
स्वच्छता है तो स्वस्थ है हमारा पर्यावरण Publish Date : 11/07/2025
स्वच्छता है तो स्वस्थ है हमारा पर्यावरण
प्रोफेसर आर. एस. सेंगर
स्वच्छता मानवता के सतत् विकास में एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है। भारत में स्वच्छ भारत अभियान जैसी पहल एक स्वच्छ और स्वस्थ राष्ट्र के निर्माण में इसके महत्व को उजागर करती है। दूसरे शब्दों में कहें तो स्वच्छता केवल एक बुनियादी आवश्यकता ही नहीं है, बल्कि एक स्वस्थ, सुरक्षित और सम्मानजनक जीवन का भी आधार है और राष्ट्रीय प्रगति का एक महत्वपूर्ण आधार है।
मानव स्वास्थ्य, पर्यावरण और समग्र कल्याण को बनाए रखने में स्वच्छता एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह मानव अपशिष्ट, स्वच्छ पेयजल और उचित स्वच्छता अभ्यासों के सुरक्षित प्रबंधन आदि क्रियाओं को संदर्भित करता है। हैजा, दस्त, टाइफाइड और अन्य जलजनित बीमारियों जैसे रोगों के प्रसार को रोकने के लिए अच्छी स्वच्छता आवश्यक है जो जीवन के लिए खतरा हो सकती है, खासकर बच्चों और कमजोर प्रकृति के व्यक्तियों के लिए। उचित स्वच्छता दरअसल संक्रमण के चक्र को तोड़ने में मदद करती है और एक स्वस्थ वातावरण सुनिश्चित करती है।
यह स्वास्थ्य देखभाल की लागत को कम करने, उत्पादकता में सुधार करने और जीवन की गुणवत्ता को बढ़ाने में भी अपना अहम योगदान देती है। दूसरी ओर, अपर्याप्त स्वच्छता से युक्त जल स्रोत, मिट्टी और भोजन दूषित हो जाते हैं जिससे, परिवारों और समुदायों पर गंभीर स्वास्थ्य जोखिम और आर्थिक बोझ पड़ता है।
यदि हम व्यक्तिगत स्तर पर स्वच्छता का अभ्यास करते हैं तो हमें सबसे पहले अपने घरों में इसे सुनिश्चित करना चाहिए और फिर समाज में दूसरों लोगों को भी इसके लिए प्रेरित करना चाहिए। देश का प्रत्येक नागरिक स्वच्छता, अपने शरीर और पर्यावरण के स्वास्थ्य के लिए जिम्मेदार है।
यदि हम अपने पर्यावरण को गंदा रखते हैं तो यह कार्य बीमारियों के प्रकोप का कारण बनेगा जो हमारे साथ ही दूसरों को भी प्रभावित करेगा। तो अस्वच्छ आदतों को कैसे सराहनीय माना जा सकता है? ग्रामीण स्वच्छता और पर्यावरण ग्रामीणों की प्रवृत्ति और दृष्टिकोण को दर्शाता है और चूंकि भारत एक गांवों का देश है, इसलिए यह देश के समग्र दृष्टिकोण में योगदान करते हैं। यदि लोग स्वच्छता के महत्व के बारे में जागरूक हो जाते हैं, तो वे उसी अनुसार कार्य करेंगे और सुनिश्चित करेंगे कि पर्यावरण स्वच्छ रहे। स्वच्छ पर्यावरण हमें और जैव विविधता को भी स्वस्थ रखेगा।
स्वच्छता और पर्यावरण के बीच अंतर्संबंध:
स्वच्छता और पर्यावरण आपस में गहराई से जुड़े हुए हैं, क्योंकि जिस तरह से हम मानव अपशिष्ट, अपशिष्ट जल और स्वच्छता अभ्यासों का प्रबंधन करते हैं, उसका हमारे पारिस्थितिकी तंत्र के स्वास्थ्य पर भी एकदम सीधा प्रभाव पड़ता है। खराब स्वच्छता से पर्यावरण का क्षरण हो सकता है जबकि स्वच्छ पर्यावरण बेहतर स्वच्छता और सार्वजनिक स्वास्थ्य का समर्थन करता है।
