एमएसएमई वित्त : संभावनाओं की नई राह      Publish Date : 18/06/2025

        एमएसएमई वित्त : संभावनाओं की नई राह

                                                                                                                                          प्रोफेसर आर. एस. सेंगर

बदलते वैश्विक व्यापार परिदृश्य, डिजिटलीकरण, हरित प्रौद्योगिकी, और आपूर्ति श्रृंखलाओं के पुनर्गठन के दौर में एमएसएमई को वित्तीय रूप से सशक्त बनाना अत्यंत आवश्यक हो गया है। तेजी से बदलते वैश्विक आर्थिक परिदृश्य, प्रौद्योगिकी के नए आयामों और वित्तीय नवाचारों के बीच, एमएसएमई क्षेत्र के वित्तीय भविष्य को नए दृष्टिकोण, सशक्त नीतियों और अनुकूल वातावरण की आवश्यकता है। यदि आज सही दिशा में प्रयास किए जाएं, तो एमएसएमई न केवल भारत की घरेलू अर्थव्यवस्था को मजबूत कर सकते हैं, बल्कि वैश्विक व्यापार में भी अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज करा सकते हैं। इस संदर्भ में, एमएसएमई वित्त के भविष्य को समझना और उसका प्रभावी मार्गदर्शन करना समय की महत्वपूर्ण मांग बन गया है। इस लेख में हम एमएसएमई वित्त के भविष्य की दिशा, संभावनाओं और चुनौतियों का विश्लेषण करेंगे तथा यह समझने का प्रयास करेंगे कि किस प्रकार यह क्षेत्र भारत की आर्थिक आत्मनिर्भरता और वैश्विक प्रतिस्पर्धा में केंद्रीय भूमिका निभा सकता है।

सू क्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (एमएसएमई) वैश्विक आर्थिक विकास की रीढ़ माने जाते है। संयुक्त राष्ट्र के अनुमान के अनुसार, एमएसएमई दुनिया भर में 90% व्यवसायों, 60-70% नौकरियों और 50% वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में योगदान करते हैं। भारतीय अर्थव्यवस्था में भी एमएसएमई की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि ये स्वरोजगार और उद्यमिता को बढ़ावा देते हैं। प्रोत्साहित करके समावेशी विकास को बढ़ावा देता है और क्षेत्री 7 अप्रैल, 2025 तक, भारत में 6.23 करोड़ से अधिक एमएसएमई पंजीकृत थे, जिनमें लगभग 26.66 करोड़ लोगे को रोजगार मिला हुआ है। ये एमएसएमई भारत के स्थिर मूल पर सकल घरेलू उत्पाद में लगभग एक-तिहाई और देश के कुल निर्यात में 45% से अधिक का योगदान करते हैं।

भारत के परिप्रेक्ष्य में, एमएसएमई क्षेत्र अर्थव्यवस्था का लघुरूप है विभिन्न क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करता है, यह क्षेत्र पिछडे और ग्रामीण इलाकों में बहुआयामी औद्योगीकरण के असंतुलन को कम करने में मदद करता है।

एमएसएमई की विविध प्रकृति उनके खाद्य प्रसंस्करण, वस्त्र, ऑटो घटकों, आतिथ्य, और यहां तक कि चंद्रयान के पुर्जी के निर्माण जैसे विविध क्षेत्रों में उपस्थिति से स्पष्ट होती है। पंजीकृत एमएसएमई में लगभग 70% सेवा क्षेत्र से संबंधित हैं। पंजीकरण के अनुसार शीर्ष क्षेत्र व्यापार, सेवा और विनिर्माण क्षेत्र से जुड़े हुए हैं। सूक्ष्म (माइक्रो) उद्यम पंजीकृत एमएसएमई में सबसे बड़ी संख्या में हैं।

