लघु एवं सीमान्त कृषि जोतो की कृषि आय को दोगुना करने के उपाय      Publish Date : 04/06/2025

लघु एवं सीमान्त कृषि जोतो की कृषि आय को दोगुना करने के उपाय

                                                                                                                                    प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 रेशु चौधरी

कृषि देश का सबसे महत्वपूर्ण आधार है। देश की 68.5 प्रतिशत जनसंख्या ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करती है तथा कृषि के द्वारा देश में कुल कार्य करने वाले लोगों में से 54.6 प्रतिशत को रोजगार प्रदान किया जाता है। देश की 50 प्रतिशत जनसंख्या की आजीविका कृषि पर ही निर्भर करती है तथा कृषि के द्वारा देश की 133 करोड जनसंख्या के लिए खाद्यान्नों को प्रदान करने के अतिरिक्त 512 करोड पशुओं के लिए खाने का उत्पादन किया जाता है।

देश की अर्थवावस्था को सुद्रढ बताने में कृषि की महत्वपूर्ण भूमिका है। वर्ष 2016-17 में  कृषि की देश के कुल निर्यात में 12ः26 नागीदारी रही है। जबकि देश के कुल सकल मूल्य वर्धन (जी बी.ए.) में कृषि का चोगदान सत्र 2017-18 में 17.1 प्रतिशत रहा। इसके अतिरिक्त कृषि में उपयोग किए जाने वाले उपकरणों बाद पेस्टिसाइड्स, बीज, ऊर्जा, खाद्य वस्तुओं एवं मशीनरी के द्वारा सरकार को कर के रूप में प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से काफी आय प्राप्त होती है।

कृषि द्वारा उत्पादित किए जाने वाले कच्चे उत्पाद से अनेक उद्योगों का संचालन होता है तथा कृषि के द्वारा राष्ट्रीय एवं अर्न्तराष्ट्रीय बाजार प्रभावित होता है। अतः कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ है।

वर्ष 1950-51 में देश की जनसंख्या 801 मिलियन थी तथा खाद्यान्नों का कुल उत्पादन 508 मिलियन टन था और देश खाद्यान्नों की मांग पूरी करने के लिए खाद्यान्नों के आयात पर निर्भर था। देश में उन्नत तकनीकियों खाद एवं उर्वरको पेस्टिसाइडस, सीमित क्षेत्र तथा मशीनीकरण में बढ़ोत्तरी, सुद्रढ़ नीतियों, वैज्ञानिको, नीति निधारकों, प्रसार कार्यकताओं तथा किसानों के अथक परिश्रम के कारण वर्ष 2017-18 में खाद्यान्नों का उत्पादन 284.8 मिलियन टन तक पहुंच चुका है। आज हमारा देश न केवल खाद्यान्नों के मामले में आभनिर्भर है बल्कि कई वर्षों से वाद्यान्नों के निर्यात द्वारा विदेशी मुद्रा भी अर्जित कर रहा है।

कृषि क्षेत्र की प्रमुख चुनौतियाँ

यद्यपि देश खाद्यान्नों के उत्पादन के मामले में आत्मनिर्भर है, लेकिन देश खाद्य तेलों की आवश्यकता पूरी करने के लिए आयात पर ही निर्भर है। देश में लगातार जनसंख्या बढ़ने से खाद्यान्नों की माग बढ़ती जा रही है, क्योंकि देश की कृषि अनेक प्रकार की चुनौतियों का सामना कर रही है, जिसका कारण भविष्य में उत्पादन निरंतरता एवं स्थायित्व बनाए रखना अपने आप में एक बहुत कठिम चुनौती है।

1.   लगातार बढ़ती जनसंख्या के कारण खाद्यान्नों की आवश्यकता बढ़ती जा रही है। भूमि का बटवारा होने के कारण कृषि जोती का आकार लगातार कम होता जा रहा है। औसत कृषि जीत का आकार 1970-71 4.2.28 से घटकर वर्ष 2015-16 में 108 है० प्रति व्यक्ति रह गया है। इस प्रकार भूमि की उपलब्धता वर्ष 1950-51 में 0.50 हे0 से घटकर वर्ष 2015 में 0.15 हे० प्रति व्यक्ति ही रह गई है जो अनेक देशों जैसे कतर, अमेरिका, बाजील, ऑस्ट्रेलिया तथा दक्षिण अफ्रीका की अपेक्षा बहुत कम है।

2.   देश के अधिकतर क्षेत्रों में लगातार एक ही प्रकार की फसलीय पद्धति एवं उचित पोषक प्रबंधन के अभाव के कारण मुख्य पोषक तत्वों के साथ-साथ पोषक सूक्ष्म पोषक तत्वों की भी कमी होती जा रही है। देश में 49.46 एवं 12 प्रतिशत भूमियाँ क्रमशः जिंक सल्फर व आयरन की कमी से ग्रस्त है।

3.   कृषि के लिए सिचाई हेतु पानी की मांग बढ़ती जा रही है केंद्रीय जल आयोग के अनुसार वर्ष 2025 तक सिंचाई हेतु 910 तथा वर्ष 2050 में सिचाई हेतु 1072 अरब घन मीटर पानी की आवश्यकता होगी। सिंचाई के लिए पानी के अनुचित उपयोग के कारण भूजल का स्तर गिरता जा रहा है क्योंकि भूमि जल के पुनर्भरण की दर भूजल के दोहन की अपेक्षा कम है। इसके अतिरिक्त पानी की आवश्यकता दूसरे क्षेत्रों जैसे पीने, उद्योगों, ऊर्जा एवं अन्य के लिए बढ़ने के कारण सिंचाई हेतु उचित मात्रा में पानी उपलब्ध करना काफी कठिन होगा। इसके अतिरिक्त जनसँख्या में निरंतर वृद्धि से कारण प्रति व्यक्ति पानी की उपलब्धता भी कम होती जा रही है। वर्ष 1950-51 में पानी की उपलब्धता 5177 घन मी० प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष थी, जो वर्ष 2011 में घटकर 1545 घन मी० प्रति व्यक्ति रह गई है तथा सन 2021 में 1341 तथा सन 2051 में 1140 घन मी प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष रह जाएगी।