खराब स्वच्छता से संबंधित प्रमुख पर्यावरणीय चिंताओं में से एक जल प्रदूषण है। जब मानव अपशिष्ट का उचित तरीके से उपचार या निपटान नहीं किया जाता है तो यह नदियों, झीलों और भूजल स्रोतों को दुषित कर सकता है। यह न केवल जलीय जीवन को प्रभावित करता है बल्कि उन लोगों के लिए गंभीर स्वास्थ्य जोखिम भी पैदा करता है जो पीने, खाना पकाने और सिंचाई के लिए इन जल स्रोतों पर निर्भर होते हैं। इसी तरह, ठोस अपशिष्ट और सीवेज के अनुचित निपटान से मृदा संदूषण होता है।
हानिकारक रोगाणु और रसायन जमीन के अंदर रिसते हैं, जिससे मिट्टी की उर्वरता प्रभावित होती है और कृषि को नुकसान पहुँचता है। शहरी क्षेत्रों में, खुले में शौच और बंद नालियों के कारण गंदगी, दुर्गंध और मच्छरों तथा अन्य रोग फैलाने वाले कीटों के प्रजनन के लिए जगह बनती है।
दूसरी ओर, सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट, पर्यावरण के अनुकूल शौचालय और अपशिष्ट पुनर्चक्रण जैसी बेहतर स्वच्छता प्रणालियाँ प्रदूषण को काफी हद तक कम कर सकती हैं और पर्यावरण संरक्षण का समर्थन कर सकती हैं। ये प्रणालियां कचरे के सुरक्षित निपटान या पुनः उपयोग, प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण और पारिस्थितिक संतुलन को बनाए रखने में मदद करती हैं।
जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम करने में भी स्वच्छता एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। खराब अपशिष्ट प्रबंधन के कारण अनुपचारित सीवेज और खुले लैंडफिल से मीथेन जैसी ग्रीनहाउस गैसें निकलती हैं। पर्यावरण की दृष्टि से टिकाऊ स्वच्छता प्रथाएँ इन उत्सर्जनों को कम करने और एक हरित ग्रह को बढ़ावा देने में मदद करती हैं।
स्वच्छता और पर्यावरण एक बड़े चक्र का हिस्सा हैं जहाँ एक का स्वास्थ्य दूसरे को प्रभावित करता है। स्वच्छ और कुशल स्वच्छता प्रणालियों को बढ़ावा देना न केवल मानव स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण है बल्कि प्राकृतिक संसाधनों की सुरक्षा और भावी पीढ़ियों के लिए सतत् विकास सुनिश्चित करने के लिए भी उतना ही आवश्यक है।
स्वच्छता और स्वास्थ्य के बीच अंतःसंबंध
स्वच्छता संबंधी व्यवहार, स्वच्छता से बहुत निकटता से जुड़े हैं जो स्वास्थ्य को बढ़ावा देता है। स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का कारण बनने वाले अपशिष्टों में मानव और पशु मलमूत्र, ठोस अपशिष्ट, घरेलू अपशिष्ट जल (सीवेज), औद्योगिक अपशिष्ट और कृषि अपशिष्ट आदि शामिल होते हैं। स्वच्छता व्यक्तिगत स्वच्छता को दर्शाती है। हाथ धोना, नहाना और साफ कपड़े पहनना जैसी आदतें स्वच्छता संबंधी आदतें हैं।
ग्रामीण भारत में, सीवेज उपचार, सतही अपवाह प्रबंधन, ठोस अपशिष्ट प्रबंधन, मलमूत्र प्रबंधन आदि जैसे इंजीनियरिंग समाधानों के अनुप्रयोग के माध्यम से स्वच्छता और स्वास्थ्यकर स्थितियों को सुनिश्चित किया जा सकता है और इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए, सरल तकनीकें (जैसे, गढ्डे वाले शौचालय, शुष्क शौचालय, मूत्र-विसरजन वाले शुष्क शौचालय, सेप्टिक टैंक आदि) और व्यक्तिगत स्वच्छता प्रथाओं में व्यवहारिक परिवर्तन, जैसे साबुन से हाथ धोना आवश्यक है।