एमएसएमई की परिभाषा

1 अप्रैल, 2025 से सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (एमएसएमई) क्षेत्र की परिभाषा को और व्यापक बना दिया गया है। यह परिवर्तन केंद्रीय बजट 2025 के पैरा 28 में की गई घोषणाओं के अनुरूप किया गया है। बजट के अनुसार, एमएसएमई की परिभाषा में शामिल इकाइयों के लिए टर्नओवर की सीमा को दोगुना कर दिया गया है और संयंत्र एवं मशीनरी/उपकरणों में निवेश की सीमा को 2.5 गुना बढ़ा दिया गया है।

पृष्ठभूमि एवं वर्तमान परिदृश्य

एमएसएमई विकास अधिनियम, 2006 में उद्यमों को संयंत्र और मशीनरी में निवेश के आधार पर वर्गीकृत किया गया था। वर्ष 2015 में आधार-आधारित एक नया ऑनलाइन पंजीकरण तंत्र 'उद्योग आधार मेमोरेंडम' शुरू किया गया। व्यापार में सुगमता और बदलती आर्थिक परिस्थितियों के मद्देनजर, वर्ष 2020 में भारत सरकार ने एमएसएमई की परिभाषा में बदलाव करते हुए। जुलाई 2020 से निवेश के साथ-साथ टर्नओवर को भी मानदंड बनाया। साथ ही, विनिर्माण और सेवा क्षेत्रों के बीच का अंतर समाप्त कर दिया गया जिससे नीति को सरल और व्यावहारिक बनाया जा सके।

एमएसएमई के लिए पंजीकरण को आसान बनाने हेतु पैन से जुड़ा 'उद्यम पंजीकरण पोर्टल' (URP) 1 जुलाई 2020 को शुरू किया गया। यह एक स्व-घोषणा आधारित प्रक्रिया है, जिसमें किसी भी दस्तावेज को जमा करने की आवश्यकता नहीं है। हालांकि, बड़ी संख्या में छोटे उद्यम जीएसटी प्रणाली से बाहर है और URP पर पंजीकृत नहीं हुए हैं। ऐसे उद्यमों के लिए 11 जनवरी, 2023 को 'उद्योग असिस्ट प्लेटफॉर्म' (UAP) लॉन्च किया गया।

1 अप्रैल, 2025 को नई परिभाषा लागू होने के बाद से लेकर 7 अप्रैल, 2025 तक लगभग 2 लाख अतिरिक्त उद्यमों का औपचारिक रूप से पंजीकरण किया गया और उन्हें एमएसएमई की श्रेणी में शामिल किया गया। अब, विस्तृत सीमा और नए मापदंडों के अंतर्गत अधिक उद्यम एमएसएमई के रूप में पात्र होंगे, जिससे उन्हें वित्त, सब्सिडी, कौशल विकास, विपणन और तकनीकी सहायता जैसे लाभ मिल सकेंगे।

औपचारीकरण से उद्यमों को एक पहचान मिलती है और विभिन्न सरकारी योजनाओं का लाभ लेने का अधिकार प्राप्त होता है। हाल के महीनों में एमएसएमई मंत्रालय और उसके क्षेत्रीय कार्यालयों द्वारा राज्य सरकारों, एमएसएमई संघों और अन्य हितधारकों के साथ समन्वय करके औपचारीकरण अभियान चलाया गया है। जहां 1 अप्रैल, 2023 तक URP और UAP पर कुल 1.65 करोड़ एमएसएमई पंजीकृत थे, वहीं 7 अप्रैल, 2025 तक यह संख्या बढ़कर 6.23 करोड़ हो गई है राज्यों में महाराष्ट्र सबसे आगे है (81,62,677 पंजीकृत एमएसएमई के साथ), इसके बाद उत्तर प्रदेश (66,69,911) और तमिलनाडु (50,48,060) का स्थान है।

एमएसएमई का सशक्तीकरण

उद्यम विकास के लिए कौशल विकास और प्रशिक्षण आवश्यक है जिसे सुलभ वित्त, प्रौद्योगिकी, विपणन और सहायक अवसंरचना के माध्यम से सशक्त किया जाना चाहिए। भारत सरकार की हालिया पहलों ने इन सभी आवश्यक पहलुओं में महत्वपूर्ण हस्तक्षेप किया है। परिणामस्वरूप, एमएसएमई क्षेत्र ने मजबूती दिखाई है, अभूतपूर्व वृद्धि दर्ज की है और जीडीपी, निर्यात तथा रोजगार में अपने विशाल योगदान को और मजबूत किया है।