4.   कुल शुद्ध क्षेत्र को बढ़ाना असंभव है क्योंकि वर्ष 1970-71 में शुद्ध कृषि क्षेत्र 140.27 मिलियन हे० था जो वर्ष 2017-18 में घटकर 139 मिलियन हैक्टेयर रह गया है। इसके अतिरिक्त भूमि का निम्नीकरण बढ़ता जा रहा है। देश की लगभग 120.72 मि० हे० भूमि खारेपन तथा जलभराव से ग्रसित है।

5.   कृषि की परम्परागत विधियों के द्वारा भूमि, जल, पोषक तत्त्व व ऊर्जा के उपयोग दक्षता में कमी होती जा रही है जिसके कारण फसल उत्पादन खर्च भी बढ़ता जा रहा है तथा भूमि व जल की गुणवत्ता प्रभावित होती जा रही है। इसके अतिरिक्त भूमि की अधिक जुताई करने तथा एक ही प्रकार की फसलों की खेती करने एवं उसमे कार्बनिक खाद न प्रयोग करने से भूमि की संरचना भी कुप्रभावित हो रही है। भूमि में नीचे सख्त सतह बनने के कारण पानी का अन्तः श्रवण तथा भूमि की जलधारण करने की क्षमता कम होती जा रही है। जिसके कारण फसल उत्पादन प्रभावित हो रहा है।

6.   देश में लगभग 52 प्रतिशत भूमि पर वर्षा आधारित खेती की जाती है और इसके द्वारा देश में कुल खाद्यान्नों के उत्पादन का 44 प्रतिशत भाग उत्पन्न किया जाता है तथा वर्षा आधारित खेती पर देश की 40 प्रतिशत मानव व 66 प्रतिशत पशु संख्या निर्भर है लेकिन वर्षा आधारित खेती की औसत उपज सिंचित क्षेत्रों की द्रष्टि से काफी कम है तथा इन क्षेत्रों में प्रति व्यक्ति खाद्यान्नों की उपलब्धता केवल 260 कि०ग्रा/व्यक्ति/वर्ष है। वर्षा आधारित क्षेत्रों में जलवायु, भूमियों तथा सामजिक एवं आर्थिक स्थिति फसल उत्पादन को बहुत ही प्रभावित करता है।

7.   जलवायु परिवर्तन का प्रभाव पूरे विश्व में महसूस किया जाने लगा है। वायु मंडल में कार्बनडाई ऑक्साइड, मीथेन नाईट्रस ऑक्साइड तथा क्लोरोफ्लोरोकार्बन गैसों की मात्रा औद्योगिकीकरण के बाद बहुत तेजी से बढ़ी है जिसके कारण वायुमंडल का तापमान आई पी सी सी की रिपोर्ट के अनुसार 12 डिग्री सेन्टीग्रेड औद्योगिकीकरण के पहले की अपेक्षा अधिक बढ़ा है। भारतीय मौसम विज्ञान के अनुसार वर्ष 1901 से 2018 के आँकड़ों के अनुसार पिछले 100 वर्षों में भारत में 0.6 से०ग्रे० तापमान की वृद्धि पाई गई है। वर्ष 2018 पिछले 117 वर्षों में छठवां सबसे गर्म एवं सबसे कम मानसूनी वर्षा वाला साल पाया गया है। विश्व बैंक की ताजा रिपोर्ट के अनुसार जलवायु परिवर्तन के कारण भारत सकल घरेलू उत्पाद (जी डी पी) वर्ष 2050 तक 2.8 प्रतिशत तक कम हो सकता है तथा वर्ष 1970 से 2016 के मध्य लगभग 0.48 डिग्री से०ग्रे० तापमान में बढ़ोत्तरी तथा 26 मिमी, वर्षा में कमी पाई गई है। जलवायु परिवर्तन के कारण सिंचित क्षेत्रों में 15-18 तथा असिंचित क्षेत्रों में 20-25 पतिशत तक फार्म आय में कमी हो सकती है।

8.   देश में खाद्यान्नों, खाद्य तेलों, दूध, अंडा, फल व सब्जी एवं मीट के उत्पादन में काफी बढ़ात्तरी के उपरान्त भी देश की पूरी जनसंख्या खाद्य एवं पोषक सुरक्षा से वंचित है। विश्व खाद्य संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार देश जो 19:49 करोड़ लोग कुपोषण से ग्रसित है।

9.   किसानों की राय को दोगुनी करने वाली समिति के अनुसार देश में जोत की औसत आय रू० 96703 प्रति जोत है जबकि लघु एवं सीमान्त जोत की औसत आय केवल रु० 19779 प्रति वर्ष है। किसानों की आजीविका चलाने के लिए यह आय बहुत ही कम है। देश में 50 प्रतिशत से अधिक ऐसे किसान परिवार है, जिनकी आजीविका का खर्च उनकी आय से अधिक है। परिणामस्वरूप किसान कर्ज से दबे रहते है। अतः किसानों की आय बढ़ाना बहुत ही आवश्यक है।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।