भारत सरकार द्वारा संचालित स्वच्छ भारत अभियान के तहत पूरे देश में गांवों में शौचालय बना रही है, जो ग्रामीण स्वच्छता की दिशा में एक सराहनीय पहल है। उपयोगकर्ता की सुविधा, मलमूत्र और अपशिष्ट जल संग्रहण विधियाँ, अपशिष्ट का परिवहन या परिवहन, उपचार और अपशिष्ट पदार्थों का पर्यावरण-अनुकूल उपयोग सभी पर गहन रूप से पुनर्विचार करने की आवश्यकता है। स्वच्छता प्रणाली का अंतिम उद्देश्य पर्यावरण को स्वच्छ रखते हुए और रोग चक्र को तोड़कर मानव स्वास्थ्य की रक्षा और संवर्धन करना है।
भारत सरकार स्वच्छ भारत अभियान के तहत पूरे देश में गांवों में शौचालय बना रही है जो ग्रामीण स्वच्छता की दिशा में एक सराहनीय पहल है। उपयोगकर्ता की सुविधा, मलमूत्र और अपशिष्ट जल संवाहण विधियाँ, अपशिष्ट का परिवहन या परिवहन, उपचार और अपशिष्ट पदार्थों का पर्यावरण-अनुकूल उपयोग सभी पर गहन रूप से पुनर्विचार करने की आवश्यकता है।
स्वास्थ्य की दृष्टि से मानव अपशिष्ट (मल और मूत्र) उचित का निपटान करना अति आवश्यक है। यदि इनका सुरक्षित तरीके से निपटान नहीं किया जाता है तो मानव अपशिष्ट हमारे पर्यावरण को प्रदूषित कर सकता है और दस्त तथा हैजा जैसी गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बन सकता है। इन सभी समस्याओं को स्वच्छता और स्वच्छता के अभ्यासों के माध्यम से रोका जा सकता है।
मल में मौजूद कीटाणुओं और कृमियों के कारण होने वाली स्वास्थ्य समस्याएँ लाखों लोगों के लिए लगातार परेशानी का कारण हैं। दस्त और हैजा जैसी गंभीर स्वच्छता संबंधी बीमारियाँ भी अधिक तेज़ी से फैल सकती हैं जिससे लोगों की अचानक मृत्यु भी हो सकती है। संक्रामक बीमारियाँ रोगजनकों (बैक्टीरिया, वायरस, कवक आदि) द्वारा एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैलती है। जब स्वच्छता नहीं होती है तो मल, सड़े हुए खाध पदाथों और अन्य गंदे स्थानों में इन रोगाणुओं का संचारण और मनुष्यों को प्रभावित करना आसान हो जाता है।
रोगाणु स्पर्श के माध्यम से, धूल के साथ हवा के माध्यम से या जब लोग खांसते या छींकते हैं, तब भी सीधे एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैल सकते हैं। वे पीने के पानी और भोजन के माध्यम से भी फैल सकते हैं या मक्खियों और अन्य जानवरों द्वारा ले जाए जा सकते हैं। यहाँ, स्वच्छता और स्वास्थ्य सुनिश्चित करने के लिए स्वच्छ शौचालयों का उपयोग और साबुन से हाथ धोने जैसी स्वच्छता प्रथाओं की आवश्यकता है।
पानी बीमारी फैलाने का मुख्य स्रोत है। घरेलू मक्खियों मनुष्यों में 400 से अधिक बीमारियों को फैलाती हैं। यह मक्खियां मल, मूत्र और दूसरी गंदी जगहों पर बैठती हैं और कीटाणुओं को अपने साथ ले जाती हैं। ये मक्खियों फिर कीटाणुओं को हमारे खाने-पीने की चीज़ों में ले जाती हैं और इसके बाद बीमारियां होती हैं।
