
विश्व में अपनाई जाने वाली विभिन्न टिकाऊ कृषि प्रथाएं Publish Date : 02/06/2025
विश्व में अपनाई जाने वाली विभिन्न टिकाऊ कृषि प्रथाएं
प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 रेशु चौधरी
ग्लोबल वार्मिंग के दुष्प्रभाव जीवन के लगभग प्रत्येक क्षेत्र में स्पष्ट रूप से देखे जा सकते है। इसका सबसे बड़ा प्रभाव है मौसम और प्रर्यावरण में आया बदलाव। यही बदलाव पृथ्वी पर कई प्राकृतिक विपत्तियों जैसें अपर्याप्त वर्षा या सूखा पडना या असमय वर्षा का होना और बाढ़ आदि का कारण है। पृथ्वी के उत्तरी क्षेत्र में अब कई प्राकृतिक विपत्तियों की अवृत्ति बढ गई है। भूकप की गतिविधयाँ अधिक होने लगी है, जिसका कारण बढता तापमान है।
अगर तापमान बढता ही जाएगा तो यह गतिविधयाँ और भी तेज होती जांएगी। इसी प्रकार ग्लोबल वार्मिंग से अकाल, बाढ और तूफान की भी भारी संभावना रहती है। ग्लोबल वार्मिंग के बढने से पृथ्वी ने अपना पर्यावरण संतुलन खो दिया है। ये परिणाम आज हम लोग देख ही रहे है और कल हम भी इसके शिकार होंगे। इसलिये अभी से हम लोग सचेत न हुए तो हमें अत्याधिक नुकसान उठाना पड़ेगा। अतः अब आवश्यक है कि हमें ग्लोबल वार्मिंग के कारणों पर ध्यान देकर उन कारणों पर नियंत्रण करें।
इसी परिप्रेक्ष्य में आज विश्व विभिन्न टिकाऊ कृषि पद्धतियों को अपनाकर भूमि का पोषण कर रहा है, जो कृषि से होने वाले उत्सर्जन को कम करके और वातावरण से कार्बन डाइऑक्साइड को निकालकर पौधों के बायोमास और मिट्टी में वापस संग्रहीत करके जलवायु परिर्वतन के जोखिमों को कम करने में मदद कर सकता है। दुनिया भर में अपनाई जाने वाली कुछ टिकाऊ कृषि पद्धतियाँ इस प्रकार से हैं:-
(1) क्लाइमेट स्मार्ट एग्रीकल्चरः- ‘‘क्लाइमेट-स्मार्ट एग्रीकल्चर (सीएसए)’’ एक ऐसा दृष्टिकोण है, जो कृषि-खाद्य प्रणालियों को हरित और जलवायु लचीली प्रथाओं में बदलने के लिए कार्यों को निर्देशित करने में सहायता प्रदान करता है। इसका लक्ष्य तीन मुख्य उद्देश्यों से निपटना हैः-
(क) कृषि उत्पादकता और किसान की आय में सतत् वृद्वि।
(ख) जलवायु परिवर्तन के प्रति अनुकूलन और लचीलापन बनाना।
(ग) जहां तक संभव हो, ग्रीनहाउस गैस उर्त्सजन को कम करना और/या हटाना।
ब्राजील, चीन और फिलीपींस जैसे देश भी विभिन्न यूरोपीय देशों के साथ-साथ विकासशील देश भी क्लाइमेट स्मार्ट एग्रीकल्चर को अपना रहे हैं। यूरोपीय संघ को वर्ष 2030 तक अतिरिक्त् 20 प्रतिशत किसानों के द्वारा सीएसए अपनाए जाने की उम्मीद है।
(2) पुनर्योजी कृषि- पुनर्योजी कृषि एक समग्र कृषि प्रणाली है जो मिट्टी के स्वाथ्य, भोजन की गुणवत्ता, जैव विविधता में सुधार, जल की गुणवत्ता और वायु की गुणवत्ता पर ध्यान केंद्रित करती है। यह मिट्टी के कार्बनिक पदार्थ, बायोटा और जैव विविधता को बढाने वाली प्रक्रियाओं के माध्यम से मिट्टी के स्वास्थ्य में व्यापक सुधार करती है। इसका उद्देश्य जमीन की जल-धारण क्षमता और कार्बन पृथक्किरण की क्षमता को भी बढाना है।
संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे देश व्यापक रूप से पुनर्योजी कृषि का अभ्यास किया जा रहा हैं। यह आधार रेखा जैविक खेती के सफल होने के बाद की है।
3) कोरिया में प्राकृतिक खेती- कोरियाई प्राकृतिक खेती भी कर रहे हैं जिसमें पोषक तत्वों की कमी वाली मिट्टी में अकार्बनिक विधियों के स्थान पर बैक्टीरिया, कवक, नीमाटोड और प्रोटोजोआ जैसे स्वदेशी सूक्ष्मजीवों (आईएमओ) का संवर्धन और अनुप्रयोग शामिल है।
4) कृषि विकास लक्ष्य (एसडीजी): कृषि विकास लक्ष्य संख्या 12 ‘जिम्मेदार उपभोग और उत्पादन सुनिश्चित करें। पारिस्थितिकी तंत्र को निशाना किए बिना और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम किए बिना सभी के लिए सुरक्षित और पर्याप्त भोजन की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए स्थायी कृषि उत्पादन प्रक्रियाओं को बढावा देने के लिए सभी संयुक्त फिल्टर, राज्यों के द्वारा तत्काल कार्यवाई करने का आह्वान किया है।
एफएओ के अनुसार, टिकाऊ या पुनर्योजी कृषि के रूप में बेकार प्रक्रियाओं की पहचान, प्रचलित और कार्यान्वयन के माध्यम से मिट्टी 25 वषों में लगभग 20,000 लाख टन कार्बन का उत्सर्जन कर सकती है, जो मानव जाति के उत्सर्जन का 10 प्रतिशत से अधिक है।
लेखकः प्रोफेसर आर. एस. सेंगर, निदेशक प्रशिक्षण, सेवायोजन एवं विभागाध्यक्ष प्लांट बायोटेक्नोलॉजी संभाग, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।