
भारत में अणु खनिज उपलब्धता Publish Date : 05/06/2025
भारत में अणु खनिज उपलब्धता
प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं अन्य
वर्तमान समय में अणु खनिजों का महत्व विशेष रूप से बढ़ गया है, इसका कारण यह है कि अणु खनिजों से ही अणु शक्ति की प्राप्ति होती है और आजकल विश्व का प्रत्येक विकसित एवं विकासशील देश अणु शक्ति का विकास करने के लिए प्रयत्नशील है।
अणु खनिजों में यूरेनियम, थोरियम, बेरीलियम एवं जिरकोनियम मुख्य है। कुछ मात्रा में मोनोजाइट खनिज से भी यूरेनियम यूरेनियम प्राप्त होता है और भारत में यह सभी अणु खनिज पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हैं। इसलिए भारत में विश्व के अन्य देशों की तुलना में अणु शक्ति का विकास सुगमतापूर्वक वृहद् पैमाने पर किया जा सकता है। भारत में प्राप्त होने वाले अणु खनिजों का विवरण इस प्रकार है-
यूरेनियमः- यूरेनियम की प्राप्ति अनेक शैलों से होती है, किन्तु उनमें से कुछ ही शैल ऐसे होते हैं, जिनमें यूरेनियम की अधिक मात्रा में उपलब्ध होता है। भारत में यूरेनियम विगत 50 वर्षों से निकाला जा रहा है, किन्तु द्वितीय विश्व युद्ध से पूर्व ही जहां से यह खनिज निकाला जाता था, उस भण्डार में इस खनिज की समाप्ति हो गई.। सन् 1949 में पुनः यूरेनियम के दो नए क्षेत्रों के बारे में पता चला, जिसमें एक क्षेत्र बिहार के सिंहभूमि जिले में 96 किलोमीटर लम्बी पट्टी में यह खनिज फैला हुआ है, यह क्षेत्र सिंहभूमि जिले का जादुगुडा क्षेत्र है। यहाँ पर 1000 फीट की गहराई में यूरेनियम विद्यमान होने के प्रमाण मिले हैं और इसका दूसरा क्षेत्र मध्य राजस्थान में है।
सिंहभूमि के जादुगुडा में एक यूरेनियम मिल की स्थापना भी की जा रही है जिससे 1000 टन संशोधित यूरेनियम तैयार किया जाएगा। मोनोजाइट, चेरालाईट एवं पेग्माटाइट केरल, तमिलनाडु एवं आन्ध्र प्रदेश के तटीय क्षेत्रों के रेत में पाया जाता है। चिलका झील का समीपवर्ती तट एवं गोदावरी डेल्टा मोनोजाइट के मुख्य क्षेत्र है। केरल एवं तमिलनाडु की तटीय बालू में 0.5 से 2.0 तक मोनोजाइट मिलता है। भारतीय मोनोजाइट में 0.2 से 0.46 प्रतिशत तक यूरेनियम ऑक्साइड प्राप्त होता है।
राजस्थान के कई क्षेत्रों में यूरेनियम प्राप्त होता है। अलवर में सन 1951-52 से फ्रॉन्स के सहयोग से विरल खनिजों को तैयार करने का एक कारखाना बना, जिससे प्रतिवर्ष 1,500 मीट्रिक टन मोनोजाइट तैयार किया जाता है। चेरालाईट खनिज भी सामान्यतः मोनोजाइट के साथ ही मिलता है और इसमें यूरेनियम 2 से 6 प्रतिशत तक मिलता है।
राजस्थान के उदयपुर नगर से 75 किलोमीटर दक्षिण-पूर्व में उभरा नामक स्थान पर अत्यन्त समृद्ध यूरेनियम अयस्क प्राप्त हुआ है। 0.4 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में अलग-अलग स्थानों पर पाँच यूरेनियम ताल प्राप्त हुए है, जो भिन्न-भिन्न आकार के है। कुछ ताल तो 25 फीट लम्बे एवं 5 फीट चौड़े तथा 20 फीट तक गहरे हैं।
उदय सागर क्षेत्र से जो उभरा क्षेत्र से 9.6 किलोमीटर उत्तर-पश्चिम दिशा में स्थित है, में भी कार्बनमय क्लोराइड एवं गारनेटमय फॉयलाइट की शिलाएं प्राप्त हुई हैं। क्लोराइड शिलाओं एवं गारनेटमय फायलाइट में ही रेडियो सक्रिय खनिज प्राप्त होते हैं। सिलिकामय प्रस्तर खण्डों में जो लौह एवं मैग्नीशियम हैं उनमें भी पर्याप्त मात्रा में रेडियो सक्रियता मापी गई है
रावली की पर्वत श्रेणीमाला के पूर्वी भाग पर भीलवाड़ा जिले के यूनास नामक स्थान पर यूरेनियम अयस्क का भण्डार मिला है, यहाँ पर पेग्मेटाइट शिलाएं ताल के रूप में प्राप्त हुई हैं केरल के पर्वतीय प्रदेश में पेग्माटाइट पाया जाता है जिसमें 4 प्रतिशत तक यूरेनियम ऑक्साइड मिलता है। हिमालय क्षेत्र के निकटवर्ती हिमाचल प्रदेश के कुल्लू एवं उत्तर प्रदेश के चमोली जिले में भी यूरेनियम के नए भण्डार प्राप्त हुए हैं।