ऐसे परिदृश्य में, विकासोन्मुख एमएसएमई स्वाभाविक रूप से इस चिंता से ग्रस्त होते हैं कि यदि वे अपनी एमएसएमई की स्थिति खो बैठते हैं, तो उन्हें मिलने वाले लाभों से भी वंचित होना पड़ सकता है। इस चिंता को दूर करने के लिए बजट 2025 में वर्गीकरण की कसौटी को बढ़ाने की घोषणा की गई। इससे उद्यम बिना किसी रुकावट के अपने विकास पथ पर आगे बढ़ सकेंगे। यह संशोधन न केवल मौजूदा एमएसएमई को पुनः वर्गीकृत करेगा, बल्कि उन कुछ उद्यमों को भी एमएसएमई की श्रेणी में लाएगा जो अब तक बड़े उद्यमों के रूप में वर्गीकृत थे। इससे समावेशिता, विकास और वैश्विक प्रतिस्पर्धा को और बल मिलेगा।

एमएसएमई वित्त

सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (एमएसएमई) को प्राथमिकता क्षेत्र ऋण (PSL) श्रेणी में आते हैं। भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के निर्देशों के अनुसार, घरेलू वाणिज्यिक बैंकों के समायोजित शुद्ध बैंक ऋण (ANBC) का कम से कम 40% हिस्सा प्राथमिकता क्षेत्र में देना अनिवार्य है। इसमें से 75% हिस्सा विशेष रूप से सूक्ष्म उद्यमों के लिए निर्धारित किया गया है।

आरबीआई ने बैंकों को निर्देश दिए हैं-

  • सूक्ष्म और लघु उद्यमों (MSES) को दिए जाने वाले ऋण में प्रति वर्ष 20% की वृद्धि सुनिश्चित की जाए।
  • सूक्ष्म उद्यमों के खातों की संख्या में प्रति वर्ष 10% की वृद्धि की जाए।
  • MSES क्षेत्र को दिए गए कुल ऋण का कम से कम 60% हिस्सा सूक्ष्म उद्यमों को दिया जाए (पिछली तिमाही के आंकड़ों के आधार पर)।
  • पीएसएल के तहत ऋण देने के लिए बैंकों को उद्यम पंजीकरण पोर्टल (URP) या उद्यम असिस्ट प्लेटफॉर्म (UAP) पर जारी प्रमाणपत्र में दर्ज वर्गीकरण का पालन करना होता है।

बैंकों को यह भी निर्देश दिए गए हैं-

  • 10 लाख तक के ऋण के लिए कोई संपार्श्विक सुरक्षा न ली जाए।
  • प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम (PMEGP) के अंतर्गत आने वाली सभी इकाइयों को बिना जमानत ऋण उपलब्ध कराया जाए।
  • यदि किसी इकाई का वित्तीय रिकॉर्ड और प्रदर्शन संतोषजनक हो, तो 25 लाख तक के ऋण पर भी संपार्श्विक की शर्त हटाई जा सकती है।
  • बैंकों को क्रेडिट गारंटी योजना (CGS) के अंतर्गत सुरक्षा कवरेज प्राप्त करने की सलाह दी गई है।

एमएसएमई क्षेत्र के लिए एक और स्वागतयोग्य पहल, 21 फरवरी 2025 को जारी आरबीआई का मसौदा परिपत्र है। इसमें आरबीआई ने हितधारकों से सुझाव मांगे हैं कि फ्लोटिंग रेट ऋणों के समय-पूर्व भुगतान या समापन पर शुल्क लगाने की प्रथा को समाप्त किया जाए। यदि यह निर्देश लागू होता है, तो एमएसई इकाइयों को अन्य बैंकों से कम ब्याज दर या बेहतर शर्तों पर ऋण लेने में सुविधा होगी, क्योंकि उन्हें अतिरिक्त शुल्क नहीं देना पड़ेगा।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।