरी में तैयार पौधों का रोपण कर देते हैं।

ध्यान रहे कि कचरा खेती में बीजों को सीधे कचरे के खेत में नहीं बोते, क्योंकि कचरे में बीजों का जमाव ठीक से नहीं हो पाता है, इसलिए पौधों को नर्सरी में तैयार कर रोपण करते हैं। लेकिन जिन पौधों या फसलों की नर्सरी तैयार करना कठिन होता है, ऐसी फसलों के बीजों की बोआई करते हैं, जैसे हरी खाद की फसलें ढैंचा और सनई आदि। कचरे के सीढ़ीनुमा खेतों में पेड़-पौधों को लगाने के लिए चिन्हित स्थानों पर एक मीटर लंबाई, चौड़ाई और गहराई के गड्ढे खोद कर उन का कचरा बाहर निकाल देते हैं और फिर उन में मिट्टी और सड़ी गोबर की खाद के तैयार मिश्रण को भर कर पौधों को रोप दिया जाता हैं।

पौधों मौसम में करते की कारोबार के जरूरत न पड़े और पौधों की बढ़वार भी अच्छी हो सके। पौधों की बढ़वार एवं विकास के लिए आवश्यकता के अनुसार सिंचाई ड्रोन, स्प्रिंकलर या ड्रिप विधि से और ड्रोन से ही कीटनाशक रसायन और रोग एवं खरपतवार प्रबंधन का काम भी इसके साथ ही करते रहते हैं।

कचरा खेती से प्राप्त लाभ

  • कचरे के पहाड़ों पर खेती करने से कचरे के दुर्गंध वाले पहाड़ों को बिना खत्म किए हरित क्षेत्र में बदला जा सकता है।
  • गरमियों के दिनों में कचरे के पहाड़ों में आग लगने की समस्या का भी समाधान हो जाता है।
  • कचरे के पहाड़ों से निकलने वाली दुर्गंध फूलों की सुगंध में परिवर्तित हो कर आसपास के वातावरण को शुद्ध करती है।
  • कचरे के पहाड़ों से उड़ने वाली धूल पर भी प्रभावी नियंत्रण होगा। कचरे के पहाड़ों पर खेती करने से आसपास का वातावरण स्वच्छ रहेगा, तो पहाड़ों के आसपास की बस्तियों में रहने वाले लोगों में बीमारियों का खतरा भी कम होगा।
  • कचरा खेती से कचरे के पहाड़ों के आसपास के लोगों को रोजगार और आय सुजन के अवसर भी उपलब्ध होंगे।
  • लंबे समय तक कचरे के पहाड़ों पर खेती करते रहने पर कचरे के पहाड़ धीरे-धीरे स्वतः ही अपघटित हो कर एक समतल खेत में बदल जाएंगे, क्योंकि कचरे के पहाड़ों पर खेती करने से पेड़-पौधों की जड़ों के माध्यम से वर्षा एवं सिचाई का पानी कचरे के पहाड़ के अंदर तक कचरे को गीला रखेगा, जिस से कचरे का अपघटन तेज होगा और पेड़-पौधों की जड़ों में उपस्थित असंख्य सूक्ष्मजीव कचरे को सड़ाने में मददगार होंगे।
  • पेड़-पौधों की जड़ों से निकलने वाले विभिन्न प्रकार के अम्ल कचरे को गलाने एवं सड़ाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे, इसलिए कचरे के पहाड़ धीरे-धीरे विघटित एवं अपघटित हो कर जमींदोज हो जाएंगे।

मौजूद कचरे के पहाड़ों को खत्म करने के काम के साथ ही साथ स्थानीय स्तर पर ही कचरे के निष्पादन की कार्ययोजना पर काम किया जाना चाहिए, जिससे भविष्य में नए कचरे के पहाड़ अस्तित्व में न आ सकें।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।