स्वच्छतापरक मानव व्यवहारः समय की मांग
जब व्यक्तिगत और सामुदायिक स्तर पर स्वच्छता अभ्यास को व्यवहार में लाया जाता है तो इससे दीर्घकालिक परिवर्तन होते हैं और पर्यावरण तथा जैव विविधता की रक्षा होती है। इसे ‘संधारणीय स्वच्छता’ कहा जाता है। इस स्वच्छता प्रणाली में, निम्नलिखित पाँच मानदंड आवश्यक हैं, यह आर्थिक रूप से व्यवहार्य, सामाजिक रूप से स्वीकार्य, तकनीकी और संस्थागत रूप से उपयुक्त और पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधनों की सुरक्षा करने वाला होना चाहिए। संधारणीय स्वच्छता का स्पष्ट उद्देश्य एक स्वच्छ वातावरण प्रदान करके मानव स्वास्थ्य की रक्षा और संवर्धन करना है जो विशेष रूप से मल-मौखिक मार्ग के माध्यम से संक्रमण को रोककर बीमारी को कम करता है।
स्वच्छता प्रणाली का एक प्रमुख उद्देश्य एक स्वच्छ वातावरण प्रदान करके और बीमारी के दुष्चक्र को तोड़कर मानव स्वास्थ्य की रक्षा और संवर्धन करना है। जैसा कि ऊपर बताया गया है, संधारणीय होने के लिए, एक स्वच्छता प्रणाली को न केवल आर्थिक रूप से व्यवहार्य, सामाजिक रूप से स्वीकार्य और संस्थागत रूप से उपयुक्त होना चाहिए बल्कि इसे पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधनों की भी रक्षा करनी चाहिए। यहां पर्यावरण संरक्षण का अत्यधिक महत्य है।
पर्यावरण-देखभाल के पहलू में प्रणाली के निर्माण, संचालन और रख-रखाव के लिए आवश्यक ऊर्जा, पानी और अन्य प्राकृतिक संसाधन शामिल हैं, साथ ही उपयोग के परिणामस्वरूप पर्यावरण में होने वाले संभावित उत्सर्जन भी शामिल हैं। पुनर्चक्रण की डिग्री, मलमूत्र का पुनः उपयोग और पर्यावरण पर इनके प्रभावों पर भी विचार किया जाता है।
वास्तव में, संभवतः कोई पूर्ण-स्थायी प्रणाली नहीं है। स्थिरता की यह अवधारणा गंतव्य के स्थान पर एक यात्रा की तरह है। चूंकि ऐसा कोई एकल स्वच्छता समाधान नहीं है जो विभिन्न परिस्थितियों में स्थिरता के मानदंडों को पूरा करता हो, इसलिए यह प्रणाली मूल्यांकन स्थानीय ढांचे पर निर्भर करेगा और इसमें मौजूदा पर्यावरणीय, तकनीकी, सामाजिक-सांस्कृतिक और आर्थिक स्थितियां आदि को भी ध्यान में रखना होगा।
पर्यावरण सुरक्षा, जीवन की गुणवत्ता और मानवीय गरिमा किसी भी स्वच्छता दृष्टिकोण के मूल में होनी चाहिए। इसके अलावा, सुशासन के सिद्धांतों और निर्णय लेने में सभी हितधारकों की भागीदारी शामिल है। ग्रामीण स्वच्छता प्रणाली में यह दृष्टिकोण बहुत महत्वपूर्ण हो जाता है। यहाँ कचरे को संसाधन के रूप में माना जाना चाहिए और इसके प्रबंधन का उपयोग ग्रामीण आजीविका उत्थान के रूप में किया जाना चाहिए। ग्रामीण क्षेत्रों में, गढ्डे वाले शीचालयों को मिट्टी-खाद बनाने वाले शौचालयों में बदला जा सकता है जो 1.5 मीटर तक उथले होते हैं और नियमित रूप से दैनिक मिट्टी जोड़कर उनका रख-रखाव आसानी से किया जाता है।