भारत में यूरेनियम का कुल भण्डार 3,000 मीट्रिक टन है। यह यूरेनियम उन शैलों में है जिनमें 0.1 प्रतिशत यूरेनियम प्राप्त हो सकता है। भारत सरकार नए यूरेनियम क्षेत्रों की खोज में जारी है। इलेक्ट्रॉनिक कॉरपोरेशन ऑफ इण्डिया लिमिटेड सार्वजनिक क्षेत्र की संस्था भी यूरेनियम की खोज मंे प्रयत्नशील है। इस प्रयास के फलस्वरूप उत्तर प्रदेश के देहरादून में बन्दले से झण्डाधार तक 5,500 मीटर लम्बी पट्टी में पर्याप्त मात्रा में यूरेनियम का भण्डार खोजा गया है। इसी प्रक्रिया में मध्य प्रदेश में सरगुजा एवं दुर्ग जनपदों में भी यूरेनियम के भण्डार प्राप्त हुए हैं।
थोरियम-थोरियम की प्राप्ति मोनोजाइट अयस्क से होती है, जो विरल धातुओं लेन्थेनम, प्रेसि पोडियम, नियोडियम एवं सेमेरियम तथा मुख्य रूप से सीरियम का आर्थाेफॉस्फेट है। थोरियम कोमल एवं सीसे के सदृश धातु होती है जो कैल्शियम एवं कैल्शियम क्लोराइड के साथ निष्क्रिय वातावरण में अनाक्सीकरण द्वारा प्राप्त की जा सकती है। थोरियम एक भारी श्वेत पदार्थ होता है, जो अनेक कार्यों में उपयोगी होता है। यह औषधियों एवं रसायन बनाने में उपयोगी होता है। वर्तमान समय में इसका उपयोग आणविक ईंधन के रूप में किया जा रहा है। थोरियम का एक समस्थानिक थोरियम-233 न्यूट्रॉन की बमबारी से भी उत्पन्न होता है।
भारत में नीलगिरि (तमिलनाडु), हजारी-बाग, राँची (बिहार) मेवाड़ (राजस्थान), पश्चिमी घाट एवं तमिलनाडु के ग्रेनाइट के क्षेत्रों में थोरियम कणों के रूप में प्राप्त होता है। केरल क्षेत्र में 5,00,000 मीट्रिक टन श्रेष्ठ प्रकार का थोरियम है.। बिहार में थोरियम के नए क्षेत्रों की खोज की गई है, जिनमें 3,00,000 मीट्रिक टन थोरियम के भण्डार होने का अनुमान है। केरल के चावरा एवं मद्रास के मानावाला, कुरीची में थोरियम के स्थान प्राप्त हुए है। इन स्थानों की रेत से प्राप्त मोनोजाइट में थोरियम की मात्रा 7.5 से 9 प्रतिशत तक एवं यूरेनियम ऑक्साइड की मात्रा 0.3 से 0.4 प्रतिशत तक होती है। केरल तट की काली रेत में 4 से 5 प्रतिशत मोनोजाइट पाया जाता है और केरल के इन बालू कणों से 2 लाख टन से अधिक थोरियम प्राप्त होने की सम्भावना व्यक्त की गई है। नर्मदा एवं महानदी के डेल्टाई क्षेत्रों से भी पर्याप्त मात्रा में थोरियम प्राप्त होने की सम्भावना है। आन्ध्र प्रदेश एवं तमिलनाडु के तट पर भी थोरियम के भण्डार बालू-कण में प्राप्त किए गए हैं।
बेरेलियम- बेरेलियम की प्राप्ति बेरील नामक खनिज से होती है। भारत के अभ्रक क्षेत्रों में मेग्नाइटा शैलों में बेरील खनिज मिलता है। यह खनिज बिहार, आन्ध्र प्रदेश एवं राजस्थान में मिलता है। भारत में प्रतिवर्ष लगभग 1,000 मीट्रिक टन बेरील खानों से निकाला जाता है। इस प्रकार बेरील उत्पादन की दृष्टि से भारत का विश्व में प्रथम स्थान है। मध्य प्रदेश, आन्ध्र प्रदेश, जम्मू-कश्मीर तथा तमिलनाडु में बेरील के नए क्षेत्रों की खोज की जा रही है। भारत में प्राप्त बेरील में बेरीलियम की मात्रा भी अन्य देशों की तुलना में अधिक है।
जिरकोनियम- जिरकोनियम की प्राप्ति जिरकान नामक खनिज से होती है। केरल की तटीय बालू में जिरकान प्रचुर मात्रा में उपलब्ध पाया जाता है और इसी क्षेत्र में इल्मेनाइट भी प्राप्त होता है। इल्मेनाइट खनिज से भी जिरकोनियम की प्राप्ति होती है। केरल में जिरकोनियम का संचित मण्डार उपलब्ध है।
लेखकः प्रोफेसर आर. एस. सेंगर, निदेशक प्रशिक्षण, सेवायोजन एवं विभागाध्यक्ष प्लांट बायोटेक्नोलॉजी संभाग, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।