ऐसे गड्डों को समय-समय पर बंद किया जाएगा और मिट्टी से ढ़क दिया जाएगा ताकि खाली करने और कृषि में पुनः उपयोग करने से पहले स्वच्छता और खाद बनाने की अनुमति मिल सके। हमारे देश के कई हिस्सों में इसका अभ्यास किया जा रहा है।
ग्रामीण स्वच्छता लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए जागरूकता तंत्र
शिक्षा विद्यार्थियों को उनके दृष्टिकोण और व्यवहार में सकारात्मक परिवर्तन करने के लिए प्रेरित करती है। यही शिक्षा की शक्ति है। लोगों को स्वच्छता के महत्व और हमारे अच्छे स्वास्थ्य में इसकी भूमिका के बारे में जागरूक करने के लिए विभिन्न जागरूकता तंत्रों का उपयोग भी किया जा सकता है। ग्रामीण जनता में वैज्ञानिक दृष्टिकोण या वैज्ञानिक सोच विकसित करके ग्रामीण स्वच्छता लक्ष्यों को प्राप्त किया जा सकता है। वैज्ञानिक सोच वाले लोग अपने जीवन में सुचित और तर्कसंगत निर्णय लेते हैं।
स्कूल में पढ़ने वाले बच्चे भविष्य में बदलाव के वाहक होते हैं। अगर वे स्कूल से अवता और पर्यावरण संरक्षण की आदतें सीखते हैं तो वे जीवन भर इनका पालन करेंगे और दूसरों को भी इसके लिए प्रेरित करेंगे।
दुर्भाग्य से, विकासशील देशों में, सार्वजनिक स्वास्थ्य और पर्यावरण संबंधी चिंताएँ आमतौर पर संस्थागत सेटिंग जैसे कि नगरपालिका सेवाओं और अस्पतालों में उठाई जाती हैं। हम देश के नागरिकों को ग्रामीण स्वच्छता, पर्यावरण और सार्वजनिक स्वास्थ्य को बढ़ावा देने के लिए अपने व्यक्तिगत स्तर से ही स्वच्छता अधिनियम शुरू करना चाहिए। किसी भी ग्रामीण स्वच्छता प्रणाली में, विकलांग व्यक्तियों पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए और शौचालयों को उनकी ज़रूरतों को पूरा करने के अनुसार ही डिज़ाइन किया जाना चाहिए।
भारत सरकार का पेयजल एवं स्वच्छता मंत्रालय स्वच्छ भारत मिशन के तहत ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में स्वच्छता के लिए कड़ी मेहनत कर रहा है। सरकार और उसके नागरिकों को यह समझना चाहिए कि समाज और देश के विकास के लिए लोगों का स्वास्थ्य आवश्यक है। अगर किसी देश के अधिकांश नागरिक अस्वस्थ हैं तो वे राष्ट्रीय विकास में योगदान नहीं दे सकते। हम जानते हैं कि स्वच्छता मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए महत्वपूर्ण है। भारत में, सरकार लोगों द्वारा स्वच्छता प्रथाओं को अपनाने को सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध है ताकि सार्वजनिक स्वास्थ्य मानकों को प्राप्त किया जा सके।
पर्यावरण संरक्षण, स्वच्छता और स्वास्थ्य को सुनिश्चित करके, विशेष रूप से ग्रामीण और हाशिए पर रहने वाली आबादी के बीच, सतत विकास के लक्ष्य को पूरा किया जा सकता है।
पर्यावरण सुरक्षा, जीवन की गुणवत्ता और मानवीय गरिमा किसी भी स्वच्छता दृष्टिकोण के मूल में होनी चाहिए। इसके अलावा, सुशासन के सिद्धांतों और निर्णय लेने में सभी हितधारकों की भागीदारी शामिल है।
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।